// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम,बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक CC/183/2013
प्रस्तुति दिनांक 21/10/2013
श्रवण गिर गोस्वामी पिता स्व. श्री तीजगिर गोस्वामी उम्र 58
निवासी ग्राम सल्फा, तह. पथरिया
जिला मुंगेली छ.ग. ......आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
प्रबंधक,
इंडिया बुल्स फाइनेंस सर्विसेस लिमिटेड
शिव टाकिज चौक कृष्णा काम्प्लेक्स कोटक
महिंद्रा बैंक के ऊपर (चौथा माला) कमरा नं.4/3
बिलासपुर छ.ग. .........अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 27/06/2015 को पारित)
१. आवेदक श्रवण गिर गोस्वामी ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक फाइनेंस कंपनी के विरूद्ध सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक से वाहन क्रमांक सी.जी. 10-2501 के संबंध में एन.ओ.सी. तथा क्षतिपूर्ति दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक दिनांक 27.11.2011 को अनावेदक कंपनी से 5,00,000/-रू. की ऋण सुविधा प्राप्त कर अपने जीविकोपार्जन के लिए वाहन क्रमांक सी.जी. 10-2501 क्रय किया था, जिसका ऋण भुगतान 44 किश्तों में दिनांक 01.08.2015 तक किया जाना था । दिनांक 20.11.2011 को आवेदक, अनावेदक से ऋण अदायगी हेतु स्टेटमेंट निकलवाया, जिसके अनुसार आवेदक के खाते में कुल देय राशि 4,48,664/-रू. बकाया था, जिस राशि का उसने उसी दिनांक सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का डी.डी. अनावेदक को प्रदान किया और एन.ओ.सी. मांग किया, जिसके संबंध में उसे अनावेदक द्वारा 15 दिन बाद एन.ओ.सी. मिलने की जानकारी दी गई। आवेदक एन.ओ.सी. के लिए अनावेदक से बारबार संपर्क किया, किंतु हर हमेशा उसके साथ टालमटोल किया गया, तब आवेदक मई 2013 में अपने अधिवक्ता जरिए अनावेदक को विधिक नोटिस भेजा, किंतु उसके बाद भी अनावेदक द्वारा उसे कोई जवाब नहीं दिया गया और न ही एन.ओ.सी. प्रदान की गई, अत: उसने यह अभिकथित करते हुए कि वाहन के कागजात में अनावेदक संस्थान का हाईपोथिकेशन दर्ज होने से वह उक्त वाहन का स्वतंत्र रूप से उपयोग नहीं कर पा रहा है, जिसके कारण उसे मानसिक एवं आर्थिक क्षति का सामना करना पड रहा है, उसने अनावेदक के इस अनुचित व्यापार प्रथा के लिए सेवा में कमी के आधार पर परिवाद पेश करते हुए उससे वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया है।
3. अनावेदक की ओर से जवाब पेश कर परिवाद का विरोध इस आधार पर किया है कि आवेदक सही तथ्यों को छिपाते हुए परिवाद पेश किया है, फलस्वरूप उसका परिवाद चलने योग्य नहीं । यह भी कहा गया है कि आवेदक व्यवसायिक प्रयोजन के लिए प्रश्नाधीन वाहन को क्रय किया है, फलस्वरूप उसकी स्थिति उपभोक्ता की नहीं होने से भी परिवाद प्रचलन योग्य नहीं है । यह भी कहा गया है कि आवेदक उनके संस्थान में देवीशंकर तिवारी के ऋण खाते में गारंटर है, जिस ऋण के संयुक्त भुगतान का दायित्व ऋणी के साथ आवेदक का भी है तथा ऋणी देवीशंकर तिवारी के खाते में ऋण बकाया है फलस्वरूप आवेदक एन0ओ0सी0 प्राप्त करने का अधिकारी नहीं । उपरोक्त आधार पर अनावेदक आवेदक का परिवाद निरस्त किये जाने का निवेदन किया है ।
4. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
