राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-959/2023
विजय कुमार सिंह पुत्र स्व0 श्री भानू प्रताप सिंह, निवासी मढि़या विक्रमपुर, थाना खानपुर, जिला गाजीपुर उ0प्र0, हाल निवासी प्लॉट नं0-11 उॅचवा लॉज, ग्राउंड फ्लोर, रघुवंशी नगर, गिलट बाजार, थाना शिवपुर वाराणसी प्रोपराइटर सत्या कार्गो सर्विस, हेड आफिस एस.21/116-एफ-3ए, अपोजिट शिवम होटल, सुभाष नगर, परेड कोठी, थाना सिगरा, जिला वाराणसी।
...........अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
इकबाल अहमद पुत्र स्व0 हाजी शमसुद्दीन, निवासी मकान नं0-जे-31/81-ए, कच्चीबाग, थाना जैतपुरा वाराणसी। प्रोपराइटर सिल्क हैंडलूम फब्रिक्स कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, कार्यालय स्थित मकान नं0-जे3/82 कटेहर, थाना जैतपुरा, जिला वाराणसी।
..........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री पियूष मणि त्रिपाठी
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री अजय वाही
दिनांक :- 28.5.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/विपक्षी विजय कुमार सिंह की ओर से इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-04/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16.9.2022 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी आर्शीवाद सिल्क हैण्डलूम फेब्रिक्स कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड वाराणसी का चेयरमैन है एवं प्रत्यर्थी/परिवादी की सोसाइटी रजिस्टर है।प्रत्यर्थी/परिवादी की उक्त फर्म बुनकरों द्वारा निर्मित बनारसी जरी की
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साडि़या व करघे पर बुने हुए बनारसी कपडे आदि सारे सरकार द्वारा विभिन्न शहरों में आयोजित प्रदर्शनी में स्टाल लगा कर विक्रय हेतु उक्त ट्रासपोर्ट सत्या कार्गो सर्विस, जिसका प्रोपराइटर उक्त अपीलार्थी/विपक्षी है, से अपना माल बुक कराकर विभिन्न शहरों में भेजता था।
प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने अपने पुत्र अफजाल अहमद द्वारा दिनांक 09-11-2012 को 02 बंडल माल जिसमें बनारसी साड़ी एवं बनारसी ड्रेस मैटेरियल्स अपीलार्थी/विपक्षी को भोपाल भेजने हेतु दिया। अपीलार्थी/विपक्षी ने दो बंडल माल पार्सल करके परिवादी के पुत्र को रसीद बिल नम्बर 8442 दिनांक 09-11-2012 को दिया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उक्त माल भारत सरकार द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में बिक्री हेतु अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा बुक कराया था एवं उक्त माल दो दिन के अन्दर भोपाल पहुँचना था जिसका कुल विक्रय मूल्य 3,94,900/- रूपये था। उक्त माल जब अपीलार्थी/विपक्षी ने तय समय में भोपाल नहीं पहुँचाया तब प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र ने अपीलार्थी/विपक्षी और उसके कर्मचारियों से शिकायत की तो उन लोगों ने बताया कि रेलवे की गलती से प्रत्यर्थी/परिवादी का माल दूसरे जिले में पहुँच गया है, उसे वापस मंगाया गया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी से अनेकों बार तकादा करने के बावजूद जब प्रत्यर्थी/परिवादी को अपने माल के बारे में कुछ पता नहीं चला और अपीलार्थी/विपक्षी कोई न कोई बहाना करके टालता चला गया, तब अपीलार्थी/विपक्षी से कहा कि प्रत्यर्थी/परिवादी अब उसके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही करने पर मजबूर हो गया है तो अपीलार्थी/विपक्षी अपना कार्यालय बन्द करके भाग गया। उक्त अपीलार्थी/विपक्षी ने अन्य कई लोगों का माल हड़प कर लिया है ओर वह सारे लोग भी अपीलार्थी/विपक्षी को तलाशने लगे लेकिन
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अपीलार्थी/विपक्षी गायब हो गया तब विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र अफजाल अहमद जो उक्त संस्था का सदस्य भी है, ने दिनांक 16-4-2013 को अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रार्थना पत्र एस०एस०पी० वाराणसी और थाना जैतपुरा वाराणसी को भेजा।
यह भी कथन किया गया है कि अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध प्रत्यर्थी/परिवादी की तरह एक अन्य भुगतभोगी मोहम्मद दानिश ने थाना सिगरा, वाराणसी में एफ.आई.आर. दिनांक 23-05-2013 को अन्तर्गत धारा 406/505 आई.पी.सी. के तहत दर्ज कराया और उक्त एफ.आई.आर. में प्रत्यर्थी/परिवादी के माल को हड़पने का भी उल्लेख किया गया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध उक्त प्रार्थना पत्र और एफ आई आर. करने के बावजूद जब कोई कार्यवाही नहीं हुई तब विवश होकर परिवादी ने दिनाक 05-7-2013 को रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रार्थना पत्र माननीय मुख्यमन्त्री उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ, प्रमुख गृह सचिव, महानिरीक्षक उत्तर प्रदेश पुलिस वाराणसी, जिलाधिकारी वाराणसी, एस.एस.पी. वाराणसी, थानाध्यक्ष सिगिरा, वाराणसी को भेजें। उसके पश्चात पुलिस द्वारा उक्त अपीलार्थी/विपक्षी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का माल हड़प कर लिया गया है, अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इंकार किया गया तथा यह कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उपरोक्त वाद में अपीलार्थी/विपक्षी को गलत तथ्यों के आधार पर पक्षकार बनाया गया है। मुकदमा उपरोक्त के वादी इकबाल अहमद द्वारा कोई भी माल बुक नहीं कराया गया था बल्कि उनके पुत्र अफजल अहमद द्वारा भोपाल के
