Uttar Pradesh

StateCommission

C/2001/156

Santosh Kumar Jain - Complainant(s)

Versus

J M K Millenium Sports - Opp.Party(s)

Prem Kumar

21 Jul 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/2001/156
 
1. Santosh Kumar Jain
...........Complainant(s)
Versus
1. J M K Millenium Sports
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 21 Jul 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

परिवाद संख्‍या-156/2001

 

 

संतोष कुमार जैन पुत्र श्री राम दास जैन, वर्तमान निवासी परिधान, पुरानी बाजार, थाना कोतवाली, बांदा।

                            परिवादी

बनाम्      

1. जे0एम0के0 मिलेनियम स्‍पोर्ट्स, अपोजिट मेडिकल कालेज गेट नं0-1, जिला झांसी, द्वारा प्रोपराइटर/कंट्रोलर, श्री विजय गुप्‍ता उर्फ बंगाली।

2. श्री विजय गुप्‍ता उर्फ बंगाली पुत्र श्री सोहन गुप्‍ता प्रोपराइटर/कंट्रोलर, जे0एम0के0 मिलेनियम स्‍पोर्ट्स, अपोजिट मेडिकल कालेज गेट नं0-1, झांसी।

3. श्री उमेश यादव, स्‍वीमिंग कोच, जे0एम0के0 मिलेनियम स्‍पोर्ट्स, अपोजिट मेडिकल कालेज गेट नं0-1, झांसी।

                                    विपक्षीगण

समक्ष:-

1. माननीय श्री जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा, पीठासीन सदस्‍य।

2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

परिवादी की ओर से उपस्थित    : श्री प्रेम कुमार, विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री कमल कुमार श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 04.11.2016

मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

यह परिवाद, परिवादी ने अपने पुत्र की स्‍वीमिंग पुल में डूब कर मृत्‍यु हो जाने के कारण विपक्षीगण से मृतक की पढ़ाई में खर्च रूपये 10/- लाख, परिवादी की वित्‍तीय सहायता के लिए रूपये 4/- लाख तथा मानसिक क्षतिपूर्ति के लिए रूपये 5/- लाख एवं वाद व्‍यय हेतु रू0 10,000/- के अनुतोष हेतु विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्‍तुत किया है।

परिवाद पत्र का अभिवचन इस प्रकार है कि परिवादी का पुत्र स्‍व0 डा0 आलोक जैन एम0डी0 तृतीय वर्ष रानी लक्ष्‍मी बाई मेडिकल कालेज का छात्र था। परिवादी के पुत्र की मृत्‍यु दिनांक 03.06.2001 को स्‍वीमिंग पूल में डूबने से हो गयी। विपक्षी सं0-2 विपक्षी सं0-1 के प्रापर्टी एवं कंट्रोलर है तथा विपक्षी सं0-3 विपक्षी सं0-1 के स्‍वीमिंग पूल के कोच (टीचर) हैं। परिवादी के पुत्र को विपक्षी सं0-1 के कोच द्वारा स्‍वीमिंग पूल में प्रशिक्षित किया जा रहा था। परिवादी के पुत्र ने तैराकी सीखने के लिए विपक्षी सं0-1 के संस्‍थान में प्रवेश लिया था, प्रवेश लेने के लगभग 15 दिन के बाद परिवादी के पुत्र की स्‍वीमिंग पूल में डूबने के कारण मृत्‍यु हो गयी। विपक्षी सं0-1 के यहां परिवादी के पुत्र ने दिनांक 02.06.2001 को रू0 300/- शुल्‍क, दिनांक 16.06.2001 तक के लिए जमा किया था, जिसकी रसीद क्र0 सं0-545 पर अंकित है। परिवादी को दिनांक 03.06.2001 को रात 7.30 P.M. पर सूचना मिली की विपक्षी सं0-1 के स्‍वीमिंग पूल में उसके पुत्र की मृत्‍यु डूबने क कारण हो गयी है। मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य के माध्‍यम से पुलिस को सूचना दी गयी कि एक व्‍यक्ति की मृत्‍यु स्‍वीमिंग पूल में डूब जाने से हो गयी है। पुलिस की सूचना पर मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डा0 ब्रिजेश मिश्रा, डा0 राजेश्‍वर यादव, डा0 यू0पी0 सिंह, डा0 राजन स्‍वीमिंग पूल सेंटर पर गये तथा मृतक की आलोक जैन के रूप में पहचान की। मृतक डा0 आलोक जैन के शव का पोस्‍टमार्टम दिनांक 04.06.2001 को किया गया। परिवादी ने एफआईआर थाना नवादा जिला झांसी में दिनांक 11.06.2001 को विपक्षी सं0-2 एवं 3 के विरूद्ध दर्ज करायी। पुलिस ने एफआईआर अपराध सं0-518/2001 धारा 304 ए आईपीसी के तहत दर्ज की। विपक्षी सं0-2 एंव 3 ने स्‍वीमिंग सेंटर में सुरक्षा की कोई व्‍यवस्‍था नहीं की थी, जिसके कारण परिवादी के पुत्र की मृत्‍यु कारित हुई। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अशोक खरे द्वारा विधिक नोटिस विपक्षीगण को भेजी गयी, जिसमें क्षतिपूर्ति के रूप में रूपये 20/- लाख की मांग की गयी थी, परन्‍तु 30 दिन के अन्‍दर भुगतान न होने के कारण परिवाद योजित करने की सूचना भी दी गयी, परन्‍तु विपक्षीगण ने इसका भी कोई जवाब नहीं दिया, अत: विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादी को मानसिक व शारीरिक कष्‍ट हुआ, जिसके लिए विपक्षीगण जिम्‍मेदार हैं।

विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें उनके द्वारा कहा गया कि परिवादी का पुत्र विपक्षी सं0-3 कोच का सदस्‍य था। परिवादी का पुत्र कोच के अण्‍डर में ट्रेनिंग करते हुए नहीं डूबा था, बल्कि वह कोच की बिना परमीशन के स्‍वीमिंग पूल में गया था, परिवादी का पुत्र फ्रेश स्‍वीमर था। फ्रेशर होने के कारण परिवादी के पुत्र की मृत्‍यु हुई है, जब परिवादी का पुत्र (टैंक) स्‍वीमिंग पूल में गया तो उस समय उसके साथ कोई कोच नही था, अत: विपक्षीगण की इसमें कोई सेवा में कमी नहीं है। संस्‍थान के प्रधान व प्रधानाचार्य मौके पर पहुँचे तथा पोस्‍टमार्टम के पूर्व एफआईआर दर्ज करायी गयी तब दूसरी एफआईआर की क्‍या आवश्‍यकता था। विपक्षीगण द्वारा सभी को निर्देश दिया गया था कि बिना कोच के स्‍वीमिंग पूल में जाने का उन्‍हें कोई अधिकार नहीं है। इस प्रकार विपक्षीगण का कोई दायित्‍व नहीं बनता है। दुर्घटना के कारण विपक्षीगण को क्षतिपूर्ति देने का कोई दायत्वि नहीं है, क्‍योंकि परिवादी के पुत्र ने स्‍वीमिंग पूल के नियम एवं अधिनियम का अनुसरण नहीं किया था, अत: विपक्षीगण की लापरवाही के कारण कोई दुर्घटना नहीं हु्ई है, तदनुसार परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में जे0एम0के0 मिलेनियम स्‍पोर्ट्स की रसीद सं0-545 नाम डा0 आलोक जैन धनराशि रू0 300/- की छायाप्रति, पोस्‍ट मार्टम रिपोर्ट की छायाप्रति, एफआईआर की छायाप्रति, विधिक नोटिस दिनांक 16.07.2001 की छायाप्रति, रजिस्‍ट्री रसीद पाने वाले का नाम, विजय गुप्‍ता दिनांक 16.07.2001 दाखिल किया गया है।

परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री प्रेम कुमार तथा विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री कमल कुमार श्रीवास्‍तव उपस्थित हैं, अत: उभय पक्ष की बहस सुनी गयी एवं अभिलेखों का परिशीलन किया गया।

परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपना तर्क प्रस्‍तुत किया कि परिवादी के पुत्र ने विपक्षीगण के स्‍वीमिंग पूल में तैराकी सीखने हेतु प्रवेश लिया था और कोच की उपस्थिति में परिवादी के पुत्र की मृत्‍यु स्‍वीमिंग पूल में डूब जाने के कारण हुई है। स्‍वीमिंग पूल की सफाई के दौरान शाम को लाश का पता चला, अत: कोच की लापरवाही के कारण दुर्घटना हुई है, जिसके लिए विपक्षी सं0-1 व 2 जिम्‍मेदार हैं।

विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपना तर्क प्रस्‍तुत किया कि विपक्षी सं0-1 व 2 द्वारा तैरने की ट्रेनिंग देते समय हमेशा सावधानी का प्रयोग किया जाता है और निर्देशक द्वारा हमेशा तिथि एवं समय का निर्देश दिया जाता है, लेकिन मृतक द्वारा स्‍वीमिंग की शर्तों को अनदेखा कर स्‍वीमिंग पूल में तैरने हेतु बिना कोच की परमीशन के चला गया, वहां पर विपक्षी सं0-1 व 2 मौजूद नहीं थे। मृतक फ्रेशर था, मात्र उसे 16 दिन ही प्रवेश लिये हुआ था। बिना कोच की अनुमति के उसे स्‍वीमिंग पूल में तैरने हेतु नहीं जाना चाहिये था, इसमें विपक्षीगण की कोई सेवा में कमी नहीं है, मृतक की स्‍वंय की गलती व लापरवाही के कारण उसकी मृत्‍यु हुई है।

