राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-117/2017
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, आगरा द्वारा परिवाद संख्या 308/2014 में पारित आदेश दिनांक 30.11.2016 के विरूद्ध)
SATYA DEO S/O LATE SRI BABUL LAL, R/O 46/117/B-2, BHIM NAGAR, JAGDISHPURA, P.S. JAGDISHPURA, AGRA.
...................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1. MANAGER IFFCO TOKIO GENERAL INSURANCE COMPANY LTD., ADDRESS NEXT TO RAM RAGHU HOSPITAL, RAMNAGAR, SANJAY PLACE, AGRA.
2. MANAGER, L AND T FINANCE LTD., ADDRESS L AND T HOUSE, BALLARD ESTATE, MUMBAI-400001
...................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण सं01 व 3
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं01 की ओर से उपस्थित : श्री विवेक सक्सेना,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं02 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 07.08.2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-308/2014 सत्यदेव बनाम प्रबन्धक, इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस क0लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30.11.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा और प्रत्यर्थी संख्या-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री विवेक सक्सेना उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से नोटिस तामीला पर्याप्त माने जाने के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने अपीलार्थी/परिवादी एवं प्रत्यर्थी संख्या-1 बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है। मैंने प्रत्यर्थी संख्या-1 की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने अपने आयशर ट्रैक्टर 242 एक्सट्रेक, जिसकी पंजीयन संख्या-UP80 BY 2329 और इंजन संख्या-518829167874 एवं चैसिस संख्या-9188102315953 है, का बीमा प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 से 3,32,000/-रू0 मूल्य हेतु 6012/-रू0 प्रीमियम अदा कर कराया था और बीमा पालिसी दिनांक 31.08.2011 से दिनांक 30.08.2012 तक वैध थी। उसने यह ट्रैक्टर प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 एल एण्ड टी फाइनेन्स लि0 से आर्थिक सहायता प्राप्त कर क्रय किया था और उसे मासिक किस्तों का भुगतान कर रहा था। इसी बीच
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दिनांक 30.07.2012 को उसके उपरोक्त ट्रैक्टर की अज्ञात व्यक्तियों द्वारा चोरी कर ली गयी, जिसकी लिखित सूचना उसने थाना शाहगंज, आगरा को दी, जिसके आधार पर दिनांक 01.08.2012 को पुलिस द्वारा अपराध संख्या-412/12 अन्तर्गत धारा-379 भा0द0सं0 पंजीकृत किया गया। उसके पश्चात् उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 बीमा कम्पनी को ट्रैक्टर चोरी होने की सूचना दी और सम्भागीय अधिकारी, आगरा को भी लिखित रूप से दिनांक 04.12.2012 को वाहन चोरी की सूचना दी।
परिवाद पत्र के अनुसार वाद विवेचना पुलिस ट्रैक्टर बरामद नहीं कर सकी और अन्तिम रिपोर्ट न्यायालय प्रेषित किया, जिसे न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया गया, परन्तु अपीलार्थी/परिवादी द्वारा समस्त औपचारिकतायें पूरी किये जाने व आवश्यक प्रपत्र प्रस्तुत किये जाने के बाद भी परिवाद के विपक्षीगण संख्या-1 व 2 ने उसके द्वारा प्रस्तुत बीमा दावा का निस्तारण नहीं किया और इसी बीच प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 एल एण्ड टी फाइनेन्स लि0 ने अपीलार्थी/परिवादी व उसके गारन्टर के विरूद्ध ऑर्बीटेशन संख्या-495/2014, 1,94,610/-रू0 के सम्बन्ध में फरवरी 2014 में बम्बई में आर्बिट्रेटर के समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। अत: क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर ट्रैक्टर की बीमित धनराशि ब्याज सहित दिलाये जाने का अनुरोध किया है। साथ ही क्षतिपूर्ति व वाद व्यय भी मांगा है।
जिला फोरम के समक्ष बीमा कम्पनी की ओर से परिवाद के
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विपक्षीगण संख्या-1 व 2 ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है, जिसमें वाहन का बीमा होना स्वीकार किया गया है, परन्तु यह कहा गया है कि वाहन चोरी की घटना से 27 दिन बाद बीमा कम्पनी को दिनांक 26.08.2012 को सूचित किया गया है, जो बीमा पालिसी की शर्त संख्या-1 का उल्लंघन है। इसके साथ ही अपीलार्थी/परिवादी ने वांछित अभिलेख प्रस्तुत नहीं किये हैं। अत: उसका बीमा दावा नो क्लेम करते हुए बन्द कर दिया गया है।
लिखित कथन में बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि उनकी सेवा में कोई कमी नहीं है। परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 की ओर से भी लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी का वाहन का पंजीकृत स्वामी होना स्वीकार है, परन्तु वाहन प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 से हाइपोथिकेट है और वाहन पर प्रथम भार प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 फाइनेन्सर का है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 ने कहा है कि दिनांक 15.06.2015 तक अपीलार्थी/परिवादी के जिम्मा उसका 2,64,229/-रू0 बकाया था, जिसे प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 पाने का अधिकारी है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त बीमा कम्पनी के इस कथन को मान्यता प्रदान की है कि अपीलार्थी/परिवादी ने वांछित अभिलेख
