राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-१६८/२०१२
राजेश भाटिया पुत्र तिलक राज भाटिया, प्रौपराइटर मै0 भाटिया एसोसिएट्स १२२/५१, सरोजनी नगर, कानपुर।
..................... परिवादी।
बनाम्
१. इण्डसइण्ड बैंक लि0, ब्रान्च आफिस, ११३/१२० रतन फ्लोर, स्वरूप नगर, कानपुर-२०८००२. द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
२. इण्डसइण्ड बैंक लि0, रजिस्टर्ड आफिस, २४०१, जनरल थिमैया रोड द्वारा मैनेजिंग डायरेक्ट।
३. चोलामण्डलम एम एस जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, रजिस्टर्ड एण्ड हैड आफिस : डेयर हाउस, द्वितीय तल, नं0-२ एन एस सी बोस रोड, चेन्नई-६००००१. द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
.................... विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित :- श्री आलोक कुमार सिंह विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-१ व २ की ओर से उपस्थित :- श्री सचिन गर्ग विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-३ की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : २२-०६-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, परिवादी ने विपक्षी सं0-१ व २ से ५२.०० लाख रू0 मय ब्याज दिलाये जाने तथा ०५.०० लाख रू० मानसिक उत्पीड़न के मद में तथा ५०,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में दिलाये जाने हेतु योजित किया है।
संक्षेप में परिवादी का यह कथन है कि विपक्षी बैंक ने परिवादी को वर्ष २००५ में ३०.०० लाख रू० तक की ओवर ड्राफ्ट की सुविधा प्रदान की थी। इस सम्बन्ध में एक इकरारनामा भी परिवादी तथा विपक्षी सं0-१ के मध्य निष्पादित हुआ था तथा ऋण की
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सुरक्षा हेतु बन्धक रखी गयी सम्पत्ति का बीमा भी इकरारनामे की शर्तों के अनुसार कराया जाना था। तद्नुसार बन्धक सम्पत्ति का बीमा विपक्षी बैंक द्वारा कराया गया तथा समय-समय पर बन्धक सम्पत्ति के बीमा का नवीनीकरण भी कराया गया तथा बीमा की प्रीमियम की धनराशि भी परिवादी के खाते से विपक्षी बैंक द्वारा काटी जाती रही। बीमा पालिसी दिनांक १८-०७-२००९ तक चालू रही। दिनांक १८-०७-२००९ के बाद पालिसी जारी रखने हेतु दिनांक ०४-०६-२००९ को बीमा पालिसी के नवीनीकरण हेतु प्रीमियम की धनराशि विपक्षी बैंक ने ओवर ड्राफ्ट की सीमा बढ़ाए जाने के आधार पर प्राप्त की। दिनांक २०-०४-२०११ को परिवादी के व्यावसायिक प्रांगण में चोरी हो गयी, जिसमें ५२.०० लाख रू० के मूल्य की बन्धक सम्पत्ति चोरी हो गयी। दिनांक २१-०४-२०११ को परिवादी ने विपक्षी सं0-१ को भेजे गये पत्र द्वारा बीमा कवर नोट की प्रति उपलब्ध कराने की प्रार्थना की, जिससे बीमा कम्पनी के समक्ष बीमा दावा योजित किया जा सके। विपक्षी सं0-१ बैंक द्वारा बीमा से सम्बन्धित कवर नोट की प्रति कभी भी परिवादी को उपलब्ध नहीं करायी गयी। परिवादी द्वारा भेजे गये पत्र की प्राप्ति के बाबजूद विपक्षी बैंक ने बीमा पालिसी के कवर नोट की प्रति प्राप्त नहीं करायी तथा यह सूचित किया कि दिनांक ०४-०६-२०१० के बाद बीमा पालिसी प्राप्त नहीं की गयी, जिसके अभाव में परिवादी बीमा कम्पनी के समक्ष क्षतिपूर्ति हेतु दावा प्रस्तुत नहीं कर सका। अत: परिवादी द्वारा चोरी गये सामान के मूल्य की क्षतिपूर्ति एवं मानसिक उत्पीड़न के सम्बन्ध में क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु प्रस्तुत परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षी सं0-१ व २ द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। विपक्षी सं0-१ व २ के कथनानुसार परिवादी ने ओवर ड्राफ्ट सुविधा का दुरूपयोग किया। दिनांक २०-०९-२०१० के पत्र द्वारा परिवादी को उपलब्ध करायी गयी कैश क्रैडिट सुविधा की सीमा ४५.०० लाख रू० से घटाकर ३५.०० लाख रू० की गयी। विपक्षी सं0-१ व २ के कथनानुसार परिवादी ने पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामे की शर्तों का अनुपालन नहीं किया। रिजर्व बैंक आफ इण्डिया द्वारा जारी गाइड लाइन्स का भी अनुपालन नहीं किया गया, जिससे
