Rajasthan

Churu

109/2015

PAWAN KUMAR - Complainant(s)

Versus

J.V.V.N.L RATANGARH CHURU - Opp.Party(s)

SHER SINGH

20 Mar 2015

ORDER

प्रार्थी की ओर से श्री शेरसिंह पुनिया अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थीगण की ओर से श्री सुरेश शर्मा अधिवक्ता उपस्थित। पक्षकारान की बहस सुनी गई। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी के पिता के नाम से एक विद्युत कनेक्शन अप्रार्थीगण से लिया हुआ है। प्रार्थी के पिता का देहान्त दिनांक 24.05.1984 को हो गया था जिसके बाद प्रार्थी ही उक्त विद्युत सम्बंध का उपयोग व उपभोग करता आ रहा है व अप्रार्थीगण द्वारा जारी बिलों का भुगतान नियमित रूप से कर रहा है। प्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रार्थी के घर स्थित विद्युत कनेक्शन में जो मीटर लगा हुआ है वह गलत व अधिक युनिट दर्शाता है जिसके बदलने हेतु प्रार्थी ने अप्रार्थीगणके यहां प्रार्थना-पत्र दिया परन्तु अप्रार्थीगण ने मीटर नहीं बदला व प्रार्थी को माह फरवरी में 4,034 रूपये गलत बिल जारी किया गया। जबकि प्रार्थी द्वारा केवल तुच्छ मात्रा में बिजली उपभोग की जाती है। प्रार्थी ने अप्रार्थीगण के यहां नया मीटर लगाने व माह फरवरी में निकाली गयी गलत राशि को दुरूस्त करने का निवेदन किया परन्तु अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के निवेदन को सुनने से इन्कार कर दिया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और मुख्य तर्क यही दिया कि प्रार्थी के यहां स्थापित विद्युत सम्बंध प्रार्थी के नाम से नहीं है बल्कि प्रार्थी के पिता के नाम से है। इसलिए प्रार्थी व अप्रार्थीगण के मध्य उपभोक्ता व सेवादाता का सम्बध्ंा नहीं है और ना ही प्रार्थी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

           प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय के शपथ-पत्र के अतिरिक्त कुल 11 दस्तावेजात दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।

           वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवाद में वर्णित विद्युत सम्बंध प्रार्थी के नाम से न होकर प्रार्थी के स्व. पिता बंसीधर के नाम से है। प्रार्थी ने उक्त विद्युत सम्बंध अपने नाम से करवाने के सम्बंध में कोई प्रार्थना-पत्र भी अप्रार्थीगण के यहां प्रस्तुत किया हो ऐसा दस्तावेज पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं है। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने मुख्य तर्क यही दिया है कि प्रार्थी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है जबकि प्रार्थी ने यह तर्क दिया कि वह प्रश्नगत विद्युत सम्बंध का उपयोग व उपभोग करता है इसलिए वह बेनिफिसरी होने के कारण उपभोक्ता है। इस सम्बंध में हम माननीय राज्य आयोग व राष्ट्रीय आयोग के न्यायिक दृष्टान्तों का हवाला देना उचित समझते है। माननीय राष्ट्रीय आयोग के नवीनतम निर्णय 2012 सीपीजे 3 एनसी 65 नीलम छाबडा बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम का उल्लेख कर रहे हैं इस प्रकरण में प्रार्थी के नाम से विद्युत कनैक्षन नहीं था बल्कि शादी लाल के नाम से था। प्रार्थी के नाम पर विद्युत कनैक्षन नहीं चढा हुआ था हालांकि प्रार्थी ने मीटर बदलने की प्रार्थना की थी जिसे अप्रार्थीगण ने स्वीकार कर लिया परन्तु विद्युत कनैक्षन शादी लाल के नाम से चला आ रहा था। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने प्रार्थी को उपभोक्ता नहीं माना क्योंकि उसके नाम से विधुुत कनैक्षन नहीं था। वर्तमान मामले में भी यही स्थिति है कि विद्युत कनेक्षन प्रार्थी के नाम से नहीं है बल्कि उसके पिता के नाम से है इसलिए वह उक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोषनी में उपभोक्ता नहीं है। हम इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग के द्वितीय न्यायिक निर्णय 2010 सीपीजे 1 एनसी 104 हरी प्रसाद बनाम एम.यू.एच.बी.एन.एल. के प्रकरण का उल्लेख कर रहे हैं जिसमें विद्युत कनेक्षन अमित गर्ग के नाम से था। प्रार्थी तीन साल से उस कनेक्षन का प्रयोग कर रहा था तथा बिलों को अदा कर रहा था। इसलिए परिवाद में उसने यह अंकित किया कि वह हिताधिकारी है अतः उपभोक्ता है। अप्रार्थीगण ने विरोध किया। तब माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिनिर्धारित किया कि धारा 2(1) (डी) के अनुसार प्रार्थी उपभोक्ता नहीं है। हम माननीय राष्ट्रीय आयोग के तृतीय निर्णय 2012 सीपीजे 4 एनीसी 154 महेन्द्र बंसल बनाम यू.एच.वि.वि.एन.एल. का भी उल्लेख कर रहे है। इस निर्णय में भी विद्युतत कनैक्षन प्रार्थी के नाम से नहीं था। प्रार्थी से कोई संविदा अप्रार्थीगण से नहीं होने के कारण उसे उपभोक्ता नहीं माना गया। उक्त न्यायिक दृष्टान्त वर्तमान प्रकरण पर चस्पा हो रहे है। इसलिए प्रार्थी के नाम से विद्युत कनेक्षन नहीं होने के कारण प्रार्थी उपभोक्ता नहीं है। अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।
           अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।

 
 

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