Uttar Pradesh

StateCommission

A/2004/1107

Union of India (Railway) - Complainant(s)

Versus

J N R Maurya - Opp.Party(s)

P P Shrivastav

12 Dec 2014

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2004/1107
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union of India (Railway)
Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. J N R Maurya
Jaunpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Ashok Kumar Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, 0 प्र0 लखनऊ

                   अपील संख्‍या  1107 सन  2004     सुरक्षित

 (जिला उपभोक्‍ता फोरम, जौनपुर के  परिवाद  संख्‍या-294/1997 में  पारित निर्णय/आदेश दिनांक 13-04-2004 के विरूद्ध)

1-युनियन आफ इंडिया द्वारा जनरल मैनेजर नार्दन रेलवे, बड़ौदा हाऊस न्‍यू दिल्‍ली।

2-डिवीजनल रेलवे मैनेजर, लखनऊ डिवीजन, लखनऊ।

3-चीफ कामर्शियल सुपरिन्‍टेंडेन्‍ट, रेलवे, लखनऊ डिवीजन, लखनऊ।

4-रेलवे बोर्ड, न्‍यू दिल्‍ली, द्वारा चेयरमैन।        ....अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

                               बनाम                                                                                                                                                                                 

1-श्री जगन्‍नाथ राम मौर्या पुत्र श्री सन्‍तन राम मौर्या, निवासी-180-8, मियापुर परगना हवेली, तहसील सदर, जिला जौनपुर।       ...प्रत्‍यर्थी/परिवादी

2-डायरेक्‍टर जनरल आफ पुलिस (रेलवे) यू0पी0 लखनऊ।   ....प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

अधिवक्‍ता अपीलार्थी   : श्री पी0पी0 श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।

अधिवक्‍ता प्रत्‍यर्थी     : श्री मनोज मोहन, विद्वान अधिवक्‍ता एवं परिवादी स्‍वयं

                   अपील संख्‍या  1508 सन  2004   

 (जिला उपभोक्‍ता फोरम, जौनपुर के  परिवाद  संख्‍या-294/1997 में  पारित निर्णय/आदेश दिनांक 13-04-2004 के विरूद्ध)

श्री जगन्‍नाथ राम मौर्या पुत्र स्‍व0 सन्‍तन राम मौर्या, उम्र लगभग 63 वर्ष निवासी-380- बी  मियापुर जज  कालोनी, परगना- हवेली, पो0 आ0 सिटी तहसील एवं जिला जौनपुर।                     ..... अपीलार्थी/परिवादी

                              बनाम     

1-युनियन आफ इंडिया द्वारा जनरल मैनेजर नार्दन रेलवे, बड़ौदा हाऊस न्‍यू दिल्‍ली।

2-डिवीजनल रेलवे मैनेजर, लखनऊ डिवीजन, लखनऊ।

3-चीफ कामर्शियल सुपरिन्‍टेंडेन्‍ट, रेलवे, लखनऊ डिवीजन, लखनऊ।

4-रेलवे बोर्ड, न्‍यू दिल्‍ली, द्वारा चेयरमैन।

5-डायरेक्‍टर जनरल आफ पुलिस (रेलवे) उत्‍तर प्रदेश, लखनऊ।

                                          ....प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

(2)

समक्ष:-

   1-मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्‍यायिक सदस्‍य।

   2-मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य।                            

अधिवक्‍ता  अपीलार्थी  : श्री मनोज मोहन, विद्वान अधिवक्‍ता एवं परिवादी स्‍वयं

अधिवक्‍ता प्रत्‍यर्थी    : श्री पी0पी0 श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक:31-12-2014

मा0 श्री  अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्‍यायिक सदस्‍य, द्वारा उदघोषित।

निर्णय

अपील संख्‍या-1107/2004

प्रस्‍तुत अपील अपीलार्थी ने विद्वान जिला मंच, जौनपुर द्वारा परिवाद  संख्‍या-294/1997 जगन्‍नाथ राम मौर्या बनाम युनियन आफ इंडिया जरिए जनरल मैनेजर, नार्दन रेलवे आदि में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 13-04-2004 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें आदेश पारित किया गया है कि परिवाद आंशिक रूप से सफल होता है। विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को मु0 8,000-00 रूपये बतौर क्षतिपूर्ति निर्णय होने की तिथि से दो माह के अन्‍दर प्रदान करें। पक्षकार अपना-अपना खर्च स्‍वयं वहन करेगें।

संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी जिला जौनपुर उत्‍तर प्रदेश का रहने वाला है और उस समय अतिक्ति मुख्‍य दण्‍डाधिकारी, रायबरेली के पद पर नियुक्‍त था। दिनांक-19-03-1997 को परिवादी अपने वृद्ध और बीमार  बहन के साथ लखनऊ से जौनपुर के लिए गाड़ी नं0-4228 डाउन वरूणा एक्‍सप्रेस नाम से जानी जाती थी, उससे आ रहा था और उसके पास वैध टिकट 88113760 था और वह टिकट लेने के बाद लखनऊ रेलवे स्‍टेशन पर बोगी नं0-14872 पर बैठा था। अपनी बहन को उक्‍त्‍ बोगी में बैठाकर अपने मित्र से मिलने चला गया, जब वह प्‍लेटफार्म पर आया तो गाड़ी चल चुकी थी, तो इस तरह से वह नजदीक बोगी नं0-14924 ए पर चढ़ गया और वह गाड़ी 15-20 मिनट के बाद उतरेटिया स्‍टेशन के पास रूक गई और वह उतरकर उसकी बहन जिस बोगी में बैठी थी, उस बोगी में चढ़ने के लिए चल दिया, उसी समय टिकट चेक करने

(3)

वाले रेलवे स्‍टाफ के कुछ सदस्‍य उनसे टिकट दिखाने के लिए कहा और वह अपना टिकट दिखाया और बताया कि वह अपनी बहन के बोगी में जा रहा है। इस पर रेलवे सुरक्षागार्ड ने उनक साथ बदतमीजी किया और उन्‍हें ढकेल दिया। इसी में रेलवे के जो टिकट चेक कर रह थे, उस बोगी में आये और उसके तथा उसकी बहन के साथ दुर्व्‍यवहार किया। इस पर वह अपना परिचय बताया, जिससे उन लोगों ने उनके साथ अभद्र व्‍यवहार किया और उनको बोगी से खींचकर ले आये। यह सब घटना विजय बहादुर आदि लोगों ने देखा। उसने इसकी रिपोर्ट थाना जी.आर.पी. को दिया और उसकी रिपोर्ट धारा-323,504,506 भ.द.सं. के अर्न्‍तगत की गई और उसने अपना डाक्‍टरी मुआयना भी कराया। इसलिए क्षुब्‍ध होकर परिवादी ने यह परिवाद संस्थित किया है।

विपक्षी सं0-1 लगायत 4 की तरफ से जवाबदेही 12 ख प्रस्‍तुत किया गया है, जिसमें यह अभिकथन किया गया है कि रेलवे अधिकारियों द्वारा दि 19-03-1997 को आकस्मिक जॉच उतरेटिया स्‍टेशन के पास किया गया था। परिवादी अपने डिब्‍बे से उतरकर चेकिंग के समय दूसरे तरफ जा रहा था। अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा टिकट मांगने पर अपने को अपमानित महसूस कर नाराज हो गया, जबकि नियमानुसार आकस्मिक जॉच के दौरान ट्रेन में बैठे यात्रियों से बैठे रहने की अपेक्षा की जाती है। वे लोग भागते है जो अनियमित यात्रा करते हैं। इसके अतिरिक्‍त विपक्षीगण ने परिवादी के अन्‍य कथनों को इंकार करते हुए परिवाद को मनगढ़न्‍त होने के आधार पर निरस्‍त होने योग्‍य बताया है।

विपक्षी सं0-5 की तरफ से जवाबदेही 26 ग प्रस्‍तुत किया गया है, जिसमें यह अभिकथन किया गया है कि आर.पी.एफ. का मुकदमा विपक्षी से सम्‍बन्धित नहीं है, इसलिए कोई भी जिम्‍मेदारी परिवाद में उल्लिखित कथित तथ्‍यों के सम्‍बन्‍ध में विपक्षी को नहीं है। जब किसी अंग भंग अथवा चोट से अथवा यात्री की मृत्‍यु  के कारण हुई क्षति का क्‍लेम रेलवे क्‍लेम ट्रिब्‍यूनल में वाद स्‍थापित करने में प्राप्‍त हो सकता है। माननीय फोरम को इस परिवाद की सुनवाई का

 

(4)

क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी का परिवाद धारा-13 व 15 रेलवे क्‍लेम टिब्‍यूनल से बाधित है। परिवाद संधारणीय नहीं है और निरस्‍त होने योग्‍य है।

 अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री पी0पी0 श्रीवास्‍तव तथा प्रत्‍यर्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री मनोज मोहन एवं परिवादी के तर्को को सुना गया।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रश्‍नगत निर्णय तथ्‍यों एवं विधि के विरूद्ध पारित किया गया है और अपीलार्थी द्वारा जो बिन्‍दु उठाये गये थे, उनका उल्‍लेख नहीं किया गया है तथा परिवादी द्वारा अभिकथित किये गये सारे आरोप झूठे एवं आधार‍हीन है, जिस पर विश्‍वास करके विद्वान जिला मंच ने गलत निर्णय पारित किया है, जो निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने यह तर्क दिया कि विद्वान जिला मंच द्वारा प्रस्‍तुत किये गये शपथ पत्र एवं अभिलेखीय साक्ष्‍य के आधार पर विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है, जिसमें कि हस्‍तक्षेप किये जाने की आवश्‍यकता नहीं है।

