सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1670/2012
(जिला मंच, गौतम बुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्या-160/2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.06.2012 के विरूद्ध)
M/S P.K. PROPTECH (P) LTD.
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
M/S IFFCO TOKIO GENERAL INSURANCE CO. LTD & ORS.
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से : श्री अशोक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 11.12.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, गौतम बुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्या-160/2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.06.2012 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलकर्ता/परिवादी के कथनानुसार परिवादी एक निगमित कम्पनी है। परिवादी ने महिन्द्रा स्कारपियो जीप नं0-DL 4 CNB 0668 विरेन्द्र कुमार शर्मा नाम के व्यक्ति से खरीदी, जिसका पंजीयन दिनांक 30.06.2006 को परिवादी के नाम जारी हुआ। यह जीप दिनांक 08.03.2006 से दिनांक 07.03.2007 तक की अवधि केलिए वाहन के पूर्व स्वामी विरेन्द्र कुमार के नाम पंजीकृत स्वामी के रूप में बीमित थी। बीमा परिवादी कम्पनी के नाम ट्रांसफर नहीं हो पाया था। यद्यपि पालिसी की अवधि समाप्त नहीं हुई थी। दिनांक 29/30.12.2006 की रात्रि में बीमित वाहन जगतपुरी शाहदरा में नर्सिंग होम के सामने खड़ा किया गया था, जहां से अज्ञात चोरों द्वारा चोरी कर लिया गया। पुलिस को सूचना दी गयी, किंतु पुलिस ने तत्काल सूचना न लिखकर चोरी की सूचना दिनांक 01.01.2007 को एम.एस. पार्क दिल्ली पर पंजीकृत की। सारी औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए बीमा कम्पनी से चोरी के वाहन के मूल्य के लिए बीमा दावा प्रस्तुत किया, किंतु बीमा कम्पनी ने बीमा दावा मनमाने तरीके से यह कह कर निरस्त कर दिया कि बीमा पालिसी विरेन्द्र कुमार शर्मा के नाम थी। विवश होकर परिवादी ने प्रत्यर्थीगण बीमा कम्पनी को विधिक नोटिस दी, किंतु कोई कार्यवाही न किये जाने पर बीमा धनराशि के भुगतान तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी के कथनानुसार परिवादी एक व्यावसायिक संस्थान है, अत: उपभोक्ता की परिभाषा के अन्तर्गत नहीं आता है। वाहन भी व्यावसायिक संस्थान के नाम ही पंजीकृत है। प्रत्यर्थीगण के कथनानुसार मूल बीमित का बीमा दावा प्रत्यर्थीगण ने दिनांक 02.07.2007 के पत्र द्वारा निरस्त कर दिया और उसकी एक प्रति परिवादी को भी भेजी गयी थी। मूल बीमित का बीमा दावा प्रश्नगत पालिसी की शर्तों के उल्लंघन किये जाने के कारण निरस्त किया गया। बीमा दावा निरस्त करके प्रत्यर्थीगण द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी। प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी का यह भी कथन है कि बीमा कम्पनी तथा परिवादी के मध्य कोई संविदायी संबंध नहीं था। मूल बीमित व्यक्ति वाहन विक्रय कर चुका था। अत: बीमित वाहन में उसका बीमित हित शेष नहीं रह गया था। परिवादी ने अपने नाम प्रश्नगत वाहन का बीमा कराये जाने हेतु निर्धारित व्यक्ति के मध्य बीमा कम्पनी को सूचना प्रेषित नहीं की। प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी का यह भी कथन है कि परिवादी ने बीमा दावा बीमा कम्पनी के समक्ष मूल बीमित से अर्थात् पूर्व स्वामी से प्रस्तुत कराया था, जो मूल बीमित का बीमा हित समाप्त हो जाने के कारण अस्वीकार कर दिया गया।
जिला मंच ने अपीलकर्ता/परिवादी को उपभोक्ता न मानते हुए प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया।
इस निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपीलकर्ता की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। हमने प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक मेहरोत्रा के तर्क सुने, उनके द्वारा प्रस्तुत किये गये लिखित तर्क तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवकोकन किया।
