राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
पुनरीक्षण सं0-१८६/२००९
(जिला मंच, आजमगढ़ द्वारा परिवाद सं0-३४/२००५ में पारित आदेश दिनांक १७-११-२००९ के विरूद्ध)
१. सहारा इण्डिया कॉमर्शिलय कारपोरेशन लिमिटेड द्वारा ब्रान्च मैनेजर ब्रान्च महाराजगंज, सेक्टर बिलारीगंज, रीजन आजमगढ़, जिला आजमगढ़।
२. सहारा इण्डिया कॉमर्शिलय कारपोरेशन लिमिटेड द्वारा असिस्टेण्ट रीजनल मैनेजर, रीजनल आफिस ५ सिविल लाइन्स, आजमगढ़।
३. सहारा इण्डिया कॉमर्शिलय कारपोरेशन लिमिटेड द्वारा चेयरमेन सहारा इण्डिया भवन, कपूरथला कॉम्प्लेक्स लखनऊ।
.............. पुनरीक्षणकर्तागण/विपक्षीगण।
बनाम्
इमरान अहमद पुत्र अब्दुल रशीद निवासी मोहल्ला दलाल, टोला नगर पंचायत महाराजगंज, पोस्ट महाराजगंज, जिला आजमगढ़।
............... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से उपस्थित:-श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : ०३-०८-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
आज यह पत्रावली प्रस्तुत हुई। पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। हमने अधिवक्ता पुनरीक्षणकर्तागण के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
प्रस्तुत पुनरीक्षण, जिला मंच, आजमगढ़ द्वारा परिवाद सं0-३४/२००५ में पारित आदेश दिनांक १७-११-२००९ के विरूद्ध योजित की गयी है।
पुनपरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि श्रीमती बदरूनिशॉं ने दिनांक ०१-०३-२००१ को २०,०००/- रू० पुनरीक्षणकर्ता की सहारा-१० योजना में एवं दिनांक ०१-०३-२००२ को १,५०,०००/- रू० उक्त योजना में विभिन्न रसीदों द्वारा निवेशित किया। उक्त योजना के सन्दर्भ में जारी किए गये बॉण्ड की समयावधि १२० माह की थी। बॉण्डधारी श्रीमती बदरूनिशॉं ने प्रत्यर्थी इमरान अहमद को इन बॉण्ड में नामित किया था। बॉण्डधारी श्रीमती बदरूनिशॉं की मृत्यु दिनांक ०१-०६-२००३ को हो
-२-
गयी। तदोपरान्त उक्त बॉण्ड में नामित परिवादी ने उक्त बॉण्ड के अन्तर्गत डैथ हैल्प सुविधा हेतु आवेदन प्रस्तुत किया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत किए शपथ पत्र पर विश्वास करते हुए डैथ हैल्थ सुविधा प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में उपलब्ध करायी गयी तथा प्रत्यर्थी/परिवादी को मासिक किश्तों के रूप में कुल ४,२०,०००/- रू० का भुगतान किया गया, किन्तु बाद में पुनरीक्षणकर्ता के अधिकारियों द्वारा जांच करने पर यह तथ्य प्रकाश में आया कि बॉण्डधारी की आयु मृत्यु के समय ६५ वर्ष से अधिक थी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने फर्जी अभिलेखों के आधार पर बॉण्डधारी की आयु मृत्यु के समय ६० वर्ष से कम दर्शित की थी। अत: परिवादी को डैथ हैल्थ सुविधा समाप्त कर दी गयी, क्योंकि उपरोक्त योजना की शर्तों के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/परिवादी इस सुविधा को प्राप्त करने हेतु अधिकृत नहीं था। इससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया।
पुनरीक्षणकर्ता का यह भी कथन है कि उक्त योजना के क्लॉज-१० के अन्तर्गत पक्षकारों के मध्य विवाद की स्थिति में विवाद का निबटारा कम्पनी द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के माध्यम से किया जाना था तथ मध्यस्थ का निर्णय पक्षकारों पर बाध्यकारी होगा। उक्त स्थिति को स्पष्ट करते हुए पुनरीक्षणकर्ता ने जिला मंच के समक्ष आपत्ति भी प्रस्तुत की। पुनरीक्षणकर्ता का यह भी कथन है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरानामा के क्लॉज-१० के अन्तर्गत श्री भगवान राम वरिष्ठ अधिवक्ता, आजमढ़ को मध्यस्थ नियुक्त किया तथा इसकी सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को पत्र दिनांक ०७-१२-२००५ द्वारा दी गयी। इस पत्र की प्रत्यर्थी/परिवादी पर तामील के उपरान्त प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मध्यस्थ के समक्ष अपनी आपत्ति भी प्रस्तुत की गयी। तदोपरान्त मध्यस्थ द्वारा दिनांक २८-०२-२००९ को विवाद के सम्बन्ध अपना एवार्ड पारित किया गया। एवार्ड पारित होने के उपरान्त पुनरीक्षणकर्ता ने दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा-११ के अन्तर्गत एक प्रार्थना पत्र जिला मंच, आजमगढ़ के समक्ष इस आशय का प्रस्तुत किया कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामे के अनुसार नियुक्त मध्यस्थ ने एवार्ड दिनांक २८-०२-२००९ द्वारा विवाद निस्तारित कर दिया है। अत: जिला मंच के समक्ष लम्बित परिवाद प्रांग न्याय के सिद्धान्त से बाधित है, किन्तु जिला मंच ने आदेश दिनांक १७-११-२००९ द्वारा