प्रश्‍नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्‍ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।

परिवादी का यह कथन है कि वह दिनांक 19-03-1997 को अपने बीमार बहन के साथ लखनऊ से जौनपुर के लिए वरूणा एक्‍सप्रेस से जा रहा था और उसके पास वैध टिकट था और वह बोगी नं0-147 में बैठा था। जब बहन को उक्‍त बोगी में बैठाकर अपने मित्र से मिलने चला गया। जब वह प्‍लेटफार्म पर आया तो गाड़ी चल चुकी थी, इसलिए वह नजदीकी बोगी नं0-14924 ए में चढ़ गया और जब वह गाड़ी 15-20 मिनट के बाद उतरेटिया स्‍टेशन के पास रूकी तो वह उतरकर उसकी बहन जिस बोगी में बैठी थी, उसमें चढ़ने के लिए चल दिया, किन्‍तु चेक करने वाले रेलवे स्‍टाफ के कुछ सदस्‍यों ने उसके साथ बदतमीजी की और बहन के साथ अभद्र व्‍यवहार किया। उसने अपना परिचय भी दिया, किन्‍तु

(5)

उसके बाद भी उसके साथ अभद्र व्‍यवहार किया गया और उसको बोगी से खींचकर बाहर ले आये। यह सब घटना विजय बहादुर आदि लोगों ने देखा। उसने इसकी रिपोर्ट थाना जी.आर.पी. को दिया और उसकी रिपोर्ट धारा-323,504,506 भ.द.सं. के अर्न्‍तगत की गई तथा परिवादी ने अपना डाक्‍टरी मुआयना भी कराया। परिवादी ने अपने टिकट की छाया प्रति दाखिल की है, जिसमें दो लोगों का टिकट बना है, इससे स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी अपनी बहस के साथ दिनांक-19-03-1997 को यात्रा कर रहा था, जिन परिस्थितियों में वह अपने मित्र से मिलने गया और बाद में गाड़ी चलने पर नजदीकी दूसरे डिब्‍बे में बैठ गया एवं गाड़ी रूकने पर यह स्‍वाभाविक था कि जिस डिब्‍बे में उसकी बीमार बहन बैठी थी, उसमें वह उसके पास जाता, किन्‍तु इसी मध्‍य चेकिंग स्‍टाफ के द्वारा उसके साथ अभद्र व्‍यवहार किया गया और उसे धमकाते हुए ढकेल दिया गया, जिससे कि उसको चोटें आई। परिवादी द्वारा डाक्‍टरी रिपोर्ट दाखिल की गई है। परिवादी द्वारा 323,504 एवं 506 के अर्न्‍तगत जो रिपोर्ट की गई थी, उसमें हरीराम यादव, सिपाही के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है, जो कि पत्रावली में दाखिल है।

अत: इससे सिद्ध होता है कि प्रथम त्रुटि परिवादी/प्रत्‍यर्थी के साथ चेकिंग स्‍टाफ के द्वारा अभद्रता की गई और अपमानजनक व्‍यवहार किया गया, जिसके लिए उनको क्षतिपूर्ति दिलाया जाना न्‍यायोचित है और इसी परिप्रेक्ष्‍य में विद्वान जिला मंच द्वारा विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है, उसमें हस्‍तक्षेप करने की आवश्‍यकता नहीं है। तद्नुसार अपीलार्थीगण की अपील निरस्‍त की जाने योग्‍य है।

                    अपील संख्‍या-1508/2004

प्रस्‍तुत अपील अपीलार्थी ने विद्वान जिला मंच, जौनपुर द्वारा परिवाद  संख्‍या-294/1997 जगन्‍नाथ राम मौर्या बनाम युनियन आफ इंडिया जरिए जनरल मैनेजर, नार्दन रेलवे आदि में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 13-04-2004 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें आदेश पारित किया गया है कि परिवाद आंशिक रूप से सफल होता है। विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को मु0

(6)

8,000-00 रूपये बतौर क्षतिपूर्ति निर्णय होने की तिथि से दो माह के अन्‍दर प्रदान करें। पक्षकार अपना-अपना खर्च स्‍वयं वहन करेगें।

अपीलार्थी/परिवादी ने प्रश्‍नगत निर्णय में दी गई क्षतिपूर्ति की धनराशि पर आपत्ति करते हुए यह बताया है कि उसने अपने परिवाद में 3,50,000-00 रूपये बतौर क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु अनुरोध किया था, किन्‍तु विद्वान जिला मंच ने अत्‍याधिक कम धनराशि उसे दिलाया है।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि वर्णित परिस्थितियों में क्षतिपूर्ति के रूप में विद्वान जिला मंच ने 8,000-00 रूपये की सही धनराशि दिलाया है और इस सम्‍बन्‍ध में इसे बढ़ाये जाने का कोई औचित्‍य नहीं है।

