राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-०५/२०१५
(जिला मंच (द्वितीय), बरेली द्वारा परिवाद सं0-१०१/२०१३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-१२-२०१४ के विरूद्ध)
चोलामण्डलम इन्वेस्टमेण्ट एण्ड फाइनेंस कं0लि0 द्वारा मैनेजर लीगल, कार्यालय गुरूप्रीत हाउस, द्वितीय तल, २१-स्टेशन रोड, लखनऊ, शाखा कार्यालय रामदास भवन, बीकानेरी के पीछे, सिविल लाइन्स, बरेली।
............. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
१. इकरार हुसैन पुत्र सज्जाद हुसैन, निवासी अरविन्द नगर, नैनीताल रोड, थाना प्रेम नगर, जिला-बरेली।
२. रजिया इकरार पत्नी इकरार हुसैन, निवासी अरविन्द नगर, नैनीताल रोड, थाना प्रेम नगर, जिला-बरेली।
.............. प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री बृजेन्द्र चौधरी विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री इकबाल हुसैन विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०४-०५-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला मंच (द्वितीय), बरेली द्वारा परिवाद सं0-१०१/२०१३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-१२-२०१४ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी सं0-२ ने जहूर अहमद नाम के व्यक्ति से एक पुराना ट्रक नम्बर यू.पी. २२ टी-१३८० माडल सन् २००७ मुबलिग १३.५० लाख रू० में खरीदा। इस ट्रक के क्रय मे सम्बन्ध में प्रत्यर्थी सं0-२ ने अपीलार्थी से ८,८९,३५०/- रू० की वित्तीय सहायता प्राप्त की। प्रत्यर्थीगण के अनुसार इस ऋण की अदायगी दिनांक ०८-०२-२०१३ से दिनांक ०७-०१-२०१६ तक ३६ माह की किश्तों में ४०,४५३/- रू० मासिक किश्त के रूप में की जानी थी। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने दिनांक २०-०९-२०१३ तक कुल १,६६,९२१/- रू० अपीलार्थी को अदा किया। अस्वस्थता एवं ट्रक की खराबी के कारण कुछ धनराशि प्रत्यर्थीगण अदा नहीं कर सके। इस पर अपीलार्थी, प्रत्यर्थीगण से १८ प्रतिशत वार्षिक ब्याज की मांग करने लगे तथा जबरन ट्रक
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छीनने की धमकी देने लगे। अत: प्रत्यर्थीगण द्वारा परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
जिला मंच द्वारा पारित यथा स्थिति के आदेश के बाबजूद दिनांक २१-०१-२०१४ को अपीलार्थी ने जबरन उक्त ट्रक अपने कब्जे में ले लिया। अपीलार्थी के अनुसार प्रत्यर्थीगण ने अपीलार्थी से कुल ०९.०० लाख रू० का ऋण उक्त ट्रक खरीदने हेतु दिनांक ३१-०१-२०१३ को लिया था तथा इस सम्बन्ध में करार पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार दिनांक ०१-०१-२०१३ से ०१-१२-२०१५ की अवधि में ४०,४५३/- रू० की मासिक किश्तों में ऋण की अदायगी होनी थी, किन्तु प्रत्यर्थीगण ने ऋण की मासिक किश्त की अदायगी नहीं की। अत: ऋण अदायगी की प्रक्रिया के अन्तर्गत अपीलार्थी ने अपने एण्जेण्ट फालकन फील्ड सर्विस के माध्यम से दिनांक २१-०१-२०१४ को थाना फरीदपुर, बरेली की सीमा में वाहन सीज कर अपने कब्जे में ले लिया और उसी दिन फरीदपुर पुलिस को इसकी सूचना दी।
विद्वान जिला मंच ने प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण के परिवाद को स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को यह निर्देशित किया कि वह परिवादीगण को कु १०,५०,०००/- रू० ट्रक व सामान के मूल्य की क्षतिपूर्ति के रूप में, १,००,०००/- रू० शारीरिक व मानसिक कष्ट व पीड़ा के लिए तथा १०,०००/- रू० वाद व्यय कुल ११,६०,०००/- रू० निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर अदा करे। ऐसा न करने की स्थिति में अपीलार्थी को इस सम्पूर्ण धनराशि पर निर्णय की तिथि से भुगतान की तिथि तक ०९ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी देना होगा।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी एवं प्रत्यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री इकबाल हुसैन के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन व्यावसायिक प्रयोजन हेतु क्रय किया गया। अत: परिवादीगण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-२(१)(डी) के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं। इस सन्दर्भ में उनके द्वारा लक्ष्मी इंजीनीयरिंग वर्क्स बनाम पी.एस.जी. इण्डिस्ट्रीज इन्स्टीट्यूट, १९९५ ए.आई.आर. एस0सी0 १४२८, में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवाद के अभिकथनों में स्वयं प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
