राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-937/2022
मरगूब हुसैन
बनाम
इन्डसइन्ड बैंक लिमिटेड व एक अन्य
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 11.05.2023
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग-द्वितीय, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-32/2015 मरगूब हुसैन बनाम इन्डस इन्ड बैंक लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.06.2022 के विरूद्ध योजित की गयी है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख दिनांक 12.09.2022 को योजित की गयी। तदोपरान्त अपीलार्थी के अधिवक्ता की अनुपस्थिति के कारण दिनांक 14.09.2022, पुन: दिनांक 12.10.2022, पुन: दिनांक 09.12.2022 एवं पुन: दिनांक 04.01.2023 को अपील स्थगित की जाती रही। आज पुन: अपील पुकारी गयी। अपीलार्थी के अधिवक्ता आज 05 तिथियों के पश्चात् भी अनुपस्थित हैं।
मेरे द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परीक्षण एवं परिशीलन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा वाहन क्रय करने हेतु विपक्षीगण से 5,00,000/-रू0 का ऋण लिया गया था, जिसके विरूद्ध परिवादी द्वारा किश्तों के माध्यम से 6,63,200/-रू0 की धनराशि विपक्षी बैंक में जमा की गयी तथा विपक्षी बैंक से एन0ओ0सी0 की मांग की गयी, परन्तु विपक्षीगण
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द्वारा परिवादी को उक्त एन0ओ0सी0 नहीं दी गयी तथा न ही बीमा की धनराशि 40,000/-रू0 वापस की गयी।
परिवादी का कथन है कि प्रश्नगत वाहन के बीमा हेतु परिवादी द्वारा 40,000/-रू0 विपक्षी के यहॉं जमा किया गया था अर्थात् कुल 6,63,200 + 40000 = 7,03,200/-रू0 विपक्षी के यहॉं जमा किये गये थे तथा यह कि परिवादी द्वारा 21,325/-रू0 अधिक जमा किया गया था। परिवादी द्वारा एन0ओ0सी0 हेतु विपक्षीगण के यहॉं कई बार सम्पर्क किया गया तथा विपक्षीगण को नोटिस प्रेषित किये गये, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई कार्यवाही/जवाब नहीं दिया गया। विपक्षीगण द्वारा परिवादी के विरूद्ध गलत बकाया निकालते हुए दिनांक 06.11.2014 को एक पत्र प्रेषित किया गया, जिससे परिवादी को मानसिक व आर्थिक कष्ट पहुँचा। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
निर्विवादित रूप से जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह तथ्य स्पष्ट रूप से पाया गया व उल्लिखित किया गया कि परिवादी ने जो परिवाद पत्र में उल्लेख वास्ते सेवाओं में कमी का सन्दर्भ लिया है उस संबंध में कोई आधार उसके द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत नहीं किया गया। वास्तव में परिवादी द्वारा कामर्शियल वाहन खरीदने हेतु विपक्षीगण से ऋण लिया गया तथा बकाया राशि वास्ते ऋण न चुकाने के कारण विपक्षीगण द्वारा एन0ओ0सी0 जारी न किया जाना अनुबन्ध की धारा-23 के अन्तर्गत आर्बिट्रेशन एवं कैंसिलेशन एक्ट 1996 के अन्तर्गत आर्बिट्रेटर द्वारा पारित अवार्ड के अनुसार परिवादी द्वारा देय है। जब पक्षकारों के मध्य हुए समझौते में स्पष्ट रूप से आर्बिट्रेटर नियुक्त किये जाने का उल्लेख है तब किसी भी प्रकार के विवाद को
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उपभोक्ता न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना मेरे विचार से जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार सही है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1