राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-2296/2013
(जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-६५७/२००९ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-१०/०९/२०१३ के विरूद्ध)
इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस सर्विस लि0 ।
.............अपीलार्थी.
बनाम
संदीप कुमार एवं अन्य।
..............प्रत्यर्थीगण
अपील सं0-272/2014
संदीप कुमार पुत्र के0पी0 त्रिपाठी निवासी जोखारी पुलिस स्टेशन नवाबगंज पोस्ट आफिस अटरामपुर जिला इलाहाबाद।
.............अपीलार्थी.
बनाम
इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस सर्विस लि0 इंडिया बुल्स हाउस-४४८/४५१ उद्योग विहार फेज-४ गुड़गांव एवं अन्य।
..............प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
- माननीय श्री राज कमल गुप्ता, पीठा0सदस्य।
- माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अमोल कुमार विद्वान
अधिवक्ता ।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 मिश्रा विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक: 14/12/2017
माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
उपरोक्त उल्लिखित दोनों अपीलें जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-६५७/२००९ संदीप कुमार बनाम इंडिया बुल्स फाईनेंस सर्विसेज लि0 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-१०/०९/२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है जिसमें निम्न आदेश पारित किया गया है-
‘’ परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अंशत: आज्ञप्त किया जाता है। विपक्षी सं0-1 व 2 को यह निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश के ०२ माह के अन्तर्गत परिवादी को उसके द्वारा ट्रैक्टर क्रय करते समय स्वयं द्वारा भुगतान की गई नकद धनराशि व अदा की गई कुल किस्त १०९२००/- वापस करे। विपक्षीगण परिवादी से आगे कोई धनराशि ऋण के एवज में वसूल करने के अधिकारी नहीं हैं। इसके अलावा परिवादी विपक्षी सं0-1 व 2 से रू0 ५०००/- क्षतिपूर्ति व रू0 २०००/- वाद व्यय भी प्राप्त करने के अधिकारी हैं। ‘’
उपरोक्त उल्लिखित दोनों अपीलें एक ही निर्णय/आदेश दिनांक १०/०९/२०१३ के विरूद्ध योजित की गई हैं। अत: उनका निस्तारण एक साथ किया जा रहा है। अपील सं0-२२९६/२०१३ संदीप कुमार बनाम इंडिया बुल्स फाईनेंस सर्विसेज लि0 इसमें मुख्य अपील (Leading Appeal) होगी।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी संदीप कुमार ने कृषि कार्य हेतु एक सोनालीका ट्रैक्टर सं0-यूपी ३५ डीआई नम्बर यूपी ७० एएस-०६८२ दिनांक २३/०१/२००७ को मै0 राम अवध मौर्या आटो सेल्स इलाहाबाद से क्रय किया था। उक्त ट्रैक्टर के लिए अपीलकर्ता ने अपनी इलाहाबाद शाखा के माध्यम से वित्त पोषण किया था और इसके लिए रू0 २०१७५३/- का ऋण अपीलकर्ता द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया गया था और इसके लिए दिनांक ३०/११/२००७ को अनुबंध पत्र भी निष्पादित हुआ था। ऋण की यह राशि ३० मासिक किस्तों में जमा की जानी थी और प्रत्येक मासिक किस्त रू0 ९०२५/- थी। परिवादी/प्रत्यर्थी लिए गए ऋण की मासिक किस्तें जमा करता रहा किन्तु कतिपय किस्तें न चुकाने के कारण दिनांक ०१/०४/२००९ को अपीलकर्ता द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के ड्राईवर राकेश पासी से उक्त ट्रैक्टर जबरन अपने कब्जे में ले लिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी का चचेरा भाई दिनांक ०२/०४/२००९ को अपीलकर्ता के इलाहाबाद स्थित कार्यालय पर गया और खोजे गए ट्रैक्टर के संबंध में पूछताछ की तो उनके द्वारा बताया गया कि बाद में कुछ ट्रैक्टर की किस्तों का भुगतान नहीं किया गया है, इसलिए यह ट्रैक्टर खींच लिया गया है और अपीलकर्ता के कर्मचारियों द्वारा उसके चचेरे भाई को डांटकर भगा दिया गया । प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार उक्त ट्रैक्टर बिना किसी पूर्व सूचना के अपीलकर्ता द्वारा जबरन खींच लिया गया जिससे उसको काफी आर्थिक एवं मानसिक क्षति हुई। इसी से क्षुब्ध होकर यह परिवाद जिला मंच इलाहाबाद के समक्ष योजित किया गया।
