राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ
परिवाद संख्या 126 सन 2010
संजय चन्द्र अग्रवाल सी-8, एच- पार्क महानगर, लखनऊ ।
.............परिवादी
बनाम
India Bulls Securities Ltd. Having its Regd. Office At; F-60, II Floor, Malhotra building Connaught place, New Delhi- 110001 And Its branch office at; 226 Sahara shopping centre, Faizabad Road, Lucknow Through its Managing Director/Branch Manager
.................विपक्षी
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 संजय कुमार, सदस्य।
विद्वान अधिवक्ता परिवादी : श्री राजेश चडढा ।
विद्वान अधिवक्ता विपक्षी : श्री आर0के0 गुप्ता ।
दिनांक: 01-12-2014
माननीय श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
यह परिवाद, परिवादी संजय चन्द्र अग्रवाल द्वारा कुल 48,56,702.05 रू0 क्षतिपूर्ति हेतु प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद के उपबन्धों में कहा गया है कि विपक्षी कम्पनी शेयर ब्रोकिंग के व्यवसाय में संलग्न है और ब्रोकरेज के बदले शेयर का क्रय-बिक्रय का व्यवसाय करती है। विपक्षी कम्पनी ने परिवादी से शेयर के क्रय-बिक्रय के संबंध में सम्पर्क किया। परिवादी ने अपने शेयर के व्यवसाय हेतु विपक्षी के यहा DMAT A/C खोला। परिवादी का अभिकथन है कि विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी और स्टाक एक्सचेंज के नियमों के अनुसार परिवादी के शेयरों की डीलिंग नहीं की गयी जिससे विपक्षी की असावधानी एवं सेवा में कमी के कारण परिवादी को क्रमश: 07,43,571.40 रू0 एवं 24,42,510.65 रू0 कुल 31,86,082.05 रू0 की आर्थिक क्षति हुयी। उक्त धनराशि पर ब्याज मिलाकर कुल क्षति 48,56,702.05 रू0 बनती है। परिवादी ने उक्त धनराशि पर वाद के दौरान एवं भुगतान होने तक 18 प्रतिशत ब्याज की भी याचना की है तथा परिवाद व्यय के रूप में भी एक लाख रू0 की याचना की है।
विपक्षी की ओर से अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह कहा गया है कि परिवादी के निर्देशानुसार ही शेयरों की डीलिंग की गयी है तथा यह प्रकरण व्यवसायिक प्रकरण का होने के कारण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत नहीं आता है।
उभय पक्षों द्वारा अपना- अपना साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस सुन ली है एवं अभिलेख का ध्यानपूर्ण परिशीलन कर लिया है।
सर्वप्रथम हमारे समक्ष दलील क्षेत्राधिकार को लेकर उठाई गयी है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने इस संबंध में सम्मानित विधिक दृष्टांत हमारे समक्ष प्रस्तुत किए हैं I
(2014) CPJ 576 (NC स्टील सिटी सिक्यूरिटीज लि0 बनाम जी0पी0 रमेश एवं अन्य में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा है कि उक्त धारा के अधीन यदि कोई व्यक्ति प्रतिफल के बदले कोई वस्तु खरीदता है अथवा कोई सेवा लेता है किन्तु यदि वह ''कामर्शियल परपज'' के लिए है तो संबंधित व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। उक्त सम्मानित उद्धरण भी शेयर डीलिंग से संबंधित है जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिव्यक्त किया है:-
'' 13 Since, respondents are trading regularly in the share business which is commercial activity, under these circumstances, respondents would not fall under the definition of consumer's as per the Act. Moreover, regular trading in the sale and purchase of shares is as purely commercial activity and the only motive is to earn profits. Therefore, this activity being purely commercial one, is not covered under the provisions of the Act. ''
प्रस्तुत प्रकरण में भी हम यह पाते हैं कि परिवादी ने शेयरों के क्रय-बिक्रय के संबंध में विपक्षी से सम्पर्क किया है और उसका उक्त व्यवसाय लार्ज स्केल पर है जोकि स्वत: व्यवसाय की सीमा में आता है। परिवादी के परिवाद के सम्पूर्ण उपबन्धों से यह आभाषित नही होता है कि परिवादी अपनी जीविका हेतु शेयरों के क्रय-बिक्रय का व्यवसाय करता है।
परिवाद के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि परिवादी ने व्यवसाय की सुविधा हेतु दो DMAT A/C खोले हैं जोकि व्यवसायिक व्यवहार को ही इंगित करते है। इस संदर्भ में Special Leave to Appeal (civil) No 5401 of 2013, titled Ganapathi Parmeshwar Kashi & Arn. Vs Bank of India & Anr. में DMAT A/C के संबंध में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्त किया गया अभिमत भी प्रासंगिक है :-
'' The concurrent finding recorded by the State Consumer Disputes Redressal Commission, Maharashtra and the National Consumer Disputer Redressal commission that the petitioners cannot be treated as consumer within the meaning of Section 2(d) of the consumer Protection Act, 1986 is based on analysis of the pleadings filed by the parties. The DMAT Account was opened by the petitioners purely for commercial transactions. Therefore, they were rightly not treated as consumer so as to entitle them to claim compensation by filing complaint under the 1986 Act ''
यह उल्लेखनीय है कि परिवादी ने स्वयं स्वीकार किया है कि DMAT A/C खोला है। जहां तक शेयरों की खरीद फरोख्त एवं उससे अर्जित लाभ का प्रश्न है, यह एक तकनीकी विषय है और किसी भी उपभोक्ता फोरम से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि प्रत्येक शेयर के क्रय बिक्रय के प्रत्येक स्तर पर लाभ-हानि का निर्धारण कर सके। इस संबंध में I (2014) CPJ 485 (NC) नागराज नारायण कटटी एवं अन्य बनाम आई0टी0सी0 लि0 एवं अन्य में मा0 राष्ट्रीय आयोग का अभिमत भी महत्वपूर्ण है जो निम्न प्रकार है :-
'' 19. This is , thus clear that consumer Fora is not armed with the power to decide the question of shares. It entails huge evidence which cannot be decided in a summary procedure. Consequently we dismiss the complaint and give liberty to the complainants to approach the appropriate Forum for redressal of their grievances as per law including the decision in Laxmi Engineering Works V P.S.G. Industrial Institute, II (1995)( CPJ 1 (sc) =1995 (3) SCC. 583 ''
उपर्युक्त सम्मानित विधि व्यवस्थाओं के प्रकाश में हम यह पाते हैं कि परिवादी का प्रकरण ''कामर्शियल परपज'' के अन्तर्गत आता है ओर इस दृष्टि से परिवादी उपभोक्ता नही है और ऐसे प्रकरणों को देखने का क्षेत्राधिकार भी उपभोक्ता फोरा को नहीं है।
परिणामत:, यह परिवाद क्षेत्राधिकार के बिन्दु पर ही निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद तदनुसार निरस्त किया जाता है। परिवादी विधि के अनुसार सक्षम फोरम के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र होगा ।
इस परिवाद के व्यय के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (संजय कुमार)
पीठा0 सदस्य (न्यायिक) सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA-2)