Final Order / Judgement | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि विपक्षी सं0-1 व 2 से परिवादी को 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 2,31,225/- रूपये की धनराशि दिलाई जाऐ। क्षतिपूर्ति की मद में 2,00,000/-रूपया और परिवाद व्यय की मद में 17,000/- रूपया इन विपक्षीगण से परिवादी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार है कि दिनांक 20/9/2006 को ट्रक खरीदने हेतु परिवादी ने विपक्षी सं0-1 से फाईनेंस कराया था। फाईनेंस की गई राशि पर परिवादी द्वारा 6.46 प्रतिशत की दर से ब्याज अदा किया जाना था ऋण की मासिक किश्त 42,162/- रूपया थी जिसका भुगतान दिनांक 21/8/2010 तक परिवादी को प्रतिमास करना था। दिनांक 21/3/2008 को परिवादी का ट्रक चोरी हो गया इसका बीमा विपक्षी सं0-3 से था। विपक्षी सं0-3 औपचारिक प्रतिवादी है। परिवादी के अनुसार उसने नियमित रूप से किश्तों का भुगतान विपक्षीगण को किया और ट्रक चोरी होने की तारीख तक वह 6,40,305/-रूपया की राशि विपक्षीगण को अदा कर चुका था। परिवादी ने ट्रक चोरी की सूचना पुलिस में उसी दिन दर्ज करा दी। ट्रक का चॅूंकि ऋण विपक्षी सं0-1 व 2 से था इस वजह से सारी कार्यवाही इन विपक्षीगण द्वारा की जानी थी। विपक्षी सं0-3 ने ट्रक चोरी जाने के फलस्वरूप 12,61,660/- रूपये की धनराशि विपक्षी सं0-1 व 2 को अदा की। विपक्षी सं0-3 को चाहिए था कि वे भुगतान परिवादी को करते, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। परिवादी का कथन है कि विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर ऋण की अदायगी का 2,31,325/-रूपया की धनराशि अधिक पहुँच गई है जिसे बार-बार अनुरोध करने के बावजूद परिवादी को वापिस करने के लिए वे तैयार नहीं है। परिवादी के अनुसार वह विपक्षीगण का उपभोक्ता है। उन्होने सेवाओं में कमी की है। इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है। उसने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षी सं0-1 व 2 से दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के साथ परिवादी ने पालिसी वाण्ड, प्रथम सूचना रिपोर्ट, अभिकथित रूप से विपक्षी को चोरी की सूचना दिऐ जाने विषयक पत्र दिनांकित 18/12/2008, न्यू इंण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी के लखनऊ स्थित कार्यालय को पंजीकृत डाक से भेजे गऐ पत्र दिनांकित 3/3/2009 तथा अपने ऋण खाते की नकलों को दाखिल किया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/5 लगायत 3/11 हैं।
- विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-16/1 लगायत 16/6 दाखिल हुआ जिसके समर्थन में इन्डस-इन्ड बैंक के पावर आफ अटार्नी होल्डर श्री उमेश कुमार f}वेदी ने अपना शपथ पत्र दाखिल किया। विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से दाखिल प्रतिवाद पत्र में कहा गया कि परिवादी के अनुरोध पर विपक्षी सं0-1 व 2 द्वारा ट्रक सं0- एच0आर0 56-5140 खरीदने हेतु 15,00,000/- रूपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी। इस सिलसिले में परिवादी को ब्याज और इंश्योरेंस सहित अनुबन्ध राशि 19,47,600/- रूपया बैंक को वापिस करना था। इस धनराशि की 47 किश्तें बनाई गई जिनमें से प्रथम 30 किश्तें 42,162/- रूपया मासिक, 31 से 46 तक