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बीमा कम्पनी को उपलब्ध नहीं कराये हैं और बीमा कम्पनी को ट्रैक्टर चोरी की सूचना 27 दिन बाद दी है। अत: जिला फोरम ने Silverons V/s Oriental Insurance Company Limited and another reported in IV (2011) CPJ 9 (SC) एवं Oriental Insurance Co. Vs. Parvesh Chander Chandha, CA No. 6739 of 2010 decided on l7.08.2010 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर यह माना है कि बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार कर सेवा में कोई कमी नहीं की है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/परिवादी ने घटना की तुरन्त सूचना पुलिस में दिया है। दिनांक 01.08.2012 को अर्थात् घटना के दूसरे दिन अपराध संख्या-412/12 अन्तर्गत धारा-379 भा0द0सं0 पुलिस द्वारा पंजीकृत किया गया है और विवेचना पुलिस द्वारा प्रारम्भ की गयी है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी ने बिना किसी विलम्ब के विपक्षी बीमा कम्पनी को सूचना दी है। विलम्ब से सूचना के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार
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भी नहीं किया है। मात्र नो क्लेम किया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी द्वारा वांछित अभिलेख उपलब्ध कराये हैं। फिर भी बीमा कम्पनी और कोई अभिलेख चाहे तो उसे उपलब्ध कराया जा सकता है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश दोषपूर्ण है अत: उसे निरस्त कर परिवाद स्वीकार किया जाना आवश्यक है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश तथ्य और विधि के अनुकूल है। अपीलार्थी/परिवादी ने चोरी की सूचना 27 दिन बाद बीमा कम्पनी को दिया है और बीमा कम्पनी द्वारा वांछित आवश्यक अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया है। अत: बीमा कम्पनी ने उचित आधार पर अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा नो क्लेम किया है। बीमा कम्पनी की सेवा में कमी नहीं है। जिला फोरम ने परिवाद उचित आधार पर निरस्त किया है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र के कथन एवं जिला फोरम के निर्णय से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत ट्रैक्टर की चोरी की घटना दिनांक 30.07.2012 की रात की बतायी गयी है, जिसकी लिखित सूचना अपीलार्थी/परिवादी ने स्थानीय थाने पर दिया है, जिसके आधार पर दिनांक 01.08.2012 को पुलिस ने अपराध संख्या-412/12
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अन्तर्गत धारा-379 आई0पी0सी0 दर्ज किया है। पुलिस में दर्ज करायी गयी लिखित रिपोर्ट में अपीलार्थी/परिवादी ने कहा है कि वह लोग ट्रैक्टर को ढूंढ़ते फिर रहे हैं नहीं मिला है लगता है ट्रैक्टर को अज्ञात चोर चोरी करके ले गये हैं। लिखित रिपोर्ट के इस कथन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने ट्रैक्टर को तलाश किया और न मिलने पर घटना के दूसरे दिन दिनांक 01.08.2012 को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायी है। अत: रिपोर्ट दर्ज कराने में एक दिन का जो विलम्ब हुआ है उसका पर्याप्त कारण दर्शित होता है। अत: यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रश्नगत ट्रैक्टर की चोरी की घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराने में विलम्ब नहीं किया है।
अपीलार्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी को ट्रैक्टर चोरी की सूचना कब और किस तिथि को दिया यह स्पष्ट रूप से परिवाद पत्र में अंकित नहीं किया है। अपीलार्थी/परिवादी ने मात्र यह कहा है कि उसने विपक्षी बीमा कम्पनी को ट्रैक्टर चोरी होने की सूचना दिया है। बीमा कम्पनी के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ने ट्रैक्टर चोरी होने की सूचना घटना के 27 दिन बाद बीमा कम्पनी को दिया है। इसके साथ ही परिवाद पत्र एवं बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन के आधार पर यह स्पष्ट है कि बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा नो क्लेम किया है, रिपुडिएट नहीं किया है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ओम प्रकाश बनाम रिलायंस
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जनरल इंश्योरेंस व एक अन्य 2018 (1) CPR 907 (SC) के निर्णय में स्पष्ट मत व्यक्त किया है कि वास्तविक क्लेम को मात्र विलम्ब से सूचना के आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है:-
“It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid ground. Rejection of the claims on purely technical grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason of delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the ground of delay. It is also necessary to state here that it would
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not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.”