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लिए दो नग माल बुक कराया गया था। उक्त बंडल में क्या-क्या सामान था, कितने का सामान था, कोई भी बिल पुर्जा अपीलार्थी/विपक्षी को प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र द्वारा नहीं दिया गया था और न ही उक्त की कीमत प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र द्वारा बतायी गयी थी।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी दिनांक 10-11-2012 को कामायनी एक्सप्रेस ट्रेन नम्बर 11072 से वाराणसी से भेपाल के लिए कुल 09 व्यवसायियों का 28 नग माल भेजवाया, जिसमें से 11 नग पार्सल भोपाल पहुँचा व 17 नग पार्सल रेलवे के लापरवाही से नहीं पहुँच पाया था। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जो 28 नम पार्सल प्रत्यर्थी/परिवादी के कर्मचारी राकेश कुमार द्वारा बुक कराया गया था। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र अफजल अहमद को सत्या कार्गो की जो रसीद दी गयी है, उक्त रसीद के ठीक पीछे सत्या कार्गो सर्विस की शर्त लिखी गयी है, जिसके पैरा नम्बर 12 में यह लिखा है कि यदि कोई माल डैमेज होता है या गुम होता है तो सत्या कार्गो की जिम्मेदारी मु0-100/- रूपये से ज्यादे की नहीं होगी तथा उसी रसीद के नोट में लिखा है कि कोई भी कम्प्लेन 05 दिन के बाद कोई सुनवाई नहीं होगी। उपरोक्त शर्त की प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र अफजल अहमद को बखूबी जानकारी थी, बावजूद इसके प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के विरुद्ध गलत तथ्यों के आधार पर मुकदमा दाखिल किया गया है।
यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा न्यायालय श्रीमान अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट संख्या-5 वाराणसी में प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र व अन्य लोगों के विरूद्ध मुकदमा दाखिल किया गया था, जिसमे न्यायालय द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र अफजल अहमद व अन्य लोगों का बतौर अभियुक्त तलब किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी का माल जब भोपाल नहीं पहुँचा तो प्रत्यर्थी/परिवादी
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ने माल प्राप्ति हेतु लगातार आर0आर0 सेल कैण्ट वाराणसी, पश्चिम मध्य रेल जबलपुर व भोपाल प्रार्थना पत्र दिया और माल ढुढ़वाने का प्रयास कर रहा था। अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का माल भेजने में कोई लापरवाही नहीं की है बल्कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी को अपने माल की कीमत न बताकर तथा अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉ माल बुक कराते समय माल का बिल न देकर अपने आप में अपराध कारित किया है।
यह भी कथन किया गया कि रेलवे विभाग की माल गुम होने पर देनदारी मु0-50/- रूपये किलो के हिसाब से बनती है। प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र को यदि अपने दो नग माल की वजन की जानकारी हो तो वह अपने माल का वजन लिखित रूप से न्यायालय में दाखिल करें तो रेलवे के हिसाब से प्रत्यर्थी/परिवादी के माल की जितनी कीमत होगी उतनी कीमत अपीलार्थी/विपक्षी रेलवे की दर से मु0-50/- रूपये प्रति किलो के हिसाब से देने के लिए तैयार है। यदि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी के बिल के हिसाब से भुगतान लेना चाहता है तो एक बिल पर मु0-100/-रूपये से ज्यादा का भुगतान अपीलार्थी/विपक्षी नहीं कर सकता। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा उपरोक्त आधार पर सेवा में कमी न होना बताते हुए परिवाद निरस्त किये जाने की मांग की गयी है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को एकपक्षीय रूप से अंशत: स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादी का परिवाद एकपक्षीय रूप से अंशत: स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को संयुक्तत: व पृथक्तत: आदेशित किया जाता है कि इस आदेश की तिथि से 60 दिन के अन्दर परिवादी को कुल मु0-
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4,04,900/- (चार लाख चार हजार नौ सौ रूपये) का भुगतान करें। ऐसा न करने पर माल की कीमत मु0-3,94,900/- (तीन लाख चौरानबे हजार नौ सौ रूपये) पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अंतिम रूप से भुगतान की तिथि तक 6% (छः प्रतिशत) वार्षिक दर से ब्याज भी देय होगा।''
