जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
विजय सिंह पुत्र श्री बीरम सिंह, जाति- रावत, निवासी- ग्राम लाड़पुरा, तहसील व जिला-अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
ष्षाखा प्रबन्धक, इण्डसइण्ड बैंक लिमिटेड, षाखा आदर्ष नगर, अजमेर ।
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 245/2013
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री जवाहर लाल षर्मा, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री अवतार सिंह उप्पल, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 12.01.2017
1. संक्षिप्त तथ्यानुसार प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी बैंक से रू. 13,82,000/- का ऋण प्राप्त कर वाहन ट्रेलर संख्या आर.जे.01.जी.ए. 6570 क्रय किया गया । प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी बैंक को ऋण पेटे अपने खाते के हस्ताक्षरषुदा चैक भी दिए गए । मार्च, 2013 तक किष्ते जमा कराने के बाद उसके हक में रू. 8,08,621/- बकाया रहने के बावजूद अप्रार्थी बैंक ने दिनंाक 7.3.2013 को उसका वाहन सीज कर दिया और उसे कहा गया कि वह बकाया राषि का भुगतान कर अपना वाहन प्राप्त कर सकता है । जिस पर प्रार्थी ने दिनंाक 20.3.2013 को बकाया ऋण राषि का इन्तजाम कर अप्रार्थी बैंक से वाहन सुपुर्द करने का निवेदन किया । किन्तु अप्रार्थी बैंक ने वाहन इस आधार पर उसे सुपुर्द नहीं किया कि वाहन को विक्रय करने के दस्तावेजात मय एग्रीमेन्ट उनके पास है इसलिए उक्त वाहन को किसी अन्य खरीददार को सुपुर्द कर दिया गया है । अप्रार्थी बैंक के इस कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में प्रार्थी ने स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी बैंक ने जवाब प्रस्तुत कर प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया है प्रार्थी व उत्तरदाता बैंक के मध्य आपस में ऋण अनुबन्ध के तहत ऋणदाता व ऋणी के संबंध होने के कारण प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है । प्रार्थी द्वारा प्रष्नगत वाहन वाणिज्यिक उद्देष्य के लिए क्रय किया गया है इसलिए भी प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है । विवाद होने की स्थिति में ऋण अनुबन्ध के तहत मामला मध्यस्थ के समक्ष पेष होने के कारण मंच को परिवाद सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है ।
आगे पैरावाईज जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्ति में किए गए कथनों को ही दोहराते हुए दर्षाया है कि प्रष्नगत वाहन क्रय किए जाने के लिए ऋण अनुबन्ध हस्ताक्षरित करते हुए प्रार्थी ने यह कथन किया था कि वह नियमित रूप से ऋण राषि की अदायगी अप्रार्थी बैंक को करता रहेगा और इसी अनुबन्ध के तहत प्रार्थी ने हस्ताक्षरषुदा चैक भी दिए थे । किन्तु प्रार्थी ऋण अदायगी में अनियमित रहा इसलिए दिनंाक 11.11.2012 को उत्तरदाता ने अपने विधिक अधिकारों के तहत उक्त वाहन को जब्त कर लिया गया था । इसके बाद प्रार्थी ने दिनंाक 20.11.2012 को उत्तरदाता को पत्र देकर वचन दिया था कि भविष्य में वह ऋण राषि की अदायगी समय समय पर करता रहेगा व व्यतिक्रम कारित नहीं करेगा । किन्तु प्रार्थी ने उक्त पत्र दिए जाने के बाद भी ऋण किष्तों की अदायगी नहीं की । तब उत्तरदाता ने दिनंाक 7.3.2013 को प्रार्थी का प्रष्नगत वाहन सीज कर दिया और बकाया राषि रू. 