राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या– 899/2005 सुरक्षित
( जिला उपभोक्ता फोरम नोएडा गौतम बुद्ध नगर द्वारा परिवाद सं0-780/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-04-2005 के विरूद्ध)
इलाहाबाद बैंक ए-6, सेक्टर-10 नोएडा, जिला- गौतम बुद्ध नगर, द्वारा मैनेजर।
..अपीलार्थी/विपक्षी
श्री जे0एल0 कौल पुत्र श्री पी0एन0 कौल, निवासी- 56, अनुपम अपार्टमेंट, एम0बी0 रोड़, न्यू दिल्ली।
.......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थिति: कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : श्री अरूण कुमार टण्डन, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक- 14-12-2015
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
अपीलकर्ता ने यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम नोएडा गौतम बुद्ध नगर द्वारा परिवाद सं0-780/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-04-2005 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
“उपरोक्त विवेचना के आधार पर फोरम का आदेश है कि प्रश्नगत भवन ऋण से सम्बन्धित जो ब्याज के रूप में धनराशि का मांगपत्र शिकायतकर्ता को विपक्षी द्वारा भेजा गया है, वह निरस्त किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि शिकायतकर्ता के जो अभिलेख भवन ऋण से सम्बन्धित बंधक पत्र के रूप में विपक्षी बैंक में जमा है, उनको वह निर्धारित प्रक्रियानुसार आज से दो माह की अवधि में शिकायतकर्ता को वापस करें। साथ ही शिकायतकर्ता द्वारा जो 20,000-00 रूपये की अतिरिक्त धनराशि विपक्षी को भुगतान की गई है वह भी उक्त अवधि में ही विपक्षी शिकायतकर्ता को वापस करें।”
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि शिकायतकर्ता के फ्लैट नम्बर 4 स्थित भूखण्ड संख्या-बी-66, सेक्टर 33, नोएडा के प्रति शिकायतकर्ता ने विपक्षी इलाहाबाद बैंक कलकत्ता से दो लाख रूपये का ऋण लिया था, जिसकी किश्तों का भुगतान जनरवरी 1994 से दिसम्बर, 2006 तक की बारह वर्ष की अवधि में 2,500-00 रूपये प्रतिमाह की किश्तों में किया जाना था। शिकायतकर्ता के अनुसार उसने उपरोक्तानुसार देय 3,60,000-00 रूपये के विपरीत 3,80,000-00 रूपये का भुगतान आठ वर्षो में ही दिनांक12-10-1993 तक कर दिया, किन्तु इसके बावजूद विपक्षी बैंक द्वारा 1,18,104-00 रूपये की अतिरिक्त धनराशि जमा करने की सूचना परिवादी को मिली है। शिकायतकर्ता ने प्रार्थना की है कि उसको विपक्षी से 20,000-00 रूपये जमा अतिरिक्त धनराशि ब्याज सहित उसको वापस दिलाई जाय तथा 4,500-00 रूपये परिवाद व्यय के रूप में और बंधक के रूप में रखे गये अभिलेख भी बैंक से वापस दिलाया जाए।
(2)
जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा नोटिस निर्गत होने के बाद विपक्षी की ओर से लिखित उत्तर दाखिल किया गया, जिसमें कहा गया है कि प्रश्नगत भवन ऋण इलाहाबाद बैंक कलकत्ता द्वारा स्वीकृत हुआ था, जिसकी मासिक किश्तें 3,550-00 रूपये निश्चित हुई थी। विपक्षी के अनुसार उक्त ऋण में 17.50 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज सहित धन की वापसी 3,550-00 रूपये की मासिक किश्तों द्वारा होनी थी। विपक्षी के अनुसार अब भी 1,22,943-00 रूपये की धनराशि शिकायतकर्ता के प्रति बकाया है और इस प्रकार शिकायत न्यायिक आधार पर खारिज किये जाने योग्य है। विपक्षी की ओर से सम्बन्धित ऋण की धनराशि के भुगतान एवं प्राप्ति का बैंक एकाउन्ट दाखिल किया गया है तथा अवशेष धनराशि का विवरण भी विपक्षी ने दाखिल किया है।
