प्रकरण क्र.सी.सी./13/161
प्रस्तुती दिनाँक 04.07.2013
सचिन तेजपाल आ. श्री नरेश तेजपाल आयु 30 वर्ष, निवासी-द्वारा- रवि प्रधान, ई.डब्लयू.एस.200, वैशाली नगर, सुपेला, मेहुल आफसेट प्रिटर्स, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
प्रभारी, रिलायंस कम्यूनिकेशन, कार्यालय-आकाश गंगा इंडियन काफी हाउस के पास, संजारी काम्पलेक्स, सुपेला, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 18 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से मोबाईल सेवा बंद करने व अधिक बिल भेजने से हुई मानसिक परेशानी के एवज में क्षतिपूर्ति स्वरूप 10,000रू., मोबाईल सेवा बंद करने से हुई क्षति के लिए 10,000रू., पुनः सेवा प्रारंभ कराने में हुई आर्थिक क्षति के लिए 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा- 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी, अनावेदक कंपनी के सिम कार्ड सी.डी.एम.ए. का उपयोगकर्ता है, जिसके लिए परिवादी के द्वारा मासिक शुल्क राशि 144.20 रूपये के साथ लोकल काॅलिंग रेन्टल चार्ज तथा अतिरिक्त 100रू. अदा करने पर लोकल काल रिलायंस से रिलायंस में फ्री सर्विस दिया जाता है तथा दिगर कंपनी के सीम से सेवा लेने पर अतिरिक्त सेवा का भुगतान परिवादी द्वारा किया जाता है, जिसका उपभोक्त परिवादी कर रहा था, किन्तु अचानक अनावेदक के द्वारा माह जनवरी - फरवरी 2013 के बिल बढ़ा कर दिनांक 10.05.2013 को परिवादी को प्रेषित किया गया, जिसकी शिकायत परिवादी के द्वारा दि.10.05.2013 को ई-मेल के माध्यम से अनावेदक से की गई। अनावेदक के द्वारा अपनी त्रुटि को स्वीकारते हुए आगामी बिल में समयोजन कर देने की बात कही, किन्तु अनावेदक के द्वारा दिनंाक 30.03.13 को बिना किसी पूर्व सूचना के परिवादी को उक्त मोबाइल सेवा से वंचित कर दिया गया, जिसका भुगतान करने पर पुनः सेवा प्रारंभ की गई। इस तरह अनावेदक के कृत्य से परिवादी को मानसिक पीड़ा एवं आर्थिक क्षति भी हुई तथा अनावेदक को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भी प्रेषित की गयी। अनावेदक का उपरोक्त कृत्य सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदक से अधिक राशि का बिल प्रेषित कर मानसिक परेशानी के एवज में क्षतिपूर्ति स्वरूप 10,000रू., मोबाईल सेवा बंद करने से हुई क्षति के लिए 10,000रू., पुनः सेवा प्रारंभ कराने में हुई आर्थिक क्षति के लिए 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि यह दावा फोरम के क्षेत्राधिकार के बाहर है, क्योंकि आर्बीट्रेटर के समक्ष प्रस्तुत होना था। परिवादी के संबंध में बिल की गणना सही हुई है और परिवादी ने जब अनावेदक को शिकायत की थी तो उसका निराकरण किया जा चुका है कि टेरिफ प्लान के अनुसार ही बिल बनाया गया है, चूंकि परिवादी ने टेलीफोन बिल की राशि अदा नहीं की थी, इसीलिए परिवादी का फोन डीएक्टीवेट कर दिया गया था और ऐसा करने में अनावेदक ने सेवा में निम्नता नहीं की है, क्योंकि जो भी कार्यवाही की गई है वह नियमानुसार ही की गई थी।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में क्षतिपूर्ति स्वरूप 10,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मोबाइल बंद कर देने से हुई क्षति 10,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. क्या परिवादी, अनावेदक से मोबाइल सेवा बंद करने से हुई आर्थिक क्षति 10,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
4. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी का अनावेदक से अभिकथित मोबाइल सेवा लेना निर्विवादित है।
(7) परिवादी का तर्क है कि वह पिछले 5 वर्ष से अनावेदक कंपनी का मोबाइल सेवा उपयोग करता आ रहा है, जिसके अंतर्गत मासिक शुल्क राशि 144.20 रूपये के साथ लोकल काॅल रेन्टल चार्ज 100रू. अतिरिक्त अदा करने पर लोकल काॅल रिलायंस टू रिलायंस करने पर फ्री सर्विस दी जाती है और दिगर कंपनी के सिम से सेवा लेने से अतिरिक्त भुगतान किया जाता है, अर्थात् स्पष्ट है कि परिवादी अनावेदक की मोबाइल सेवाओं को पिछले 5 वर्षों से उपयोग कर रहा है।