5. देखना यह है कि क्या आवेदक, अनावेदक से वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है \
सकारण निष्कर्ष
6. इस संबंध में कोई विवाद नहीं कि आवेदक अनावेदक कंपनी से ऋण प्राप्त कर प्रश्नाधीन वाहन क्रय किया था, जिसके ऋण का भुगतान उसके द्वारा अनावेदक को कर दिया गया है । यह भी विवादित नहीं है कि अनावेदक द्वारा ऋण भुगतान उपरांत आवेदक को एन0ओ0सी0 प्रदान नहीं किया गया है ।
7. आवेदक का कथन है कि, उसके द्वारा ऋण भुगतान के बाद भी अनावेदक संस्थान द्वारा एन0ओ0सी0 प्रदान नहीं कर कदाचरणयुक्त व्यवसाय किया गया है, जिसके कारण वह वाहन के कागजात में अनावेदक संस्थान का हाइपोथिकेशन दर्ज होने से वह उक्त वाहन का स्वतंत्र रूप से उपयोग नहीं कर पा रहा है, जिसके कारण उसे मानसिक व आर्थिक क्षति का सामना करना पड रहा है । अत: उसने अनावेदक के इस अनुचित कृत्य के लिए सेवा में कमी के आधार पर यह परिवाद पेश करना बताया है ।
8. इसके विपरीत अनावेदक फाइनेंस कंपनी का कथन है कि आवेदक उनके बैंक में ऋणी देवीशंकर तिवारी का गारंटर है, जिसका ऋण खाता अनियमित होने से ऋण भुगतान का संयुक्त दायित्व ऋणी के साथ गारंटर के नाते आवेदक का भी है, जिसके कारण ही उसे एन0ओ0सी0 प्रदान नहीं किया गया । साथ ही यह भी कहा गया है कि आवेदक द्वारा वाहन व्यावसायिक उदेश्य से लिया गया था। अत: उसकी स्थिति अधिनियम के तहत उपभोक्ता की भी नहीं । फलस्वरूप इस आधार पर भी उसका परिवाद चलने योग्य नहीं है।
9. आवेदक यद्यपि अपने परिवाद में यह बताया है कि वह अपने जीवकोपार्जन के उदेश्य से प्रश्नाधीन वाहन को क्रय किया था, किंतु यह स्पष्ट नहीं किया है वह जीवकोपार्जन के लिए उक्त वाहन को स्वयं चला रहा है अथवा चालक के जरिये । साथ ही उसने इस संबंध में अनावेदक के कथन का कोई विरोध भी नहीं किया है कि आवेदक ट्रांसपोटर है, जिसके पास अन्य वाहन भी है और वह लाभ के लिए उन वाहनों का उपयोग करता है । फलस्वरूप इस संबंध में खंडन एवं साक्ष्य के अभाव में यही स्पष्ट होता है कि आवेदक व्यवसायिक उदेश्य से अनावेदक से ऋण प्राप्त कर प्रश्नाधीन वाहन क्रय किया था। अत: उसकी स्थिति अधिनियम के तहत उपभोक्ता का होना, नहीं पाया जाता। फलस्वरूप उपभोक्ता के नाते अधिनियम के तहत उसका परिवाद चलने योग्य नहीं माना जा सकता।
10. इसके अलावा अनावेदक के कथन यह दर्शित होता है कि आवेदक अनावेदक संस्थान में ही एक अन्य ऋणी देवीशंकर तिवारी का गारंटर बना है जिसका ऋण अनावेदक बैंक में बकाया है, जिसके भुगतान का संयुक्त दायित्व ऋणी के साथ गारंटर होने के नाते अनावेदक का भी है । ऐसी स्थिति में अनावेदक को आवेदक के स्वयं के खाते का ऋण भुगतान होने के आधार पर ही एन0ओ0सी0 प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता और न ही यह माना जा सकता कि उसके द्वारा आवेदक को एन.ओ.सी. प्रदान न कर व्यवसायिक कदाचरण करते हुए सेवा में कोई कमी की गई है ।
11. उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आवेदक का परिवाद अनावेदक के विरूद्ध स्वीकार किये जाने योग्य नहीं, अत: निरस्त किया जाता है ।
12. उभयपक्ष अपना- अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे।
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य