(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
परिवाद संख्या :31/2016
तिलकराज चन्ना पुत्र स्व0 कुलदीप राज निवासी-512/187, छठी गली, निशातगंज, लखनऊ।
परिवादी
बनाम्
- इन्दिरा गॉधी आई हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर, 1, बी0एन0 रोड, कैसरबाग, लखनऊ-226001 द्वारा मुख्य चिकित्सा अधिकारी।
- डा0 आशुतोष खण्डेलवाल, सर्जन, इन्दिरा गॉधी आई हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर, 1, बी0एन0 रोड, कैसरबाग, लखनऊ-226001
विपक्षीगण
समक्ष :-
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
उपस्थिति :
परिवादी की ओर से उपस्थित- श्री बृजेन्द्र चौधरी।
विपक्षी की ओर से उपस्थित- श्री राजे भसीन।
दिनांक : 28-10-2021
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय
1- यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 त्रिपक्षीय चिकित्सक एवं अस्पताल द्वारा परिवादी के इलाज में हुई चिकित्सीय लापरवाही के आधार पर 30,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति तथा 10,00,000/-रू0 मानसिक, आर्थिक एवं शारीरिक क्षतिपूर्ति के लिए योजित किया गया है।
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2- परिवादी का कथन मुख्य रूप इस प्रकार है कि उसने दिनांक 12-12-2009 को अपनी बाईं ऑख में खुजली होने के कारण इलाज हेतु विपक्षी के यहॉं सम्पर्क किया। विपक्षी संख्या-2 डा0 आशुतोष खण्डेलवाल ने परीक्षणोंपरान्त यह निष्कर्ष दिया कि परिवादी की बाईं ऑंख मोतियाबिन्द से ग्रसित है तथा आपरेशन की सलाह दी। परिवादी ने उक्त राय के अनुसार रू0 17,000/- विपक्षी संख्या-1 के अस्पताल में जमा किये तथा दिनांक 14-12-2009 को उसकी बाईं ऑंख की शल्यक्रिया की गयी एवं यह सूचित किया गया कि उसकी बाईं ऑंख का लेंस बदला गया है। ऑंख में हरी पट्टी बांधकर उसको शल्य क्रिया के उपरान्त घर भेज दिया तथा दिनांक 16-12-2009 को अस्पताल में परीक्षण हेतु आने का कहा गया। दिनांक 16-12-2009 को जब परिवादी की हरी पट्टी उतारी गयी तो उसने पाया कि उसकी बाईं ऑंख की रोशनी चली गयी है। विपक्षी संख्या-1 अस्पताल के डाक्टरों द्वारा उसे आई ड्रॉप डालने के लिए कहा गया और यह भी बताया गया कि बाईं ऑंख की रोशनी एक सप्ताह के अंदर वापस आ जायेगी किन्तु एक सप्ताह का समय बीतने के उपरान्त जब उसकी आंख की रोशनी वापस नहीं आयी तब उसके द्वारा प्रकाश नेत्र केन्द्र, गोमती नगर में दिनांक 22-12-2009 को अपना इलाज कराया गया जहॉं उसे पता चला कि विपक्षी के अस्पताल में गलत शल्यक्रिया होने के कारण उसकी बाईं ऑंख की रोशनी चली गयी है तथा उसको बाईं ऑंख का पुन: आपरेशन कराना होगा। प्रकाश नेत्र केन्द्र में परिवादी को यह भी बताया गया कि उसकी बाईं ऑंख की रोशनी वापस लाने के लिए उसे मंहगा इलाज कराना होगा जिससे व्यथित होकर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
3- पूर्व में एक परिवाद जिला आयोग लखनऊ में परिवाद संख्या-34/2010 परिवादी ने योजित किया था किन्तु यह पाये जाने पर कि उसके द्वारा मांगी गयी क्षतिपूर्ति जिला आयोग के क्षेत्राधिकार से अधिक है परिवादी ने परिवाद को बल न दिये जाने के आधार पर
