Rajasthan

Kota

CC/93/2011

Pannalal seni - Complainant(s)

Versus

Inds Ind Bank, Manager - Opp.Party(s)

Lokesh kumar seni

19 Jan 2016

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-  93 /11
पन्ना लाल सेनी पुत्र गोविन्द राम उम्र 65 वर्ष जाति माली निवासी भूतेश्वर मंदिर के पास अटरू रोड, बारां जिला बांरा, राजस्थान।                      -परिवादी।
                     बनाम
इन्डस्ट इन्ड बैंक लि0 412 शोपिंग सेन्टर कोटा जरिये प्रबंधक, इन्डस्ट इन्ड बैंक लि0 कोटा।                                                     -विपक्षी
            समक्ष    
              भगवान दास     -    अध्यक्ष    
                     महावीर तंवर     -    सदस्य
               हेमलता भार्गव    -    सदस्य
       परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1  श्री लोकेश कुमार सैनी, अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2  श्री नरपत सिंह राजावत, अधिवक्ता, विपक्षीगण की ओर से। 
    निर्णय                   दिनांक 19.01.16 

    परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उसका संक्षेप में यह दोष बताया है कि  विपक्षी बैंक से अनुबंध खाता संख्या आर0के0 एए 03699 के जरिये दो लाख रूपये का फायनेन्स वाहन संख्या 28 टी-ए-0029 के पेटे लिया था, जिसकी अदायगी 15.03.07 से कुल 35 किश्तों में की जानी थी। विपक्षी के स्टेटमेन्ट के अनुसार 18.08.09 तक 2,15,760/- रूपये की अदायगी कर दी गई। 24 किस्तों के जरिये 1,96,435/- रूपये की अदायगी की गई थी। विपक्षी के फील्ड आफीसर मनीष मोहन शर्मा ने मई09 में दबाव बनाकर गलत रूप से अतिरिक्त किश्त ले ली। विपक्षी बैंक ने उसके खाते में 15.12.07 को परिवादी द्वारा जमा कराई गई राशि 33,000/- रूपये के पेटे  24,500/- रूपये ही जमा किये व इतनी ही राशि की रसीद दी शेष राशि 8,500/- रूपये खाते में जमा नहीं किये व रसीद भी नहीं दी। विपक्षी बैंक के फील्ड आफीसर मनीष मोहन शर्मा ने फरवरी09 में 1800/- रूपये, अप्रेल 09 में 8,000/- रूपये भी प्राप्त किये लेकिन उनकी भी रसीद नहीं दी गई। परिवादी से विपक्षी के अन्य फील्ड आफीसर भुवनेश शर्मा द्वारा बीमा के पेटे 4,000/- रूपये लिये गये लेकिन उसकी रसीद नहीं दी गई। इस प्रकार परिवादी द्वारा की गई 22,800/- रूपये की अदायगी को खाते में नहीं दिखाया गया है। परिवादी से भ्रामक राशि की मांग की गई, जिसका कोई विवरण नहीं बताया गया है। भ्रामक राशि के लिये नाजायज दबाव बनाया गया है जिसके चलते परिवादी बीमार हो गया। वाहन को जप्त करने की धमकी दी गई जिससे वह वाहन को चला नही पा रहा है। इस प्रकार विपक्षी बैंक के कृत्य से परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हो रहा है। 

    विपक्षी बैंक के जवाब का सार है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं है। क्योकि उसने  वाहन व्यवसायिक उद्धेश्य के लिये खरीदा है। परिवादी ने अनुबंध की शर्तो के अनुसार किस्तों की नियमित रूप से नियत समय पर कभी भी अदायगी नहीं की है। उसे अदायगी करने के लिये बार-बार सूचित किया गया फिर भी अदायगी नहीं की इसलिये अनुबंध की शर्तो के अनुसार परिवादी डिलेचार्ज,ब्याज, पेनल्टी भी अदा करने के लिये उत्तरदायी है जो अदायगी परिवादी द्वारा की गई उसका पूर्ण अंकन उसके खाते में किया गया है तथा स्टेटमेन्ट उपलब्ध कराया गया है। परिवादी पर ऋण के पेटे 88,170/- रूपये बकाया हैं। 21.05.09 के पश्चात उसने कोई राशि अदा नहीं की है। परिवादी स्वच्छ हाथों से नहीं आया है। मिथ्या परिवाद प्रस्तुत किया है। विपक्षी बैंक ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। 
    परिवादी ने साक्ष्य में  अपने शपथ-पत्र के अलावा वाहन की आर.सी.,ऋण अनुबंध व शिड्यूल, विपक्षी बैंक से प्राप्त पत्र व उसको की गई अदायगी की रसीद आदि दस्तावेजात आदि की प्रति प्रस्तुत की है।  
    विपक्षी बैंक ने साक्ष्य में शाखा प्रबंधक संजय शर्मा के शपथ-पत्र के अलावा ऋण अनुबंध एवं शिड्यूल व परिवादी के ऋण खाते आदि की प्रतियां प्रस्तुत की हैं। 
     
