निर्णय
परिवादी सुलेमान बेग की ओर से यह परिवाद विपक्षीगण इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 व अन्य के विरूद्व इस आशय से योजित किया गया है कि परिवादी को विपक्षीगण से बीमित धनराशि अंकन 9,00,000/-रूपये मय ब्याज के तथा आर्थिक व मानसिक क्षतिपूर्ति हेतु अंकन 1,00,000/-रूपये और वाद व्यय का भुगतान कराया जाये ।
संॅक्षेप में परिवादी का कथन है कि परिवादी द्वारा अपने वाहन यू0पी0 35 एच/4007 का सम्पूर्ण बीमा विपक्षी नं0 1 से कराया गया था, जिसकी बीमा पाॅलिसी संॅ0 79697621 है और जो दिनांक 26.03.12 से 25.03.13 तक वैध एवं प्रभावी थी । परिवादी द्वारा बीमा प्रीमियम की धनराशि अंकन 31,056.17 रूपये जमा की गयी थी । विपक्षी बीमा कं0 द्वारा परिवादी के प्रश्नगत वाहन का मूल्याॅंकन अंकन 9,00,000/-रूपये किया गया था । परिवादी का उक्त वाहन दिनांक 13.11.12 को चोरी हो गया, वाहन काफी तलाश करने पर भी जब नहीं मिला, तब उसकी सूचना थाना अमरिया, जिला पीलीभीत में दी गयी, परन्तु रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी । इसके उपरांत दिनांक 20.11.12 को पुलिस अधीक्षक, जिला पीलीभीत को वाहन की चोरी और रिपोर्ट दर्ज कराये जाने हेतु प्रार्थना पत्र भेजा गया, परन्तु कोई कार्यवाही न होने पर परिवादी द्वारा न्यायालय की शरण ली गयी । माननीय न्यायालय द्वारा घटना के संदर्भ में थाना अमरिया, जिला पीलीभीत को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिए आदेशित किया गया और तब दिनांक 30.12.12 को अंतर्गत धारा 379 आई0पी0सी0 में रिपोर्ट दर्ज की गयी । परिवादी द्वारा विपक्षी नं0 1 को वाहन की चोरी की सूचना व्यक्तिगत रूप से दिनांक 15.11.12 को दी चुकी थी, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी और यह निर्देशित किया गया कि वाहन चोरी से सम्बन्धित् रिपोर्ट और न्यायालय के आदेश को प्रस्तुत करने पर ही पूरे क्लेम का भुगतान किया जा सकता है । वाहन चोरी के संदर्भ में विवेचना के उपरांत सम्बन्धित् पुलिस द्वारा अंतिम आख्या दाखिल की गयी, जो पत्रावली पर उपलब्ध है । सम्बन्धित् न्यायालय द्वारा अंतिम आख्या दिनांक 26.04.13 को स्वीकार कर ली गयी । उक्त सभी अभिलेख व्यक्तिगत रूप से दिनांक 14.05.13 को विपक्षी नं0 1 को प्राप्त कराये गये और विपक्षी बीमा कं0 से बीमा दावा निस्तारित करने का अनुरोध किया गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा बीमे दावे का निस्तारण नहीं किया गया और न ही कोई भुगतान किया गया। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा परिवादी के प्रति सेवाओं में त्रुटि की गयी । परिवादी द्वारा विपक्षी नं0 1 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से रजिस्टर्ड नोटिस भी भेजी गयी, परन्तु इसके बावजूद भी कोई कार्यवाही भी विपक्षीगण द्वारा नहीं की गयी । इसके उपरांत पुनः रजिस्टर्ड डाक से दिनांक 5/6.02.14 को नोटिस भेजा गया, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गयी, बल्कि बीमा क्लेम का भुगतान देने से इंकार करते हुए बीमा दावा खारिज कर दिया गया। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा अवैधानिक रूप से परिवादी का बीमा दावा निरस्त करते हुए अनुचित व्यापार प्रथा का कार्य किया गया, जिससे परिवादी को आर्थिक एवं मानसिक क्षति हुई, तद्नुसार परिवादी द्वारा यह परिवाद योजित किया गया ।
विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया कि परिवादी उपभोक्ता का श्रेणी में नहीं आता है । परिवादी द्वारा असत्य कथनों के आधार पर परिवाद योजित किया गया है, जो फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है । फोरम को परिवाद के निस्तारण का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है, क्योंकि पक्षकार आरबीटेशन एक्ट के प्राविधान से बाधित हैं । परिवाद में विधि एवं तथ्यों के गम्भीर प्रश्न निहित हैं, जिनका निस्तारण फोरम की सूक्ष्म विधि से संभव नहीं हो सकता है । विपक्षीगण की ओर से यह स्वीकार किया गया कि परिवादी के वाहन का बीमा किया गया था, जो दिनांक 26.06.12 से 25.06.13 तक वैध एवं प्रभावी था तथा वाहन का मूल्याॅंकन अंकन 9,00,000/-रूपये किया गया था और बीमा पाॅलिसी संॅ0 79697621 थी । विपक्षीगण की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया कि चोरी की घटना दिनांक 13.11.12 की बतायी गयी है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 20.11.12 को पंजीकृत करायी गयी है । इस प्रकार प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में काफी विलम्ब किया गया है, जो बीमा पाॅलिसी की शर्तों के विपरीत है । चोरी की घटना की सूचना तत्काल विपक्षी बीमा कं0 को न दिया जाना परिवादी द्वारा बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन है । परिवादी द्वारा वाहन को असुरक्षित रूप से एवं असावधानी पूर्वक उपेक्षा पूर्ण ढंग से खडा किया गया था, जिसके कारण वाहन की चाबियाॅं भी उपलब्ध नहीं हो सकीं । इस प्रकार परिवादी द्वारा स्वयॅं लापरवाही बरतते हुए बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन किया गया । परिवादी का यह कथन असत्य है कि उसके द्वारा चोरी की घटना के दूसरे दिन ही सम्बन्धित् थाने को सूचित किया गया था और सम्बन्धित् थाने द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी । बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन किये जाने के कारण ही बीमा क्लेम विपक्षीगण द्वारा निरस्त कर दिया गया । परिवादी द्वारा घटना के तुरन्त बाद न तो सम्बन्धित् थाने में कोई सूचना दी गयी और न ही बीमा कं0 को कोई सूचना दी गयी । अखलाक अहमद द्वारा यह बताया गया कि ड्राइवर वाहन खडा करने के करीब तीन दिन बाद आया, उस परिस्थिति में दूसरे दिन थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराये जाने का तथ्य गलत हो जाता है । सर्वेयर द्वारा भी एैसी कोई साक्ष्य नहीं पायी गयी कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराये जाने हेतु कोई भी दिनांक 14.11.12 को सम्बन्धित् थाने पर सूचना दी गयी हो । परिवादी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने और बीमा कं0 को समय से सूचित करने के तथ्य को असत्य बताया गया है, जो किसी भी प्रकार से स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है । परिवादी के अनुसार दिनांक 12.11.12 को वाहन में मिट्टी लादकर अजीतपुर के्रसर, सितारगंज जाना बताया गया है, परन्तु सर्वेयर को इस सम्बन्ध में कोई भी चालान या रसीद आदि प्रस्तुत नहीं की गयी । परिवादी द्वारा असत्य कथन प्रस्तुत करते हुए परिवाद योजित किया गया है, जो कि निरस्त किये जाने योग्य है ।
परिवादी की ओर से अपने कथनों के समर्थन में साक्ष्य शपथपत्र 16/1 लगायत 16/4, प्रति उत्तर शपथपत्र 26/1 लगायत 26/6 प्रस्तुत किये गये है । इसके अतिरिक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट की छाया प्रति 7/2, पुलिस द्वारा लगायी गयी अंतिम आख्या की छाया प्रति 7/3 लगायत 7/4, न्यायालय द्वारा अंतिम आख्या स्वीकार किये जाने सम्बन्धित् आदेश की छाया प्रति 7/5 लगायत 7/6, विपक्षीगण को भेजे गये रजिस्टर्ड नोटिस की छाया प्रति 7/7 लगायत 7/8, चोरी गये वाहन के संदर्भ में विपक्षी नं0 1 को भेजे गये पत्र की छाया प्रति 7/9 लगायत 7/11, रजिस्टर्ड नोटिस की छाया प्रति 7/12 लगायत 7/13, बीमा क्लेम निरस्त किये जाने के संदर्भ में भेजे गये पत्र की छाया प्रति 7/13 लगायत 7/15, प्रथम सूचना रिपोर्ट तथा न्यायालय के आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपियां 18/1 लगायत 18/6 प्रस्तुत की गयी हैं ।
