राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
(जिला फोरम, प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-139/2001 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-08-2002 के विरूद्ध)
अपील संख्या-3094/2002
- Unit Trust of India New Delhi Branch Office 13th Floor, Tower II, Jeevan Bharti Building (Mega Centre) 124, Connaught Circus, New Delhi-110 001.
- UTI Investor Services Ltd.174-175 DDA Building, Rajendra Bhawan, Rajendra Place, New Delhi-110 008.
Through
Unit Trust of India Lucknow Branch Office, Regency Plaza Building, 5, Park Road, Lucknow-226 001.
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Shri J.P.Gupta, S/o Shri Prahlad singh, 3-C/318, Budhi Vihar, Avas Vikas Colony, Majhola, Distt.Moradabad, U.P- 244 001
प्रत्यर्थी/परिवादी.
समक्ष :-
1- मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित - श्री ए0 मुईन के सहयोगी श्री
उमेश कुमार श्रीवास्तव।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - कोई नहीं।
दिनांक : 18-09-2015
मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी ने प्रस्तुत अपील विद्धान जिला फोरम, प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-139/2001 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-08-2002 के विरूद्ध प्रस्तुत की है जिसमें विद्धान जिला मंच द्वारा निम्नलिखित आदेश पारित किया गया है-
'' विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि आदेश की सूचना के एक माह में परिवादी को उसके प्रमाण पत्र का अगस्त, 2000 में निर्धारित एन0ए0वी0 मूल्य व उस पर दिनांक 01-09-2000 से भुगतान के दिनांक तक 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज क्षतिपूर्ति के रूप में व 500/-रू0 परिवाद व्यय के रूप में भुगतान करें,'' से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादीने यू0टी0आई0 की योजना एम0आई0पी0 96(4) के अन्तर्गत 4800 यूनिट जिसका मूल्य 10/-रू0 प्रति यूनिट था के प्रमाण पत्र संख्या 400971720067819 वर्ष 1996 में क्रय किये थे। परिवादी ने मई, 2000 में उक्त प्रमाण पत्र पुर्नखरीद हेतु आवेदन किया और मूल प्रमाण पत्र प्रेषित किये जिस पर विपक्षी ने विलम्ब से पत्र दिनांक 02-07-2000 फर्जी दिनांक अंकित करके इस आशय से भेजा कि डिविडेन्ट वारेण्ट परिवादी के पास होने के कारण भुगतान नहीं किया जा सकता। परिवादी ने दिनांक 10-08-2000 को 8 डिविडेनट वारेण्ट प्रेषित करते हुए प्रमाण पत्र की धनराशि का भुगतान करने का अनुरोध किया तो विपक्षीगण ने दिनांक 12-09-2000 को वे डिविडेन्ट वारण्ट परिवादी को इस आशय से वापस कर दिये कि प्रमाण पत्र सहित डिविडेन्ट वारण्ट भेजे जाए। जिस पर परिवादी ने कहा कि वह विपक्षी संख्या-2 को समस्त औपचारिकताऍं पूर्ण करके प्रमाण पत्र भेज चुका है। जिस पर विपक्षीगण ने दिनांक 20-10-2000 को पत्र के द्वारा पुन: मैम्बरशिप एडवाइस प्रेषित करने को कहा। विपक्षीगण द्वारा बार-बार परिवादी को परेशान किया गया और भुगतान नहीं किया गया इसलिए यह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षी सं0-2 द्वारा लिखित उत्तर प्रेषित किया गया और कथन किया गया कि उनकी ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। और कहा गया कि परिवादी ने शर्तों के अनुसार मैम्बरशिप सडवाइस एवं डिविडेन्ट वारण्ट नहीं भेजे तथा फोरम को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है तथा परिवादी ने डुप्लीकेट प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कोई प्रार्थना नहीं की। परिवाद का परिवाद खारिज किया जाए।
पीठ के समक्ष अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री ए0 मुईन के सहयोगी श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से बावजूद नोटिस कोई उपस्थित नहीं।
हमने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क सुने तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों व जिला मंच द्वारा पारित निर्णय का भली-भॉंति अवलोकन किया।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला मंच द्वारा जो 18 प्रतिशत ब्याज लगाया गया है वह नियमानुसार नहीं है जिसे निरस्त किया जाए।
केस के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम यह समीचीन पाते है कि विद्धान जिला मंच द्वारा जो 18 प्रतिशत ब्याज दिये जाने का आदेश पारित किया गया है वह समाप्त किये जाने योग्य हैं।
तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए जिला फोरम, प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-139/2001 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-08-2002 को संशोधित करते हुए 18 प्रतिशत ब्याज के आदेश को निरस्त किया जाता है। निर्णय के शेष भाग की पुष्टि की जाती है। उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(राम चरन चौधरी) (बाल कुमारी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-5 प्रदीप मिश्रा