जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम कानपुर नगर
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह..............................................सदस्य
उपभोक्ता परिवाद संख्याः-314/2008
विवके त्रिपाठी पुत्र श्री प्रियव्रत त्रिपाठी निवासी मकान नं0-107/182 ए जवाहर नगर, कानपुर नगर।
................परिवादी
बनाम
1. मेसर्स इण्डिया बुल्स सिक्योरिटीज लि0 स्थित 509 कृश्णा टावर सिविल लाइन कानपुर नगर द्वारा षाखा प्रबन्धक।
2. मेसर्स इण्डिया बुल्स सिक्योरिटीज लि0 एफ-60 द्वितीय तल मल्होत्रा बिल्डिंग कैनाट पैलेस न्यू दिल्ली-110001
3. षाखा प्रबन्धक, पंजाब नेषनल बैंक सिविल लाइन कानपुर नगर।
..............विपक्षीगण
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 03.05.2008
निर्णय की तिथिः 11.01.2016
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादी को विपक्षीगण से आर्थिक क्षति रू0 30,000.00 एवं मानसिक, षारीरिक क्षति के रूप में रू0 50,000.00 कुल रू0 80,000.00 दिलाया जाये तथा अन्य उपषम जो न्यायालय उचित समझे दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी विपक्षी सं0-1 के यहां षेयर की खरीद/विक्रय का कार्य कोड नं0-के.एन.-2515 के तहत कारोबार करता चला आ रहा है। परिवादी द्वारा, विपक्षी के द्वारा दिनांक 22.01.08 को यह सूचित किया गया कि मार्जिन मनी कम हो जाने के कारण आप रू0 16,500.00 का चेक दे देवे वरना कारोबार संभव नहीं होगा। तब परिवादी द्वारा, विपक्षी को सी.वी.एस. चेक नं0-675063 दिनांकित 22.01.08 दे दी गयी, इसके बावजूद परिवादी को षेयर खरीदने की अनुमति नहीं दी गयी और यह कह दिया गया कि ज्यादा संख्या में चेक आ गये हैं। इसके अलावा परिवादी का माल/षेयर भी काट दिये गये। दिनांक 23.01.08 को परिवादी को काटे हुए सौदों पर
..........2
...2...
यह कह कर खरीदने से मना कर दिया कि चेक भुगतान के उपरान्त सौदे किए जायेंगे। परिवादी ने दिनांक 23.01.08 को उपरोक्त चेक सं0-675063 के अंगेस्ट खरीदे जायेंगे, किन्तु विपक्षी के कहने पर उक्त सौदे तुरन्त काट दिये गये। विपक्षी सं0-1 ने दिनांक 23.01.08 को विपक्षी सं0-3 के मेरे आदेषक की चेक भुगतान हेतु दाखिल की, परन्तु विपक्षी सं0-3 ने भुगतान न कर मेरी चेक विपक्षी सं0-1 को वापस कर दी। जबकि परिवादी के खाते में पर्याप्त धनराषि थी। इससे परिवादी को कारोबार में अपूर्णनीय क्षति रू0 30,000.00 की हुई। दिनांक 25.01.08 को विपक्षी सं0-1 ने सूचित किया कि चेक का भुगतान हो गया है तथा दिनांक 23.01.08 को हेड आफिस अर्थात विपक्षी सं0-2 से खरीदा गया माल, वह भी काट दिया गया। परिवादी दिनांक 26/27.01.08 को अवकाष पर बाहर गया था, आफिस नहीं गया था और फिर दिनांक 28.01.08 को माल काट दिया और न ही फोन द्वारा सूचित किया गया। दिनांक 29.01.08 को विपक्षी सं0-1 ने चेक का भुगतान प्राप्त कर लिया। इसके बावजूद परिवादी का सारा माल काट दिया गया तथा फोन नं0-0512-3018144 द्वारा सूचना विपक्षी सं0-1 ने दी कि आपका चेक डिसआनर हो गया है, इसलिए आपका सौदा काटा जा रहा है, इसलिए परिवादी को अत्यन्त मानसिक व आर्थिक रू0 30,000.00 की क्षति हुई और इससे परिवादी को मानसिक क्षति रू0 50,000.00 हुई। अतः विवष होकर परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों का खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। क्योंकि परिवादी द्वारा प्रष्नगत षेयर का व्यापार अपने वाणिज्यिक लाभ के लिए किया गया है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद मात्र विपक्षीगण को तंग व परेषान करने की नियत से आधारहीन तथ्यों पर प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी कंपनी ैम्ठप् ;ैमबनतपजपमे ंदक म्गबींदहम ठवंतक व िप्दकपं ।बज 1992द्ध के अंतर्गत कार्य करती है। उक्त अधिनियम के अंतर्गत किसी भी प्रकार का विवाद होने पर विभिन्न मंच यथा आर्बीट्रेषन, ग्रीवेन्सेस/ओंबस्डमैन बनाये गये हैं। परिवादी को उक्त
.........3
...3...