विपक्षीगण की ओर से साक्ष्य शपथपत्र 21/1 लगायत 21/5, बीमा क्लेम निरस्त किये जाने सम्बन्धी प्रपत्र की छाया प्रति 23/1 लगायत 23/2, विपक्षी नं0 1 को भ्ेाजे गये पत्र की छाया प्रति 23/3 लगायत 23/5, बीमा कं0 द्वारा परिवादी को भेजे गये पत्र की छाया प्रति 26/3, सर्वे रिपोर्ट की छाया प्रति 23/7 लगायत 23/22, पेन कार्ड की छाया प्रति 23/23, शपथपत्र की छाया प्रति 23/24, क्लेम फार्म की छाया प्रति 23/25, बीमा पाॅलिसी की छाया प्रति 23/27, विपक्षी नं0 1 को भेजे गये पत्रों की छाया प्रति 23/28 लगायत 23/31, बीमा पाॅलिसी के व्यवसायिक उपयोग सम्बन्धी प्रपत्र की छाया 23/32 प्रस्तुत की गयी है ।
पक्षगण अधिवक्ता द्वारा की गयी बहस को सुना गया एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
निष्कर्ष
उपरोक्त आधार पर यह स्पष्ट है कि परिवादी का वाहन संॅ0 यू0पी0 35 एच/4007 विपक्षी नं0 1 द्वारा बीमित था, जिसके संदर्भ में परिवादी द्वारा प्रीमियम की धनराशि अंकन 31,016.17 रूपये जमा किये गये थे । इस बीमा पाॅलिसी की संॅ0 79697621 थी, जो दिनांक 26.03.12 से 25.03.12 तक वैध एवं प्रभावी थी । परिवादी के कथनानुसार उसके वाहन का चालक दिनांक 12.11.12 को रात्रि 11.00 बजे वाहन में मिट्टी लादकर ग्राम अमरिया, पीलीभीत गया था और दिनांक 13.11.12 को वाहन के चालक मौसम खाॅ द्वारा ग्राम अमरिया में ट्रक को खाली किया गया, उसके उपरांत अखलाक अहमद के फार्म हाउस पर जाकर वाहन को खडा कर दिया था । परिवादी के चालक मौसम खाॅ द्वारा अखलाक अहमद और उसके भाई सज्जाद अहमद से वाहन की देखरेख करने के लिए कहा गया था । परिवादी के अनुसार वालक चाहक जब दिनांक 14.11.12 को ग्राम अमरिया, पीलीभीत पहुॅंचा, तब उसने पाया कि जहाॅं पर वह वाहन खडा करके गया था, वहाॅं पर वाहन नहीं था । इसके संदर्भ में अखलाक अहमद से पूछ-ताछ करने पर यह पाया गया कि वह यह समझते रहे कि वाहन चालक वाहन को ले गया । इसके उपरांत वाहन चालक द्वारा वाहन स्वामी को सूचित किया गया और दिनांक 14.11.12 को ही सम्बन्धित् थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने का प्रयास किया गया, परन्तु उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई । इसके बाद परिवादी द्वारा पुलिस अधीक्षक, पीलीभीत को पत्र के माध्यम से सूचित किया गया और कोई कार्यवाही न होने पर न्यायालय के समक्ष प्रार्थना पत्र अंतर्गत धारा 156 (3) सी.आर.पी.सी. में प्रस्तुत किया गया । न्यायालय द्वारा पारित आदेश के माध्यम से दिनांक 30.11.12 को प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत हुई । विपक्षीगण की ओर से मुख्य रूप से यह आपत्ति प्रस्तुत की गयी है कि परिवादी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराने में काफी विलम्ब किया गया और चोरी की घटना की सूचना तत्काल न तो सम्बन्धित् थाने में और न ही बीमा कं0 को भेजी गयी । विपक्षीगण की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया कि सर्वेयर द्वारा लिये गये बयानात के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि वाहन चालक द्वारा दिनांक 13.11.12 को वाहन खडा करने के उपरांत तीन दिन के बाद आने के