Uttar Pradesh

StateCommission

C/2010/22

Suhail Ahmad - Complainant(s)

Versus

India Bulls Housing Finance - Opp.Party(s)

Yogeeta Chandra

27 May 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/2010/22
 
1. Suhail Ahmad
a
...........Complainant(s)
Versus
1. India Bulls Housing Finance
a
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Mr. Mohd. Rais Siddaqui REGISTRAR
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

परिवाद सं0-२२/२०१०

 

सुहेल अहमद पुत्र डॉ0 आमोर अहमद, निवासी-३/७बी/१, इम्‍प्रेस होटल कम्‍पाउण्‍ड, प्रताप पुरा, आगरा, उत्‍तर प्रदेश।

                                                    .....................परिवादी।

बनाम्

१. इण्डियाबुल हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, एफ-६०, द्वितीय तल, मल्‍होत्रा बिल्डिंग, कनाट प्‍लेस, नई दिल्‍ली।

२. श्रीमती रीना, ऑथराइज्‍ड आफीसर, इण्डियाबुल हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, अंजना सिनेमा के सामने, एम0जी0 रोड, आगरा। 

                                                     ................विपक्षीगण।

समक्ष:-

१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

२. मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।

 

परिवादी की ओर से उपस्थित    :- कोई नहीं।

विपक्षीगण की ओर से उपस्थित  :- श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक : ०७-०१-२०१६.

 

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत परिवाद, परिवादी ने विपक्षी से लिए गये ऋण की बसूली के सन्‍दर्भ में विपक्षी द्वारा की जा रही कार्यवाही के सम्‍बन्‍ध में अनुतोष प्राप्‍त करने हेतु योजित किया है।

      संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी के कथनानुसार उसने नवम्‍बर, २००६ में आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक लि0, आगरा से मु0 ३१,१२,२६०/- रू० का ऋण १०.२५ प्रतिशत ब्‍याज (फ्लोटिंग रेट) दर पर, जिसकी अदायगी १५ वर्षों में १८० समान मासिक किस्‍तों में की जानी थी, प्राप्‍त किया था। विपक्षी द्वारा इस आशय के लुभावने प्रस्‍ताव दिए जाने पर कि उसे बन्‍धक सम्‍पत्ति पर अतिरिक्‍त ऋण दिया जायेगा तथा आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक से बेहतर सुविधाऐं प्रदान की जाऐंगीं, अत: परिवादी ने उपरोक्‍त ऋण आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक को वापस कर विपक्षी द्वारा ऋण दिए जाने      हेतु आवेदन किया। अत: विपक्षी ने उस समय आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक को देय कुल

 

 

-२-

धनराशि ३१,७१,६९६/- रू० दिनांक ३१-०३-१२००८ को आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक को अदा किया। इस धनराशि का ऋण विपक्षी द्वारा परिवादी को प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्‍त विपक्षी ने परिवादी को दिनांक ०१-०५-२००८ को टॉप-अप लोन के रूप में ५,९४,०८४/- रू० अतिरिक्‍त उपलब्‍ध कराया। इस प्रकार विपक्षी ने परिवादी को कुल ३८.०० लाख रू० का ऋण उपलब्‍ध कराया, किन्‍तु बाद में विपक्षी ने पूर्व में दिये गये आश्‍वासन के विपरीत ब्‍याज की दर बढ़ा दी। प्रारम्‍भ में विपक्षी द्वारा देय ऋण की अदायगी ०८ वर्ष में ४६,६४२/- रू० की १५६ मासिक किस्‍तों में की जानी थी। अतिरिक्‍त दिया गया ऋण भी १५६ किस्‍तों में ही अदा किया जाना, किन्‍तु बाद में मनमाने ढंग से विपक्षी ने ब्‍याज की दर बढ़ा दी तथा मासिक किस्‍तों की संख्‍या भी बढ़ा दी। परिवादी ने नियमित रूप से पहले ऋण की अदायगी फरवरी, २००९ तक की तथा दूसरे ऋण की अदायगी मई २००९ तक अदायगी की। विपक्षी ने Securitisation and reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002 (जिसे आगे अधिनियम कहा जायेगा) के प्रावधानों का उल्‍लंघन करते हुए इस अधिनियम के अन्‍तर्गत नोटिस दिनांकित २०-०५-२००९ के द्वारा ३५,४५,१५३/- रू० की मांग की, जिसके विरूद्ध परिवाद ने अधिनियम की धारा-१३(३) के अन्‍तर्गत आपत्ति भी प्रेषित की। विपक्षी ने बन्‍धक सम्‍पत्ति का कब्‍जा प्राप्‍त करने हेतु अधिनियम की धारा-१३(४) के अन्‍तर्गत दिनांक   ३०-०७-२००९ को नोटिस भेजी। इस नोटिस द्वारा यह सूचित किया गया कि परिवादी का खाता दिनांक ०८-०५-२००९ एन0पी0ए0 घोषित किया जा चुका है। विपक्षी ने धारा-१४ के अन्‍तर्गत बन्‍धक सम्‍पत्ति का कब्‍जा दिलाने हेतु कार्यवाही किए जाने हेतु जिला मैजिस्‍ट्रेट को प्रार्थना पत्र प्रेषित किया। परिवादी ने विपक्षी द्वारा अनधिकृत रूप से की जा रही कार्यवाही के विरूद्ध कई प्रत्‍यावेदन प्रेषित किए, किन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। अत: परिवादी ने प्रस्‍तुत परिवाद योजित किया।