-३-
पुनरीक्षणकर्ता का यह प्रार्थना निरस्त कर दिया।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामे की शर्तों के अनुसार जब मध्यस्थ की नियुक्ति की जा चुकी थी तथा मध्यस्थ की नियुक्ति की जानकारी प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त करायी जा चुकी थी एवं मध्यस्थ द्वारा पारित एवार्ड दिनांकित २८-०२-२००९ द्वारा विवाद का निस्तारण किया जा चुका था तब परिवाद प्रांग न्याय के सिद्धान्त से बाधित होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य था, किन्तु विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र को निरस्त करके त्रुटि की है।
पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गये अभिलेखों से यह विदित होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रश्नगत परिवाद दिनांक ०६-०८-२००५ को दाखिल किया गया। यह तथ्य निर्विवाद है कि उपरोक्त परिवाद योजित किए जाने के उपरान्त मध्यस्थ की नियुक्ति के सम्बन्ध में सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को पत्र दिनांकित ०७-१२-२००५ द्वारा भेजी गयी अर्थात् यह सूचना प्रश्नगत परिवाद योजित किए जाने के उपरान्त भेजी गयी। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि परिवाद योजित किए जाने के उपरान्त ही मध्यस्थ श्री भगवान राम एडवोकेट द्वारा कथित रूप से एवार्ड दिनांक २८-०२-२००९ पारित किया गया।
स्काई पैक कोरियर्स लि0 बनाम टाटा केमिकल्स (२०००) ५ एससीसी २९४ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा में आर्बीट्रेशन क्लॉज की उपस्थिति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद योजन को प्रतिबन्धित नहीं करती, क्योंकि इस अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निस्तारण की व्यवस्था अन्य अधिनियमों के प्राविधानों के अतिरिक्त की गयी है। जब प्रत्यर्थी/परिवादी ने विवाद निस्तारण हेतु उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद योजित कर दिया था तब पुनरीक्षणकर्तागण से यह अपेक्षित था कि विवाद निस्तारण के सन्दर्भ में अपना पक्ष विद्वा जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत करते, किन्तु पुनरीक्षणकर्तागण ने विद्वान जिला मंच के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत न करके परिवाद के लम्बित रहने के मध्य, मध्यस्थ द्वारा विवाद निबटाये जाने का प्रयास किया।
-४-
ऐसी परिस्थिति में वस्तुत: पुनरीक्षणकर्तागण ने जिला मंच की कार्यवाही को निष्प्रभावी करने के उद्देश्य से मध्यस्थ द्वारा विवाद के निबटारे का प्रयास किया। अत: पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि एवार्ड दिनांक २८-०२-२००९ कथित रूप से पारित हो जाने के उपरान्त प्रश्नगत परिवाद पोषणीय नहीं था।
यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत आदेश दिनांक १७-११-२००९ द्वारा विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता के धारा-११ दीवानी प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत प्रस्तुत किए गये प्रार्थना पत्र को वस्तुत: निरस्त भी नहीं किया गया था। प्रश्नगत आदेश मात्र इस आश्ाय का पारित किया गया था कि इस प्रार्थना पत्र पर निर्णय के समय विचार किया जायेगा। ऐसी परिस्थिति में प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका अपरिपक्व भी है।
ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत मामले के सन्दर्भ में मध्यस्थ द्वारा पारित एवार्ड के आलोक में परिवाद की कार्यवाही धारा-११ दीवानी प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत बाधित होनी नहीं मानी जा सकती। पुनरीक्षण में बल नहीं है।
परिणामस्वरूप, पुनरीक्षण निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण निरस्त किया जाता है।
पुनरीक्षण व्यय-भार के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
दिनांक : ०३-०८-२०१६.
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.