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परिवादी का खाता अनियमित हो गया। अन्तत: परिवादी का खाता दिनांक २९-०५-२०१२ को नॉन परफार्मिंग असेट्स के रूप में वर्गीकृत किया गया। परिवादी ने लिए गये ऋण की विपक्षी बैंक को अदायगी बैंक द्वारा जारी किए गये निरन्तर अनुस्मारकों के बाबजूद नहीं की। अन्तत: विपक्षी बैंक ने दिनांक १८-१०-२०१२ को परिवादी की कैश क्रैडिट सुविधा समाप्त करते हुए लिए गए ऋण की अदायगी में २९,१०,९३४.७५ रू० मय ब्याज की अदायगी हेतु नोटिस जारी की। विपक्षी बैंक ने समस्त बकाया धन की अदायगी न किए जाने पर परिवादी के विरूद्ध धारा-१३(२) सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत भी नोटिस जारी की। विपक्षी बैंक का यह भी कथन है कि विपक्षी बैंक ने इकरारनामा दिनांकत २८-१२-२०१२ के अनुसार परिवादी का ऋण खाता प्रतिफल प्राप्त करके सरफेसी एक्ट की धारा-५ के अन्तर्गत मै0 पेगासस असेट्स रीकन्स्ट्रक्शन प्रा0लि0 को हस्तान्तरित कर दिया है। अत: परिवादी के ऋण खाते के अन्तर्गत देय धनराशि की वसूली का अधिकारी मै0 पेगासस असेट्स रीकन्स्ट्रक्शन प्रा0लि0 हो चुका है।
विपक्षी सं0-१ व २ का यह भी कथन है कि विपक्षी सं0-१ तथा परिवादी के मध्य निष्पादित संविदा के अनुसार बन्धक सम्पत्ति का बीमा कराने का दायित्व बैंक का नहीं था। बीमा की प्रीमियम की धनराशि बिना परिवादी के निर्देशों के कभी भी परिवादी के खाते से बैंक ने स्वत: नहीं काटी। परिवादी ने दिनांक ३०-०६-२०१० को अपना अन्तिम स्टाक विवरण प्रेषित किया जिसमें उसने विपक्षी बैंक को यह सूचित किया कि बीमा पालिसी की सभी शर्तों एवं वारण्टी का अनुपालन किया गया है। जून २०१० के बाद परिवादी ने स्टाक का विवरण प्रेषित नहीं किया और न ही स्टाक का निरीक्षण बैंक के अधिकारियों से कराया।
विपक्षी बैंक के कथनानुसार उसने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। प्रस्तुत परिवाद, परिवादी ने मात्र बकाया ऋण की वसूली की कार्यवाही को विलम्बित करने के उद्देश्य से योजित किया है।
उल्लेखनीय है कि विपक्षी सं0-३ को नोटिस भेजे जाने हेतु पैरवी करने के लिए कई बार परिवादी को निर्देशित किया गया, किन्तु परिवादी ने विपक्षी सं0-३ को नोटिस
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भेजे जाने हेतु कोई पैरवी नहीं की। यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी ने विपक्षी सं0-३ के विरूद्ध कोई अनुतोष नहीं चाहा है। विपक्षी सं0-३ को नोटिस भेजे जाने हेतु पैरवी न किए जाने के कारण विपक्षी सं0-३ को नोटिस नहीं भेजी जा सकी।
परिवादी की ओर से अपने कथन के समर्थन में परिवाद के साथ संलग्नक-१ लगायत १२ अभिलेख दाखिल किए गये। इसके अतिरिक्त परिवादी राजेश भाटिया ने अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया है, जिसमें परिवाद के अभिकथनों की पुष्टि की गयी है। विपक्षी सं0-१ व २ की ओर से श्री अमित वी0 महाजन सीनियर मैनेजर का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
हमने परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार सिंह तथा विपक्षी सं0-१ व २ की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सचिन गर्ग के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
प्रस्तुत मामले में मुख्य विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या परिवादी के खाते के सन्दर्भ में विपक्षी बैंक के पक्ष में बन्धक रखी गयी सम्पत्ति का बीमा कराने का दायित्व विपक्षी बैंक का था अथवा परिवादी का था ?