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है। यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से गलत एवं असत्य कथनों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह कथन किया गया कि प्रत्यर्थी अपीलार्थी का उपभोक्ता नहीं है, क्योंकि प्रत्यर्थी द्वारा अपीलार्थी को कोई प्रतिफल अदा नहीं किया गया है, न ही कोई शिपमेंट बुक कराया गया।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी द्वारा भारतीय रेलवे को पक्षकार नहीं बनाया गया है जो कि प्रस्तुत मामले में एक आवश्यक पक्षकार था, जिसके कारण परिवाद में सही पक्षकार न बनाये जाने का दोष है।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी एक व्यवसायी है और अपनी फर्म हैंडलूम फैब्रिक्स कोआपरेटिव सोसाइटी लि0 के नाम से वाणिज्यिक लेनदेन करता है अत्एव प्रत्यर्थी उपभोक्ता की श्रेणी में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा पीठ का ध्यान अपील पत्रावली के पृष्ठ सं0-33 एवं 37 की ओर आकर्षित करते हुए यह कथन किया
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गया है कि सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत उत्तर रेलवे द्वारा प्रत्यर्थी के माल को लोड कर सतना के लिए भेजा जाना उपरोक्त पत्र में उल्लिखित किया गया है, जिससे कि सम्पूर्ण उत्तरदायित्व रेलवे विभाग का है, न कि अपीलार्थी का एवं पृष्ठ सं0-37 पर सत्या कार्ग्रो सर्विस की नियम एवं शर्ते के संबंध में उल्लिखित किया गया है यदि कोई माल डैमेज होता है या गुम होता है तो सत्या कार्गो की जिम्मेदारी मु0-100/- रूपये से अधिक की नहीं होगी।
यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त तथ्यों की अनदेखी करते हुए जो एकपक्षीय रूप से निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह अनुचित है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपील को स्वीकार कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के अनुकूल है एवं जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा सम्पूर्ण तथ्यों का सम्यक परिशीलन करने के उपरांत निर्णय/आदेश पारित किया गया है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यक्ता नहीं है।
हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्व्य के कथनों को सुनने के पश्चात तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि प्रत्यर्थी द्वारा दिनांक 09-11-2012 को 02 बंडल माल (बनारसी साडी एवं बनारसी ड्रेस मैटेरियल्स) भोपाल
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भेजने हेतु रसीद बिल नम्बर 8442 के द्वारा अपीलार्थी से बुक कराया गया था, जोकि भारत सरकार द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में बिक्री हेतु दो दिन के अन्दर भोपाल पहुँचना था जिसका कुल विक्रय मूल्य 3,94,900/- रूपये था। उक्त माल जब अपीलार्थी ने तय समय में भेपाल नहीं पहुंचाया तब प्रत्यर्थी के पुत्र ने अपीलार्थी व उसके कर्मचारियों से शिकायत की, परन्तु अपीलार्थी कोई न कोई बहाना बनाकर टालता रहा एवं अपना कार्यालय बन्द करके भाग गया अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद प्रस्तुत किया गया।
चूंकि प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी का माल उसके गंतब्य तक नहीं पहुंचा और न ही प्रत्यर्थी को वापस ही प्राप्त कराया गया अत्एव इस संबंध में माल के वापसी की जिम्मेदारी अपीलार्थी की है। इस संदर्भ में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने प्रश्नगत निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का उल्लेख विस्तार से किया गया है, जिसे पुन: उल्लिखित किये जाने की आवश्यक्ता नहीं है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा अपील पत्रावली के पृष्ठ सं0-33 को दृष्टिगत कराते हुए यह कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी का माल गंतब्य तक न पहुंचने में अपीलार्थी को कोई दोष नहीं है और न ही प्रत्यर्थी द्वारा उक्त माल राशि के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट एवं प्रमाणित साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है जिसके आधार पर यह स्पष्ट हो सके कि प्रत्यर्थी का पार्सल का मूल्य 3,94,900.00 रू0 रहा हो।
हमारे विचार से विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने प्रश्नगत आदेश में जो अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध रू0 4,04,900.00 (चार लाख चार हजार नौ सौ रूपये) की देयता निर्धारित की गई है, उसका कोई आधार पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है अत्एव वाद के सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों तथा अपीलार्थी के अधिवक्ता के कथन
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को दृष्टिगत रखते हुए अधिक प्रतीत हो रही है, तद्नुसार 4,04,900.00 (चार लाख चार हजार नौ सौ रूपये) की देयता को रू0 2,00,000.00 (दो लाख रूपये) की देयता में परिवर्तित किया जाना उचित पाया जाता है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। निर्णय/आदेश का शेष भाग यथावत कायम रहेगा।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त आदेश का अनुपालन 45 दिन की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें। अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1