की किश्तें 40,162/-रूपये की तथा 47वीं अन्तिम किश्त 40,148/- रूपये की निर्धारित हुई। परिवादी किश्तों की अदायगी में शुरू से ही अनियमित रहा उसने किश्तें कभी भी समय से अदा नहीं कीं। ट्रक चोरी होने की तिथि तक परिवादी ने 5,91,562/- रूपया की अदायगी की थी जबकि परिवादी को 7,58,916/-रूपया उस दिन तक अदा करना था। इस धनराशि के अतिरिक्त इंश्योरेंस का बैंलेस अमाउन्ट तथा चैक रिटर्न अमाउन्ट और ब्याज अलग से देय था। परिवादी का यह कथन गलत है कि उत्तरदाता विपक्षीगण को अधिक धनराशि प्राप्त हो गई हो, बल्कि वास्तविकता यह है कि बीमा कम्पनी से प्राप्त क्लेम राशि के बाद भी परिवादी की ओर बैंक का 2,21,592/- रूपया निकलता है जिसकी वसूली हेतु उत्तरदाता विपक्षीगण ने परिवादी के विरूद्ध जिला जज, मुरादाबाद के न्यायालय में इजरा सं0-9/2010 दायर कर रखी है। उत्तरदाता विपक्षीगण की ओर से अग्रेत्तर कहा गया है कि विपक्षी एक व्यवसायी है। ट्रक का संचालन वह वाणिज्यिक उपभोग हेतु कर रहा था। अतिरिक्त कथनों में कहा गया है कि अनुबन्ध के क्लाज-23 के अनुसार किसी प्रकार का विवाद होने की दशा में मामला आबीट्रेटर को सन्दर्भित किया जाऐगा। इसी क्रम में मामला आरबीट्रेटर का सुपुर्द कर दिया गया था और आरबीट्रेटर को दिनांक 30/10/2008 को परिवादी के विरूद्ध अवार्ड पारित कर दिया है अब प्रश्नगत मामला उपभोक्ता फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। अवार्ड के अनुपालन में अभी भी परिवादी से उत्तरदाता विपक्षीगण को 2,21,592/-रूपया लेना शेष है जिसकी इजरा विचाराधीन है। यह भी कहा गया है कि लेखा सम्बन्धी विवाद फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। परिवादी ने सही तथ्यों को छिपाते हुऐ रिकवरी से बचने के लिए यह परिवाद योजित किया है। उत्तरदाता विपक्षीगण ने परिवाद को सव्यय खारिज किेऐ जाने की प्रार्थना की।
- औपचारिक प्रतिवादी सं0-3 की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0- 19/1 लगायत 19/3 दाखिल हुआ जिसमें बीमा पालिसी की शर्तों और प्रतिबन्धों के अधीन परिवादी के ट्रक का बीमा उत्तरदाता विपक्षी द्वारा किया जाना तथा ट्रक चोरी हो जाने के फलस्वरूप नियमानुसार क्लेम राशि का भुगतान विपक्षी सं0-1 व 2 को कर दिया जाना स्वीकार किया गया है। अतिरिक्त यह कथन किया गया है कि उत्तरदाता विपक्षी को गलत रूप से पक्षकार बनाया गया है। विशेष कथनों में कहा गया है कि उत्तरदाता विपक्षी सं0-3 के विरूद्ध परिवादी ने कोई अनुतोष नहीं मांगा है अपने विरूद्ध उत्तरदाता विपक्षी ने परिवाद को खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-20/1 लगायत 20/4 दाखिल किया जिसके साथ जिला जज, मुरादाबाद के न्यायालय में लम्बित इजरा सं0-9/2010 की पत्रावली के सवाल मुआयने तथा परिवादी के ड्राईविंग लाईसेंस की फोटो प्रतियों को बतौर संलग्नक दाखिल किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-20/5 व 20/6 हैं।
- विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से बैंक के पावर आफ अटार्नी होल्डर श्री उमेश कुमार दिवेदी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-23/1 लगायत 23/2 दाखिल किया जिसके साथ जिला न्यायाधीश, मुरादाबाद के न्यायालय में लम्बित इजरा सं0-9/2010 के इजरा प्रार्थना पत्र और आरबीट्रेटर द्वारा ऋण की अदायगी से सम्बन्धित विवाद में पारित अवार्ड दिनांकित 30/10/2008 की नकलों को बतौर संलग्नक दाखिल किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-23/3 लगायत 23/8 है।
- विपक्षी सं0-3 की ओर से साक्ष्य शपथ पत्र दाखिल नहीं हुआ।
- परिवादी ने रिज्वांडर शपथ पत्र कागज सं0-24/1 लगायत 24/2 दाखिल किया जिसके साथ अपने स्टेटमेंट आफ अकाउन्ट को बतौर संलग्नक दाखिल किया गया, यह संलग्नक पत्रावलरी का कागज सं0-24/3 है।
- परिवादी तथा विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से लिखित बहस दाखिल की गई। विपक्षी सं0-3 की ओर से लिखित बहस दाखिल नहीं हुई।
- हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी के हस्तलिखित एकाउन्ट स्टेटमेंट कागज सं0-24/3 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ तर्क दिया कि परिवादी द्वारा ट्रक के फाइनेंस हेतु विपक्षी सं0-1 व 2 से ली गई वित्तीय सहायता अंकन 15,00,000/- रूपया के सापेक्ष विपक्षी सं0-1 व 2 को ऋण की अदायगी में 2,31,226/- रूपया अधिक अदा हो चुका है जो ब्याज सहित विपक्षी सं0-1 व 2 से परिवादी को दिलाऐ जाने चाहिए। प्रत्युत्तर में विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी को कागज सं0-3/10 में उल्लिखित विवरण के अनुसार कुल 19,47,600/-रूपया बैंक को अदा करने करने थे, किन्तु परिवादी ने ऋण की पूरी धनराशि बैंक को अदा नहीं की। साथ ही साथ उसने ऋण की किश्तों की अदायगी भी नियमित नहीं की। उनका अग्रेत्तर यह भी तर्क है कि परिवाद योजित किऐ जाने के पूर्व बैंक ने मामला आरबीट्रेटर को सुपुर्द कर दिया था। आरबीट्रेटर ने परिवादी को कई बार नोटिस भेजे, किन्तु परिवादी आरबीट्रेटर के समक्ष उपस्थित नहीं हुऐ तब दिनांक 30/10/2008 को प्रश्नगत ऋण के सन्दर्भ में परिवादी के विरूद्ध वसूली हेतु अवार्ड पारित किया जिसके सन्दर्भ में जिला न्यायाधीश, मुरादाबाद के समक्ष परिवादी के विरूद्ध इजरा सं0-9/2010 लम्बित है जिसमें परिवादी के विरूद्ध 2,21,592/- रूपये 10 पैसे की वसूली की मांग की गई है। विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी कहा कि आरबीट्रेटर द्वारा उक्त अवार्ड वर्तमान परिवाद योजित किऐ जाने से लगभग 8 माह पूर्व पारित किया जा चुका था ऐसी दशा में फोरम के समक्ष वर्तमान परिवाद पोषणीय नहीं है। उनका यह भी कथन है कि ट्रक परिवादी ने वाणिज्यिक प्रयोग हेतु फाईनेंस कराया था अत: वह विपक्षी सं0-1 व 2 का उपभोक्ता नहीं है। इस दृष्टि से भी फोरम के समक्ष परिवाद पोषणीय नहीं है।
- जबाव में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी के रिज्वांइडर शपथ पत्र के दाखिल एकाउन्ट स्टेटमेंट कागज सं024/3 का विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से खण्डन नहीं किया गया है ऐसी दशा में इस स्टेटमेंट में उल्लिखित विवरण को सही माना जाना चाहिए और तद्नुरूप परिवादी विपक्षी सं0-1 व 2 को ऋण वापिसी में अधिक अदा की गई 2,31,225/- की धनराशि परिवादी को विपक्षी सं0-1 व 2 से दिलाई जानी चाहिए। उनका यह भी तर्क है कि मध्यस्थता हेतु आरबीट्रेटर को विवाद विपक्षी सं0-1 व 2 द्वारा सन्दर्भित किया था ऐसी दशा में आरबीट्रेटर द्वारा पारित अवार्ड दिनांक 30/10/2008 का अबलम्व लेकर वर्तमान परिवाद के फोरम की