विभिन्न मंचों में जाना चाहिए था। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपरोक्त कारणों से प्रस्तुत फोरम द्वारा क्षेत्राधिकार के अभाव में विनिष्चित नहीं किया जा सकता। डब्। ;डमउइमत ब्वदेजपजनमदज ।हतममउमदजद्ध के अनुसार प्रस्तुत प्रकरण को छैम् ;क्पेचनजम त्मेवसनजपवद डमबींदपेउद्ध द्वारा तय किया जाना चाहिए। परिवादी को कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ। क्योंकि परिवादी द्वारा स्वयं ही डब्। के क्लाॅज 8.2 के अनुसार अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं की गयी है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद दुर्भावनाग्रस्त मंषा से प्रस्तुत किया गया है। बाजार में अचानक आयी गिरावट के कारण परिवादी सहित अन्य ग्राहको द्वारा समय से भुगतान करने के अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं किया जा सका। प्रस्तुत परिवाद योजित करके परिवादी द्वारा विधि का बेजा इस्तेमाल किया गया है। विपक्षीगण द्वारा परिवादी का डी-मैट खाता अपने कानपुर ब्रांच आफिस में खोले जाने व उक्त खाते के द्वारा ट्रेडिंग किया जाना स्वीकार किया गया है। विपक्षी उत्तरदाता द्वारा यह भी स्वीकार किया गया है। दिनांक 22.01.08 को रू0 16,500.00 और जमा करने के लिए परिवादी से कहा गया था। परिवादी द्वारा चेक नं0-675063 रू0 16500.00 की जमा की गयी, किन्तु विपक्षी सं0-3 बैंक, सिविल लाइन कानपुर द्वारा चेक, पर्याप्त धन परिवादी के खाते में न होने के कारण हस्तांतरित नहीं की गयी। वास्तव में परिवादी के खाते में आवष्यक धनराषि दिनांक 21.01.08 को ही होना अनिवार्य थी। परिवादी आवष्यक धनराषि अपने खाते में समय से जमा करने में असफल रहा। अतः विपक्षी द्वारा छैम्ए ठैम् आदि के नियमों के अंतर्गत तथा उभयपक्षों के मध्य निश्पादित इकरारनामे की षर्तों के अनुसार कार्यवाही की गयी। विपक्षी कंपनी द्वारा सदस्य संघटक इकरारनामे की धारा 2.1 के अनुसार परिवादी के साथ उचित कार्यवाही की गयी। परिवादी द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि प्रष्नगत धनराषि उसके सम्बन्धित खाते में हस्तांतरित नहीं हुई है। इसलिए परिवादी का यह आरोप कि विपक्षी द्वारा परिवादी द्वारा जारी विभिन्न चेक प्राप्त की गयी है। मात्र परिवादी द्वारा अपनी कमी पर पर्दा डालने के लिए कहा गया है। परिवादी प्रस्तुत परिवाद पत्र दूशित मंषा से योजित करके उत्तरदायित्व विपक्षी कंपनी पर डालना
............4
...4...