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एवं नया वाद लाने के अधिकार हेतु खारिज करने की प्रार्थना की एवं उक्त वाद खारिज होने के उपरान्त यह वाद उपरोक्त क्षतिपूर्ति हेतु योजित किया है।
4- विपक्षीगण की ओर से वादोत्तर दिनांकित 26-09-2017 प्रस्तुत किया गया जिसमें मुख्य रूप से यह आधार लिया गया है कि परिवादी ने जानबूझकर जिला आयोग, लखनऊ में परिवाद प्रस्तुत किया था तथा वहॉं पर साक्ष्य भी प्रस्तुत किया था किन्तु परिवादी ने जानबूझकर क्षतिपूर्ति की धनराशि रू0 40,00,000/- मनमाने तौर से बढ़ा लिया एवं यह परिवाद राज्य आयोग में लाया गया जब कि परिवादी को अपनी क्षतिपूर्ति की राशि की जानकारी पहले से थी।
5- विपक्षी उत्तरदाता के अनुसार परिवादी ने अपनी ऑंख के इलाज के लिए स्वयं को पंजीकृत कराया था। प्रश्नगत अस्पताल में निरीक्षण के उपरान्त परिवादी को macular hole or Glaucoma की परेशानी परिलक्षित हुई। अस्पताल के ग्लूकोमा विभाग में चिकित्सक ने बताया कि उसकी ऑंच में दबाव अधिक है तथा उसे आई ड्राप का सेवन करने हेतु निर्देशित किया गया। परिवादी को यह भी बताया गया कि उसको दाहिनी ऑंख में ग्लूकोमा की परेशानी भी है तथा उसकी रेटिना की स्थिति स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं हो रही है जिसको मोतियाबिंद की सर्जरी के उपरान्त ही देखा जा सकता है। विपक्षी संख्या-2 चिकित्सक ने मोतियाबिन्द को निकालते हुए परिवादी की बाईं ऑंख का इलाज उसकी ऑंख में आर्टीफिशियल लेंस लगाते हुए सफलतापूर्वक किया था तथा यह शल्यक्रिया 100 प्रतिशत सफल रही थी।
6- विपक्षी द्वारा यह भी कथन किया गया कि मोतियाबिन्द की शल्यक्रिया के उपरान्त जब कि परिवादी का रेटिना दृष्टिगोचर हुआ तो निरीक्षण करने पर यह पाया गया कि ऑंख में रेटिना भी अलग है तथा उसे पूर्ण परीक्षण के लिए रेटिना विभाग प्रेषित किया गया। जहॉं पर डाक्टर अंकित अवस्थी रेटिना विशेषज्ञ ने परिवादी को यह
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सूचित किया कि उसकी बाईं ऑख का रेटिना अलग है जिसके लिए पुन: शल्यक्रिया की आवश्यकता थी जिसके लिए दिनांक 21-12-2009 नियत की गयी थी।
7- विपक्षी द्वारा यह भी कथन किया गया है कि परिवादी की आईं बाल सामान्य से अधिक बढ़ी थी जिस कारण उसे high Myopia भी था। high myopia होने से रेटिना Detachment का खतरा बढ़ जाता है। सामान्य आई बाल 33 एम.एम. की तुलना में परिवादी का रेटिना 26.5 एम.एम. था। उपरोक्त जानकारी होने के उपरान्त परिवादी केवल दिनांक 16-12-2009 को विपक्षी अस्पताल में आया और पुन: रेटिना विशेषज्ञ/चिकित्सक के समक्ष प्रस्तुत नहीं हुआ। विपक्षी को यह जानकारी नहीं है कि परिवादी ने रेटिना विभाग में शल्यक्रिया प्रकाश नेत्र केन्द्र में करायी अथवा नहीं क्योंकि वह इसके उपरान्त विपक्षी अस्पताल में नहीं आया। विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया है कि डाक्टर अतुल खरबंदा जिनका उल्लेख परिवादी ने किया है वह नेत्र विशेषज्ञ नहीं हैं और मोतियाबिन्द का आपरेशन गलत किया गया था। मोतियाबिन्द तथा retinal detachment दोनों अलग-अलग बीमारियॉं है अत: परिवादी का समस्त कथन गलत है।