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यह स्वीकार करते हैं कि प्रश्नगत ऋण की मासिक किश्तों की अदायगी नियमित रूप से प्रत्यर्थीगण द्वारा नहीं की जा रही थी। अपीलार्थी के कथनानुसार पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा की शर्तों के अन्तर्गत किश्तों की अदायगी न किए जाने की स्थिति में अपीलार्थी प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त कर सकता था। चूँकि अपीलार्थी द्वारा निरन्तर भुगतान हेतु मांग किए जाने के बाबजूद प्रत्यर्थीगण द्वारा किश्तों की अदायगी नहीं की गयी, अत: अपीलार्थी द्वारा दिनांक २१-०१-२०१४ को प्रश्नगत वाहन का कब्जा संविदा की शर्तों के अनुसार प्राप्त किया गया तथा इस सम्बन्ध में थाना फरीदपुर, बरेली में उसी दिन सूचना प्रेषित की गयी। इस प्रकार अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी कारित किया जाना नहीं माना जा सकता। इस सन्दर्भ में अपीलार्थी की ओर से परमेश्वरी बनाम वी.एस.टी. सर्विस स्टेशन व अन्य, २०१०(२) सीपीजे (एनसी) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय, मैनेजर सैंट मैरीज (एच0पी0)लि0 बनाम एन0जे0 जोस, III (1995) CPJ 58 (NC) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय एवं मैनेजर लीगल ओरिक्स आटो फाइनेंस (इण्डिया) लि. बनाम जगमन्दर सिंह व अन्य, (२००६) १ एससीसी ७०८ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णयों पर विश्वास व्यक्त किया गया। इन निर्णयों के अनुसार पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के अन्तर्गत यदि ऋणदाता को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि किश्तों की अदायगी में चूक किए जाने की स्थिति में ऋणदाता प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त कर सकता है, तब अपीलार्थी किश्तों की अदायगी में चूक किए जाने की स्थिति में ऋणदाता प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त कर सकता है।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा की शर्तों के अनुसार पक्षकारों के मध्य विवाद की स्थिति में विवाद का निबटारा मध्यस्थ द्वारा किया जाना था। चूँकि आर्बीट्रेशन एण्ड कन्सीलिएशन एक्ट एक विशेष अधिनियम है, अत: इसके प्राविधान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानों के ऊपर प्रभावी होंगे। ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार विद्वान जिला मंच को प्राप्त नहीं था।
जहॉं तक अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत किए गए इस तर्क का प्रश्न है कि प्रश्नगत वाहन व्यावसायिक उद्देश्य से चलाया जा रहा था, अत: प्रत्यर्थीगण अधिनियम के अन्तर्गत परिभाषित
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उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माने जा सकते। प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी सं0-२ ने प्रश्नगत ट्रक अपनी जीविकोपार्जन हेतु क्रय किया था और इस सन्दर्भ में विशिष्ट रूप से अभिकथन परिवाद में किया गया था। प्रत्यर्थी की आय का मात्र यही साधन है और इस ट्रक को प्रत्यर्थी सं0-१ सहायक चालक के रूप में चलाता था। प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी की ओर से सन्दर्भित लक्ष्मी इंजीनीयरिंग वर्क्स बनाम पी.एस.जी. इण्डिस्ट्रीज इन्स्टीट्यूट, १९९५ ए0आई0आर0 एस0सी0 १४२८ के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि ऐसी स्थिति में जहॉं जीविकोपार्जन हेतु खरीदा गया वाहन, जिसे उपभोक्ता स्वयं चलाकर परिवार का भरण-पोषण करता है, क्रेता/ऋणी को उपभोक्ता माना जायेगा, वाहन व्यावसायिक प्रयोजन हेतु क्रय किया जाना नहीं माना जायेगा।
