(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1372/2008
Munnu Lal Umar S/O Late Sidhnath Umar
Versus
Indrajeet Singh S/O Sri Vansdhari Singh
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री आलोक रंजन, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक :18.11.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-66/2006, इंद्रजीत सिंह बनाम मुन्नु लाल में विद्वान जिला आयोग, संतरविदास नगर, भदोही द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 18.06.2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर केवल अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अंकन 9,000/-रू0 10 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस लौटाने का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार विपक्षी द्वारा समाज सेवा संस्था का निर्माण घरेलू सामान की आपूर्ति के लिए किया था, जिसमें परिवादी द्वारा अंकन 9,000/-रू0 जमा कराये गये थे तथा सामान क्रय किया था, जो निम्न स्तरीय था और जब वापस करने का प्रयास किया गया तब विपक्षी द्वारा कीमत तथा प्रतिपूर्ति के रूप में जमा राशि वापस करने से इंकार कर दिया।
4. विपक्षी ने लिखित कथन में परिवादी को सामान विक्रय करना स्वीकार किया है तथा यह भी कथन किया है कि परिवादी स्वयं समिति का सदस्य है, जो समिति सक सामान क्रय कर पुन: अन्य व्यक्ति को विक्रय कर सकते हैं। परिवादी ने कभी भी 9,000/-रू0 अग्रिम जमा नहीं किया तथा सामान की गुणवत्ता के बारे में कभी कोई सूचना नहीं दी।
5. पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया है, साथ ही यह भी निष्कर्ष दियाकि परिवादी द्वारा जो शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है, उसका कोई खण्डन नहीं किया गया, इसलिए अखण्डनीय शपथ पत्र के आधार पर अपना निष्कर्ष पारित किया है।
6. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी स्वयं समिति का सदस्य था तथा सामान क्रय कर आगे विक्रय करता था, इसलिए व्यापारिक गतिविधियों में संलिप्त था। अत: उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। चूंकि परिवादी स्वयं एक समिति का सदस्य था। अत: समिति के किसी अनुचित कार्य के लिए समिति के सहायक निबंधक के समक्ष शिकायत प्रस्तुत की जानी चाहिए थी न कि उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। अत: यह विवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए गैर उपभोक्ता विवाद पर पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2