8- विपक्षी के अनुसार परिवादी के मोतियाबिन्द का उचित इलाज एवं शल्यक्रिया विपक्षीगण के यहॉं की गयी थी और उसे एक अन्य बीमारी retinal detachment होने के कारण उसे प्रकाश नेत्र केन्द्र में अपना इलाज कराना पड़ा था। अत: परिवादी का यह कथन एकदम गलत है कि विपक्षी चिकित्सक द्वारा अस्पताल में सही इलाज नहीं किया गया है परिवादी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
9- परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी तथा विपक्षीगण की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री राजे भसीन की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया तथा इस संदर्भ में पीठ का निष्कर्ष निम्न प्रकार से है :-
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I- परिवादी का कथन यह है कि उसकी बाईं ऑंख का मोतियाबिन्द का आपरेशन करने में विपक्षी संख्या-2 चिकित्सक द्वारा विपक्षी संख्या-1 अस्पताल के परिसर में इलाज में लापरवाही बरतने के कारण तथा गलत शल्यक्रिया होने के कारण उसकी बाईं ऑंख की रोशन चली गयी तथा उसने अपना इलाज प्रकाश नेत्र केन्द्र में कराया इस आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया गया है। परिवादी को उक्त तथ्य सिद्ध करने के लिए यह साक्ष्य देना आवश्यक है कि उपरोक्त शल्यक्रिया में चिकित्सक की ओर से कोई लापरवाही बरती गयी है। चिकित्सीय लापरवाही के संदर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय डाक्टर एस0 के0 झुनझुनवाला प्रति श्रीमती धनवंती कुमार तथा अन्य 2019 NCJ 15 (SC) का उल्लेख करना उचित होगा, जिसमें अंग्रेजी केस बोलम प्रति फ्रीइयर्न हास्पिटल मैनेजमेंट कमेटी प्रकाशित 1957 II All er पृष्ठ 118 (OPD) पर आधारित करते हुए यह आधारित किया गया कि प्रत्येक मामले में चिकित्सक मरीज का 100 प्रतिशत रिकवरी की गारण्टी नहीं कहा जा सकता है। चिकित्सक द्वारा अपने व्यवसायिक कुशलताके अन्तर्गत अच्छे से अच्छी सेवा दी जा सकती है। किसी चिकित्सक को व्यवसायिक दृष्टि से दो कारणों के आधार पर लापरवाही माना जा सकता है :-
- उसके द्वारा जो चिकित्सा की जा रही है, उसके लिए चिकित्सक आवश्यक कुशलता नहीं रखता है।
- उसके द्वारा युक्ति युक्त रूप से सावधानी नहीं बरती गयी, जैसा कि एक साधारण व्यक्ति से अपेक्षा की जा सकती है।
10- निर्णय के प्रस्तर 23 में यह दिया गया कि किसी चिकित्सक को मात्र इस आधार पर लापरवाही का दोषी नहीं माना जा सकता है कि उसके द्वारा इलाज करने में कुछ विपरीत परिस्थितियॉं उत्पन्न हो गयी जो भाग्य के कारण अथवा निर्णय लेने में गलती होने के कारण हो सकती हैं। किसी चिकित्सक को इस आधार पर लापरवाही का दोषी
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माना जा सकता है कि यदि साक्ष्य से यह साबित हो कि उसके द्वारा युक्ति युक्त कुशल चिकित्सक जैसी सावधानी नहीं बरती गयी।
11- इस संबंध में निर्णय श्रीमती विनीता अशोक प्रति लक्ष्मी हास्पिटल तथा अन्य अपील संख्या-2977/1992 निर्णीत 25-09-2001 का उल्लेख करना भी उचित होगा, जिसमें एक अन्य निर्णय अर्चित राव सिंह भाऊ खोदवा प्रति स्टेट आफ महाराष्ट्र 1996(2) एस.सी.सी. पृष्ठ 634 पर आधारित करते हुए यह निर्णीत किया गया कि चूंकि लापरवाही के संबंध में न्यायों के लिए यह आवश्यक है कि वह निर्धारित करें कि चिकित्सक महोदय इलाज करने हेतु उचित योग्यता भी अथवा नहीं। यदि उचित योग्यता नहीं है तभी चिकित्सक महोदय को दोषी माना जा सकता है। दूसरा लापरवाही का आधार यह माना जा सकता है कि उनके द्वारा चिकित्सीय सेवा देते समय ऐसी सावधानी नहीं बरती गयी जो एक साधारण व्यक्ति से अपेक्षित है।