सम्बन्ध में अखलाक अहमद को बताया गया था और वह तीन बाद ही दिनांक 16.11.12 को ग्राम अमरिया, पीलीभीत में पहुॅंचा था। एैसी परिस्थिति में परिवादी की ओर से दिनांक 14.11.12 को प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने का कोई प्रयास नहीं किया गया और परिवादी द्वारा इस संदर्भ में असत्य कथनों के आधार पर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है । विपक्षी बीमा कं0 की ओर से यह आपत्ति भी की गयी है कि परिवादी द्वारा उक्त वाहन को असुरक्षित तथा असावधानी पूर्वक अखलाक अहमद के फार्म हाउस पर खडा कर दिया गया और वाहन की चाबियाॅं भी गुम हो गयी । इस प्रकार परिवादी द्वारा वाहन को असुरक्षित खडा करने के कारण ही चोरी की घटना घटित हुई और परिवादी की लापरवाही के कारण ही वाहन चोरी होने के कारण विपक्षीगण उत्तरदायी नहीं हैं । विपक्षीगण की ओर से बीमा क्लेम इसी आधार पर निरस्त कर दिया गया कि परिवादी द्वारा असत्य कथन प्रस्तुत किये गये हैं और प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराने में काफी विलम्ब किया गया तथा बीमा कं0 को भी काफी विलम्ब से चोरी की घटना की सूचना दी गयी तथा वाहन को असुरक्षित खडा करके बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लॅंघन किया गया ।
उपरोक्त संदर्भ में पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य पर विचारण किया गया । यद्यपि परिवादी की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि उसके द्वारा दिनांक 13.11.12 को ग्राम अमरिया, पीलीभीत में अखलाक अहमद के फार्म हाउस पर वाहन को खडा करने के बाद वह दूसरे दिन दिनांक 14.11.12 को ही ही ग्राम अमरिया पहुॅंचा और तब उसने पाया कि वाहन अपने स्थान पर खडा नहीं है और वाहन की चोरी हो गयी । परिवादी के अनुसार दिनांक 14.11.12 को ही प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने का प्रयास किया गया, परन्तु पुलिस द्वारा रिपोर्ट पंजीकृत नहीं की गयी । यदि परिवादी के इस कथन पर विश्वास न भी किया जाये और विपक्षीगण के ही कथन पर विश्वास किया जाये कि वाहन चालक घटना के तीन दिन बाद ग्राम अमरिया, पीलीभीत पहुॅंचा था, तब भी यह स्पष्ट है कि परिवादी की ओर से सम्बन्धित् थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने का प्रयास किया गया, परन्तु प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत नहीं हुई । पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर यह स्पष्ट है कि पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत न किये जाने के बाद ही परिवादी द्वारा न्यायालय की शरण ली गयी । परिवादी की ओर से सम्बन्धित् न्यायालय में धारा 156 (3) सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जाना ही यह स्पष्ट कर देता है कि परिवादी के द्वारा काफी प्रयास किये जाने के उपरांत भी उसकी रिपोर्ट सम्बन्धित् थाने की पुलिस द्वारा नहीं पंजीकृत की गयी, तब वह निराश होकर न्यायालय की शरण में गया था । एैसी परिस्थिति में यह नहीं कहा जा सकता है कि परिवादी द्वारा स्वतः प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में विलम्ब किया गया हो । पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा सम्बन्धित् न्यायालय में धारा 156 (3) सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया और सम्बन्धित् न्यायालय द्वारा प्रथम दृष्टिया घटना के तथ्यों से संतुष्ट होकर थाना अमरिया, पीलीभीत को प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने हेतु आदेशित किया गया और न्यायालय द्वारा पारित