उपरोक्त उल्लिखित आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील दायर की गयी है।
उक्त अपील में जो आधार लिए गए हैं उनमें अभिकथन किया गया है कि विद्वान जिला मंच ने तथ्यों और विधिक बिन्दुओं की अनदेखी करके त्रुटिपूर्ण आदेश पारित किया है। अपील के आधार में यह भी कहा गया है कि विद्वान जिला मंच ने पक्षकारों के मध्य हुए अनुबंध की शर्तों की भी अनदेखी की है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऋण की समय से किस्त न जमा करने पर नोटिस भेजे गए और जिसका उसके द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया और किस्तों की धनराशि जमा नहीं की गयी। अपील में यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी से ट्रैक्टर को जबरन नहीं छीना गया बल्कि उसके ड्राईवर राकेश पासी तथा चन्दन तिवारी द्वारा अपीलकर्ता को ट्रैक्टर समर्पित कर दिया गया था। अपीलकर्ता ने ट्रैक्टर को जबरन खींचा होता तो प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कोई न कोई रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए थी जो कि नहीं की गयी है। उनके द्वारा प्रश्नगत ट्रैक्टर का कब्जा लेने के संबंध में स्थानीय पुलिस में दिनांक ०५/०४/२००९ को भी सूचित कर दिया गया था। अपीलकर्ता ने यह भी अभिकथन किया है कि कब्जा लेने के बाद दिनांक ०२/०४/२००९ को प्रत्यर्थी को नोटिस दिया गया था जिसमें उसे और उसके गारण्टर से यह कहा गया था कि वह ऋण की अवशेष धनराशि अदा करके अपने प्रकरण का निपटारा कर ले किन्तु उनके द्वारा कोई कार्यवाही इस संबंध में नहीं की गयी है। अत: दिनांक १८/०५/२००९ को प्रश्नगत ट्रैक्टर रू0 १,७१,०००/- में नीलाम कर दिया गया और ऋण की अवशेष धनराशि रू0 १७१८९२/- में समायोजित करके उक्त ऋण खाते को बन्द कर दिया गया। विद्वान जिला मंच ने इन सभी तथ्यों का कोई संज्ञान नहीं लिया और प्रश्नगत आदेश पारित करके त्रुटि की है।
उक्त अपील का प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा विरोध किया गया।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा भी एक क्रास अपील सं0-२७२/२०१४ दायर की गयी है और उक्त अपील में जो आधार लिए गए है उनमें कहा गया है कि विद्वान जिला मंच ने उन तथ्यों की अनदेखी की है जो परिवाद पत्र में परिवादी द्वारा अंकित किए थे। इस अपील में कहा गया है कि विद्वान जिला मंच ने आरटीओ कार्यालय इलाहाबाद से वाहन के पंजीकरण के संबंध में कोई सूचना नहीं मांगी गयी और परिवादी द्वारा पुलिस से सूचना के अधिकार अधिनियम २००५ के अन्तर्गत ली गयी सूचना की भी अनदेखी की है, जिसमें कहा गया है कि विपक्षी द्वारा कोई सूचना पुलिस को ट्रैक्टर खोजे जाने के संबंध में नहीं दी गयी थी। अपील में यह भी कहा गया है कि उसे विद्वान जिला मंच के आदेश से पर्याप्त क्षतिपूर्ति नहीं दी गयी है। अत: उन्होंने क्षतिपूर्ति अपनी अपील में परिवाद पत्र के अनुसार दिए जाने की प्रार्थना की गयी है।
इस अपील का इंडिया बुल्स तथा अन्य द्वारा विरोध किया गया है।
यह दोनों अपीलें एक-दूसरे के विरूद्ध हैं
सुनवाई हेतु अपील प्रस्तुत की गयी। अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अमोल कुमार उपस्थित है। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्रा उपस्थित हैं। उनके तर्कों को सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत ट्रैक्टर सं0-यूपी ३५ डीआई नम्बर यूपी ७० एएस-०६८२ का अपीलकर्ता इंडिया बुल्स द्वारा वित्त पोषण किया गया था और उसके लिए उनके द्वारा रू0 २०१७५३/- ऋण के रूप में दिए गए थे। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि उक्त धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा रू0 ९०२५/- की दर से ३० मासिक किस्तों में दिनांक ०५/०१/२००८ से ०५/०१/२०१० की अवधि में वापस करनी थी। यह भी तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वीकार किया गया है कि कतिपय किस्तें जमा नहीं कर सका है। प्रश्नगत ट्रैक्टर को अपीलकर्ता द्वारा कब्जा लिया जाना पक्षकारों को स्वीकार है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या उक्त ट्रैक्टर अपीलकर्ता द्वारा प्रत्यर्थी से जबरन कब्जे में लिया गया अथवा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ही