Mahesh Chand Agrawal filed a consumer case on 18 Feb 2015 against J.V.V.N.L. Jaipur in the Jaipur-IV Consumer Court. The case no is CC/1048/2012 and the judgment uploaded on 17 Mar 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर
पीठासीन अधिकारी
डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष
डाॅ. अलका शर्मा, सदस्या
श्री अनिल रूंगटा, सदस्य
परिवाद संख्या:-1048/2012 (पुराना परिवाद संख्या 1328/1996)
श्री महेश चन्द अग्रवाल पुत्र श्री एस.डी.अग्रवाल, निवासी- पाथरेड़ी, तहसील पावटा, कोठपुतली, जिला जयपुर (राजस्थान) ।
परिवादी
बनाम
01. राजस्थान राज्य विद्युत मण्डल जरिये सचिव ।
02. राजस्थान राज्य विद्युत मण्डल जरिये सहायक अभियन्ता, पावटा, जिला जयपुर ।
विपक्षीगण
उपस्थित
परिवादी की ओर से श्री देवेन्द्र मोहन माथुर, एडवोकेट
विपक्षीगण के विरूद्ध एकतरफा कार्यवाही
निर्णय
दिनांकः-18.02.2015
यह परिवाद, परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध दिनंाक 26.11.1996 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया हैः-
परिवादी ने विपक्षीगण से एक विद्युत कनेक्शन अपनी आजीविका कमाने के उद्देश्य से ग्राम पाथरेडी, पावटा, तहसील कोठपुतली, जिला जयपुर में आटे की चक्की लगाने के लिए वर्ष 1989 में लिया था । और इसके लिए परिवादी ने विपक्षीगण के कार्यालय में 395/-रूपये दिनंाक 29.04.1989 को जमा करवाये थे । लेकिन उक्त राशि जमा कराने के बाद में भी विपक्षीगण ने परिवादी के परिसर में नया विद्युत मीटर नहीं लगाकर सेवा में भारी लापरवाही कारित की हैं । और इसके स्थान पर परिवादी को विपक्षीगण द्वारा औसत बिल भेजे जा रहे हैं । विपक्षीगण ने परिवादी को अंतिम बिल दिनंाक 13.07.1994 को औसत विद्युत उपभोग का भेजा हैं । इसके बाद वर्ष 1995 में विपक्षीगण ने परिवादी का मीटर जल जाने के बाद में भी मीटर नहीं बदलकर वर्तमान पठन शून्य तथा गत पठन 8275 यूनिट बताते हुए सितम्बर,1995 में 18,988.45 रूपये का बिल भेजा हैं । फिर जुलाई,1996 में विपक्षीगण की ओर से परिवादी को 42,083/-रूपये बिल अवैध रूप से जमा कराने के संदर्भ में भेजा हैं । और विपक्षीगण ने अंततः दिनंाक 30.09.1995 को परिवादी का विद्युत कनेक्शन विच्छेदित कर दिया तथा उसकी सर्विस लाईन उतार ली ।
इस प्रकार विपक्षीगण ने अवैध रूप से तैयार किया गया विद्युत बिल परिवादी को भेजकर और परिवादी को सुनवाई का अधिकार दिये बिना उसका विद्युत कनेक्शन विच्छेदित करके सेवादोष कारित किया हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी अब विपक्षीगण से परिवाद के मद संख्या 15 में अंकित सभी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षीगण की ओर से जवाब परिवाद प्रस्तुत नहीं किया गया ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादी श्री महेश चन्द अग्रवाल ने स्वयं का शपथ पत्र प्रस्तुत करने के साथ-साथ कुल 11 पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत किये गये । अंत में दिनांक 30.04.2013 को परिवादी की ओर से उसके द्वारा जमा कराये गये विद्युत बिलों की छाया प्रतियों का अभिलेख कुल 15 पृष्ठों में प्रस्तुत किया गया । जबकि विपक्षीगण की ओर से श्री एस.के.अग्रवाल का शपथप पत्र एवं कुल 12 पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत किये गये ।
विपक्षीगण के विरूद्ध दिनांक 25.11.2014 को एकतरफा कार्यवाही अमल मेें लाने के आदेश दिये गये ।
बहस परिवादी सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