    हमने दोनों पक्षांें की  बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया। 
    यह विवाद रहित है कि परिवादी ने विपक्षी बैंक से वित्तीय सुविधा प्राप्त की जिस हेतु ऋण अनुबंध निष्पादित किया है। जिसकी शर्तो के अनुसार नियत समय पर किस्तो की अदायगी करने का परिवादी का दायित्व था। अनुबंध के शिड्यूल द्वितीय के अनुसार परिवादी को 15.03.07 से 07.02.09 तक प्रति माह  7 तारीख को 7,785/- रूपये, 07.03.09 से प्रति माह 07.12.09 तक 7,285/- रूपये व दिनांक 07.01.10 को 7,210/- रूपये की अदायगी करनी थी। परिवादी ने विपक्षी बैंक को किस्तों की अदायगी करने की जो रसीदें प्रस्तुत की है उनसे प्रकट होता है कि उसने किसी भी किश्त की अदायगी उपरोक्त विवरणं के अनुसार नियत तिथि पर नहीं की । अनुबंध की शर्तो के अनुसार नियत समय पर किश्त की अदायगी नहीं करने पर परिवादी द्वारा डिले चार्ज, ब्याज, पेनल्टी भी अदा करने का दायित्व है। विपक्षी बैंक ने डिले  चार्ज,ब्याज व पेनल्टी लगाई है तथा इसे सेवादोष नहीं माना जा सकता है। 
जहाॅ तक परिवादी का यह केस है कि विपक्षी के फील्ड आफीसर द्वारा प्राप्त राशि की रसीदें  नहीं दी गई या 15.12.07 को अदा की गई राशि की पूरी रसीद नहीं दी, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि परिवादी ने ही 24 रसीदें प्रस्तुत की है। यदि विपक्षी बैंक 24 रसीदें देता है तब अन्य रसीदंे नही देने का कोई कारण समझ में नहीं आता यदि तर्क के लिये यह माना भी जावे कि राशि की रसीद नही “दी तब उसके लिये तत्काल कार्यवाही की जानी चाहिये थी, लेकिन परिवादी ने यह प्रकट नहीं किया है फरवरी, अप्रेल व मई 09 में अदा की गई राशि की रसीद नहीं देने बाबत् तत्काल कोई कार्यवाही की गई थी, इसलिये हम पाते है” कि राशि अदा करने व रसीद नहीं देने की कहानी विश्वस योग्य नहीं है। विपक्षी बैंक ने परिवादी द्वारा समय-समय पर अदा की गई राशि  का पूरा स्टेटमेन्ट पेश किया है, जिसे परिवादी द्वारा गलत ठहराने का कोई आधार नहीं बताया गया है। इसलिये हम पाते है“ कि परिवादी विपक्षी- बैंक का कोई सेवादोष सिद्ध नहीं कर पाया है । परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।  

       आदेश 

    अतः परिवादी का परिवाद विपक्षी के खिलाफ  खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगें।

(महावीर तंवर)              (हेमलता भार्गव)            ( भगवान दास)  
  सदस्य                    सदस्य                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद   जिला उपभोक्ता विवाद      जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।     प्रतितोष  मंच, कोटा।        प्रतितोष मंच, कोटा।
     निर्णय  आज दिनंाक 19.01.16 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 


  सदस्य                    सदस्य                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद   जिला उपभोक्ता विवाद      जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।     प्रतितोष  मंच, कोटा।        प्रतितोष मंच, कोटा।

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