परिवाद के अभिकथनों से प्रत्यर्थीगण के इस तर्क की पुष्टि होती है कि प्रत्यर्थी सं0-१, प्रत्यर्थी सं0-२ का पति है तथा प्रत्यर्थी सं0-१ के कथनानुसार प्रश्नगत वाहन को वह सहायक चालक के रूप में ही चलाता था। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि प्रत्यर्थीगण द्वारा क्रय किया गया वाहन व्यावसायिक उपयोग की श्रेणी में माना जायेगा तथा प्रत्यर्थीगण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं माने जा सकते।
जहॉं तक अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क का प्रश्न है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के अन्तर्गत पक्षकारों के मध्य विवाद की स्थिति में विवाद का निस्तारण मध्यस्थ द्वारा किया जाना वर्णित है, अत: प्रश्नगत परिवाद उपभोक्ता न्यायालय के समक्ष पोषणीय नहीं माना जा सकता।
इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत परिवाद योजित किए जाने से पूर्व विवाद मध्यस्थ को निस्तारण हेतु सन्दर्भित नहीं किया गया। स्काई पैक कोरियर्स लि0 बनाम टाटा केमिकल्स (२०००) ५ एससीसी २९४ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा में आर्बीट्रेशन क्लॉज की उपस्थिति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद योजन को प्रतिबन्धित नहीं करती, क्योंकि इस अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निस्तारण की व्यवस्था अन्य अधिनियमों के प्राविधानों के अतिरिक्त की गयी है। अत: प्रस्तुत मामले में उपभोक्ता मंच को सुनवाई का
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क्षेत्राधिकार होगा।
यह तथ्य भी निर्विवाद है कि दिनांक २१-०१-२०१४ को प्रश्नगत वाहन का कब्जा अपीलार्थी द्वारा प्राप्त कर लिया गया, क्योंकि अपीलार्थी के कथनानुसार वाहन के सन्दर्भ में अपीलार्थी से प्राप्त किए गये ऋण के भुगतान से सम्बन्धित किश्तों की अदायगी प्रत्यर्थीगण द्वारा नहीं की गयी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने इस तथ्य की ओर भी हमारा ध्यान आकृष्ट किया कि परिवाद में परिवादीगण द्वारा स्वयं यह स्वीकार किया है कि किश्तों की अदायगी में ४०,४५३/- रू० प्रति माह की किश्तों के अनुसार की जानी थी। प्रत्यर्थीगण द्वारा किश्तों की अदायगी का विवरण परिवाद के प्रस्तर-८ में दर्शित किया गया है। उक्त विवरण में स्वयं प्रत्यर्थीगण ने यह दर्शित किया है कि किश्तों की सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी प्रत्यर्थीगण द्वारा नहीं की जा रही थी। अत: पक्षकारों के मध्य निष्पादत संविदा की शर्तों के अनुसार अपीलार्थी ने प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त किया।
इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों के अनुसार परिवादीगण ने किश्तों की अदायगी के सम्बन्ध में ११ कोरे चेक सं0-४४९०२९ लगायत ४४९०३९ अपीलार्थी के पास जमा किए थे। अपीलार्थी इन चेकों के माध्यम से किश्तों का भुगतान प्राप्त कर सकता था। उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी का यह कथन नहीं है कि प्रत्यर्थीगण द्वारा वर्णित उपरोक्त चेक उसके पास जमा नहीं किए गये थे एवं भुगतान हेतु प्रेषित किए जाने पर बैंक द्वारा इन चेकों का भुगतान नहीं किया गया।
जहॉं तक अपीलार्थी के इस तर्क का प्रश्न है कि पक्षकारों के मध्यम निष्पादित संविदा की शर्तों के अनुसार किश्तों की अदायगी में चूक किए जाने की स्थिति में अपीलार्थी प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त कर सकता है, अत: अपीलार्थी द्वारा दिनांक २१-०१-२०१४ को प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त करना सेवा मे त्रुटि नहीं माना जा सकता। उल्लेखनीय है कि स्वयं अपीलार्थी ने पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा की फोटोप्रति कागज सं0-४२ लगायत ५० दाखिल की है, जिसमें शर्त सं0-११ के अन्तर्गत किश्तों की अदायगी में चूक किए जाने की स्थिति में अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त किए जाने से सम्बन्धित शर्त का उल्लेख किया गया है, जिसमें स्पष्ट रूप से यह अंकित है कि किश्तों की अदायगी में चूक किए जाने की स्थिति में कम्पनी ०७ दिन की नोटिस ऋणी को भेजेगी। प्रत्यर्थीगण के कथनानुसार