12- जहॉं तक प्रथम बिन्दु के अनुसार चिकित्सक महोदय की आवश्यक कुशलता एवं अर्हता का प्रश्न है चिकित्सक महोदय ने अपने शपथ पत्र दिनांकित 10-09-2018 जो बतौर साक्ष्य दिया है के प्रस्तर-3 में कथन किया है कि शपथकर्ता आई सर्जन के रूप में पिछले 11 वर्ष से अद्यतन कार्यकर रहे हैं तथा उनके द्वारा शपथ पत्र के दिनांक पर लगभग 30 हजार शल्य क्रियाऍं की जा चुकी हैं। पहले चिकित्सक Arvind Eye Care Hospital, Madurai, Tamil Naidu में कार्यरत थे तथा वर्ष 2005 से वह इन्दिरा गॉंधी आई हास्पिटल एवं रिसर्च सेंटर में बतौर नेत्र चिकित्सक कार्य करना आरम्भ किया है और तब से वह वहीं कार्यरत है। उपरोक्त कथन से स्पष्ट होता है कि चिकित्सक महोदय मोतियाबिंद का आपरेशन करने के लिए पूर्णतया सक्षम थे क्योंकि चिकित्सक महोदय के उपरोक्त कथन को परिवादी की ओर से खण्डित नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा शपथ पत्र अथवा वाद पत्र में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि वह प्रश्नगत मोतियाबिंद के इलाज को करने के लिए सक्षम नहीं थे। इस प्रकार चिकित्सक महोदय का उपरोक्त सशपथ कथन अखण्डित है।
13- अत: यह मानना उचित है कि चिकित्सक महोदय प्रश्नगत मोतियाबिन्द के आपरेशन को करने की पर्याप्त कार्य कुशलता रखते थे, अत: उपरोक्त कथन के सापेक्ष विपक्षीगण को चिकित्सीय लापरवाही का दोषी नहीं माना जा सकता है।
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14- मा0 सर्वोच्च न्यायालय एवं मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा द्धितीय बिन्दु के संबंध में दिया गया है कि चिकित्सक महोदय द्वारा यदि युक्ति युक्त रूप से इलाज में लापरवाही नहीं बरती गयी है तो उन्हें चिकित्सीय लापरवाही का दोषी नहीं माना जा सकता है। इस संबंध में परिवादी द्वारा कथन किया गया है कि चिकित्सीय शल्यक्रिया में लापरवाही होने के कारण उसकी बाईं आखॅ की रोशनी चली गयी जिसके लिए उन्हें प्रकाश नेत्र केन्द्र में अपना आपरेशन कराना पड़ा। विपक्षी की ओर से स्पष्ट रूप से परिवादी की ऑंख की बीमारियों को दर्शाते हुए यह कथन किया गया है कि परिवादी की ऑंख में कई बीमारियॉं थीं जिनमें मोतियाबिन्द प्रथम बीमारी थी एवं मोतियाबिन्द के आपरेशन के उपरान्त स्पष्ट होना था कि उसे अन्य बीमारी है कि नहीं ? चिकित्सक महोदय द्वारा अपने साक्ष्य शपथ पत्र में कथन किया गया है कि परिवादी को अत्यन्त एडवांस चरण का मोतियाबिन्द था, जिसके लिए उसे आपरेशन कराना पड़ा।
15- विपक्षी का कथन है कि परिवादी की eye ball axial length सामान्य से बहुत अधिक थी जिस कारण उसे उच्च स्तर का myopia था जिस कारण वे Retina Detachment एवं macular hole था, किन्तु इन दोनों बीमारियों का मोतियाबिन्द के आपरेशन के पश्चात ही इलाज सम्भव था। विपक्षी की ओर से दिनांक 12-12-2009 को परिवादी के क्लिनिकल परीक्षण के विवरण की छायाप्रति शपथ पत्र के संलग्नक-1 के रूप में प्रस्तुत की गयी है जिसके सातवें पृष्ठ पर Eye ball axial length 26.65 mm प्रदान की गयी है। शपथ पत्र के प्रस्तर-12 में यह कथन किया गया है परिवादी को अत्यधिक Myopia था। high myopia होने के कारण परिवादी को high myopia तथा Retinal Detachment होने का पूरा खतरा था।
