Chhattisgarh

Durg

CC/191/2013

Smt. Versha Khandelwal - Complainant(s)

Versus

India Post Office Durg - Opp.Party(s)

Shri Anurag Thakar

26 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/191/2013
 
1. Smt. Versha Khandelwal
Aryanagar Durg
Durg
C.G.
...........Complainant(s)
Versus
1. India Post Office Durg
Main Post Office Durg
Durg
C.G.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:Shri Anurag Thakar, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                  प्रकरण क्र.सी.सी./13/191

                                                                                                   प्रस्तुती दिनाँक 29.08.2013

 

1.             श्रीमती वर्षा खंडेलवाल ध.प. श्री विष्णु खंडेलवाल, आयु-46 वर्ष, निवासी-193, आर्य नगर, दुर्ग (छ.ग.)

2.             कु.निशि खंडेलवाल आ.श्री विष्णु खंडेलवाल आयु-20 वर्ष, निवासी- 193, आर्य नगर, दुर्ग (छ.ग.)                  - - - -       परिवादीगण

विरूद्ध

भारतीय डाक विभाग, द्वारा-मुख्य डाकपाल, मुख्य डाकघर, पटेल चैक, दुर्ग, जिला-दुर्ग (छ.ग.)

- - - -    अनावेदक

आदेश

(आज दिनाँक 26 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

 

    परिवादीगण द्वारा अनावेदक से पी.पी.एफ. खाते में जमा की गई कुल राशि पर मय ब्याज प्राप्त होने वाली राशि से कम प्राप्त राशि के अंतर की राशि 3,41,148रू. तथा उक्त राशि पर दि.04.06.2013 से 18 प्रतिशत ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

                                (2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी क्र.1 के द्वारा परिवादिनी क्र.2 के नाम पर अनावेदक डाकघर में पी.पी.एफ. खाते में विभिन्न दिनांकों पर रकम जमा किये गये थे।