चाहता है। परिवादी को किसी प्रकार की कोई मानसिक अथवा षारीरिक क्षति कारित नहीं हुई है। अतः उपरोक्त कारणों से परिवादी का परिवाद खारिज किया जाये।
4. विपक्षी सं0-3 की ओर से आपत्ति के साथ जवाब दावा प्रस्तुत करके परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में अंकित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है तथा अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवादी का विपक्षी बैंक, सिविल लाइन कानपुर में खाता नहीं है, बल्कि परिवादी का खाता जवाहर नगर षाखा में है। बैंक सी.वी.एस. होने की वजह से परिवादी को विपक्षी बैंक ने सही सेवा प्रदान की है। परिवादी का परिवाद आवष्यक पक्षकार, षाखा जवाहर नगर को न बनाये जाने के दोश से खारिज किये जाने योग्य है। परिवादी के खाता की सत्यापित प्रति दाखिल की गयी है। विपक्षी उत्तरदाता द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। विपक्षी उत्तरदाता को गलत पक्षकार बनाया गया है।
5. परिवादी द्वारा जवाबुल जवाब प्रस्तुत करके विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत किये गये जवाब दावा में उल्लिखित तथ्यों का खण्डन किया गया है और स्वयं के द्वारा परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों की पुनः पुश्टि की गयी है।
परिवादी की ओर से दाखिल किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
6. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वंय का षपथपत्र दिनांकित 01.04.08, 17.06.11, 25.10.12, 26.02.13 एवं 13.03.13 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में विपक्षी से किये गये सौदों की 8 प्रतियां, नोटिस की प्रति, रजिस्ट्री रसीद की प्रति, माल बिक्री की 5 प्रतियां, परिवादी द्वारा विपक्षी सं0-3 को प्रेशित पत्र की प्रति, चेक सं0-675063 बैंक में जमा करने की प्राप्ति रसीद की प्रति तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से दाखिल किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
7. विपक्षी सं0-1 व 2 ने अपने कथन के समर्थन में कोई षपथपत्र दाखिल नहीं किया है। लेकिन अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में इकरारनामे की
.........5
...5...
नियम व षर्तों की प्रति, अथार्टी लेटर की प्रति तथा समाचार पत्रों में प्रकाषित सूचना की प्रति दाखिल किया है।
विपक्षी सं0-3 की ओर से दाखिल किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
8. विपक्षी सं0-3 ने अपने कथन के समर्थन में सुरेन्द्र चन्द्र श्रीवास्तव वरिश्ठ प्रबन्धक का षपथपत्र दिनांकित 27.05.09 दाखिल किया है।
ःःनिष्कर्शःः
9. बहस के समय विपक्षी सं0-3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। अतः फोरम द्वारा परिवादी तथा विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं परिवादी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
उभयपक्षों की ओर से षपथपत्र तथा प्रतिषपथपत्र व अन्य प्रलेखीय साक्ष्य, जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है-दाखिल किये गये हैं, जिनमें से, आगे निश्कर्श में यथा उपयोगी साक्ष्यों का उल्लेख किया जायेगा।
उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा स्वयं ही यह स्वीकार किया गया है कि उसके द्वारा प्रष्नगत षेयर खरीद, विक्रय का कार्य व्यवसाय के रूप में किया जाता रहा हैं परिवादी षेयर क्रय-विक्रय का कारोबार करता रहा है। विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर ये तर्क भी प्रस्तुत किये गये हैं कि चूॅकि परिवादी विपक्षी सं0-1 व 2 के साथ प्रष्नगत षेयर का व्यापार अपने वाणिज्यिक लाभ के लिए कर रहा था, इसलिए परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और इसी आधार पर परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
उपरोक्त विशय पर उपरोक्तानुसार उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के परिषीलन से विदित होता है कि स्वीकार्य रूप से परिवादी विपक्षी सं0-1 के साथ प्रष्नगत षेयर का क्रय-विक्रय अपने वाणिज्यिक लाभ के लिए कर रहा था। अतः फोरम इस मत का है कि परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-2 (1) (डी) के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।
...6...
10. विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से एक तर्क यह किया गया है कि ैम्ठप् ;ैमबनतपजपमे ंदक म्गबींदहम ठवंतक व िप्दकपं ।बज 1992द्ध के अंतर्गत परिवादी को प्रस्तुत फोरम में परिवाद योजित न करके ।तइपजतंजपवदए ळतपमअंदबमेध् व्उइनकेउंद जैसे विभिन्न मंच में जाना चाहिए था। किन्तु फोरम का यह मत है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक स्वतंत्र कल्याणकारी अधिनियम है। इस अधिनियम के अंतर्गत परिवादी को यह स्वतंत्रता प्राप्त है कि, वह चाहे तो अपना परिवाद उपभोक्ता फोरम में योजित कर सकता है, जब तक कि विषिश्ट रूप से किसी अधिनियम के द्वारा उपभोक्ता फोरम का क्षेत्राधिकार बाधित न किया गया हो। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत फोरम में परिवाद, गलत योजित किया गया है, विपक्षी के इस तर्क से, फोरम सहमत नहीं है।
11. विपक्षीगण की ओर से एक तर्क यह किया गया है कि परिवादी द्वारा चेक सं0-675063 बावत रू0 16500.00 जमा की गयी, किन्तु विपक्षी सं0-3 बैंक सिविल लाइन कानुपर द्वारा परिवादी के खाते में पर्याप्त धनराषि न होने के कारण चेक में अंकित धनराषि हस्तांतरित नहीं की गयी। जबकि परिवादी के खाते में दिनांक 21.01.08 को निष्चित धनराषि जमा होना आवष्यक था। फलस्वरूप उभयपक्षों के मध्य निश्पादित इकरारनामे की षर्तों के अनुसार विपक्षी सं0-1 व 2 द्वारा कार्यवाही करते हुए वांछित सौदा नहीं किया गया है। इस सम्बन्ध में पत्रावली के अवलोकन से विदित होता है कि स्वयं परिवादी द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि प्रष्नगत धनराषि समय से परिवादी के सम्बन्धित खाते में विपक्षी सं0-3 द्वारा हस्तांतरित नहीं की गयी थी। अतः फोरम इस मत का है कि प्रष्नगत षेयर खरीदने की अनुमति न देकर विपक्षी सं0-1 व 2 द्वारा कोई अवैधानिक कार्यवाही नहीं की गयी है।
12. विपक्षी सं0-3 की ओर से एक कथन अपने जवाब दावा में यह प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी का खाता विपक्षी सं0-3 सिविल लाइन कानपुर ब्रांच में नहीं है, परिवादी का खाता जवाहर नगर षाखा में है। परिवादी का खाता सी.वी.एस. होने के कारण विपक्षी सं0-3 द्वारा परिवादी को सही सेवा प्रदान की गयी है। परिवादी द्वारा परिवाद में आवष्यक पक्षकार, षाखा जवाहर नगर को न बनाये जाने के दोश से दूशित है।
..........7
...7...
पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि विपक्षी सं0-3 के द्वारा परिवादी के खाते की सत्यापित प्रति दाखिल की गयी है, जिससे यह स्पश्ट होता है कि परिवादी का खाता विपक्षी सं0-3 के यहां न होकर जवाहर नगर षाखा में है। ऐसी दषा में फोरम इस मत का है कि परिवादी विपक्षी सं0-3 के विरूद्ध कोई उपषम प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
उपरोक्तानुसार, उपरोक्त प्रस्तरों में दिये गये निश्कर्श के आधार पर और विषेशतः प्रस्तर नं0-9, 11 एवं 12 में दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
:ःःआदेषःःः
13. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध खारिज किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर। फोरम कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
(पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर। फोरम कानपुर नगर।