Vinod Kumar Sharma filed a consumer case on 19 Feb 2015 against J.D.A. (Jaipur Development Authority), Jaipur. in the Jaipur-IV Consumer Court. The case no is CC/120/2013 and the judgment uploaded on 17 Mar 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर
पीठासीन अधिकारी
डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष
डाॅ. अलका शर्मा, सदस्या
श्री अनिल रूंगटा, सदस्य
परिवाद संख्या:-120/2013 (पुराना परिवाद संख्या 37/2011)
श्री विनोद कुमार शर्मा पुत्र श्री रामेश्वर दयाल शर्मा, आयु 40 वर्ष, जाति-ब्राह्मण, निवासी- बी-95ए, अशोक विहार, भृगुपथ, न्यू सांगानेर रोड, मानसरोवर, जयपुर ।
परिवादी
बनाम
01. जयपुर विकास प्राधिकरण जरिये सचिव, जे.एल.एन.मार्ग, जयपुर ।
02. प्रबन्धक, एच.डी.एफ.सी. बैंक, अशोक मार्ग, सी-स्कीम, जयपुर ।
विपक्षीगण
उपस्थित
परिवादी की ओर से श्री सुनील जोशी/श्री हिमांशु अग्रवाल/श्री सुरेश अग्रवाल, एडवोकेट
विपक्षी संख्या 1 की ओर से श्री गणेश नारायण जोशी, एडवोकेट
विपक्षी संख्या 2 की ओर से श्री अखिल मोदी/श्री अजय टांटिया, एडवोकेट
निर्णय
दिनांकः-19.02.2015
यह परिवाद, परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध दिनंाक 15.12.2010 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है:-
परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 द्वारा निकाली गई स्वर्ण विहार आवासीय योजना में आवास आवंटन हेतु आवेदन प्रस्तुत किया था और आवेदन के साथ सिक्योरिटी राशि के रूप में 15,000/-रूपये जमा करवाये थे । लेकिन आवासीय आवंटन लाॅटरी में परिवादी को आवास आवंटित नहीं किया गया । इसलिए बाद में विपक्षी संख्या 1 द्वारा परिवादी द्वारा जमा करवाई गई सिक्योरिटी राशि 15,000/-रूपये परिवादी को लौटानी थी । और इसके लिए विपक्षी संख्या 1 ने विपक्षी संख्या 2 बैंक को अधिकृत किया था । इसलिए विपक्षी संख्या 1 ने विपक्षी संख्या 2 के माध्यम से परिवादी को एक ।बबवनदज च्ंलमम क्ण्क्ण्छवण् 513799 दिनांक 21.06.2010 को जारी किया । उस पर परिवादी के बैंकर स्टेट बैंक इण्डिया के स्थान पर स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर अंकित कर दिया गया । जिसके कारण परिवादी ने जब उक्त डी.डी. अपने बैंकर स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया, शाखा हवा सड़क, जयपुर में भुगतान हेतु दिनांक 01.07.2010 को प्रस्तुत किया तो परिवादी को डी.डी. वापस लौटा दिया गया और परिवादी से 100/-रूपये ब्समंतंदबम ब्ींतहम के रूप में ले लिये गये । जिसकी सूचना विपक्षी संख्या 2 द्वारा जरिये मैमोरण्डम परिवादी को मिली तो परिवादी ने विपक्षी संख्या 2 को इसकी सूचना दी । इस पर विपक्षी संख्या 1 ने विपक्षी संख्या 2 बैंकर को नया डी.डी. संख्या 591193 दिनंाकित 07.07.2010 राशि 15,000/-रूपये का परिवादी के बैंकर स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के खाता संख्या 10028426193 के लिए जारी किया गया था, वह परिवादी के उपलब्ध करवाया । लेकिन परिवादी को ब्समंतंदबम ब्ींतहम के रूप में काटे गये 100/-रूपये विपक्षीगण से प्राप्त नहीं हुए । जो विपक्षीगण का सेवादोष हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी अब विपक्षीगण से परिवाद के मद संख्या 10 में अंकित सभी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षी संख्या 1 की ओर से दिये गये जवाब में कथन किया गया है कि विपक्षी संख्या 1 ने विपक्षी संख्या 2 के माध्यम से 15,000/-रूपये का एक ।बबवनदज च्ंलमम क्ण्क्ण्छवण् 513799 दिनांक 21.06.2010, जो एच.डी.एफ.सी. बैंक द्वारा भेजा गया था, पर विपक्षी संख्या 2 ने चैक में बैंक का नाम स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के स्थान पर भूलवश एवं लिपिकीय त्रुटि के कारण स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर अंकित कर दिया । जिसके कारण उक्त डी.डी. का भुगतान नहीं हो सका और परिवादी के खाते से 100/-रूपये काटे गये । इसकी जानकारी विपक्षी संख्या 1 को नहीं हैं और विपक्षी संख्या 1 ने कोई सेवादोष कारित नहीं किया हैं । अतः परिवाद, परिवादी निरस्त किया जावें ।
