जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-151/2012
अर्जुन यादव पुत्र गुरु प्रसाद यादव नि0 मोदहा दक्षिण (रेलवे क्रासिंग के पास) तहसील सदर पोस्ट खोजनपुर जिला फैजाबाद। .............. परिवादी
बनाम
1. षाखा प्रबन्धक इंडियन ओवरसीज बैंक अल्का टावर रिकाबगंज, फैजाबाद।
2. तहसीलदार सदर फैजाबाद।
3. क्षेत्रीय अमीन तहसील सदर फैजाबाद। .......... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 21.01.2016
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना मंे रुपये 70,000/- के ऋण के लिये आवेदन जिला उद्योग केन्द्र फैजाबाद में आवेदन किया था जो स्वीकृत हो कर विपक्षी संख्या 1 के पास ऋण के भुगतान के लिये इस षर्त के साथ भेजा गया कि आवष्यक कार्यवाही पूरी कराने के पश्चात ऋण का भुगतान कर दिया जाय। विपक्षी संख्या 1 ने स्वीकृत ऋण रुपये 70,000/- के स्थान पर रुपये 50,000/- का ही भुगतान परिवादी को किया तथा षेश रकम रुपये 20,000/- का भुगतान आज तक नहीं किया और रुपये 20,000/- के लिये दबाव बनाने पर विपक्षी संख्या 1 ने कहा कि रुपये 20,000/- का समायोजन ऋण भुगतान किये जाने वाली धनराषि में समायोजित कर दिया गया है और अब रुपये 20,000/- नहीं मिलेंगे। जिस पर परिवादी ने एतराज किया तो विपक्षी संख्या 1 ने संतोशजनक उत्तर देने के बजाय भविश्य में परिणाम भुगतने की धमकी दी। परिवादी को रुपये 70,000/- की वापसी किष्तों में करनी थी। परिवादी ने रुपये 50,000/- प्राप्त करने के बाद, रुपये 50,000/- के ऋण का भुगतान अपने बचत खाता संख्या 2449 व 310501035 से रुपये निकाल कर जो विपक्षी संख्या 1 की ही षाखा में हैं से ट्रंासफर वाउचर के जरिए करता रहा। परिवादी को रुपये 70,000/- के ऋण में 25 प्रतिषत छूट के बाद केवल रुपये 54,500/- ही जमा करना था, किन्तु रुपये 70,000/- में से रुपये 50,000/- का ही भुगतान परिवादी को दिया गया है। इस प्रकार परिवादी को रुपये 50,000/- में से 25 प्रतिषत छूट के बाद मात्र रुपये 38,500/- ही जमा करना था, जब कि परिवादी अब तक रुपये 63,995/- जमा कर चुका है। दिनांक 15.01.2008 तक विपक्षी संख्या 1 ने रुपये 63,995/- का समायोजन परिवादी के ऋण खाते में नहीं किया है और परिवादी को हैरान व परेषान करने के लिये परिवादी के विरुद्ध रुपये 54,318/- की आर0सी0 जारी कर दी है। आर0सी0 जारी होने पर परिवादी ने अपने पिता से रुपये 10,000/- ले कर आर0सी0 के विरुद्ध जमा किया। मगर विपक्षी संख्या 2 व 3 ने रुपये 10,000/- के विरुद्ध मात्र रुपये 9,900/- की रसीद दे कर गये जिसमें रुपये 900/- कलेक्षन षुल्क है। जिसे विपक्षी संख्या 1 को वसूल करने का अधिकार नहीं था। परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 1 से हिसाब किताब मंागे जाने पर कोई हिसाब किताब नहीं दिया। विपक्षी संख्या 1 द्वारा बिना किसी नोटिस के वसूली प्रमाण पत्र जारी करना गलत है। प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत देय ऋण राषि की वसूली कानून आर0सी0 द्वारा नहीं की जा सकती है। परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराषि रुपये 63,695/- परिवादी के ऋण खाते में समायोजित करायी जाय, विपक्षीगण द्वारा जारी आर0सी0 दौरान मुकदमा रोकी जाय, क्षतिपूर्ति रुपये 1,00,000/- परिवादी को विपक्षीगण से दिलायी जाय तथा परिवादी को अदेयता प्रमाण पत्र दिलाया जाय।