8,08,621/- की अदायगी किए जाने के बाद ही वाहन सुपुर्द करने हेतु प्रार्थी को सूचित किया । उत्तरदाता का कथन है कि इसके बाद प्रार्थी दिनंाक 14.3.2013 को उत्तरदाता बैंक में उपस्थित होकर अवगत कराया कि उसने दिनंाक 13.3.2013 को प्रष्नगत वाहन श्री चेनराज सिंह को विक्रय कर दिया है और इक्विटास फाईनेन्स कम्पनी से फाईनेन्स करवा लिया है और उत्तरदाता ने प्रष्नगत वाहन की एनओसी उक्त फाईनेन्स कम्पनी को दे दी है । उक्त फाईनेन्स कम्पनी अप्रार्थी बैंक को बकाया ऋण राषि की रू.808621/- की अदायगी कर दी है । इस प्रकार उनके स्तर पर जो भी कार्यवाही की गई है वह नियमानुसार की गई है और इसमें कोई सेवा में कमी नहीं की गई । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है । जवाब के समर्थन में श्री राजेष जैन, ब्रान्च मैनेजर ने अपना षपथपत्र पेष किया है ।
3. प्रार्थी का तर्क रहा है कि उसके द्वारा प्रष्नगत वाहन को अप्रार्थी बैंक से फाईनेन्स करवाया जाकर समस्त औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए फाईनेंस राषि के पेटे स्वयं के हस्ताक्षरषुदा उसके बैंक खाते के चैक अप्रार्थी बैंक को दिए जाने व मार्च ,13 में किष्तंे जमा करवाए जाने के बाद बकाया राषि को तयषुदा ष्षर्त के अनुसार जमा करवाने को तैयार व तत्पर रहने के बावजूद अप्रार्थी बैंक ने बिना किसी पूर्व सूचना के वाहन को सीज करने की कार्यवाही अनुचित व गैर जिम्मेदाराना होकर उनकी सेवा में कमी का परिचायक है ।
4. अप्रार्थी बैंक ने खण्डन में प्रारम्भिक आपत्ति के रूप में तर्क प्रस्तुत किया है कि प्रार्थी व अप्रार्थी के मध्य संबध ऋण अनुबन्ध की रोषनी में ऋणदाता व ऋणी के होने से उठाया गया विवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है । अनुबन्ध की षर्तो के अनुसार बैंक को कार्यवाही करने का पूर्ण विधिक अधिकार प्राप्त है । वाहन वाणिज्यिक श्रेणी में आने के कारण परिवाद पोषणीय नहीं है । पक्षकारों के मध्य अनुबन्ध के तहत प्रकरण को मध्यस्थ को सांैपे जाने बाबत् करार की स्थिति को देखते हुए मंच को इस परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है । स्वयं प्रार्थी ने किष्तांे की अदायगी में चूक की है व भविष्य में समय पर अदायगी बाबत् लिखित में सूचित करने के बाद वाहन प्रार्थी को सौंपा गया था । इसके बाद भी किष्तों की अदायगी में चूक की गई व उसके द्वारा लिख कर यह सूचित किया गया कि यह वाहन किसी अन्य को बेच दिया है व राषि बाबत् अन्य फाईनेंन्स कम्पनी से अदायगी कर दी जाएगी । क्योंकि ऋण पेटे बकाया राषि अप्रार्थी बैंक को उक्त फाईनेन्स कम्पनी द्वारा अदा कर दी गई थी । अतः प्रार्थी का इन तथ्यों बाबत् किसी प्रकार का कोई उल्लेख नहीं कर वास्तविक तथ्यों को छिपा कर पेष किया गया परिवाद खारिज होने योग्य है । अप्रार्थी ने ऋण अनुबन्ध की ष्षर्तो के अनुरूप अपने विधिक अधिकारेां के तहत वाहन को जब्त कर कोई अनुचित काम नहीं किया गया है । परिवाद बेबुनियाद व झठे तथ्यों पर आधारित होने के कारण खारिज होने योग्य है । अपने तर्को के समर्थन में निम्न न्यायिक दृष्टान्त पेष किए है -