किये गये आदेश के अनुपालन में दिनांक 30.11.12 को परिवादी के वाहन की चोरी की घटना के संदर्भ में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत हुई । एैसी परिस्थिति में विपक्षीगण के इस कथन में कोई बल नहीं रह जाता है कि परिवादी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में या बीमा कं0 को विलम्ब से सूचना देकर बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन किया गया । परिवादी की ओर से सशपथ यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि उसको यह जानकारी नहीं थी कि चोरी की घटना की सूचना तत्काल ही बीमा कं0 को दिया जाना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त महत्वपूर्ण बिन्दु यह भी है कि जहाॅं तक बीमा कं0 को तत्काल सूचना दिये जाने का प्रश्न है, उस प्राविधान के पीछे मोटिव केवल यही होता है कि चोरी की घटना अविलम्ब बीमा कं0 को दिये जाने से बीमा कं0 चोरी की घटना की सत्यता के सम्बन्ध में जाॅंच पडताल कर सके, परन्तु वर्तमान मामले में परिवादी द्वारा न्यायालय के समक्ष धारा 156 (3) सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था और सम्बन्धित् मजिस्ट्रेट द्वारा चोरी की घटना से संतुष्ट होकर प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने हेतु सम्बन्धित् थाने को आदेशित किया गया । पुलिस द्वारा घटना की विवेचना की गयी और विवेचना के दौरान वाहन के संदर्भ में कोई पता न लगने पर पुलिस द्वारा अंतिम आख्या प्रस्तुत कर दी गयी । पुलिस द्वारा प्रस्तुत की गयी अंतिम आख्या को सम्बन्धित् मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया गया । इस संदर्भ में सभी प्रपत्रों की प्रमाणित प्रतिलिपियां पत्रावली पर दाखिल की गयी हैं । जहाॅ तक बीमा कं0 का यह कथन है कि परिवादी को प्रश्नगत वाहन की चोरी की सूचना तत्काल दिया जाना चाहिये था और तत्काल सूचना न देने के कारण बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन किया गया, उस संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि विपक्षीगण द्वारा कभी भी न तो बीमा पाॅलिसी की शर्तें परिवादी को उपलब्ध करायी गयीं और न ही इस संदर्भ में कोई जानकारी दी गयी । इस संदर्भ में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा ।। (2000) सी.पी.जे. 64 (एन.सी.) मशीना कोल्ड स्टोरेज लि0 बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 के मामले में यह स्पष्ट व्यवस्था दी गयी है कि यदि बीमा पाॅलिसी के साथ बीमा पाॅलिसी की शर्तों और नियमों को संलग्न नहीं किया गया है अथवा बीमा पाॅलिसी की शर्तों को बीमाधारक को अवगत नहीं कराया गया है, उस स्थिति में यह विपक्षीगण की सेवाओं में त्रुटि होगी और इसी आधार पर माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा क्षतिपूर्ति की धनराशि के भुगतान हेतु ही आदेशित किया गया । इसके अतिरिक्त महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जब एक सक्षम न्यायालय द्वारा चोरी की घटना कोे प्रथम दृष्टिया रूप से स्वीकार करते हुए रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने हेतु आदेशित किया गया है और पुलिस द्वारा विधिवत् विवेचना के बाद अंतिम आख्या प्रस्तुत कर दी गयी। उस स्थिति में चोरी की घटना के संदर्भ में कोई भी संदेह नहीं रह जाता है और एैसी परिस्थिति में यदि विपक्षीगण को समय से जानकारी नहीं दी गयी, तब भी इसका कोई दुष्परिणाम नहीं हो सकता है, क्योंकि एक सक्षम एजेंसी द्वारा विवेचना की गयी और सक्षम न्यायालय द्वारा चोरी की घटना से संतुष्ट होकर