Kailash Chand Saini filed a consumer case on 20 Feb 2015 against Indian Railway. in the Jaipur-IV Consumer Court. The case no is CC/788/2012 and the judgment uploaded on 17 Mar 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर
पीठासीन अधिकारी
डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष
डाॅ.अलका शर्मा,सदस्या
श्री अनिल रूंगटा, सदस्य
परिवाद संख्या:-788/2012(पुराना परिवाद संख्या 243/2009)
श्री कैलाश चन्द सैनी पुत्र श्री मालीराम सैनी, आयु 53 वर्ष, निवासी- बी-465, 80 फिट रोड, महेश नगर, जयपुर । स्थाई निवास- क्वार्टर संख्या डी-42, प्प्।ए खेतड़ी नगर, जिला झुंझुनूं ।
परिवादी
बनाम
01.भारतीय रेल्वे, जयपुर मण्डल, रेल्वे स्टेशन, जयपुर जरिये स्टेशन मास्टर ।
02.कोकण रेल्वे कार्पोरेशन लिमिटेड, मडगांव, गोवा जरिये वरिष्ठ स्टेशन मास्टर ।
विपक्षीगण
उपस्थित
परिवादी की ओर से श्री उमेश नागपाल/श्री पंकज शर्मा, एडवोकेट
विपक्षी संख्या 1 की ओर से श्री एल.पी.सिंघल, एडवोकेट
विपक्षी संख्या 2 के विरूद्ध एकतरफा कार्यवाही ।
निर्णय
दिनांकः- 20.02.2015
यह परिवाद, परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध दिनंाक 13.02.2009 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया हैः-
परिवादी ने अपने परिवार के साथ भ्रमण करने के लिए विपक्षी संख्या 1 के यहां से ट्रेन का रिजर्वेशन दिनंाक 02.08.2008 को करवाया । जिसमें परिवादी के अलावा उसकी पत्नी विमला देवी, पुत्र मनोज कुमार, दो पुत्रियां सुमन देवी व पूनम तथा भतीजा हर्षित शामिल था । इसके लिए परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 को 2,022/-रूपये का भुगतान किया । जिस पर विपक्षीगण द्वारा परिवादी को पी.एन.आर. नम्बर 4163467487 दिनंाक 13.10.2008 का दिया । परिवादी ने तय कार्यक्रम के अनुसार अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दी तथा दिल्ली से चेन्नई पहुंचा । चेन्नई में एक दिन विश्राम करने के बाद उसने अपनी आगे की यात्रा त्रिवेन्द्रम से मड़गांव प्रारम्भ की । उक्त ट्रेन में परिवादी को ट्रेन में अंकित कोच में बर्थ प्रदान कर दी गई । लेकिन आगामी स्टेशन पर परिवादी के कोच में कुछ लोग आ गये और परिवादी की सीट पर आकर बैठ गये । इस बाबत् परिवादी द्वारा टी.टी. से शिकायत करने पर टी.टी. ने उन्हें समझा-बुझाकर वापस भिजवा दिया । लेकिन वे लोग पुनः उसी कोच में आकर परिवादी व उसके परिवार को परेशान करने लगे । टी.टी. से पुनः निवेदन करने पर उसने परिवादी को बताया कि ’केरल में आप रात में 9.00 बजे से पूर्व बर्थ का प्रयोग नहीं कर सकते तथा दिन में रिजर्वेशन कोच में लोकल सवारी निर्धारित राशि का भुगतान कर यात्रा कर सकती हैं ।’ जबकि परिवादी द्वारा टिकिट लेते समय ऐसा कोई तथ्य विपक्षीगण द्वारा उसे नहीं बताया गया था ।
इस प्रकार परिवादी ने बड़े कष्टांें और मुश्किलों का सामना करते हुए अपनी यात्रा पूर्ण की और यात्रा पूर्ण होने पर मड़गांव स्टेशन पर शिकायत पुस्तिका में अपनी शिकायत दर्ज करवाई । लेकिन परिवाद प्रस्तुत करने के दिन तक विपक्षीगण द्वारा इस शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की गई । जो विपक्षीगण का सेवादोष हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी अब विपक्षीगण से परिवाद के मद संख्या 22 में अंकित सभी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षी संख्या 1 की ओर से दिये गये जवाब में कथन किया गया है कि परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में भारत संघ को पक्षकार नहीं बनाया गया है तथा विपक्षी संख्या 1 को भी जरिये स्टेशन मास्टर पक्षकार बनाया गया है, जो पूर्ण रूप से विधि विरूद्ध हैं । अतः परिवाद पत्र आवश्यक पक्षकार के असंयोजन से ग्रस्त होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य हैं । विपक्षी संख्या 1 द्वारा परिवादी को मात्र तिरूवन्तपुरम से मडगांव की यात्रा के लिए टिकिट जारी किया गया था । इसके अतिरिक्त न तो विपक्षी संख्या 1 के पावर व पजेशन में ट्रेन संख्या 6346 आती है और न ही कथित ट्रेन की रवानगी विपक्षी संख्या 1 के यहां से होती हैं । परिवादी को जो असुविधा का सामना करना पड़ा हैं, उसका क्षेत्राधिकार दक्षिण रेल्वे के पास हैं और उसका कार्यालय चेन्नई में स्थित हैं । परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 1 को अनावश्यक पक्षकार बनाया गया हैं । अतः परिवाद, परिवादी निरस्त किया जावें ।
