Rajasthan

Churu

669/2011

JAI SINGH - Complainant(s)

Versus

J.V.V.N.L. rajgarh - Opp.Party(s)

SANJAY SIHAG

15 Oct 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 669/2011
 
1. JAI SINGH
VPO BAS MAMRAJ RAJGARH CHURU
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

प्रार्थी की ओर से श्री संजय सिहाग अधिवक्ता उपस्थित।  अप्रार्थीगण की ओर से श्री विनोद दनेवा अधिवक्ता उपस्थित। पक्षकारान की बहस सुनी गई। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों केा दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने अप्रार्थीगण से एक विद्युत कनेक्शन जिसके खाता संख्या 0307-00-28-7 15 एच.पी. लोड़ का स्वीकृत करवा कर प्राप्त किया हुआ है। प्रार्थी ने उक्त स्वीकृत लोड़ से अधिक लोड़ का उपयोग कभी भी नहीं किया। फिर भी अप्रार्थीगण सितम्बर 2007 से बिना प्रार्थी के कुंए की विद्युत मोटर के लोड़ की जांच किये बगैर प्रार्थी के विद्युत लोड़ 15 एच.पी. से बढ़ाकर 20 ए.पी. कर दिया व 33 प्रतिशत बिल राशि बढ़ाकर प्रार्थी को बिल जारी कर दिया। प्रार्थी ने अप्रार्थीगण द्वारा उक्त लोड़ बढ़ा के विरोध में बार-बार निवेदन किया व प्रार्थी के मीटर की जांच करवा कर सही लोड अंकित कर संशोधित बिल जारी करने का निवेदन किया। परन्तु अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के निवेदन पर कोई कोई गौर नहीं किया व मनमाने तरीके से 20 एच.पी. के लोड पर बिल जारी करते रहे। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादेाष की श्रेणी में आता है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यह दिया कि प्रार्थी का परिवाद मियाद बाहर है क्योंकि प्रार्थी ने सितम्बर 2007 में जारी बिलों को चूनौती दी है। विधि अनुसार इस मंच में कोई भी परिवाद वाद हेतुक की दिनांक से 2 वर्ष के अन्दर-अन्दर पेश किया जा सकता है। यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी के यहां अप्रार्थी विभाग द्वारा विद्युत मोटर की जांच की गयी जिसमें प्रार्थी का विद्युत लोड 20 एच.पी. पाया गया था। जिसके अनुसार ही प्रार्थी को विद्युत विपत्र जारी किये गये उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

           प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, असल बिल दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है। अप्रार्थीगण की ओर से लोड की जांच रिपोर्ट दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत की है। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।

           हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यह दिया है कि प्रार्थी का परिवाद मियाद बाहर है। इस सम्बंध में हम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24 ए0 का उल्लेख कर रहे है। धारा 24 । के अनुसार ;1द्ध ज्ीम क्पेजतपबज थ्वतनउए जीम ैजंजम ब्वउउपेेपवद वत जीम छंजपवदंस ब्वउउपेेपवद ेींसस दवज ंकउपज ं बवउचसंपदज नदसमेे पज पे पिसमक ूपजीपद जूव लमंते तिवउ जीम कंजम वद ूीपबी जीम बंनेम व िंबजपवद ींे ंतपेमदण्  ;2द्ध छवजूपजीेजंदकपदह ंदलजीपदह बवदजंपदमक पद ेनइ.ेमबजपवद ;1द्धए ं बवउचसंपदज उंल इम मदजमतजंपदमक ंजिमत जीम चमतपवक ेचमबपपिमक पद ेनइ.ेमबजपवद ;1द्धए प िजीम बवउचसंपदंदज ेजपेपिमे जीम क्पेजतपबज थ्वतनउए जीम ैजंजम ब्वउउपेेपवद वत जीम छंजपवदंस ब्वउउपेेपवदए ंे जीम बंेम उंल इमए जींज ीम ींक ेनििपबमपदज बंनेम वित दवज पिसपदह जीम बवउचसंपदज ूपजीपद ेनबी चमतपवकरू च्तवअपकमक जींज दव ेनबी बवउचसंपदज ेींसस इम मदजमतजंपदमक नदसमेे जीम छंजपवदंस ब्वउउपेेपवदए जीम ैजंजम ब्वउउपेेपवद वत जीम क्पेजतपबज थ्वतनउए ंे जीम बंेम उंल इमए तमबवतके पजे तमंेवदे वित बवदकवदपदह ेनबी कमसंलण्  धारा 24 । के अवलोकन से स्पष्ट है कि कोई भी परिवाद जिला मंच, राज्य आयोग व राष्ट्रीय आयोग वाद हेतुक उत्पन्न होने की दिनांक के 2 वर्ष के अन्दर-अन्दर पेश किया जा सकता है। इस धारा में यह भी अंकित है कि यदि कोई परिवाद 2 वर्ष के बाद पेश किया जाता है तो ऐसे प्रार्थी को निर्धारित 2 वर्ष की अवधि में परिवाद नहीं पेश करने का पर्याप्त कारण देना होगा। उक्त धारा के परिपेक्ष मंच को अब यह देखना है कि वर्तमान परिवाद में प्रार्थी को परिवाद हेतुक कब प्राप्त हुआ। चूंकि स्वंय प्रार्थी ने अपने परिवाद की चरण संख्या 3 में यह स्पष्ट अंकित किया है कि अप्रार्थीगण ने सितम्बर 2007 से प्रार्थी का विद्युत लोड 15 एच.पी. से 25 एच.पी. कर दिया। प्रार्थी के स्वंय के कथनानुसार इस मंच में परिवाद धारा 24 ए0 के संदर्भ में सितम्बर 2007 से सितम्बर 2009 तक पेश होना चाहिए था। जबकि प्रार्थी ने इस मंच में परिवाद दिनांक 21.07.2011 को पेश किया है और प्रार्थी ने मियाद के सम्बंध में अपने परिवाद के साथ मियाद हेतु कोई भी प्रार्थना-पत्र या शपथ-पत्र पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया। जबकि स्वंय प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत असल बिलों के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रार्थी को उक्त अधिक विद्युत भार का ज्ञान सितम्बर 2007 में ही हो गया था और प्रार्थी ने समय-समय पर अप्रार्थीगण विभाग द्वारा जारी विद्युत पत्रों के पेटे पार्ट पेमेन्ट के रूप में 20 एच.पी. विद्युत भार के हिसाब से जमा करवायी है। प्रार्थी ने अपने परिवाद के साथ ऐसा भी कोई दस्तावेज पेश नहीं किया जिससे यह साबित हो कि प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां विद्युत भार बढ़ने के विरोध मंे कोई प्रार्थना-पत्र पेश किया हो। इसलिए मंच की राय में प्रार्थी स्वंय के कथनानुसार प्रार्थी को प्रथम बार विद्युत भार बढ़ने का ज्ञान सितम्बर 2007 में हो गया था जबकि प्रार्थी ने परिवाद 21.07.2011 को पेश किया है जो कि स्पष्ट रूप से मियाद बाहर है। इसलिए प्रार्थी का परिवाद कालबाधित होने के आधार पर खारिज किये जाने योग्य है।

           अतः प्रार्थी का परिवाद कालबाधित होने के आधार पर अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।

 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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