समर्पित किया गया और यहां यह भी देखना है कि उक्त ट्रैक्टर में कब्जे में लेने से पहले कोई नोटिस अपीलकर्ता द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया गया था अथवा नहीं। अपीलकर्ता द्वारा अभिकथित किया गया है कि दिनांक ११/०२/२००९ को प्रत्यर्थी/परिवादी को किस्तों का भुगतान किए जाने के संबंध में नोटिस दिया गया था किन्तु पत्रावली पर ऐसा कोई नोटिस होना नहीं पाया जाता है। ट्रैक्टर खींचने के संबंध में भी कोई नोटिस प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं दिया गया। ट्रैक्टर दिनांक ०१/०४/२००९ को खींच लिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी को नोटिस दिनांक ०२/०४/२००९ को भेजा जाना अपीलकर्ता ने स्वयं ही अपने अभिकथन में स्वीकार किया है। ट्रैक्टर खींचने के बाद नोटिस दिए जाने का कोई औचित्य नहीं है। ट्रैक्टर को दिनांक १८/०५/२००९ को नीलाम कर दिया गया किन्तु ट्रैक्टर के नीलाम करने के संबंध में कोई सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं दी गयी। वह ट्रैक्टर कितने में नीलाम किया गया, इस संबंध में भी कोई सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं दी गयी। यह भी स्पष्ट नहीं है कि नीलामी में किस-किस व्यक्ति ने भाग लिया उसमें किस-किस व्यक्ति ने कितनी बोली बोली यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है। ट्रैक्टर का मूल्यांकन किस प्रकार कराया गया इसका भी कोई स्पष्ट प्रमाण पत्र अपीलकर्ता द्वारा नहीं दिया गया है। अपीलकर्ता का यह तर्क भी स्वीकार करने योग्य नहीं है। जिला मंच इलाहाबाद को इस परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं था और अनुबंध पत्र के अनुसार दिल्ली उच्च न्यायालय को वाद की सुनवाई का अधिकार है। इसके संबंध में जिला मंच ने सम्यक विचारोपरांत यह अवधारित किया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा ११ के अनुसार वर्तमान जिला फोरम इलाहाबाद में वाद पोषणीय है क्योंकि वाद का कारण इलाहाबाद में उत्पन्न हुआ। प्रश्नगत प्रकरण में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा रू0 १००२००/- की धनराशि १२ किस्तों में जमा की गयी थी। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि और उस पर ब्याज तथा अवशेष धनराशि का कोई विवरण अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया। विद्वान जिला मंच ने अपने प्रश्नगत निर्णय में विस्तार से तथ्यों की विवेचना की है और उससे यह पीठ पूर्णत: सहमत है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा [2007 (67) ALR 179] Criminal Appeal N0. 267 of 2007 MANAGER ICICI BANK LTD. VS. PRAKASH KAUR and others. का उदृरत प्रस्तुत किया गया है।
“ In conclusion, we say that we are governed by a rule of law in the country. The recovery of loans or seizure of vehicles could be done only through legal means. The Banks cannot employ goondas to take possession by force.”
मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त प्रकरण में प्रतिपादित सिद्धांत इस प्रकरण में भी लागू होते हैं।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि प्रश्नगत अपील सं0-२२९६/२०१३ निरस्त किए जाने योग्य है और प्रश्नगत आदेश में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपील सं0-२७२/२०१४ में भी कोई बल नहीं है। विद्वान जिला मंच द्वारा दिए गए अनुतोष में किसी प्रकार के परिवर्तन का कोई औचित्य नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील सं0-२२९६/२०१३ निरस्त की जाती है तथा अपील सं0-२७२/२०१४ भी निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-६५७/२००९ संदीप कुमार बनाम इंडिया बुल्स फाईनेंस सर्विसेज लि0 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-१०/०९/२०१३ की पुष्टि की जाती है। इस निर्णय/आदेश की एक प्रमाणित प्रति अपील सं0-२७२/२०१४ में रखी जाए।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्षों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठा0सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, आशु0 कोर्ट नं0-५