परिवादी की ओर से लिखित तर्क एवं न्याय सिद्धान्त प्प् ;2012द्ध ब्च्श्र 165 प्रस्तुत किया गया ।
विपक्षीगण के विरूद्ध एकतरफा कार्यवाही अमल में लाने जाने के बावजूद आज राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बैंच नम्बर 01, राजस्थान, जयपुर, अपील संख्या 718/2014, विजय कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, निर्णय दिनांक 03.11.2014 की प्रति प्रस्तुत की गई ।
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने विपक्षीगण से उसका विद्युत मीटर दिनंाक 25.04.1989 को जल जाने के कारण दिनंाक 29.04.1989 को 395/-रूपये नया विद्युत मीटर लगाने हेतु जमा करवाये दिये थे । लेकिन इसके बावजूद भी विपक्षीगण ने दिनंाक 18.09.1995 तक परिवादी का विद्युत मीटर नहीं बदला और अंत में परिवादी का विद्युत कनेक्शन दिनांक 30.09.1995 को कनिष्ठ अभियन्ता, पावटा ने काट दिया । इसके बाद विपक्षीगण ने परिवादी को दिनांक 30.11.1995 को विद्युत बिल भेजा जबकि दो माह पूर्व ही परिवादी का विद्युत कनेक्शन विपक्षीगण के स्तर पर काट दिया गया था । इस आशय का पत्र उपाबन्ध-2 दिनंाकित 19.12.1995 परिवादी ने विपक्षीगण के कार्यालय में प्रस्तुत किया तो उसमें विपक्षीगण के कनिष्ठ अभियन्ता (व् - डद्ध, पावटा ने यह पृष्ठांकित किया था कि ’परिवादी का विद्युत कनेक्शन दिनंाक 30.09.1995 को बकाया राशि होने के कारण काट दिया गया था । उतारा हुआ विद्युत मीटर जला हुआ था । उसकी सर्विस लाईन भी उसी दिन उतार ली गई थी और जले हुए विद्युत मीटर की रीडिंग पढ़ना सम्भव नहीं था ।’ इसके बाद परिवादी ने चैयरमेन, राजस्थान राज्य विद्युत मण्डल, राजस्थान, जयपुर को उपाबन्ध-3 पत्र प्रस्तुत किया तो विपक्षीगण के सहायक अभियन्ता (व् - डद्ध, पावटा ने उपाबन्ध-4 पत्र दिनंाकित 22.05.1996 केे माध्यम से परिवादी को बकाया राशि जमा कराने के निर्देश जारी किये । जिस पर परिवादी ने विपक्षीगण को कानूनी नोटिस उपाबन्ध-5 दिनंाकित 01.08.1996 दिया ।
इस प्रकार दस्तावेजी साक्ष्य के माध्यम से यह स्पष्ट है कि परिवादी का विद्युत मीटर दिनांक 25.04.1989 को ही जल गया था और इस संबंध में परिवादी ने विपक्षीगण के कार्यालय में उपाबन्ध-1 पत्र प्रस्तुत कर दिया था । जिसके संबंध में आवश्यक आदेश भी विपक्षीगण के सक्षम अधिकारी ने पृष्ठांकित कर दिया था । लेकिन फिर भी विपक्षीगण ने परिवादी का विद्युत मीटर दिनांक 18.09.1995 तक नहीं बदला बल्कि दिनंाक 30.09.1995 को परिवादी का विद्युत कनेक्शन काट दिया । इस प्रकार विपक्षीगण के कर्मचारियों/अधिकारियों ने परिवादी द्वारा मीटर जल जाने की सूचना देने और नवीन मीटर लगाने के आदेश के बावजूद मीटर नहीं बदलकर सेवादोष कारित किया हैं ।
इसके अतिरिक्त विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत दस्तावेज प्रदर्श आर-1, प्रदर्श आर-2 एवं प्रदर्श आर-3 मीटर रीडिंग रिकाॅर्ड दर्शाते हैं कि परिवादी की विद्युत लाईन दिनांक 30.09.1995 को हटाई गई थी । जून,1995 में उसकी विद्युत लाईन चालू थी। लेकिन इन दस्तावेजों का हमारे विनम्र मत में कोई मूल्य नहीं हैं क्योंकि विपक्षीगण की ओर से उपरोक्त दस्तावेजों को लेकर केाई विभागीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई हैं । जबकि इन सब के विपरीत परिवादी द्वारा प्रस्तुत उपाबन्ध-1 दस्तावेज से यह प्रमाणित हैं कि परिवादी का विद्युत मीटर दिनांक 25.04.1989 को जल गया था और उसके तत्काल बाद विपक्षीगण को परिवादी का विद्युत मीटर नियमानुसार बदल देना चाहिये था । जो विपक्षीगण ने दिनंाक 18.09.1995 तक नहीं बदला और अंत में दिनंाक 30.09.1995 