16- पृष्ठ-1 पर यह दिया गया है कि Retinal Detachment जो macular hole का द्धितीयक कम्पलीकेशन myopia वाली ऑंखों में होने की अधिक सम्भावना रहती है और मुख्त: एशिया के मरीजों में उपरोक्त् पुस्तक के अध्याय-113 में प्रदान किया गया है कि macular hole व Retinal Detachment में सर्जरी की आवश्यकता होती है :-
17- चिकित्सक महोदय द्वारा दिये गये इस स्पष्टीकरण का उल्लेख उपरोक्त पुस्तक में यह प्रदान किया गया है Retinal Detachment तथा macular hole को उक्त आपरेशन के पूर्व में देखना दुष्कर होता है
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क्योंकि Retinal Detachment को पूर्व में देखा जाना लगभग सम्भव नहीं है।
18- इस प्रकार चिकित्सक महोदय के उपरोक्त कथन का समर्थन चिकित्सीय पुस्तक से होता है जिससे यह स्पष्ट है कि परिवादी की बाईं आख का आपरेशन मोतियाबिन्द होने के कारण किया गया क्यों कि परिवादी की ऑंख में अत्यधिक myopia होने के कारण Retinal Detachment की आशंका थी किन्तु यह तथ्य आपरेशन के पूर्व निर्धारित किया जाना सम्भव नहीं था एवं बाद में परिवादी के अत्यधिक myopia होने के कारण Retinal Detachment पाया गया जिसका आपरेशन उसे प्रकाश नेत्र केन्द्र में करवाना पड़ा। उक्त कथन का समर्थन परिवाद के साथ प्रस्तुत किये गये संलग्नक-5 के रूप में प्रकाश नेत्र केन्द्र द्वारा परिवादी तिलक राज चादना की डिस्चार्ज समरी दिनांक 25-12-2009 की छायाप्रति से होता है जिसके मध्य में आर.डी.एल.ई. अर्थात Retinal Detachment बाईं ऑंख में दृष्टिगोचर होता है जिससे यह स्पष्ट है कि परिवादी का इलाज प्रकाश नेत्र केन्द्र में एवं शल्य क्रिया Retinal Detachment के लिये की गयी थी। इस प्रकार चिकित्सक महोदय के द्वारा दिये गये साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि परिवादी का इलाज एवं शल्य क्रिया विपक्षी संख्या-2 द्वारा विपक्षी संख्या-1 अस्पताल में मोतियाबिन्द के लिए किया गया था और बाद में एक अन्य बीमारी Retinal Detachment परिवादी की ऑंख में पाया गया जिसका इलाज प्रकाश नेत्र केन्द्र में किया गया। स्वयं विपक्षी द्वारा मोतियाबिन्द के इलाज में लापरवाही किये जाने के कारण परिवादी को प्रकाश नेत्र केन्द्र में ऑंख का इलाज करवाना पड़ा हो ऐसा उभयपक्षों के साक्ष्य से स्पष्ट नहीं होता है अत: परिवादी के कथन में कोई बल नहीं है।
19- सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए हम इस मत के है कि परिवादी के परिवाद में कोई बल नहीं है और परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। परिवादी यह साबित करने में विफल रहा
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है कि विपक्षी डाक्टर द्वारा परिवादी के इलाज में किसी प्रकार की कोई लापरवाही बरती गयी है जिससे परिवादी की ऑंख खराब हुई है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभयपक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
( न्यायमूर्ति अशोक कुमार ) ( विकास सक्सेना )
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0
कोर्ट नं0-1