अपील के आधारों में अपीलकर्तागण द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि प्रश्नगत वाहन व्यावसायिक प्रयोजन हेतु क्रय नहीं किया गया और न ही इसका उपयोग अपीलकर्ता, कम्पनी द्वारा व्यावसायिक प्रयोजन हेतु किया जा रहा था, बल्कि निजी उपयोग हेतु प्रश्नगत वाहन क्रय किया गया था। अपीलकर्ता द्वारा यह भी अभिकथित किया गया कि अपीलकर्ता ने प्रश्नगत वाहन की सुरक्षा हेतु प्रश्नगत वाहन का बीमा प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी से कराया था। इस बीमा पालिसी के अन्तर्गत प्रश्नगत वाहन के चोरी हो जाने अथवा वाहन में क्षति होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति की अदायगी बीमा पालिसी की शर्तों के अन्तर्गत प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी द्वारा की जानी थी, किंतु बीमा कम्पनी द्वारा प्रश्नगत वाहन के चोरी हो जाने के उपरांत क्षतिपूर्ति की अदायगी न करके सेवा में त्रुटि की गयी।
अपीलकर्ता के इस कथन में बल है। अपीलकर्ता ने बीमा कम्पनी से कार क्रय नहीं की है, बल्कि प्रतिफल की अदायगी/प्रीमियम का भुगतान करके यह सेवा प्राप्त करने का अनुबंध किया है कि बीमित वाहन के चोरी हो जाने अथवा क्षतिग्रस्त हो जाने की स्थिति में बीमा पालिसी की शर्तों के अन्तर्गत क्षति का भुगतान बीमा कम्पनी द्वारा किया जाएगा। ऐसी परिस्थिति में जिला मंच का यह मत कि प्रश्नगत वाहन का उपयोग कथित रूप से व्यावसायिक प्रयोजन हेतु किये जाने के कारण अपीलकर्ता/परिवादी उपभोक्ता नहीं हैं, त्रुटिपूर्ण है।
प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण में प्रश्नगत बीमा पालिसी अपीलकर्ता के पक्ष में जारी नहीं की गयी, बल्कि यह पालिसी प्रश्नगत वाहन के पूर्व स्वामी श्री विरेन्द्र कुमार शर्मा के पक्ष में जारी की गयी। श्री विरेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा यह वाहन परिवादी के पक्ष में विक्रय किया गया, किंतु विक्रय के उपरांत प्रश्नगत वाहन से संबंधित बीमा पालिसी परिवादी के पक्ष में हस्तांतरित नहीं करायी गयी। प्रश्नगत बीमित वाहन दिनांक 29/30.12.2006 को चोरी होना अभिकथित किया गया। उक्त तिथि पर वाहन का बीमा पूर्व स्वामी श्री विरेन्द्र कुमार शार्म के नाम था। चोरी की घटना के 06 माह बाद तक बीमा पालिसी परिवादी के पक्ष में हस्तांतरित नहीं की गयी।
प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 के अन्तर्गत वाहन क्रेता के लिए यह आवश्यक है कि क्रेता के पक्ष में बीमा पालिसी हस्तांतरित किये जाने हेतु हस्तांतरण की तिथि से 14 दिन के अन्दर निर्धारित प्रोफार्मा पर बीमा कम्पनी को आवेदन प्रस्तुत किया जाए तथा 50/- रूपये भी इस प्रयोजन हेतु बीमा कम्पनी को भुगतान किये जाए, किंतु प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने प्रश्नगत वाहन के स्वामित्व हस्तांतरण की तिथि से लगभग 06 माह तक बीमा पालिसी हस्तांतरण हेतु प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत नहीं किया और न ही निर्धारित शुल्क का भुगतान किया। प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने Complete Insulation (P) Ltd Vs New India Assurance Company Limited AIR 1996 SC 56 के मामलें में यह निर्णीत किया है कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 के अन्तर्गत बीमा पालिसी का स्वत: हस्तांतरण तृतीय पक्ष के जोखिम हेतु प्रभावी माना जाएगा, जब बीमा पालिसी के अन्तर्गत अन्य जोखिम भी आच्छादित है तब उत्तरदायित्व पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के आलोक में निर्धारित होंगे।
प्रस्तुत प्रकरण में निर्विवाद रूप से कथित घटना की तिथि पर प्रश्नगत बीमा पालिसी परिवादी एवं प्रत्यर्थीगण, बीमा कम्पनी के मध्य निष्पादित नहीं थी, बल्कि वाहन के पूर्व स्वामी एवं प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी के मध्य निष्पादित थी। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि प्रश्नगत वाहन कथित घटना की तिथि पर अपीलकर्ता/परिवादी के नाम हस्तांतरित किया जा चुका था, किंतु बीमा पालिसी हस्तांतरित नहीं की गयी थी और न ही वाहन हस्तांतरण के 14 दिन के अन्दर बीमा हस्तांतरण हेतु कोई प्रार्थना पत्र परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी, बीमा कम्पनी को प्रेषित किया गया। निर्विवाद रूप से पूर्व वाहन स्वामी का वाहन हस्तांतरण के उपरांत बीमित हित समाप्त हो चुका था। ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत बीमा पालिसी के अन्तर्गत अपीलकर्ता/परिवादी को क्षतिपूर्ति की अदायगी के लिए बीमा कम्पनी को उत्तरादायी नहीं माना जा सकता। तदनुसार बीमा कम्पनी द्वारा बीमा दावा स्वीकार न करके हमारे विचार से सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी है। प्रश्नगत निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। अपील में बल नहीं है, अपील तदनुसार निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2