विपक्षी संख्या 2 की ओर से दिये गये जवाब मंें कथन किया गया है कि परिवादी के रिफण्ड के चैक के लिए विपक्षी संख्या 1 ने विपक्षी संख्या 2 को एक सूची प्रदान की थी । जिसमें ग्राहक का नाम, ग्राहक के बैंक का नाम व ग्राहक की बैंक का खाता संख्या की सूचना दर्ज की गई थी । इस सूची के अनुसार रिफण्ड के चैक बनाये गये थे । परन्तु परिवादी के संबंध में दी गई सूचना के आधार पर चैक राशि का भुगतान नहीं हुआ और चैक अनादरित हो गया । इसमें विपक्षी संख्या 2 का कोई दोष नहीं हैं क्योंकि विपक्षी संख्या 2 को जो सूचना विपक्षी संख्या 1 ने दी थी, उसके आधार पर ही रिफण्ड चैक्स बनाये गये गये थे । अतः उसके संदर्भ में परिवाद, परिवादी खारिज किया जावें ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादी श्री विनोद कुमार शर्मा ने स्वयं का शपथ पत्र एवं कुल 13 पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत कियेे। जबकि जवाब के तथ्यों की पुष्टि में विपक्षी संख्या 1 की ओर से श्री जाकिर हुसैन का शपथ पत्र एवं एक पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत किया गया । विपक्षी संख्या 2 की ओर से जवाब के तथ्यों की पुष्टि में श्री राकेश माहेश्वरी का शपथ पत्र एवं प्रदर्श एनए 2/1 से प्रदर्श एनए 2/3 दस्तावेज कुल चार पृष्ठों में प्रस्तुत किये गये ।
बहस अंतिम सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षी संख्या 1 ने जवाब के मद संख्या 3 में यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि ’विपक्षी संख्या 2 बैंक ने रिफण्ड डी.डी. में परिवादी के बैंक का नाम भूलवश भारतीय स्टेट बैंक के स्थान पर भारतीय स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर अंकित कर दिया था । जिस कारण परिवादी को डी.डी. का भुगतान नहीं हो सका । इसे तथ्य की जानकारी विपक्षी संख्या 1 को नहीं हैं ।’ लेकिन विपक्षी संख्या 1 की ओर से प्रस्तुत कार्यालय टिप्पणी की प्रति में यह स्पष्ट है कि ’उनकी ओर से उक्त रिफण्ड के डी.डी. में बैंक का नाम भारतीय स्टेट बैंक के स्थान पर भारतीय स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर अंकित कर दिया गया था ।’ और इस तथ्य को बाद में विपक्षी संख्या 1 के स्तर पर संशोधन भी किया गया और परिवादी को विपक्षी संख्या 1 की ओर से बाद में परिवादी को भारतीय स्टेट बैंक में देय डी.डी. संख्या 591193 दिनंाक 07.07.2010 को 15,000/-रूपये की राशि का जारी कर दिया गया था, जो भारतीय स्टेट बैंक में परिवादी के खाता संख्या 10028426193 में देय था ।
इस प्रकार परिवादी को पूर्व में विपक्षी संख्या 1 के स्तर पर विपक्षी संख्या 2 बैंक के माध्यम से स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के स्थान पर भारतीय स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर लिखकर विपक्षी संख्या 2 बैंक को डी.डी. बनाने का जो त्रुटिपूर्ण आदेश विपक्षी संख्या 1 ने दिया था, जिससे परिवादी को उक्त डी.डी. का भुगतान समय पर नहीं हो सका और उसके खाते से 100/-रूपये ब्समंतंदबम ब्ींतहम के रूप में काटे गये हैं, यह विपक्षी संख्या 1 विभाग का सेवादोष हैं । और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी को हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 2,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये अर्थात् कुल 5,000/-रूपये दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं । विपक्षी संख्या 2 बैंक का कोई सेवादोष प्रमाणित नहीं होने से परिवादी उसके विरूद्ध कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हैं ।
आदेश
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादी स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता है कि परिवादी विपक्षी संख्या 1 विभाग से रिफण्ड डी.डी. में उसके बैंकर का नाम गलत लिखने और इस कारण डी.डी. का भुगतान समय पर नहीं होने एवं उसके खाते से 100/-रूपये ब्समंतंदबम ब्ींतहम की कटौती होने से स्वयं को हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 2,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये अर्थात् कुल 5,000/-रूपये प्राप्त करने का अधिकारी हैं । विपक्षी संख्या 2 बैंक का कोई सेवादोष प्रमाणित नहीं होने से परिवादी उसके विरूद्ध कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हैं ।
विपक्षी संख्या 1 विभाग को आदेश दिया जाता है कि वह उक्त समस्त राशि परिवादी के रिहायशी पते पर जरिये डी.डी./रेखांकित चैक इस आदेश के एक माह की अवधि में उपलब्ध करवायेगा ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 19.02.2015 को पृथक से लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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