विपक्षी संख्या 1 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा कथित किया है कि परिवादी का ऋण प्रार्थना पत्र जिला उद्योग केन्द्र द्वारा संस्तुति के साथ भेजा गया था। परिवादी का बचत खाता उत्तरदाता की षाखा में है। वसूली प्रमाण पत्र भी परिवादी के विरुद्ध रुपये 54,318/- भेजा जाना स्वीकार है। विपक्षी ने अपने विषेश कथन में कहा है कि परिवादी को कोई वाद का कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। परिवादी का ऋण प्रार्थना रुपये 1,00,000/- के लिये स्वीकृत कर के जिला उद्योग केन्द्र द्वारा भेजा गया था। आवष्यक कार्यवाही करने के बाद परिवादी को रुपये 87,500/- का भुगतान तीन किष्तों में किया गया जो क्रमषः रुपये 15,000/-, 50,000/- व 22,500/- के रुप में दिया गया। परिवादी का ऋण 11.5 प्रतिषत वार्शिक ब्याज पर छमाही ब्याज की दर पर दिया गया था। परिवादी को रुपये 1,460/- प्रति माह की किष्तों का भुगतान दिनांक 01.11.2005 से करना था। परिवादी ने वचन पत्र, ऋण करार, तथा रेहन करार पत्र बैंक में दिनांक 26.04.2005 को आ कर निश्पादित किया था। परिवादी ने अपने ऋण की अदायगी समय से नहीं की जिसके सम्बन्ध में परिवादी को कई बार सूचित किया गया। मगर परिवादी ने भुगतान पर ध्यान नहीं दिया। इसलिये परिवादी के विरुद्ध रुपये 54,318/- तथा ब्याज की आर0सी0 दिनांक 15.05.2012 को भेजी गयी। वसूली प्रमाण पत्र के आधार पर परिवादी के विरुद्ध वसूली की कार्यवाही चल रही है। प्रधानमंत्री रोजगार योजना सरकार द्वारा प्रायोजित है जिसकी वसूली की कार्यवाही की जा सकती है। परिवादी का परिवाद उत्तर प्रदेष जमीदारी विनाष अधिनियम से बाधित है। उत्तरदाता ने अपनी सेवा में किसी प्रकार की कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद फोरम के न्याय क्षेत्र के बाहर है। परिवादी का परिवाद मय हर्जा व खर्चा के निरस्त किये जाने योग्य है।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में षपथ पत्र, आर0सी0 की छाया प्रति, अपने बचत खाते की पास बुक की छाया प्रति, आर0सी0 के विरुद्ध जमा की गयी धनराषि की रसीद की छाया प्रति तथा बैंक में जमा की गयी धनराषि की रसीदों की कुछ छाया प्रतियां एवं चार बार खाते से ट्रंासफर की गयी धनराषि के वाउचर की छाया प्रतियां दाखिल की हैं जो षामिल पत्रावली हैं। विपक्षी संख्या 1 बैंक ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन, सूची पर परिवादी के ऋण खाते के स्टेटमेंट की प्रमाणित छाया प्रति, वसूली नोटिस की प्रमाणित छाया प्रति, परिवादी के ऋण आवेदन पत्र की प्रमाणित छाया प्रति, परिवादी द्वारा रुपये 87,500/- के ऋण की धनराषि की प्राप्ति के वाउचर की प्रमाणित छाया प्रति, ऋण अनुबन्ध की प्रमाणित छाया प्रति, ऋण प्रोनोट की प्रमाणित छाया प्रति तथा दृश्टिबन्ध करार की प्रमाणित छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी का यह कहना गलत है कि उसे ऋण की धनराषि मंे केवल रुपये 50,000/- का भुगतान किया गया है। परिवादी ने रुपये 87,500/- का भुगतान प्राप्त किया है और उसके वाउचर पर अपने हस्ताक्षर बनाये हैं। परिवादी का यह कहना गलत है कि प्रधानमंत्री रोजगार योजना के ऋण की वसूली के लिये आर0सी0 जारी नहीं की जा सकती। बैंक ने जो भी प्रपत्र दाखिल किये हैं उन पर परिवादी के हस्ताक्षर हैं। बैंक ने परिवादी के ऋण खाते का बैंक स्टेटमेंट दाखिल किया है जिसमें परिवादी ने जो भी धनराषि जमा की है उसके ऋण खाते में जमा दिखायी गयी है। परिवादी ने अपना परिवाद गलत तथ्यों पर दाखिल किया है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 21.01.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष