Rajasthan

Barmer

CC/174/12

DHAN SINGH - Complainant(s)

Versus

INDIA BULTS FIN. SERVICE LTD. AND OTHERS - Opp.Party(s)

DALPAT SINGH

07 Jan 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, बाड़मेर (राजस्थान)

अध्यक्ष: श्री मिथिलेश कुमार शर्मा
सदस्या: श्रीमती ममता मंगल
सदस्य : श्री अशोक कुमार सिंधी
परिवाद संख्या 174/2012

परिवादी:
    धनसिंह पुत्र स्वरूपसिंह राणा राजपूत
    निवासी सैण्टपाल स्कूल रोड़ विष्णु काॅलोनी, बाड़मेर।
    
    
        बनाम
विप्रार्थीगण :
1.    इण्डिया बुल्स फाईनेन्सियल सर्विस लिमिटेड, चैहटन चैराहा बाड़मेर (स्थानीय कार्यालय)
2.    इण्डिया बुल्स फाईनेन्सियल सर्विस लिमिटेड, इण्डिया बुल्स हाऊस 448-451 उघोग विहार, फेज ट गुड़गांव हरियाणा-122016 (कोर्पोरेश आॅफिस)
3.    इण्डिया बुल्स फाईनेन्सियल सर्विस लिमिटेड, थ्.60ए  मल्होत्रा बिल्डिंग 2दक थ्सववतए ब्वददवनहीज चसंबमए छमू क्मसीप.110001ण्  (रजिस्टर्ड आॅफिस)
उपस्थित:-
1.    परिवादी की ओर से श्री दलपतसिंह एडवोकेट।  
2.    विप्रार्थीगण की ओर से श्री मुकेश जैन एडवोकेट।

ःःनिर्णय:ः       दिनांक: 07.01.2015  

1.    परिवादी ने यह परिवाद इन तथ्यों का पेश किया है कि परिवादी ने अपने स्वामित्व के वाहन संख्या त्श्र04 ळ। 2447 पर विप्रार्थीगण से ऋण प्राप्त किया था जिससे जिला परिवहन अधिकारी बाड़मेर द्वारा रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र पर विप्रार्थी कम्पनी का हाइपोथिकेशन मार्क किया था।
2.    परिवादी की एक किश्त में चुक होने पर विप्रार्थी कम्पनी के अधिकारी द्वारा परिवादी की उक्त गाड़ी को दिनांक 18.09.2011 को बाड़मेर शहर से चुराकर ले गये और अहमदाबाद में ले जाकर जब्त किया था।
3.    परिवादी द्वारा अब विप्रार्थी कम्पनी के बकाया सम्पूर्ण ऋण राशि को जमा करवा दिया गया है तथा विप्रार्थी कम्पनी द्वारा दिनांक 28.02.2012 को सम्पूर्ण ऋण चुकता होने पर जिला परिवहन अधिकारी बाड़मेर के नाम परिवादी के उक्त वाहन के रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र के कम्पनी के हाईपोथिकेशन हटाने का एनओसी जारी करने पर जिला परिवहन अधिकारी बाड़मेर द्वारा दिनांक 02.03.2012 को विप्रार्थी कम्पनी के हाईपोथिकेशन को रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र से टर्मिनेट कर दिया है।
4.    परिवादी द्वारा विप्रार्थी कम्पनी से अपना वाहन सुपुर्द करने का निवेदन करने पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा रहा है न ही वाहन को सुपुर्द किया जा रहा है जिससे परिवादी बेरोजगार हो गया है परिवादी के आय का कोई साधन नहीं रहा है परिवादी के परिवाद को भूखे मरने की नोबत आ गई है, जिससे परिवादी को विप्रार्थी के कृत्य के कारण आर्थिक व मानसिक संताप से गुजरना पड़ रहा है जो कि उपभोक्ता सेवाओं में त्रुटि एवं कमी की तारीफ में आता है।
5.    इस मंच को क्षैत्राधिकार होने का तथ्य वर्णित करते हुए परिवाद में वर्णित अनुतोष चाहा है।
6.    विप्रार्थीगण की ओर से उक्त परिवाद के तथ्यों का जवाब पेश किया गया है जिसमें यह वर्णित है कि प्रश्नगत वाहन का स्वामित्व परिवादी ने स्वयं का होना मिथ्या रूप से दर्ज किया है, वास्तविकता यह है कि वर्ष 2010 में परिवादी ने विप्रार्थी कम्पनी को इस निवेदन के साथ सम्पर्क किया कि परिवादी एक वाहन ट्रक अशोक लीलेण्ड 2214 पर विŸाीय सुविधा प्राप्त करने हेतु इच्छुक है। विप्रार्थी कम्पनी ने परिवादी को जिन शर्ताें पर वाहन ट्रक अशोक लीलेण्ड 2214 पर विŸाीय सुविधा दी जानी थी, उसकी समस्त शर्ताें से अवगत करा दिया, परिवादी ने विप्रार्थी कम्पनी द्वारा बताई गई समस्त शर्ताें से सन्तुुष्ट हो अनुबंध करने की सहमति प्रदान की। विप्रार्थी कम्पनी ने परिवादी के उक्त प्रस्ताव से सहमत हो अनुबन्ध की पूर्ण प्रक्रिया के पश्चात् परिवादी के साथ दिनांक 31.07.2010 को अनुबंध मय मध्यस्थता अनुबंध खाता संख्या स्प्थ्ैठ।ड00068741 निष्पादित कर जिस वाहन ट्रक अशोक लीलेण्ड 2214 पर विŸाीय सुविधा उसका रजिस्ट्रेशन नम्बर त्श्र 04 ळ। 2447 इंजन नम्बर छच्भ्508839 एवं चेसिस नम्बर छच्।086504 है। उक्त अनुबंध के अन्तर्गत विप्रार्थी कम्पनी ने परिवादी को कुल 748000/- रूपये की विŸाीय सुविधा उपलब्ध कराई जिसकी अदायगी परिवादी को अनुबन्धोनुसार मय ब्याज 24493/- रूपये की 47 नियमित मासिक किश्तों में करनी थी। परिवादी ने इस बात पर भी स्पष्ट रूप से अनुबंध के जरिये सहमति दी कि फाईनेंस राशि अनुबंध के अन्तर्गत सभी प्रकार के दायित्वों सहित अदा करने के पश्चात् ही उक्त वाहन का स्वामी होगा। दूसरे शब्दों में परिवादी को केवल मात्र वाहन का उपयोग करने का अधिकार तभी होगा जब परिवादी नियमत रूप से अनुबंध की अन्तर्गत फाईनेंस राशि अदा करता रहे तथा अन्य समस्त शर्तांे की नियमित रूप से पालना करता रहे।
7.    रिसीवर द्वारा दिनांक 19.09.2011 को प्रश्नगत वाहन आधिपत्य में लिये जाने के पश्चात् परिवादी द्वारा कोई भी राशि विप्रार्थी कम्पनी के कार्यालय में जमा नहीं कराई गई है, यदि कराई गई होती तो परिवादी जमा राशि की रसीद प्रस्तुत करता। उक्त मद में परिवादी चालबाजी से पेश आ रहा है। वास्तविकता यह है कि पंच द्वारा पारित पंचाट दिनांक 29.11.2011 के तहत विप्रार्थी कम्पनी द्वारा प्रश्नगत वाहन का आधिपत्य रिसीवर से प्राप्त कर पंचाट की रूप में प्रश्नगत वाहन को श्री मूसा भाई को 8,10,000/- रूपये में बेचान कर दिया गया। वाहन के क्रेता द्वारा विक्रय मूल्य के पेटे दिनांक 30.01.2012 को 1,00,000/- रूपये एवं दिनांक 06.02.2012 को 7,10,000/- रूपये कम्पनी में जमा करा दिये गये। अतः सम्पूर्ण विक्रय प्रतिफल प्राप्त हो जाने पर विप्रार्थी कम्पनी द्वारा प्रश्नगत वाहन का आधिपत्य भी वाहन के क्रेता श्री मूसा भाई को दिनांक 08.02.2012 को प्रदान कर दिया गया है। चूंकि परिवादी द्वारा अदायगी में चूक कारित कर अनुबंध की शर्ताें को भंग कर दिया गया एवं अनुबंध टर्मिनेट हो गया। विप्रार्थी कम्पनी द्वारा जिला परिवहन कार्यालय के नाम का एक पत्र बाबत्् एच.पी. एन टर्मिनेशन मूसा भाई (वाहन के क्रेता) के हक में जारी किया गया ताकि प्रश्नगत वाहन के पंजीयन प्रमाण पत्र से विप्रार्थी कम्पनी का एच.पी. एन. टर्मिनेशन हो सके एवं वाहन का पंजीयन श्री मूसा भाई के नाम से पंजीयन कार्यालय में हो सके परिवादी उक्त अनुचित फायदा उठाकर मिथ्या कहानी श्रीमान् के समक्ष डालकर श्रीमान् मंच को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है, साथ ही विप्रार्थी ने यह प्रार्थना की है कि परिवादी का परिवाद खारिज किया जावे।
8.    उपरोक्त तथ्यों पर दोनों पक्षों को सुना गया। पत्रावली का अवलोकन किया।
9.    विद्धवान अभिभाषक परिवादी की दलील है कि जो तथ्य परिवाद में वर्णित किये गये है उनका समर्थन दस्तावेजात व शपथ पत्र से होता है और परिवाद स्वीकार करने की दलील दी।  
10.    विद्धवान अभिभाषक विप्रार्थीगण की दलील है कि जो तथ्य जवाब में वर्णित किये गये है उनके समर्थन में दस्तावेजात प्रस्तुत किये गये है ओर इस आधार पर परिवाद खारिज करने की दलील दी तथा अपनी दलीलों के समर्थन में अनेको नजीरे प्रस्तुत की है। जिनमें कुछ का विवेचन जवाब में भी है। निम्न प्रमुख है।
;पद्ध    ज्ीम डंदंहपदह क्पतमबजवतए व्तपग ।नजव थ्पदंदबम ;प्दकपंद्ध स्जक टे ैीतमम श्रंहउपज ैपदही - व्तेण् 2006;1द्ध ैनचतमउम 708ण्
;पपद्ध    मैनेजर एस.टी. मैरीज हायर परचेज प्रा.लि. बनाम एन.ए.जोशे प्प्प् 1995 ब्च्श्र 58 ;छब्द्धण्  
11.    उपरोक्त दलीलों के संदर्भ में हमने पत्रावली का अध्ययन किया तो पाया कि परिवादी की ओर से जो अनुतोष चाहा गया है उसमें वाहन संख्या त्श्र.04.ळ।.2447 को दिलाने के संबंध में है जबकि विप्रार्थीगण का कहना यह है कि परिवादी ने 2010 में विप्रार्थी कम्पनी से विŸाीय सुविधाऐं प्राप्त कर अशोक लीलेण्ड ट्रक क्रय किया था और अनुबंध निष्पादित किये थे परिवादी को 7,48,000/- रूपये की विŸाीय सुविधा प्रदान की गयी थी जो उसे मय ब्याज 47 मासिक किश्तों में अदा करने थे। परिवदी द्वारा ऋण राशि की अदायगी नहीं की गयी, इस कारण ऋण शर्ताें का उल्लघंन करने पर उक्त ट्रक कम्पनी द्वारा अपने कब्जे में लिया गया, परिवादी ने एक अन्य ऋण खाता रविन्द्रसिंह के नाम से था ने भी गारण्टी दी थी, उसमें भी ऋण की अदायगी नहीं की गयी, अन्त में फाईनेश कम्पनी द्वारा कारित किये गये लियन के आधार पर ट्रक संख्या त्श्र.04.ळ।.2447 को फाईनेस कम्पनी द्वारा कब्जे में लेकर उक्त ट्रक का विक्रय कर दिया गया तथा जिला न्यायाधीश महानगर, जयपुर के समक्ष धारा 9 मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया जो अपर जिला न्यायाधीश संख्या 9 द्वारा निस्तारित किया जाकर प्रश्नगत वाहन रिसीवर भूपेन्द्रसिंह राजपूत को दिनांक 19.09.2011 को सम्हलाया गया तथा आरबीट्रेशन कार्यवाही में 29.11.2011 को पंचाट पारित करते हुए विप्रार्थी कम्पनी के आधिपत्य में प्रश्नगत वाहन दिया गया तथा रिसीवर ने उक्त वाहन विप्रार्थी कम्पनी को सम्हला दिया जिससे विप्रार्थी कम्पनी वाहन की मालिक हो गयी और उक्त वाहन 8,10,000/- में मूसा भाई को विक्रय कर दिया गया, जिसने सम्पूर्ण राशि कम्पनी में जमा करवा दी गई।
12.    उपरोक्त तथ्यों के संदर्भ में हमने वैधानिक दृष्टि से प्रस्तुत नजीरों का अध्ययन किया तो पाया कि 2006 ;1द्ध ैनचतमउम 708 की नजीर में अनुबंध के आधार पर वाहन पर कब्जा प्राप्त करने का ऋणदाता को अधिकारी माना है इसी प्रकार प्प्प् 1995 ब्च्श्र 58 छब् की नजीर में फाईनेसर द्वारा किश्तों की अदायगी में व्यतिक्रम करने पर वाहन का आधिपत्य लेने पर सेवादोष नहीं माना है, इसी प्रकार अन्य नजीरों में भी विŸाीय सुविधा प्रदान करने वाली कम्पनी को वाहन के स्वामित्व के संबंध में अधिकारी माना है।
13.    विचाराधीन प्रकरण में विप्रार्थी कम्पनी जो कि प्रश्नगत वाहन की फाईनेसर कम्पनी है ने विधिक प्रक्रिया अपना कर अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश संख्या 9 महानगर जयपुर के आदेश अनुसार वाहन को रिसीवर के कब्जे में दिया तथा पंच निर्णय के अनुसार प्रश्नगत वाहन का विक्रय किया गया जिसका नवीन क्रेता सद्भावी क्रेता है, अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश संख्या 9 महानगर, जयपुर तथा पंच निर्णय की कार्यवाही के आदेशों की अपील का प्रावधान है जिसे परविादी द्वारा नहीं अपनाया गया है।
14.    परिवादी की ओर से जो तथ्य दर्शाये गये है उनमें कोई सेवादोष का प्रकरण निहित नहीं है बल्कि ऋण की अदायगी व ऋण के एवज में प्रश्नगत वाहन की जब्ती व विक्रय का मामला है, परिवादी को कोई अनुतोष दिया जाना उचित नहीं है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
ःः आदेष:ः
अतः परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करेगें।


(श्रीमति ममता मंगल)        (श्री अशोककुमार सिंधी)    (श्री मिथिलेशकुमार शर्मा)
        सदस्या                  सदस्य                      अध्यक्ष

 

निर्णय व आदेश आज दिनांक 07.01.2015 को खुले मंच पर लिखवाया जाकर सुनाया गया।  

 

(श्रीमति ममता मंगल)        (श्री अशोककुमार सिंधी)    (श्री मिथिलेशकुमार शर्मा)
   सदस्या                      सदस्य                अध्यक्ष

 

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