सुनवाई के क्षेत्राधिकार की वर्जना नहीं की जा सकती। उन्होंने अपने इस तर्क के समर्थन में नेशनल सीड्स कारपोरेशन बनाम एम0मधुसूदन रेड्डी व एक अन्य, I (2012) सी0पी0जे0 पृष्ठ-1 (सुप्रीम कोर्ट) के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तथा मैगमा फिनकार्क लिमिटेड बनाम अशोक कुमार गुप्ता, III (2010)सी0पी0जे0 पृष्ठ-384 (एन0सी0) के मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा दी गई विधि व्यवस्थाओं का अबलम्व लिया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अग्रेत्तर यह भी तर्क दिया कि विपक्षी सं0-1 व 2 से फाईनेंस कराया गया ट्रक वाणिज्यिक प्रयोग में नहीं लिया जा रहा था ऐसी दशा में फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है।
- इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादी द्वारा बैंक से ली गई वित्तीय सहायता अंकन 15,00,000/-रूपया की थी जिस पर परिवाद कथनों के अनुसार परिवादी को 6.46 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करना था। परिवादी ने परिवाद के साथ इस वित्तीय सहायता से सम्बन्धित बैंक के स्टेटमेंट आफ एकाउन्ट की नकल कागज सं0-3/10 लगायत 3/11 भी पत्रावली में दाखिल की है। कागज सं0-3/10 के अवलोकन से प्रकट है कि परिवादी को इस ऋण के सापेक्ष 19,47,600/- रूपया बैंक को अदा करना था। इस धनराशि में फाईनेंस चार्जेज, इनवायस अमाउन्ट, इंश्योरेंस डिपाजिट इत्यादि की मदों में उल्लिखित धनराशि सम्मिलित है। परिवादी द्वारा अपने रिज्वांडर शपथ पत्र के साथ जो हस्तलिखित स्टेटमेंट आफ एकाउन्ट कागज दाखिल किया गया है उसके अवलोकन से प्रकट है कि परिवादी ने मार्च,2007, जून, 2007, नवम्बर, 2007, जनवारी, 2008 और फरवरी, 2008 में देय मासिक किश्तों की अदायगी में व्यतिक्रम किया है। ट्रक चोरी हो जाने के लगभग एक वर्ष तक परिवादी ने कोई किश्त अदा नहीं की। इस प्रकार विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से दिऐ गऐ इस तर्क में बल है कि परिवादी द्वारा किश्तों की अदायगी नियमित रूप से नहीं की गई। अन्यथा भी परिवाद के साथ दाखिल कैश फलो डिटेल्स कागज सं0-3/10 के अनुसार परिवादी द्वारा ऋण वापिसी में अदा की जाने वाली धनराशि भी परिवादी द्वारा दाखिल हस्तलिखित स्टेटमेंट आफ एकाउन्ट कागज सं0-24/3 के अनुसार बैंक को परिवादी ने अदा नहीं की है। परिवादी देय धनराशि से अधिक धनराशि अदा करने के कथन कर रहा है जबकि विपक्षी सं0-1 व 2 के अनुसार बैंक को परिवादी ने धनराशि कम अदा की है। प्रकट है कि बैंक और परिवादी के मध्य एकाउन्टिंग का विवाद वि|मान है। अशोक लीलैण्ड फाइनेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम हिमांशु थुमार, II (2005) सी0पी0जे0 पृष्ठ-92 की निर्णयज विधि में मा0 गुजरात राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, अहमदाबाद द्वारा यह अवधारित किया गया है कि पक्षकारों के मध्य एकाउन्टिंग का विवाद कन्ज्यूमर डिस्प्यूट नहीं है अत: तत्सम्बन्धी परिवाद उपभोक्ता फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। इस विधि व्यवस्था के दृष्टिगत फोरम के समक्ष वर्तमान परिवाद पोषणीय नहीं है।