प्रत्युतर में शिकायतकर्ता की ओर से प्रश्नगत प्रकरण से सम्बन्धित विवरण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें इस बात को पुन: कहा गया है कि स्वीकृत दो लाख रूपये के ऋण के विपरीत देय धनराशि 3,60,000-00 रूपये के सापेक्ष 3,80,000-00 रूपये जमा किये गये है और इस प्रकार 20,000-00 रूपये की अतिरिक्त धनराशि बैंक में जमा हुई है। शिकायतकर्ता की ओर से कहा गया है कि मासिक किश्तों की धनराशि 3,550-00 रूपये न होकर 2500-00 रूपये मासिक है और शिकायतकर्ता को जो पत्र भेजा गया उसमें 2,500-00 रूपये की मासिक किश्त का ही उल्लेख है और इस धनराशि में किसी भी प्रकार से संशोधन शिकायतकर्ता को कभी सूचित नहीं किया गया। इस कथन की पुष्टि में शिकायतकर्ता ने विपक्षी द्वारा निर्गत पत्र 03-03-1992 की फोटो प्रति दाखिल की है, जिसके अनुसार ऋण का भुगतान बारह वर्षो में 2,500-00 रूपये की मासिक किश्तों में होना था। शिकायतकर्ता की ओर से विपक्षी द्वारा भेजे गये पत्र दिनांक 10-04-2012 की प्रति भी दाखिल हुई है, जिसमें कहा गया है कि त्रुटियॉ ब्याज का आंकलन 16.50 प्रतिशत के स्थान पर 14 प्रतिशत के रूप में हुआ है। विपक्षी द्वारा अपने पत्र दिनांक 10 जून 2002 एवं 26 जुलाई 2002 कागज सं0-11ग/ 10-11 में यह उल्लेख किया है कि मासिक किश्तों की धनराशि के निर्धारण में टाइपिंग त्रुटि से 2,500-00 रूपये की धनराशि अंकित हो गई है और इसी कारण शिकायतकर्ता द्वारा मासिक किश्तों का भुगतान किया जाता रहा है जो वस्तुत: भवन के ऋण की पूर्ण अदायगी के रूप में नहीं है और दिनांक 20-06-2002 को यह धनराशि 1,18,104-00 रूपये के रूप में देय थी। विपक्षी के अनुसार उक्त धनराशि जमा न होने की स्थिति में वसूली की कार्यवाही विपक्षी द्वारा प्रारम्भ की जायेगी।
अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन, उपस्थित है। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना गया। अपील आधार एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
प्रत्यर्थी के तरफ से बहस में कहा गया कि 3,60,000-00 जमा करना था, जबकि उसने 3,80,000-00 रूपये ब्याज सहित जमा किया। अत: अतिरिक्त 20,000-00 रूपये वापस करने का सही आदेश है। जिला उपभोक्ता फोरम दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त यह पाया कि परिवादी के पक्ष में स्वीकृत ऋण और तत्सम्बन्धी भुगतान की धनराशि जो परिवादी द्वारा जमा
(3)
की गई है, उसके प्रति कोई विवाद नहीं है। यह भी कहा गया है कि निर्धारित धनराशि से 20,000-00 रूपये अधिक परिवादी द्वारा जमा कर दिया गया है, उसे वापस पाने का प्रार्थना पत्र दिया गया। जिला उपभोक्ता फोरम ने सारे अभिलेखों को दृष्टिगत रखते हुए तथा साक्ष्यों व अभिलेखों का विस्तृत विवरण देते हुए निर्णय पारित किया है और हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह विधि सम्मत् है, उसमें हस्तक्षेप किये जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। अपीलकर्ता की अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
तद्नुसार अपीलकर्ता की अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
(आर0सी0 चौधरी) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु
कोर्ट नं. 5