परिवाद-

                                (3) परिवादीगण का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी क्र.1 के द्वारा अपनी पुत्री (परिवादिनी क्र.2) कु.निशि खंडेलवाल के नाम पर वली की हैसियत से अनावेदक संस्था में दि. 07.01.1998 पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड योजना (पी.पी.एफ.) खाता खुलवाया था, जिसमें परिवादिनी क्र.1 के द्वारा परिवादिनी क्र.2 के नाम पर कुल 4,84,000रू. जमा किये गये थे तथा अनावेदक के द्वारा उक्त राशि पर ब्याज सहित 10,10,305रू. की परिपक्वता राशि के रूप में प्रदान किए जाने का कथन एवं उक्त राशि की गणना पासबुक में की गई थी। अनावेदक के द्वारा परिवादिनी को उक्त पी.पी.एफ. की राशि परिपक्वता पश्चात प्राप्त करने हेतु जाने पर 10,10,305रू. अदा करने का वचन दिया जाकर कुछ दिनों के पश्चात आने कहा गया तथा दि.04.06.13 को परिपक्वता राशि 10,10,305रू. के स्थान पर 6,69,157रू. का चेक अनावेदक के द्वारा परिवादीगण को प्रदान किया गया तथा परिवादीगण को यह बताया गया कि परिवादिनी क्र.1 के द्वारा खाते में जमा की गई राशि जमा की जा सकने वाली अधिकतम सीमा से अधिक होने के कारण परिवादीगण को परिपक्वता राशि के रूप में दी जाने वाली राशि में अतिरिक्त जमा की गई राशि पर दी जाने वाली राशि ब्याज राशि अदा नहीं की जावेगी। इस प्रकार परिवादीगण को अनावेदक से 3,41,148रू. कम प्राप्त हुए है जिसे न प्रदान कर अनावेदक के द्वारा सेवा में कमी एवं व्यावसायिक दुराचरण किया गया है। अतः परिवादीगण को अनावेदक से पी.पी.एफ. खाते में जमा की गई कुल राशि पर मय ब्याज प्राप्त होने वाली राशि से कम प्राप्त राशि के अंतर की राशि 3,41,148रू. तथा उक्त राशि पर दि.04.06.2013 से 18 प्रतिशत ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक के द्वारा परिवादीगण को सभी नियम एवं शर्तों से अवगत कराते हुए उनका पी.पी.एफ. खाता खोला गया था। पी.पी.एफ.खाता पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड अधिनियम 198 के अधीन शासित होता है, जिसकी अवधि 15 वर्ष निर्धारित है। खाता चालू करने के समय ही अधिकतम सीमा के संबंध मे परिवादिनीगण को यह बता दिया गया था कि पी.पी.एफ. खाता अधिनियम की धारा 3 के तहत जमाकर्ता द्वारा स्वयं के नाम पर या किसी अवयस्क बच्चों के नाम पर यदि एक से अधिक माइनर खाता खोला जाता है तो अधिकतम सीमा के लिए उन माईनर खातों में जमा रकम को उसके माता के खाते मे जमा रकम के साथ शामिल किया जावेगा। खाता खोलते समय दिनांक 07.01.98 को यह सीमा 60,000रू. थी जो कि दि.15.11.02 से बढ़ाकर 70,000रू. कर दी गई है आवेदिका के द्वारा अपने तथा अपनी दो अवयस्क पुत्रियों के नाम पर कुल रकम निर्धारित सीमा से अधिक जमा की गई थी। परिवादिनीगण द्वारा अपने उक्त खातों में वर्ष 98-99, 99-00, 00-01, 02-03, 03-04, 04-05, 05-06, और 06-07 मे निर्धारित सीमा से ज्यादा रकम अलग-अलग खातों में जमा की गई थी, जबकि परिवादिनीगण को नियमानुसार वर्ष 2001-02 तक उक्त खातों को मिलाकर प्रत्येक वर्ष में अधिकतम कुल 60,000रू. जमा करना था तथा वर्ष 02-03 से (15.11.2002 से) अपने उक्त खातों को मिलाकर प्रत्येक वर्ष में अधिकतम 70,000रू. जमा करना था, लेकिन परिवादिनीगण के द्वारा अपने उक्त खातों में पी.पी.एफ. एक्ट के प्रावधानों के विरूद्ध निर्धारित सीमा से अधिक रकम जमा कर दी गई, जिसके लिए परिवादिनीगण स्वयं जवाबदार है।

(5) जवाबदावा इस आशय का भी प्रस्तुत है कि पी.पी.एफ. अधिनियम की धारा 3 में दिए गए स्पष्टीकरण (8) के तहत यह स्पष्टतः प्रावधानित किया गया है कि यदि कोई खातेदार प्रत्येक वर्ष में 70,000रू. से अधिक राशि जमा करता है तो अधिक जमा की गई अतिरिक्त राशि अनियमित मानी जावेगी तथा ऐसे अतिरिक्त राशि पर कोई ब्याज भी प्राप्त नहीं होगा साथ ही अतिरिक्त राशि पर इंकम टैक्स की धारा 80 सी के तहत कोई छूट भी प्राप्त नहीं होगी। ऐसी अतिरिक्त जमा की गई राशि को संबंधित विभाग द्वारा बिना किसी ब्याज के साथ आवेदक को लौटाया जावेगा।  बाद में जमाकर्ताओं को राहत देते हुए ऐसी सीमा से अधिक जमा रकम पर बचत बैंक खाता के लिए निर्धारित ब्याज की दर से ब्याज देने का प्रावधान रखा गया है जो कि इस मामले में आवेदक को दिया गया है।  परिवादीगण के पी.पी.एफ. खाते में प्रावधानों के अंतर्गत नियत राशि की सीमा अधिक हो जाने पर अनावेदक द्वारा दिनांक 12.05.2007 एवं दि.02.11.2007 को रजिस्टर्ड डाक से लिखित सूचना पत्र परिवादीगण को प्रेषित किया गया था, जिसके उपरांत भी परिवादीगण अधिक जमा की गई राशि को प्राप्त करने नहीं आई तथा दि.04.06.2013 को आने पर उन्हें नियमानुसार उसके द्वारा अधिक जमा राशि पर बचत बैंक के लिए निर्धारित ब्याज की दर पर ब्याज देते हुए अंतिम भुगतान कर दिया गया।