विपक्षी संख्या 2 आरम्भ से ही अनुपस्थित रहा हैं । अतः अब उसके विरूद्ध एकतरफा कार्यवाही अमल में लाने के आदेश दिये जाते हैं ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादी श्री कैलाशचन्द सैनी ने स्वयं का शपथ पत्र एवं प्रदर्श-1 एवं प्रदर्श-2 दस्तावेज प्रस्तुत किये । जबकि विपक्षी संख्या 1 की ओर से जवाब के तथ्यों की पुष्टि में श्री लीलाराम मीणा एवं श्री विजय कुमार शुक्ला के शपथ पत्र प्रस्तुत किये गये ।
बहस अंतिम सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी को विपक्षी संख्या 1 स्टेशन मास्टर, जयपुर रेल्वे स्टेशन, जयपुर से पी.एन.आर. नम्बर 4163467487 टिकिट 2,022/-रूपये में जारी किया गया था और इस टिकिट की राशि को लेकर कोई विवाद परिवादी द्वारा नहीं बताया गया है । बल्कि जब परिवादी उक्त टिकिट को धारण करके त्रिवेन्द्रम से मडगांव के बीच यात्रा कर रहा था तो कुछ लोग परिवादी के इस रिजर्व कोच में घुस आये और उन्होंने परिवादी को हैरान और परेशान किया । जिससे परिवादी की तबीयत खराब हो गई । उन्होंने परिवादी से अपशब्द भी कहे । इसकी शिकायत परिवादी ने विपक्षीगण के टी.टी. से की तो उसने भी गैर-कानूनी रूप से कोच में चढ़े हुए लोगों से मुक्ति दिलाने में कोई मदद नहीं की । ऐसा कथन परिवादी ने परिवाद में किया है और इस संबंध में परिवादी की ओर से दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में कोंकण रेल्वे कार्पोरेशन लिमिटेड में दर्ज शिकायत प्रदर्श-2 दिनांक 20.10.2008 की प्रति प्रस्तुत की गई हैं । जिसमें उसके रिजर्व कोच में केरल के यात्रियों द्वारा चढ़कर उससे झगड़ा करने के तथ्य आदि अंकित हैं ।
इस प्रकार गैर-कानूनी रूप से रिजर्व कोच में लोगों ने चढ़कर दंगा किया तो परिवादी ने कोच के टी.टी. के तीन बार शिकायत की । लेकिन उसने परिवादी की सहायता नहीं की । जबकि विपक्षी संख्या 2 कोकण रेल्वे कार्पोरेशन लिमिटेड का यह दायित्व था कि वह यात्री को रिजर्व कोच में शांतिपूर्ण और उपयुक्त सेवाऐं प्रदान करते । जो विपक्षी संख्या 2 के स्तर पर परिवादी को प्रदान नहीं की गई । वैसे भी विपक्षी संख्या 2 के विरूद्ध एकतरफा कार्यवाही अमल में लाये जाने के आदेश प्रदान किये गये हैं इसलिए आदेश 8 (5) (2) सी.पी.सी. के प्रावधानों में यह मानकर चला जावेगा कि विपक्षी संख्या 2 परिवादी द्वारा लगाये गये सभी आरोपों को अक्षरशः स्वीकार करता हैं ।
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी को त्रिवेन्द्रम से मडगांव की यात्रा करते समय बीच में रिजर्व कोच में दूसरे यात्रियों के चढ़ जाने पर उनसे निजात नहीं दिलाने और उनके द्वारा परिवादी के झगड़ा करने पर परिवादी को टी.टी. की सहायता नहीं मिलने के कारण विपक्षी संख्या 2 ने सेवादोष कारित किया हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी विपक्षी संख्या 2 से स्वयं को हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये अर्थात् 10,000/-रूपये प्राप्त करने का अधिकारी हैं । विपक्षी संख्या 1 का कोई सेवादोष प्रमाणित नहीं होने से परिवादी उसके विरूद्ध कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
आदेश
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादी स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता है कि परिवादी विपक्षी संख्या 2 से उसके उपरोक्त सेवादोष से स्वयं को हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये अर्थात् 10,000/-रूपये प्राप्त करने का अधिकारी हैं । विपक्षी संख्या 1 का कोई सेवादोष प्रमाणित नहीं होने से परिवादी उसके विरूद्ध कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षी संख्या 2 को आदेश दिया जाता है कि वह उक्त समस्त राशि परिवादी के रिहायशी पते पर जरिये डी.डी./रेखांकित चैक इस आदेश के एक माह की अवधि में उपलब्ध करायेेगा ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 20.02.2015 को पृथक से लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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