      उपभोक्‍ता न्‍यायालय में परिवाद की पोषणीयता को चुनौती देते हुए अपनी प्रारम्भि आपत्ति विपक्षी द्वारा प्रेषित की गयी।

      परिवादी की ओर से तर्क प्रस्‍तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ। विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री विकास अग्रवाल उपस्थित हुए और उनके द्वारा

 

 

-३-

लिखित तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया।

      हमने श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्‍ता विपक्षीगण के तर्क विस्‍तार से सुने तथा पत्रावली का परिशीलन किया।

      परिवाद के अभिकथनों के अवलोकन से यह विदित होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी से ऋण लिया जाना निर्विवाद है। यह तथ्‍य भी निर्विवाद है कि इस ऋण की अदायगी परिवादी द्वारा अभी तक नहीं की गयी है और इस ऋण की अदायगी न किए के जाने के कारण परिवादी खाते को विपक्षी ने एन0पी0ए0 (Non Performing Assets) घोषित कर दिया है तथा अधिनियम की धारा १३ एवं १४ के अन्‍तर्गत कार्यवाही विपक्षी द्वारा की गयी।

      विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि क्‍योंकि प्रश्‍नगत मामले में अधिनियम के अन्‍तर्गत परिवादी के विरूद्ध विपक्षी द्वारा कार्यवाही की जा रही है। अत: उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्‍तर्गत प्रस्‍तुत परिवाद पोषणीय नहीं है। इस सन्‍दर्भ में अधिवक्‍ता विपक्षीगण श्री विकास अग्रवाल ने सिविल अपील सं0-१३५९/२०१३ यशवन्‍त घेसास बनाम बैंक आफ महाराष्‍ट्र के मामले में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिये गये निर्णय दिनांक ०१-०३-२०१३ तथा मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका सं0-९९५/२०१२ हरिनन्‍दन प्रसाद बनाम स्‍टेट बैंक आफ इण्डिया में दिये गये निर्णय दिनांक ३१-०५-२०१२, पुनरीक्षण याचिका सं0-३४९९/२०१२ बैंक आफ बड़ौदा बनाम गीता फूड्स में दिये गये निर्णय दिनांक ०८-११-२०१२ एवं पुनरीक्षण सं0-१६५३/२०१३ इण्डियाबुल्‍स हाउसिंग फाइनेंस बनाम हरदयाल सिंह में दिये गये निर्णय दिनांक २५-११-२०१३ पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया।

      विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा सन्‍दर्भित उपरोक्‍त निर्णयों का अवलोकन किया, जिनमें यह मत व्‍यक्‍त किया गया है कि सरफेसी एक्‍ट २००२ के अन्‍तर्गत विपक्षी द्वारा की जा रही कार्यवाही से यदि परिवादी विक्षुब्‍ध है, तब वह इस अधिनियम के अन्‍तर्गत ऋण बसूली अधिकरण में प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत कर सकता है। उपभोक्‍ता न्‍यायालय को ऐसे मामलों में सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त नहीं होगा।

      विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि

 

 

-४-

यद्यपि इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्‍ता न्‍यायालय को नहीं है, किन्‍तु प्रस्‍तुत परिवाद के सन्‍दर्भ में इस आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांक १५-०४-२०१० अनुपालन भी परिवादी द्वारा नहीं किया गया है, इस आधार पर भी प्रस्‍तुत परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य है। इस सन्‍दर्भ में उन्‍होंने मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा प्रेस्‍टीज लाइट्स लिमिटेड बनाम स्‍टेट बैंक आफ इण्डिया, (२००७) ८ एस सी सी ४४८ के मामले में दिये गये निर्णय पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया।

      उपरोक्‍त तथ्‍यों एवं विधि व्‍यवस्‍थाओं के आलोक में हमारे विचार से प्रस्‍तुत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस आयोग को न होने के कारण यह परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।   

आदेश

      प्रस्‍तुत परिवाद निरस्‍त किया जाता है।

      इस परिवाद का व्‍यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।

      उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।

 

 

                                              (उदय शंकर अवस्‍थी)

                                                पीठासीन सदस्‍य

 

 

                                                 (महेश चन्‍द)

                                                    सदस्‍य

 

 

प्रमोद कुमार

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट-५.

 

 

 

 

 
 
[ Mr. Mohd. Rais Siddaqui]
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