यह तथ्य निर्विवाद है कि पक्षकारों के मध्य प्रश्नगत खाते के सन्दर्भ में निष्पादित संविदा के अनुसार बन्धक रखी गयी सम्पति के बीमा के सम्बन्ध में निम्नलिखित शर्त निर्धारित की गयी थी :-
“ The borrowers/s shall at his/her/its/their own expenses during the continuance of this security keep the hypothecated goods in marketable and good condition and shall likewise at his/her/its/their own expenses insure and keep insured the hypothecated goods against the losses or damage by fire, floods, theft, burglary and other such risks as the Bank shall require, for the full insurable value thereof in an insurance offices or offices of repute to be approved by the Bank and shall produce the receipt for the last premium paid for every such policy of insurance and shall on demand deliver to the Bank every such policy of insurance and shall assign to the Bank such policy of insurane or the proceeds thereof and shall pay to the Bank the same then outstanding on the said accouonts in case the proceeds of any policy are
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received by the Borrower/s during the continuance of this security and shall keep in force and maintain such insurance throughout the continuance of this security. In default the Bank shall be entitle (without Bing Bound to do so) to effect or renew such insurance, and any premium paid by the Bank for prservation of Hypothecated goods shall be repaid by the Borrower/s on demand forthwith and shall be debited to the said accouunt hypothecated goods. All sums received under such insurance shall be applied in or towards liquidation of the amount for the time being du to the Bank hereunder. ”
इस शर्त के अनुसार बन्धक रखी गयी सम्पत्ति के बीमा का दायित्व ऋण प्राप्तकर्ता का होगा। बैंक बन्धक सम्पत्ति का बीमा कराने के लिए बाध्य नहीं था।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत खाते के सन्दर्भ में सदैव विपक्षी बैंक द्वारा ही बीमा कराया गया और परिवादी के खाते से प्रीमियम की धनराशि की कटौती की जाती रही। प्रस्तुत मामले में यद्यपि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा की उपरोक्त शर्त के अनुसार विपक्षी बैंक बन्धक सम्पत्ति का बीमा कराने को बाध्य नहीं था, किन्तु चूँकि व्यवहार में विपक्षी बैंक ही सदैव बन्धक सम्पत्ति का बीमा कराता रहा तथा प्रीमियम की धनराशि परिवादी के खाते से कटौती करता रहा। ऐसी परिस्थिति में बन्धक सम्पत्ति का बीमा कराने का दायित्व विपक्षी बैंक का ही माना जायेगा। इस सन्दर्भ में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने पुनरीक्षण याचिका सं0-४६४५/२०१२, दी चेयरमेन इण्डियन बैंक व अन्य बनाम कन्जूमर प्रोटेक्शन काउन्सिल तमिलनाडू व अन्य के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय दिनांक १०-०१-२०१३ एवं पुनरीक्षण याचिका सं0-४३०८/२०१२ सुन्दरम बी एन पी परिबास होम फाइनेंस लि0 व अन्य बनाम कन्जूमर गाइडेंस सोसायटी व अन्य के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय दिनांक २७-११-२०१२ पर विश्वास व्यक्त किया। इन निर्णयों का हमने अवलोकन किया। उपरोक्त निर्णयों के तथ्य एवं परिस्थितियॉं प्रस्तुत मामले के तथ्य एवं परिस्थितियोंसे भिन्न हैं, अत: उपरोक्त निर्णयों का लाभ प्रस्तुत मामले के सन्दर्भ में परिवादी को नहीं दिया जा सकता।
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प्रस्तुत मामले में विपक्षी बैंक का यह कथन है कि परिवादी के खाते से प्रीमियम की धनराशि सदैव परिवादी के निर्देश पर ही काटी गयी। इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि स्वयं परिवादी ने यह स्वीकार किया है कि दिनांक ०४-०६-२००९ को बीमा की प्रीमियम की धनराशि चेक द्वारा विपक्षी बैंक को परिवादी द्वारा अदा की गयी थी। अत: परिवादी की ओर से प्रस्तुत यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि बीमा की प्रीमियम की धनराशि की विपक्षी बैंक द्वारा स्वत: परिवादी के खाते से कटौती की जाती रही। पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा में बन्धक सम्पत्ति के बीमा के सन्दर्भ में निर्धारित की गयी शर्त के अनुसार भी बन्धक सम्पत्ति का बीमा कराने का दायित्व ऋण प्राप्तकर्ता का था, ऋण प्रदाता बैंक का नहीं।
ऐसी परिस्थिति में बन्धक सम्पत्ति का बीमा न कराए जाने का दोषी विपक्षी बैंक को नहीं ठहराया जा सकता। तद्नुसार इस सन्दर्भ में विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में कमी कारित किया जाना नहीं माना जा सकता।
यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि विपक्षी के अनुसार विपक्षी बैंक के विरूद्ध परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद, बकाया ऋण की वसूली को विलम्बित करने हेतु योजित किया है।
निर्विवाद रूप से विपक्षी बैंक द्वारा धारा-१३(२) सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत नोटिस परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित किए जाने से पूर्व दिया जा चुका था। परिवादी ने इस नोटिस का क्रियान्वयन रोके जाने हेतु तथा अन्तरिम अनुतोष प्राप्त करने हेतु प्रार्थना पत्र भी प्रस्तुत किया था। विपक्षी बैंक का यह भी कथन है कि इस सन्दर्भ में ऋण वसूली अधिकरण के समक्ष कार्यवाही लम्बित है और इस कार्यवाही के मध्य धारा-१७ सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत परिवादी द्वारा प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया जा चुका है। स्वाभाविक रूप से परिवादी प्रस्तुत परिवाद से सम्बन्घित तथ्य भी ऋण वसूली अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर सकता था, किन्तु ऐसा न करके परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद योजित किया गया है। ऐसी परिस्थिति में इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत की जा रही
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कार्यवाही को विलम्बित किए जाने हेतु योजित किया है।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से परिवादी चाहा गया अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। तद्नुसार परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस परिवाद का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.