को परिवादी की सर्विस लाईन को उसे बिना कोई युक्तियुक्त कारण बताये काट दी । और उपरोक्त अवधि में परिवादी को विपक्षीगण ने जो विद्युत बिल भेजे थे उनकी बकाया राशि के संबंध में परिवादी ने जब अध्यक्ष, राजस्थान राज्य विद्युत मण्डल, जयपुर को पत्र भेजा तो सहायक अभियन्ता (व् - डद्ध, पावटा ने प्रदर्श आर-6 पत्र दिनंाकित 18.07.1996 परिवादी को लिखकर अवगत कराया कि ’परिवादी पर दिनंाक 30.09.1995 तक 20,314/-रूपये की राशि बकाया थी और इस पर 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से ब्याज भी देय था । इस कारण उसका विद्युत कनेक्शन विच्छेद किया गया हैं ।’ इसके विपरीत परिवादी ने विपक्षीगण की उसकी ओर बकाया उपरोक्त राशि को जमा करवा दिया हो, इस बारे में कोई तथ्य परिवादी की ओर से नहीं बताये गये हैं ।
इस प्रकार विपक्षीगण की 20,314/-रूपये की राशि परिवादी पर बकाया थी, यह बात विपक्षीगण के उपरोक्त पत्र प्रदर्श आर-6 दिनंाकित 18.07.1996 से प्रमाणित हैं । इसका कोई खण्डन भी अभिलेख पर परिवादी की ओर से नहीं किया गया हैं । यह विद्युत बिलों की वह राशि थी जो विपक्षीगण ने औसत विद्युत बिलों की गणना करके परिवादी से मांगी थी । इसे जमा कराने का दायित्व निश्चित रूप से परिवादी का था । इसलिए जब तक परिवादी प्रदर्श आर-6 पत्र दिनंाकित 18.07.1996 के अनुरूप उसकी ओर विद्युत बिलों की बकाया राशि विपक्षीगण विभाग में जमा नहीं करवा देता हैं तब तक वह विपक्षीगण से पुनः विद्युत कनेक्शन परिवाद के मद संख्या 15 (1) में चाहे गये अनुतोष के अनुरूप प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हैं ।
इस प्रकार विपक्षीगण ने परिवादी का विद्युत मीटर उसके द्वारा मीटर कोस्ट जमा करवा देने के बावजूद दिनंाक 29.04.1989 से 18.09.1995 तक नहीं बदलकर सेवादोष कारित किया है । और इस संदर्भ में परिवादी ने परिवाद के मद संख्या 15 (2) में जो अनुतोष चाहा हैं वह हमारे विनम्र मत में परिवादी को दिलाया जाना सम्भव हैं क्योंकि निश्चित रूप से विपक्षीगण ने दिनांक 29.04.1989 से लेकर 18.09.1995 तक की अवधि में उक्त विद्युत मीटर को नहीं बदलकर सेवादोष कारित किया हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी को विपक्षीगण से आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं । इस अनुतोष के अतिरिक्त अन्य कोई अनुतोष परिवादी को दिलाया जाना सम्भव नहीं हैं ।
परिवादी एवं विपक्षीगण दोनों की ओर से जो न्याय सिद्धान्त पेश किये गये हैं उनके तथ्य प्रस्तुत प्रकरण से भिन्न होने के कारण उनका कोई लाभ परिवादी एवं विपक्षीगण को दिलाया जाना सम्भव नहीं हैं ।
आदेश
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादी आंशिक रूप से स्वीकार जाकर आदेश दिया जाता है कि परिवादी विपक्षीगण से दिनांक 29.04.1989 से लेकर दिनंाक 18.09.1995 तक की अवधि में उसका विद्युत मीटर को नहीं बदलने से स्वयं को कारित आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये अर्थात् कुल 10,000/-रूपये प्राप्त करने का अधिकारी हैं । इस अनुतोष के अतिरिक्त परिवादी को विपक्षीगण से अन्य कोई अनुतोष दिलाना जाना सम्भव नहीं हैं ।
विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वे उक्त समस्त राशि परिवादी के रिहायशी पते पर जरिये डी.डी./रेखांकित चैक इस आदेश के एक माह की अवधि में उपलब्ध करवायेंगे ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 18.02.2015 को पृथक से लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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