सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद संख्या 256 सन 2010 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.01.2016 के विरूद्ध)
अपील संख्या 3023 सन 2016
डी0टी0डी0सी0 कोरियर कार्गो लि0 रजिस्टर्ड कार्यालय हाउस नम्बर-3, बिक्टोरिया रोड, बंग्लौर-47 जरिए मैनेजर एवं दो अन्य ।
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
जे0पी0 तिवारी पुत्र श्री अत्रेश तिवारी चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर, ओरियंटल स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स प्रा0लि0 डेलीगांव पाली पहाडी झांसी।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री एस0पी0 पाण्डेय ।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - कोई नहीं ।
दिनांक:-20-02-20
श्री गोवर्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद संख्या 256 सन 2010 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.01.2016 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है ।
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 02.11.2009 को जरिए कूरियर एक लिफाफा, जिसमें बोलेरो वाहन से संबंधित मूल रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र, इंश्योरेंस, फिटनेस प्रमाण पत्र तथा एन0ओ0सी0 की मूल प्रतियां रखी थी] भेजी लेकिन उक्त कूरियर अपीलार्थी द्वारा गन्तब्य तक नहीं पहुंचाया गया है। पूंछने पर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा कहा गया कि हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। कूरियर गुम होने से उसे बहुत आर्थिक क्षति एवं मानसिक क्लेश हुआ। इस संबंध में परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी से कई बार मिला तथा उसको विधिक नोटिस भी दिया लेकिन अपीलार्थी/विपक्षी ने कोई कार्यवाही नहीं की, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया।
जिला मंच के समक्ष विपक्षी ने अपना वादोत्तर प्रस्तुत कर उल्लिखित किया कि प्रश्नगत लिफाफा ओरियंटल स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स द्वारा भेजा गया था जिसके कारण परिवादी एवं विपक्षीगण के मध्य उपभोक्ता का संबंध नही है। परिवादी ने लिफाफा प्राप्त न होने की शिकायत 11 माह बाद की है। प्रश्नगत लिफाफा प्राप्तकर्ता को प्राप्त हो गया है लेकिन परिवादी ने नाजायज लाभ प्राप्त करने की नियत से यह परिवाद योजित किया है।
बहस के समय जिला मंच के समक्ष उभय पक्ष की ओर से किसी पक्ष के उपस्थित न होने पर पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य एंव अभिवचनों के आधार पर निम्न आदेश पारित किया गया :-
'' परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है । विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि बतौर क्षतिपूर्ति 25000.00 रू0 परिवादी को अदा करे एवं इस धनराशि पर 10 प्रतिशत ब्याज वाद दाखिल करने क दिनांक से भुगतान की तिथि तक अदा करे। ''
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 पाण्डेय के तर्क विस्तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन किया। बहस हेतु नोटिस की पर्याप्त तामीली के बावजूद प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने जरिए कूरियर बोलेरो वाहन से संबंधित मूल कागजात श्री के0एल0 श्रीवासन, निवासी पूना को भेजा जिसकी रसीद संख्या जेड 98060405 थी। उक्त कूरियर गन्तब्य तक नहीं पहुंचा जिसके कारण परिवादी को मानसिक क्लेश तथा आर्थिक क्षति हुयी। जबकि अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्नगत लिफाफा ओरियंटल स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स द्वारा भेजा गया था जिसके कारण परिवादी एवं विपक्षीगण के मध्य उपभोक्ता का संबंध नही है। परिवादी ने लिफाफा प्राप्त न होने की शिकायत 11 माह बाद की है तथा प्रश्नगत लिफाफा प्राप्तकर्ता को प्राप्त हो गया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कम्पनी के नियम एवं शर्तों की धारा-15 की ओर हमार ध्यान आकृष्ट किया गया जिसमें यह उल्लिखित है कि – In the event of damage or loss or mis delivery of a consignment, the maximum liability assumed by D.T.D.C. on a consignment is limited to Rs. 100 unless the sender declares higher value as “declared value for carriage”. And also at the applicable Risk Surcharge there of as “carriers Risk” at the time of tendering the consignment. इस प्रकार कोई कन्साइनमेंट खो जाता है तो कम्पनी १००/- रू० तक की अदायगी हेतु उत्तरदायी होगी।
विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी द्वारा भारतीय नाइटिंग कम्पनी बनाम डी0एच0एल0 वर्ल्ड वाइड एक्सप्रेस कोरियर डिवीजन आफ एयर फ्रेट लि0, 1996 ए0आई0आर0 (एस0सी0) 2508 के मामले में विश्वास व्यक्त किया गया है जिसमें मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है – ‘’ Applicability of provisions to courier service- On account of non-delivery of the cover, the State Commission of National Commission under the Act Could not give relief for damages in excess of the limits prescribed under the Contract. In appropriate case where there is an acute dispute of fact necessarily the Tribunal has to refer the parties to the original Civil Court under CPC. ‘’
मा0 उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त निर्णय तथा पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के आलोक में हमारे विचार से प्रत्यर्थी १००/- रू० क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में 500/- रू० वाद व्यय के रूप में प्रत्यर्थी को दिया जाना न्यायसंगत होगा।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद संख्या 256 सन 2010 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.01.2016 अपास्त किया जाता है। अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि वे प्रत्यर्थी/परिवादी को १००/- (एक सौ) रू०, परिवाद योजित किए जाने की तिथि से धनराशि की अदायगी तक ०९ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर अदा किया जाना सुनिश्चित करें। इसके अतिरिक्त निर्धारित अवधि में 5००/- (पॉच सौ) रू० परिवाद व्यय के रूप में भी प्रत्यर्थी को अदा करें।
उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट-1
(S.K.Srivastav,PA)