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ऐसी कोई नोटिस अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थीगण को प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त करने से पूर्व नहीं भेजी गयी, बल्कि जिला मंच द्वारा यथा स्थिति बनाये रखने के सम्बन्ध में पारित अन्तरिम आदेश दिनांक ०५-१२-२०१३ के बाबजूद प्रश्नगत वाहन का कब्जा अपीलार्थी द्वारा प्राप्त किया गया।
यद्यपि अपीलार्थी ने अपील के आधारों में यह तथ्य उल्लिखित किया है कि प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त करने से पूर्व अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थीगण को नोटिस भेजी गयी थी, किन्तु जिला मंच के समक्ष इस सन्दर्भ में अपीलार्थी द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी। प्रश्नगत निर्णय में विद्वान जिला मंच ने इण्डियन सीमलेस फाइनेंस सर्विस लि0 बनाम रंजना पटेल, २०१३(१) सी.एल.टी. पृष्ठ ११ के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय एवं श्रीराम उमराव बनाम मैनेजिंग डायरेक्टर इण्डसइण्ड बैंक लि. चेन्नई २०१२ (९२) ए.एल.आर. पृष्ठ ३१ के मामले में मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा दिए गये निर्णयों का उल्लेख किया है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय में यह अवधारित किया गया है कि वाहन को सीज करने से पूर्व नोटिस द्वारा सूचना न दिए जाने की स्थिति में यह परिकल्पना की जायेगी कि वाहन को बलपूर्वक जोर-जबरदस्ती से सीज किया गया है। मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णय में ऐसी कार्यवाही को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन माना गया। यह भी उल्लेखनीय है कि स्वयं अपीलार्थी द्वारा दाखिल किए गये करारनामे में प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त करने से पूर्व नोटिस भेजे जाने का तथ्य उल्लिखित है। अत: अपीलार्थी का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा की शर्तों के अनुरूप प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त करने की कार्यवाही की गयी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस सन्दर्भ में सन्दर्भित उपरोक्त निर्णयों के तथ्य प्रस्तुत मामले के तथ्यों से भिन्न होने के कारण प्रस्तुत मामले में इन उपरोक्त निर्णयों का लाभ अपीलार्थी को प्राप्त नहीं कराया जा सकता।
ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि बिना पूर्व नोटिस के अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त करने की कार्यवाही सेवा में त्रुटि मानी जायेगी, त्रुटिपूर्ण नहीं है।
विद्वान जिला मंच ने पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा में प्रश्नगत वाहन का मूल्य १०.००
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लाख रू० निश्चित किए जाने के आधार पर क्षतिपूर्ति की अदायगी का आदेश पारित किया गया है, जिसे अनुचित नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी द्वारा वाहन का कब्जा प्राप्त करते समय वाहन के सामान के मूल्य के सन्दर्भ में ५०,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति विद्वान जिला मंच ने दिलाया है, किन्तु इस सन्दर्भ में विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थीगण द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है। अपील के मेमो के साथ अपीलार्थी ने कागज सं0-५३ दाखिल किया है, जो प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त करते समय बनाई गयी इन्वेण्ट्री से सम्बन्धित है। इस अभिलेख में वाहन चालक मुस्तफा रजा खान के हस्ताक्षर भी हैं। इस अभिलेख में गाड़ी को खाली दर्शित किया गया है। ऐसी परिस्थिति में वाहन के समान के सन्दर्भ में ५०,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति दिलाया जाना उचित नहीं माना जा सकता। तद्नुसार प्रश्नगत आदेश संशोधित किए जाने एवं शेष आदेश पुष्ट किए जाने तथा अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच (द्वितीय), बरेली द्वारा परिवाद सं0-१०१/२०१३ में पारित निर्णय एवं आदेश में ५०,०००/- रू० ट्रक के सामान के सन्दर्भ में क्षतिपूर्ति दिलाए जाने के सम्बन्ध में पारित आदेश निरस्त किया जाता है तथा इस आदेश के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(राज कमल गुप्ता)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.