1ण् प्प्प्;2012द्धब्च्श्र 4 ;ैब्द्ध ैनतलंचंस टे ैपककीं टपदंलंा डवजमते ंदक ।दतण्
2ण् प्प्प्;1995द्धब्च्श्र58 डंदंहंतए ैजण् डंतलष्े भ्पतम च्नतबींेम ;च्द्धस्जक टे छण्।ण् श्रवेम
3ण् त्मअपेपवद च्मजपजपवद छवण् 367ध्1998 ज्ंजं थ्पदंदबम स्जक टे डंतरंद भ्ंेेदं ।दक व्ते
4ण् प्प्;2000द्धब्च्श्र 120 ।ेंकनससंी ज्ञींद टे डण्ब्ण् डवजवते ंदक व्ते
5. हमने तर्को पर विचार किया व उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्तों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
6. प्रार्थी का अप्रार्थी बैंक से प्रष्नगत वाहन को फाईनेन्स करवाया जाना व इस हेतु करार सम्पादित किया जाना स्वीकृत तथ्य है । प्रार्थी की स्वीकारोक्ति से यह भी स्पष्ट है कि उसके द्वारा मार्च, 13 तक किष्तों की अदायगी की गई थी, इसके बाद उसके द्वारा किष्तों की अदायगी में चूक की गई है । एक ओर जहा प्रार्थी ने परिवाद में दिनांक 20.3.2013 को तयषुदा षर्तो के अनुसार देय बकाया राषि का इन्तजाम कर राषि जमा कर वाहन छोड़ने बाबत् निवेदन किया वहीं अप्रार्थी बैंक ने उसे किष्तों की अदायगी में चूक के बाद प्रार्थी द्वारा दिनंाक 20.11.2012 को पत्र लिख कर वचन देना बताया है, जिसके तहत भविष्य में प्रार्थी ऋण की अदायगी की राषि समय पर करेगा व व्यतिक्रम कार्य नहीं करेगा । जिस पर अप्रार्थी ने दिनंाक 21.11.2012 को प्रार्थी को सूचित किया है । पत्रावली में प्रार्थी का यह पत्र उपलब्ध है , जिससे अप्रार्थी बैंक के पक्ष कथन की पुष्टि होती है । प्रार्थी ने इस तथ्य का अपने परिवाद मंें खुलासा नहीं कर इसे छिपाया है । अप्रार्थी बैंक ने यह भी बताया है कि प्रार्थी ऋ़ण अनुबन्ध की ष्षर्तो के विपरीत जाकर ऋण राषि की अदायगी में चूक कर रहा था व बैंक द्वारा बार बार मांग व तकाजा करने पर भी अप्रार्थी बैंक के अजमेर स्थित कार्यालय पर आया व उक्त वाहन को किसी चेनराज सिंह को बेच देना व बैंक की ऋण राषि इक्वीटास फाईनेन्स कम्पनी से बातचीत होने व बैंक की ऋण राषि की अदायगी उक्त फाईनेन्स कम्पनी द्वारा कर देना बताया । अप्रार्थी ने यह भी बताया कि प्रार्थी ने ऋण राषि की अदायगी में चूक करने व अनुबन्ध की षर्तो का उल्लंघन होने पर अप्रार्थी बैंक ने उक्त वाहन को जब्त किया है व इसी तथ्य को प्रार्थी ने बैंक में आकर अपने कथनों की पुष्टि में पत्र बैंक को दिया है । पत्रावली में यह पत्र उपलब्ध है जिसमें प्रार्थी द्वारा कहे गए कथनों का उल्लेख उपलब्ध है तथा इससे अप्रार्थी के कथनों की पुष्टि होती है । यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ने इस तथ्य को भी छिपाया है तथा परिवाद में कोई उल्लेख नहीं किया है । प्रार्थी द्वारा प्रष्नगत वाहन के संदर्भ में चेनराज सिंह से किए गए इकरारनामा बेचान की प्रति बैंक द्वारा प्रस्तुत की गई है जिसमें उसने उक्त वाहन को चैनराज सिंह को विक्रय किया है आदि आदि । इन तथ्यों को भी प्रार्थी ने छिपाया है तथा प्रस्तुत परिवाद में उल्लेख नहीं किया है ।
7. इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रार्थी ने एक ओर जहां अप्रार्थी से वाहन को फाईनेन्स करवा कर किष्तों की अदयगी में चूक की वहीं उसने प्रष्नगत वाहन को किन्हीं चैनराज सिंह को विक्रय कर इक्विटास फाईनेन्स के जरिए भुगतान किए जाने की बात सामने आई है । स्पष्ट है कि प्रार्थी मंच के समक्ष स्वच्छ हाथों से नहीं आया है तथा उसने करार की अवेहलना करते हुए न सिर्फ किष्तों की अदायगी में चूक की अपितु परिवाद में महत्वपूर्ण तथ्यों को भी छिपाकर गम्भीर अनियमितता कारित की है ।
8. पत्रावली के अवलोकन से प्रकट है कि प्रार्थी द्वारा किष्तों की अदायगी नहीं करने पर अप्रार्थी द्वारा उक्त वाहन को ऋण अनुबन्ध की षर्ता के अनुरूप एवं अपने अधिकारों के तहत छिपाया गया है । अप्रार्थी ने किसी भी प्रक्रम पर प्रार्थी के प्रति किसी प्रकार की सेवा मंें कमी अथवा लापरवाही का परिचय नहीं दिया है । इस संदर्भ में सूर्यपाल सिंह एवं सेण्ट मैरिज हायर परचेज प्राईवेट लिमिटेड वाले मामले हमारे लिए दिषा निर्देषक है । इसी प्रकार टाटा फाईनेन्स लिमिटेड बनाम मरजान हुसैन वाले मामलें में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपनी 5 सदस्यीय पूर्ण पीठ में यह सिद्वान्त प्रतिपादित किया है कि भाडे़दार ने वाहन को वाहन स्वामी के उपनिहित ( ठंपसमम) के रूप में अपने कब्जे में रखा है तो किसी प्रकार के स्वामित्व के अधिकार उद्भूत नहीं होते है । ऐसे करार के मामले में प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है । मंच यह भी पाता प्रार्थी व अप्रार्थी बैंक के मध्य ब्तमकपजवत ंदक क्मअपंजवत के संबंध होने एवं प्रार्थी द्वारा उठाए गए तथाकथित विवाद उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं होने की स्थिति को देखते हुए भी प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता । जहां तक प्रार्थी द्वारा वाणिज्यिक उद्देष्य हेतु बैंक से ऋण अनुबन्ध के तहत ऋण सुविधा प्राप्त करने व इससे संबंधित विवाद को वाणिज्यिक विवाद की श्रेणी में आने के कारण परिवाद पोषणीय नहीं होने का प्रष्न है , प्रार्थी ने ऋण प्राप्त करते समय स्वयं को अपने जीवनयापन के लिए ऋण की आवष्यकता होना बताया है तथा मात्र ट्रक आॅपरेटर होने व उसके परिवार के अन्य सदस्यों सहित बैंक से लिए गए अन्य वाहन के ऋण को उसके वाणिज्यिक उद्दष्य हेतु ऋण प्राप्त करना उपधारित नहीं माना जा सकता । अतः इस संबंध में अप्रार्थी की आपत्ति में कोई दम नहीं है ।
9. कुल मिलाकर जिस प्रकार के तथ्य सामने आए है, को ध्यान में रखते हुए प्रार्थी ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाते हुए जिस प्रकार परिवाद प्रस्तुत करते हुए अनुतोष की मांग की है वह कतई उचित नहीं है व खारिज होने के साथ साथ प्रार्थी पर कोस्ट अधिरोपित करना भी उचित है एवं आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
10. प्रार्थी का परिवाद रू. 1000/- व्यय पर खारिज किया जाता है ।
आदेष दिनांक 12.01.2017 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
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