(8) परिवादी का तर्क है कि जनवरी-फरवरी 2013 में अनावेदक द्वारा बिल को बढ़ा कर भेज दिया गया, जिसकी शिकायत परिवादी ने की थी, मौखिक रूप से शिकायत करने पर अनावेदक ने शिकायत को उचित पाते हुए आने वाली बिल में राशि समायोजित करने की बात कही थी, परंतु मार्च 2013 में अनावेदक ने मोबाइल सेवा बंद कर दी और भुगतान करने पर ही पुनः मोबाइल सेवा चालू की गई, जिसके कारण परिवादी को मानसिक वेदना हुई और उसके व्यवसाय को भी आर्थिक क्षति हुई।
(9) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी, अनावेदक का पिछले 5 वर्षों से उपभोक्ता है और उस दौरान अनावेदक ने ऐसा सिद्ध नहीं किया है कि परिवादी ने दुर्भावनापूर्वक बिल संबंधी विवाद उठाया था। अनावेदक ने ऐसा कोई कारण नहीं बताया है कि जनवरी-फरवरी 2013 में उसने परिवादी को ज्यादा राशि का बिल क्यों भेजा। अनावेदक ने यह बचाव लिया है कि स्कीम के तहत ही बिल की राशि का आंकलन होता था, परंतु अनावेदक ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया कि जो स्कीम परिवादी ने पिछले 5 वर्ष से प्राप्त की थी, उस स्कीम में बदलाव परिवादी को विधिवत् जानकारी प्रदान कर, उसकी सहमति लेकर स्कीम बदली गई थी।
(10) चूंकि परिवादी ने अनावेदक को सेवा हेतु शुल्क अदा किया है अतः परिवादी, अनावेदक का उपभोक्ता हुआ और इस कारण यह प्रकरण फोरम के क्षेत्राधिकार में आता है, फलस्वरूप अनावेदक की आपत्ति कि दावा आर्बीट्रेटर के समक्ष चलेगा, स्वीकार योग्य नहीं माना जा सकता।
(11) जब कोई उपभोक्ता इस प्रकार की मोबाइल सेवाएं प्राप्त करता है, जब तक उसे स्कीम बदलाव की सूचना नहीं दी जायेगी वह निश्चिंत होकर उसी स्कीम के तहत मोबाइल का उपयोग कर निश्चिंत रहेगा। इस प्रकार की मोबाइल कंपनी अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के तहत अपने ग्राहकों को व्यवसायिक जाल में फंसा तो लेती है, परंतु उच्च शिष्टाचार अपनाते हुए उचित सेवाएं नहीं देती है, यदि परिवादी 5 वर्ष से अनावेदक का उपभोक्ता था, तो अनावेदक का यह कर्तव्य था कि वह परिवादी को सही रूप से योजना के बारे में तथा यदि उसमें बदलाव किया गया है तो उसके बारे में पहले से ही समझाता, तब परिवादी के पास विकल्प रहता कि वह अनावेदक द्वारा प्राप्त मोबाइल सेवाओं को जारी रखे या बंद करा दे, जबकि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी को ई-मेल भेजने पड़े और जब उसकी समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो उसे अधिवक्ता मार्फत नोटिस भी देनी पड़ी, परंतु अनावेदक ने अपने उपभोक्ता की समस्या का समाधान नहीं किया और जब परिवादी ने यह दावा प्रस्तुत किया, तो यह बचाव प्रस्तुत कर दिया कि इस फोरम को दावा सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, बिल की राशि की सही गणना की गई है और बिल नहीं पटाने के कारण परिवादी की मोबाइल डीएक्टीवेट कर दिया गया, जबकि अनावेदक का कर्तव्य था कि वह परिवादी के समक्ष विस्तृत जानकारी रखता कि जब पहले बिल कम आता था तो अब बिल ज्यादा किन परिस्थितियों में आया है, जबकि परिवादी पिछले 5 वर्ष से अनावेदक के उक्त मोबाइल की सेवाएं ले रहा है।
(12) उपरोक्त स्थिति में हम यही पाते हैं कि अनावेदक ने परिवादी जो कि 5 वर्ष से अनावेदक का उपभोक्ता है, के संबंध में घोर सेवा में निम्नता की और उसे बिना किसी उचित कारण के अचानक जनवरी-फरवरी 2013 का ज्यादा बिल भेजा। वर्तमान स्थितियों में व्यक्ति के लिए मोबाइल एक अत्यधिक आवश्यक वस्तु है, वह भी व्यवसायिक व्यक्ति के लिए और भी ज्यादा, यदि इस प्रकार की खराब सेवाएं अनावेदक जैसे टेलीफोन कंपनी ग्राहकों को देगी, तो निश्चित रूप से परिवादी को मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवाद ने 10,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता है।
(13) फलस्वरूप हम यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक ने परिवादी के संबंध में घोर सेवा में निम्नता की है, अतः हम परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(14) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) अदा करेे।
(ब) अनावेदक द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादी को नहीं किये जाने पर अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।
(स) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।