प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने हेतु आदेशित किया गया । उस परिस्थिति में विपक्षीगण का यह कथन कि परिवादी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में विलम्ब किया गया अथवा बीमा कं0 को सूचित न करते हुए बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन किया गया, कदापि स्वीकार किये जाने योग्य नहीं रह जाता है । जहाॅं तक वाहन के असुरक्षित खडा करने का प्रश्न है, उस संदर्भ में सर्वेयर द्वारा भी यह पाया गया कि परिवादी के वाहन चालक द्वारा वाहन को अखलाक अहमद के फर्म हाउस पर खडा किया गया था और प्रत्येक फार्म हाउस के चारों तरफ बाउण्ड्री व फाटक होता है । इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा अखलाक अहमद और उसके भाई से वाहन की देख-रेख करने के लिए कहकर वाहन को खडा किया था तथा वाहन दिनांक 13.11.12 को उस स्थान से चोरी हो गया था । एैसी परिस्थिति में यह नहीं कहा जा सकता है कि वाहन चालक द्वारा वाहन को किसी खुले स्थान पर अथवा बिना किसी को बताये हुए असावधानी पूर्वक खडा किया गया हो । यह सही है कि इस संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य नहीं है कि परिवादी का वाहन चालक घटना के दूसरे दिन दिनांक 14.11.12 को ग्राम अमरिया पहुॅंचा अथवा उसके द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने का प्रयास दिनांक 14.11.12 को किया गया हो और विपक्षीगण के कथनानुसार ही यह माना जाये कि वाहन चालक घटना के तीन दिन बाद दिनांक 16.11.12 को ग्राम अमरिया पहुॅंचा था, तब भी यह तो विश्वास किये जाने योग्य है ही कि चोरी की घटना की जानकारी होने के बाद परिवादी की ओर से सम्बन्धित् थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने का पूरा प्रयास किया गया और निराश होकर बाद में वह न्यायालय की शरण में गया । प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने हेतु न्यायालय की शरण में कोई भी व्यक्ति तभी जाता है, जबकि सम्बन्धित् थाने की पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत करने में आना-कानी की गयी हो अथवा घटना की रिपोर्ट दर्ज करने से मना कर दिया गया हो । वर्तमान मामले में भी यही हुआ कि सम्बन्धित् थाने की पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी और न्यायालय के माध्यम से रिपोर्ट दर्ज कराये जाने में कुछ समय लगना स्वभाविक है, क्योंकि न्यायालय अपनी प्रक्रिया के अनुरूप ही कार्यवाही करता है, परन्तु यह सही है कि सम्बन्धित् मजिस्ट्रेट द्वारा चोरी की घटना से संतुष्ट होकर ही प्रथम सूचना रिपोेर्ट दर्ज कराये जाने हेतु आदेशित किया गया । इस प्रकार उपरोक्त परिस्थितियों के आधार पर यह स्पष्ट है कि परिवादी का वाहन चालक द्वारा न तो वाहन को असुरक्षित खडा किया गया था और न ही परिवादी द्वारा जानबूझकर प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में कोई विलम्ब किया गया । जहाॅं तक बीमा कं0 को विलम्ब से सूचना देने का प्रश्न है वह वर्तमान मामले में महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि घटना की सत्यता की पुष्टि पहले ही सम्बन्धित् न्यायालय द्वारा पारित किये गये आदेश और पुलिस द्वारा की गयी विवेचना से हो चुकी है । एैसी परिस्थिति में विपक्षीगण के इस कथन में कोई बल नहीं रह जाता है कि परिवादी द्वारा जानबूझकर प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में अथवा बीमा कं0 को सूचित किये जाने में कोई विलम्ब किया गया हो । विपक्षीगण की ओर से इस संदर्भ में अनेकों विधि व्यवस्थायें प्रस्तुत की गयी हैं, जिनके आधार पर यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि बीमाधारक द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में विलम्ब किये जाने के आधार पर और बीमा कं0 को विलम्ब से सूचना देने के कारण बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन किया गया है, परन्तु वर्तमान मामले में जिस घटना की रिपोर्ट सक्षम न्यायालय के माध्यम से पंजीकृत करायी गयी हो और पुलिस द्वारा घटना की पुष्टि करते हुए विवेचना की गयी हो तथा सर्वेयर द्वारा भी घटना की सत्यता को स्वीकार किया गया हो, उस परिस्थिति में विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत की गयी विधिक व्यवस्थाओं का कोई महत्व नहीं रह जाता है । विपक्षीगण की ओर से मात्र बीमा क्लेम अस्वीकार किये जाने के आशय से निराधार रूप से प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराये जाने में हुए विलम्ब और बीमा कं0 को सूचना देने में हुए विलम्ब के बारे में अधिक बल दिया गया है, जबकि वर्तमान मामले में इसका कोई भी महत्व नहीं है ।
अतः उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुॅंचते हैं कि विपक्षी बीमा कं0 द्वारा अवैधानिक रूप से परिवादी के बीमा क्लेम को निरस्त किया गया है । अतः परिवादी बीमा क्लेम प्राप्त करने का अधिकारी पाया जाता है । पत्रावली के अवलोकन से विदित है कि वाहन अंकन 9,00,000/-रूपये के लिए बीमित किया गया था, परन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी विधि व्यवस्था (2010) ए.सी.जे. 1250 अमालेन्दू साहू बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 में यह व्यवस्था दी गयी है कि यदि बीमा कं0 द्वारा बीमा पाॅलिसी की शर्तों का उल्लघॅंन किये जाने के आधार पर बीमा क्लेम निरस्त किया गया हो, उस परिस्थिति में बीमा क्लेम का निर्धारण नाॅन स्टैण्डर्ड आधार पर किया जाना चाहिये और इस प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी इस व्यवस्था के आधार पर परिवादी बीमित धनराशि के 75 प्रतिशत धनराशि को नाॅन स्टैण्डर्ड आधार पर प्राप्त करने का अधिकारी पाया जाता है । अर्थात परिवादी बीमा क्लेम के रूप में अंकन 6,75,000/-रूपये प्राप्त करने का अधिकारी पाया जाता है । विपक्षीगण द्वारा अवैधानिक रूप से बीमा क्लेम निरस्त किये जाने के कारण परिवादी को जो आर्थिक एवं मानसिक क्षति हुई और उसे यह परिवाद योजित करते हुए वाद व्यय का भुगतान करना पडा, उसके लिए भी परिवादी विपक्षीगण से धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी है । यद्यपि परिवादी द्वारा क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय के रूप में अंकन एक लाख रूपये का भुगतान चाहा गया है, परन्तु हमारे विचार से परिवादी क्षतिपूर्ति एव वाद व्यय के रूप में अंकन 25,000/-रूपये का भुगतान प्राप्त करने का अधिकारी पाया जाता है, तद्नुसार परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है ।
आदेश
परिवादी की ओर से योजित परिवाद आंशिक रूप स्वीकार किया जाता है । विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी को बीमा कलेम के रूप में अंकन 6,75,000/-रूपये एवं क्षतिपूर्ति व वाद व्यय के रूप में अंकन 25,000/-रूपये अर्थात् कुल अंकन 7,00,000/-रूपये (सात लाख रूपये मात्र) का भुगतान एक माह के अंदर करेगें अन्यथा परिवादी को यह अधिकार होगा कि वह उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि की वसूलयाबी विपक्षीगण से 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद योजित करने की तिथि से सम्पूर्ण वसूलयाबी तक समस्त धनराशि की वसूली फोरम के माध्यम से करेगा ।