इस सम्‍बन्‍ध में परिवादी पक्ष की ओर से प्रस्‍तुत मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा II (2005) CPJ 177 Madurai Corporation Vs South India Consumer Protection Council & Anr. में निम्‍नलिखित विधिक सिद्धान्‍त प्रतिपादित किये गये हैं :-

“(1) The complainant's case is that the deceased Rengarajan is her second son. He was studying in the Central School in X standard. On 24.7.1993 at about 5.00 p.m., he went for swimming in the pool belonging to and maintained by the opposite party. One part of the swimming pool has a depth of 4 feet while another part of the swimming pool about 12 feet deep. Normally a rope marker will be slung across the surface of the water to specify and bifurcate the shallow part of the pool from the deep part of the pool. THE time for swimming has been fixed from 6.00 a.m. to 7.00 a.m. But the complainant's son was permitted in an irregular manner to swim between 5.00 p.m. and 6.00 p.m. Further on that day, the rope marker was not there since it has snapped. THE complainant's son in the absence of the rope marker without knowing the difference in depth, died by drowning in the deep portion of the swimming pool. THEre must be an instructor and a lifeguard with an attender present all the time at the swimming pool. At the time of the incident, neither instructor nor the lifeguard were present. Thus on account of the carelessness and negligence, the death by drowning had taken place. If immediate first aid had been given, he would have survived. It was only at 7.00 p.m. on that day the complainant was informed about the same and the deceased was taken to Government Rajaji Hospital where he was declared to be dead. THE complainant had also lodged a complaint with the police. THE death of his son at such young age has caused considerable mental agony and loss to the complainant. THE deceased was well trained in computer operation and was well versed in Hindi. He was also No. 1 student in studies. Hence, the complainant prays for a compensation of Rs. 4 lakhs.

(12) In the result, the appeal in A.P. No. 377 of 2000 is dismissed and the appeal in A.P. No. 52 of 2001 is allowed in part. The order of the Lowest Forum will stand modified as follows :

(a)      The opposite party is directed to pay a sum of Rs. 1,25,000/- to the second complainant with interest at 9% per annum from the date of awarnamely from 28.7.1998.

(b)      The parites are directed to bear there own costs in these appeals.

(c)      Time for compliance : Two month.”

सम्‍पूर्ण पत्रावली के परिशीलन से यह विदित होता है कि परिवादी के पुत्र ने विपक्षीगण के द्वारा संचालित जे0एम0के0 मिलेनियम स्‍पोर्ट्स में तैराकी सीखने हेतु प्रवेश लिया था। विपक्षी सं0-1 व 2 के प्रशिक्षण संस्‍थान में तैराकी सिखाने हेतु कोच की व्‍यवस्‍था थी। परिवादी का पुत्र तैराकी सीखने हेतु प्रशिक्षण संस्‍थान में नियमित रूप से जाया करता था। दिनांक 03.06.2001 को परिवादी का पुत्र 7.30 बजे स्‍वीमिंग पूल के लिये गया। एक घण्‍टे बाद डा0 मनीश वासीनक स्‍वीमिंग पूल पहुंचे तथा उन्‍होंने देखा कि आलोक का स्‍कूटर बाहर खड़ा है, परन्‍तु वो प्रशिक्षण संस्‍थान में नहीं है। उन्‍होंने कोच उमेश यादव से पूछा तो उन्‍होने बताया कि हमें पता नहीं है। डा0 मनीश एक घण्‍टा तैरने के बाद 10.00 बजे वापस मेडिकल हॉस्‍टल आ गये। करीब 5.30 पर प्रधानाचार्य द्वारा पुलिस को सूचना दी गयी कि एक व्‍यक्ति की मृत्‍यु स्‍वीमिंग पूल में डूब कर मरने से हो गयी है, जिसकी पहचान डा0 आलोक कुमार जैन के नाम से हुई। मृतक डा0 आलोक कुमार जैन की मृत्‍यु स्‍वीमिंग पूल में डूबने के कारण हुई। स्‍वीमिंग पूल में विपक्षी सं0-1 व 2 द्वारा समुचित प्रशिक्षण न दिये जाने व कोच द्वारा अपने दायित्‍व का निर्वाह न करने के कारण परिवादी के पुत्र की मृत्‍यु हुई है। यदि विपक्षी सं0-1 व 2 प्रशिक्षण संस्‍थान द्वारा नियमानुसार प्रशिक्षण दिया जाता तो दुर्घटना होने की सम्‍भावना नहीं होती। प्रशिक्षण संस्‍थान खुलने के बाद कोच व अन्‍य कर्मचारी को अपने दायित्‍वों व कर्तव्‍यों का पालन करना चाहिये था, जो नहीं किया गया। विपक्षीगण को नहीं पता कि संस्‍थान में कौन छात्र/प्रशिक्षु आया अथवा कौन अनुपस्थित है, जब घटना घटित हो गयी, तब प्रधानाचार्य द्वारा पुलिस को सूचना दी गयी। प्रधानाचार्य को यह नहीं पता कि मृतक उनके संस्‍थान का प्रशिक्षणकर्ता है। विपक्षी सं0-1 व 2 की सेवा में कमी स्‍पष्‍ट रूप से साबित होती है।

विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क कि प्रशिक्षणकर्ता कोच की बिना अनुमति के तैराकी सीखने हेतु स्‍वीमिंग पूल में गया था, यह तर्क स्‍वीकार करने योग्‍य नहीं है, क्‍योंकि प्रशिक्षण संस्‍थान द्वारा मृतक की पहचान नहीं की गयी और पुलिस को यह रिपोर्ट दी गयी कि एक व्‍यक्ति की डूबने से मृत्‍यु हो गयी है। प्रशिक्षण संस्‍थान जब खुला तब कोच को स्‍वीमिंग पूल पर प्रशिक्षण देने हेतु उपस्थित होना चाहिये था तथा तैरने वाले प्रशिक्षणकर्ता पर निगरानी रखनी चाहिये थी। यदि प्रशिक्षणकर्ता को कोई समस्‍या आती हो तो उसका समाधान तुरन्‍त करना चाहिये था, परन्‍तु संस्‍थान को यह पता नहीं कि कौन प्रशिक्षणकर्ता आया अथवा नहीं। परिवाद पत्र के अभिवचन के अनुसार विपक्षी संख्‍या-3, श्री उमेश यादव स्‍वीमिंग कोच के रूप में कार्यरत थे। इस प्रकार विपक्षी संख्‍या-3, श्री उमेश यादव विपक्षी संख्‍या-1 व 2 के कर्मचारी स्‍वीकार किये जाने योग्‍य हैं। ऐसी स्थिति में क्षतिपूर्ति की अदायगी की कोई जिम्‍मेदारी विपक्षी संख्‍या-3 के विरूद्ध नहीं पायी जाती है। सम्‍पूर्ण विवेचना के आधार पर पीठ इस निष्‍कर्ष पर पहुँचती है कि वर्तमान प्रकरण में सेवा की कमी विपक्षी संख्‍या-1 व 2 के सन्‍दर्भ में है, इसलिए परिवादी विपक्षी संख्‍या-1 व 2 से अनुतोष पाने का अधिकारी है तथा परिवादी पत्र में स्‍पष्‍ट रूप से यह अभिवचित किया गया है कि मृतक की मृत्‍यु के कारण परिवादी को मृतक से रूपये चार लाख की आर्थिक सहायता प्राप्‍त हो सकती थी, अत: रूपये चार लाख के सन्‍दर्भ में परिवाद पत्र की धारा 16 बी में अनुतोष मांगा गया है। उपरोक्‍त विधि व्‍यवस्‍था में प्रतिपादित सिद्धान्‍त को दृष्टिगत रखते हुए परिवादी को रूपये चार लाख क्षतिपूर्ति के रूप में अनुतोष प्रदान किया जाना उचित होगा तथा परिवाद पत्र की धारा 16 सी में मानसिक कष्‍ट के रूप में रूपये पॉंच लाख दिलाये जाने की याचना की गयी है, इस सन्‍दर्भ में रू0 50,000/- दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है तथा वाद व्‍यय के रूप में रू0 2,000/- दिया जाना उचित प्रतीत होता है। उपरोक्‍त वर्णित धनराशि का भुगतान आदेश की तिथि से 02 माह के अन्‍दर उपलब्‍ध कराया उचित होगा, अन्‍यथा परिवादी 09 प्रतिशत ब्‍याज भी पाने का अधिकारी होगा। तदनुसार वर्तमान परिवाद अंशत: स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

     वर्तमान परिवाद अंशत: स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्‍या-1 व 2 परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में रूपये चार लाख तथा मानसिक कष्‍ट के रूप में रूपये 50,000/- व वाद व्‍यय के लिए रूपये 2,000/- अदा करें। यदि आदेश का अनुपालन दो माह की अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्‍त समस्‍त धनराशि पर आदेश की तिथि से भुगतान की तिथि तक परिवादी 09 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज की दर से ब्‍याज भी प्राप्‍त करने का अधिकारी होगा।

    

                     

                     

(जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा)                      (संजय कुमार)

          पीठासीन सदस्‍य                               सदस्‍य

 

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0, कोर्ट-2

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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