परिवाद में दिये गये तथ्‍यों से यह स्‍पष्‍ट है कि परिवादी एक न्‍यायिक अधिकारी थे और उनके साथ रेलवे के चेकिंग स्‍टाफ द्वारा अभद्र व्‍यवहार किया गया एवं अपमानित किया गया इसी कारण उन्‍होंने भा.द.सं. की धारा-323, 504 एवं 506 के अर्न्‍तगत रिपोर्ट करने के लिए बाध्‍य होना पड़ा और इस प्रकरण में तफशीस के बाद हरीराम यादव, सिपाही के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल किया गया, जो पत्रावली में शामिल है। परिवादी को चेकिंग स्‍टाफ के द्वारा अभद्र व्‍यवहार व अपमानित करने के कारण जो चोटें आई, उसके सम्‍बन्‍ध में परिवादी द्वारा इंजरी रिपोर्ट भी दाखिल की गई है। यदि परिवादी द्वारा जो कि उस समय मुख्‍य दण्‍डाधिकारी के पद पर नियुक्‍त थे, चेकिंग स्‍टाफ को अपना परिचय दिया था तो ऐसी परिस्थिति में चेकिंग द्वारा अभद्र व्‍यवहार किये जाने और बोगी से खींचकर परिवादी को बाहर ले जाना तथा उसे अपमानित करने का कोई औचित्‍य नहीं है, क्‍योंकि रेलवे के चेकिंग स्‍टाफ को यह किसी भी नियम एवं विधि में अधिकार नहीं दिया गया है कि वह अपने कर्तब्‍य पालन में इस प्रकार का अपमानजनक अभद्र एवं त्रुटिपूर्ण व्‍यवहार किसी भी यात्री के साथ करें, इससे रेलवे प्रशासन की सम्‍पूर्ण छवि धुमिल होती है। रेलवे विभाग के चेकिंग स्‍टाफ का गुरूतर दायित्‍व है कि जो भी अधिकारी/कर्मचारी को चेकिंग के सम्‍बन्‍ध में लगाया जाता है, वह सम्‍मानपूर्वक सभी यात्री के साथ व्‍यवहार करें और विशेषकर ऐसे

(7)

यात्रियों के साथ जिसके पास वैध टिकट हो। रेलवे विभाग के चेकिंग स्‍टाफ का यह आचरण अत्‍यन्‍त चिन्‍ताजनक एवं निन्‍दनीय है।

उपरोक्‍त परिस्थितियों में विद्वान जिला मंच द्वारा अत्‍याधिक कम राशि अंकन 8,000-00 रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाया गया है, जबकि परिवादी के साथ हुई घटना पूर्ण रूप से सिद्ध की गई है एवं चिकित्‍सीय साक्ष्‍य से प्रमाणित है। अत: ऐसी परिस्थितियों में हम यह समीचीन पाते है कि परिवादी/अपीलार्थी को  8,000-00 रूपये के स्‍थान पर 25,000-00 रूपये की धनराशि बतौर क्षतिपूर्ति प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण रेलवे विभाग द्वारा दिलाया जाना उचित होगा। तद्नुसार अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है तथा विद्वान जिला मंच का आदेश संशोधित किये जाने योग्‍य है।

आदेश

1-अपीलार्थीगण की अपील संख्‍या-1107/2004 निरस्‍त की जाती है।

2-अपील संख्‍या-1508/2004 स्‍वीकार की जाती है तथा विद्वान जिला मंच, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-294/1997 जगन्‍नाथ राम मौर्या बनाम युनियन आफ इंडिया जरिए जनरल मैनेजर, नार्दन रेलवे आदि में पारित निर्णय/आदेश दिनांक13-04-2004 को संशोधित करते प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण (रेलवे) को आदेशित किया जाता है कि अपीलार्थी/परिवादी को 8,000-00 रूपये( आठ हजार रूपये) के स्‍थान पर 25,000-00 रूपये (पच्‍चीस हजार रूपये) की धनराशि क्षतिपूर्ति के रूप में निर्णय की तिथि से तीन माह के अन्‍दर भुगतान करें।

इस निर्णय की प्रति अपील संख्‍या-1508/2004 में भी रखी जाय।

उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्‍यय स्‍वयं वहन करेगें।

उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रति नियमानुसार नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करायी जाय।

 

 

     ( अशोक कुमार चौधरी                    (संजय कुमार )                       

       पीठासीन सदस्‍य                             सदस्‍य

आर0सी0वर्मा, आशु. ग्रेड-2

कोर्ट नं0-3

 
 
[HON'ABLE MR. Ashok Kumar Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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