(6) जवाबदावा इस आशय का भी प्रस्तुत है कि परिवादिनी क्र.1 के द्वारा अपने व अपनी पुत्री कु. निधि खण्डेलवाल एवं निशि खण्डेलवाल के नाम से कुल तीन पी.पी.एफ. खाते खोले गये थे, उन समस्त खातों को दि.07.01.1998 को चालू किये गये थे तथा उन समस्त खातों की परिपक्वता तिथि 07.01.2013 थी। परिवादिनी द्वारा खाता खोलते समय आवेदन पत्र की कंडिका-05 में यह विशिष्ट रूप से उल्लेखित है कि ’’मैं/हम केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाये गये ऐसे नियमों का पालन करने के लिए सहमत हूँ/हैं जो समय समय पर खाते को लागू हों’’। अतः परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद 5,000रू. बतौर क्षतिपूर्ति दिलाया जाकर निरस्त किया जावे। 

                                (7) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादीगण, अनावेदक से पी.पी.एफ. खाते में जमा की गई कुल राशि पर मय ब्याज प्राप्त होने वाली राशि से कम प्राप्त राशि के अंतर की राशि 3,41,148रू. तथा उक्त राशि पर दि.04.06.2013 से 18 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने की अधिकारी है?   नहीं

2.             क्या परिवादीगण, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?             नहीं

3.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?                                       आदेशानुसार परिवाद खारिज

 निष्कर्ष के आधार

                                (8) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (9) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि विवाद पी.पी.एफ. राशि से संबंधित है।  परिवादी ने व्यक्त किया है कि परिपक्वता राशि अधिक मिलनी थी, जबकि अनावेदक का तर्क है कि शासन के नियमानुसार ही परिपक्वता राशि देय थी।  हम परिवादी के तर्कों से सहमत नहीं है कि अनावेदक ने पी.पी.एफ. खाता खोलते समय नियम और शर्तें नहीं बताये थे, जबकि प्रकरण में खाता खोलते समय परिवादी द्वारा हस्ताक्षरित आवेदन एनेक्चर डी.4 से एनेक्चर डी.8 में स्पष्ट लिखा है कि केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाये गये नियम का पालन करने के लिए आवेदक सहमत है, उस स्थिति में परिवादीगण का कर्तव्य था कि वे उक्त नियम का सूक्ष्मता से अध्ययन करते।

(10) वैसे भी अनावेदक द्वारा एनेक्चर डी.2 और एनेक्चर डी.3 के दस्तावेज पेश कर यह तर्क किया गया है कि जब सीमा से अधिक राशि जमा हुई तो परिवादीगण को सूचित किया गया था, पंजीकृत सूचना भेजने का इंद्राज उक्त दस्तावेज में है, जिसके संबंध में परिवादी का तर्क है कि उक्त सूचना गलत पते पर भेजी गई थी।  उक्त दस्तावेजों के अवलोकन से स्पष्ट है कि पता आर्य नगर, दुर्ग का दिया गया है।  अतः ऐसा नहीं है कि गलत मोहल्ले का पता दिया गया है, अतः परिवादी उक्त तर्क का लाभ नहीं पा सकती है, वैसे भी परिवादी का यह कर्तव्य था कि पी.पी.एफ. खाते की कार्यवाही में संबंधित नियम पढ़ती और तदानुसार ही रकम जमा करती। उक्त नियम एनेक्चर डी.1 अनावेदक द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जिनसे भी अनावेदक का बचाव सही पाया जाता है और परिवादीगण इस बिन्दु का लाभ नहीं ले सकते है कि उसे खाता खोलने के पहले नियम और शर्तें नहीं बताई गई थी।

(11) उपरोक्त स्थिति में हम यह पाते हैं कि अनावेदक द्वारा जो भी कार्यवाही की गई है वह केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाये गये नियम के अनुसार की गई है।  अतः हम परिवादीगण के दावा को स्वीकार करने के समुचित आधार नहीं पाते हैं, फलस्वरूप परिवादीगण का दावा खारिज करते हैं।

(12) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. शुभा सिंह]
MEMBER

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