सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1592/2016
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-196/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02.07.2016 के विरूद्ध)
1. मै0 टाटा एआईजी जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड, 301-308, थर्ड फ्लोर अग्रवाल प्रेस्टाइज माल, प्लॉट नं0-2, रोड नं0-44, निकट एम.2के, सिनेमा रानी बाग, पितमपुरा, नई दिल्ली।
2. ब्रांच मैनेजर, टाटा एआईजी जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड, यूनिट नं0-206, सेकण्ड फ्लोर, रतन स्क्वायर (20-ए) विधानसभा मार्ग, लखनऊ।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
ईशा अन्सारी पुत्र स्व0 श्री वलि मोहम्मद, निवासी 2/33, विकास नगर, निकट कुर्सी रोड, लखनऊ।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : श्री निशान्त शुक्ला, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री इस्तिखार हसन, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 28.03.2018
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, परिवाद संख्या-196/2005, ईशा अन्सारी बनाम मै0 टाटा एआईजी जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड व अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02.07.2016 से क्षुब्ध होकर विपक्षीगण/अपीलार्थी की ओर से योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा निम्नवत् आदेश पारित किया गया है :-
'' The complaint is allowed. The opposite parties are jointly and severely directed to pay insured amount insured amount of Rs. 628807.00 with interest @ 9% per annum from filing the complaint i.e. 21-4-2015 till the date of payment alongwith Rs. 15000/- as compensation for mental agony and Rs. 5000/- as cost of the complaint to the complainant within 30 days from this order failing which the rate of interest shall be 12% simple interest on the entire amount till its actual payment from the date of complaint. ''
प्रस्तुत प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी/प्रत्यर्थी आईटीआरसी से सेवानिवृत्त व्यक्ति है, जो विभिन्न बीमारियों से पीडित है और उनकी पत्नी भी दिल की बीमारी से पीडित हैं। उन्हें और उनकी पत्नी को चिकित्सा सहायता के लिए उन्होंने जनवरी 2013 में एक महेन्द्रा स्कारपियो वाहन रजिस्ट्रेशन संख्या-यू0पी0 32 ईआर 4818 क्रय किया, जिसका बीमा विपक्षीगण, बीमा कम्पनी से पालिसी संख्या-010091312600 के माध्यम से दिनांक 23.01.2014 से 22.01.2015 की अवधि तक के लिए कराया। उक्त वाहन परिवादी के पुत्र मो0 युनूस द्वारा चलाया जाता था। दिनांक 20.12.2014 को उक्त वाहन से परिवादी अपनी पत्नी के साथ इलाज के लिए केजीएमसी, लखनऊ गये, जहां से लौटने के बाद उन्होनें अपने घर के बाहर उक्त वाहन को लगभग 11 बजे खड़ा कर दिया। अगले दिन सुबह 7.00 बजे वह आश्चर्यचकित हो गया कि उसका वाहन वहां नहीं था, इस पर उन्होंने तुरन्त पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नम्बर डायल करके सूचित किया और कुछ घंटों तक वाहन की तलाश की, वाहन न मिलने पर वह दिनांक 21.12.2014 को पुलिस स्टेशन, विकास नगर गया और घटना की लिखित सूचना दी और पुलिस ने उन्हें अगले दिन एफआईआर की प्रति प्राप्त करने के लिए कहा, जिस पर परिवादी ने दिनांक 22.12.2014 को एफआईआर की प्रति प्राप्त की, जो उसी दिन पंजीकृत हुई थी। पुलिस और परिवादी द्वारा सर्वोत्तम प्रयास किये जाने के बावजूद भी जब वाहन का पता नहीं चला, तब परिवादी ने विपक्षीगण को दिनांक 24.12.2014 को सूचित किया, जिस पर विपक्षीगण ने परिवादी को सूचित किया कि अधिकृत जांचकर्ता श्री नीतेश कुमार को जांच के लिए नियुक्त किया गया है, जिन्होंने सूचित किया कि औपचारिकताएं पूरी करने के लिए श्री सत्य मिश्रा परिवादी से सम्पर्क करेंगे। दिनांक 02.01.2015 को श्री सत्य मिश्रा अपने दोस्त के साथ परिवादी के पास आया और घटना के बारे में पूछताछ की और रू0 50,000/- की मांग की, जिसे देने में परिवादी असमर्थ था, इस पर श्री सत्य मिश्रा ने परिवादी से रू0 5000/- औपचारिकता पूर्ण करने के एवज में लिये और इस दौरान उन्होने कई फोटोग्राफ भी लिये और चाभी की भी फोटो ली। दिनांक 22.01.2015 को विपक्षीगण द्वारा पत्र के माध्यम से परिवादी को सूचित किया गया कि एफआईआर एक दिन देरी के साथ दर्ज करायी गयी थी। उक्त पत्र में यह भी कहा गया कि मूल इग्निशन कुंजी को वाहन के अंदर ही छोड़ दिया गया था, जिसका चोरो ने फायदा उठाया और वाहन चोरी कर लिया गया, जिसमें परिवादी की लापरवाही सिद्ध होती है। इसी आधार पर बीमा क्लेम का भुगतान करने से इंकार कर दिया गया, जिससे क्षुब्ध होकर प्रश्नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष योजित किया गया।
विपक्षीगण द्वारा परिवाद पत्र का विरोध करते हुए प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें उनके द्वारा कहा गया कि इग्निशन बिन्दु में चाभी को छोड़ा जाना, लापरवाही है। लिखित कथन में यह भी कहा गया कि परिवाद भौतिक तथ्यों को छिपाकर दायर किया गया है, जिसे खारिज किये जाने की प्रार्थना की गयी।
जिला फोरम द्वारा उभय पक्ष को सुनने एवं पत्रावली का परिशीलन करने के उपरांत उपरोक्त आक्षेपित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02.07.2016 पारित किया गया है।
उपरोक्त आक्षेपित आदेश दिनांक 02.07.2016 से क्षुब्ध होकर यह अपील दायर की गई है।
अपील सुनवाई हेतु पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री निशान्त शुक्ला तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवता श्री इस्तिखार हसन उपस्थित हुए। उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश तथा उपलब्ध अभिलेखों का ध्यानपूर्वक परिशीलन किया गया।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क किया गया कि परिवादी के अनुसार प्रश्नगत वाहन में वाहन की चाभी छूट गयी थी, जिसमें परिवादी की स्वंय की लापरवाही सिद्ध होती है। परिवादी ने एफआईआर में भी इस बात को स्वीकार किया है। बीमा कम्पनी को तीन दिन के विलम्ब से सूचना दी गयी है तथा एफआईआर एक दिन के विलम्ब से दर्ज करायी गयी है। इस प्रकार बीमा कम्पनी के नियम व शर्तों का उल्लंघन हुआ है। जिला फोरम ने ब्याज की दर 09 प्रतिशत दिलायी है, जो अत्यधिक है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क किया गया कि प्रश्नगत वाहन अपीलार्थीगण/विपक्षीगण, बीमा कम्पनी से दिनांक 23.01.2014 से 22.01.2015 की अवधि तक के लिए बीमित था। प्रश्नगत वाहन दिनांक 20/21.12.2014 को चोरी हो गया। प्रश्नगत वाहन परिवादी के घर के बाहर खड़ा था। प्रश्नगत वाहन की चोरी होने की जांच पुलिस द्वारा की गयी और अपनी अंतिम रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत की, जो न्यायालय द्वारा स्वीकार कर ली गयी। वाहन चोरी होना साबित है। परिवादी/प्रत्यर्थी ने कभी भी वाहन की चाभी व कागजात गाड़ी में नहीं छोड़े थे। बीमा कम्पनी के सर्वेयर श्री सत्य मिश्रा ने गलत आरोप लगाते हुए कहा है कि वाहन की चाभी व कागजात वाहन में छोड़ दिये गये थे। बीमा कम्पनी ने धोखे से शपथपत्र पर परिवादी के हस्ताक्षर करवा लिये हैं, जिससे उन्हें भुगतान न करना पड़े। जिला फोरम ने जो निर्णय एवं आदेश दिया है, वह सही एवं विधिसम्मत है।
आधार अपील एवं सम्पूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिससे यह विदित होता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपना वाहन महेन्द्रा स्कारपियो रजिस्ट्रेशन संख्या-यू0पी0 32 ईआर 4818 का बीमा विपक्षीगण/अपीलार्थीगण से दिनांक 23.01.2014 से 22.01.2015 की अवधि तक के लिए कराया था। उक्त वाहन दिनांक 20/21.12.2014 को परिवादी के घर के सामने खड़ा था, जहां से वाहन चोरी हो गया। चोरी की घटना की सूचना परिवादी ने संबंधित थाने में दर्ज करायी तथा बीमा कम्पनी को भी सूचित किया, किन्तु बीमा कम्पनी ने परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार कर दिया। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क किया कि परिवादी ने वाहन की चाभी तथा वाहन के कागजात वाहन में ही छोड़ दिये थे, जिसके कारण बीमा दावा अस्वीकार किया गया है। इस सम्बन्ध में परिवादी द्वारा हस्ताक्षरित शपथपत्र नोटरी के द्वारा सत्यापित, दाखिल किया गया है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है, क्योंकि परिवादी ने इस तथ्य से इंकार किया है। बीमा कम्पनी द्वारा धोखा देकर हस्ताक्षर करवाया गया तथा नोटरी शपथपत्र दिल्ली से दिनांक 07.01.2015 को बनवाया गया है। यह मामला जिला फोरम, लखनऊ से संबंधित है, परन्तु नोटरी शपथपत्र दिल्ली से जारी किया गया है। अपीलार्थीगण द्वारा कोई अन्य साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है। शपथपत्र विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि किसी अधिवक्ता द्वारा शपथकर्ता का हस्ताक्षर आइडेन्टिफाइड नहीं किया गया है, जिससे यह साबित हो सके कि वाहन की चाभी व कागजात चोरी की घटना के समय वाहन में ही मौजूद थे तथा परिवादी द्वारा लापरवाही की गयी है। अपीलार्थीगण का आरोप मनगढंत हैं, जो स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। अपीलार्थीगण की अपील बलहीन होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
अपील बलहीन होने के कारण निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
उभय पक्ष को निर्णय की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (संजय कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-1