- जैसा कि हमने ऊपर कहा है कि ऋण की अदायगी विषयक विवाद के सम्बन्ध में विपक्षी सं0-1 व 2 की पहल पर आरबीट्रेटर द्वारा दिनांक 30/10/2008 को अर्थात् वर्तमान परिवाद योजित होने से लगभग 8 माह पूर्व अवार्ड पारित किया जा चुका था इस अवार्ड की नकल पत्रावली का कागज सं0-23/6 लगायत 23/8 है। जगदीश कैथला बनाम बजाज एलायंज कम्पनी व एक अन्य, IV(2016) सी0पी0जे0 पृष्ठ-35 (एन0सी0) की निर्णयज विधि में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि यदि प्रतिपक्षी /फाइनेंसर की पहल पर ऋणी केविरूद्ध परिवाद योजित किऐ जाने से पूर्व आरबीट्रेटर द्वारा अवार्ड पारित कर दिया गया हो तब तत्सम्बन्धी विवाद की सुनवाई हेतु फोरम के समक्ष परिवाद पोषणीय नहीं है। इस निर्णयज विधि का पैरा सं010 निम्नवत् है:-
“ So far as the respondent No. 2 is concerned, he has already procured an award of arbitration dated 3.12.2912 and the state Commission has rightly observed that “ the dispute stands adjudicated by the Arbitrator and Consumer Forum cannot re-determine the issue, because consumr fora do not have jurisdiction to sit in judgment over the awards of Arbitrators. The remedy, open to the appellant is by way of challenging the award, as per provisions of Arbitration and Conciliation Act. “ 16. परिवादी की ओर से इस सन्दर्भ में नेशनल सीड्स कारपोरेशन लिमिटेड तथा मैगमा फिनकार्क लिमिटेड की जिन निर्णयज विधियों का अबलम्व लिया गया है वे वर्तमान मामले के तथ्यों में चॅूंकि लागू नहीं होती अत: वे परिवादी की इस मामले में कोई सहायता नहीं करती। नेशनल सीड्स कारपोरेशन लिमिटेड के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने यह अवधारित नहीं किया है कि यदि फाइनेंसर/ विपक्षी की पहल पर प्रारम्भ हुऐ आरबीट्रेशन में आरबीट्रेटर द्वारा परिवाद योजित किऐ जाने से पूर्व अवार्ड पारित कर दिया गया हो तब भी तत्सम्बन्धी विवाद के सम्बन्ध में ऋणी द्वारा योजित परिवाद फोरम के समक्ष पोषणीय होगा। मैगमा फिनकार्क लिमिटेड का मामला वर्तमान परिवाद के तथ्यों से इस आधार पर भिन्न है कि मैगमा फिनकार्क लिमिटेड के मामले में जिला उपभोक्ता फोरम का निर्णय आरबीट्रेटर अवार्ड पारित होने से पूर्व हो चुका था जबकि वर्तमान मामले में आरबीट्रेंटर अवार्ड परिवाद योजित किऐ जाने से लगभग 8 माह पूर्व पारित हुआ है। अत: उक्त रूलिंग्स परिवादी की इस मामले में कोई सहायता नहीं करती। विपक्षी सं0-1 व 2 फोरम के समक्ष ऐसा कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाये जिसके आधार पर यह माना जा सके कि फाईनेंस कराऐ गऐ ट्रक का उपयोग परिवादी द्वारा वाणिज्यिक उद्देश्यों हेतु किया जा रहा है। ऐसी दशा में विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर उनके प्रतिवाद पत्र के पैरा सं0-9 में उठाई गई आपत्तियां निरर्थक हैं। 17. उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे है कि परिवादी तथा विपक्षी सं0-1 व 2 के मध्य वि|मान विवाद चॅूंकि एकाउन्टिंग का है और इस सन्दर्भ में आरबीट्रेटर द्वारा वर्तमान परिवाद योजित होने से लगभग 8 माह पूर्व अवार्ड पारित हो चुका था अत: फोरम के समक्ष वर्तमान परिवाद पोषणीय नहीं है और यह खारिज होने योग्य है। परिवाद खारिज किया जाता है। (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
28.10.2016 28.10.2016 | |