आई0आर0डी0ए0 द्वारा जारी सर्कुलर दिनांक 20.09.2011 में भी निम्न दिशा निर्देश दिये गये हैं:-
“The insurers’ decision to reject a claim shall be based on sound logic and valid grounds. It may be noted that such limitation clause does not work in isolation and is not absolute. One needs to see the merits and good spirit of the clause, without compromising on bad claims. Rejection of claims on purely technical grounds in a mechanical fashion will result in policy holders losing confidence in the insurance industry, giving rise to excessive litigation.
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Therefore, it is advised that all insurers need to develop a sound mechanism of their own to handle such claims with utmost care and caution. It is also advised that the insurers must not repudiate such claims unless and until the reasons of delay are specifically ascertained, recorded and the insurers should satisfy themselves that the delayed claims would have otherwise been rejected even if reported in time.”
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने युनाईटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 व एक अन्य बनाम राहुल कादियान 2018 (1) CPR 772 (NC) के निर्णय में आई0आर0डी0ए0 के उपरोक्त सर्कुलर के आधार पर माना है कि वास्तविक क्लेम को मात्र विलम्ब से सूचना के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है;
“From the guidelines of the IRDA, it is clear that genuine claims are not to be repudiated on the basis of delay in intimation to the insurance company. In the instant case the specific condition in case of theft that police must be immediately informed, has been complied with and therefore the veracity of the incident cannot be questioned. Thus, the claim seems to be a genuine claim and therefore the above mentioned IRDA
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Circular seems to be applicable in the instant case.”
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने ट्रैक्टर चोरी की सूचना दिनांक 01.08.2012 को पुलिस में दर्ज कराया है और एक दिन बाद पुलिस थाना में रिपोर्ट दर्ज कराने का पर्याप्त कारण है। बीमा कम्पनी के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी को 27 दिन विलम्ब से सूचना दिया है और वांछित अभिलेख प्रस्तुत नहीं किये हैं, जिससे उसका बीमा दावा नो क्लेम किया गया है। उपरोक्त निर्णयों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त एवं आई0आर0डी0ए0 के उपरोक्त सर्कुलर के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी का बीमा दावा मात्र बीमा कम्पनी को सूचना देने में कथित विलम्ब के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
जिला फोरम के निर्णय में सन्दर्भित माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दोनों निर्णय आई0आर0डी0ए0 के सर्कुलर दिनांक 20.09.2011 के पहले के प्रकरण के सम्बन्ध में हैं।
प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने निम्न नजीरें प्रस्तुत की हैं:-
1. रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 व एक अन्य बनाम जागेश्वर सिंह आदि I (2017) C.P.J. 27 छत्तीसगढ़।
2. प्रथम अपील संख्या 659 वर्ष 2018 भवानी शंकर शर्मा बनाम बजाज एलियांज जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 व एक अन्य
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में राज्य आयोग उत्तर प्रदेश द्वारा पारित निर्णय दिनांक 07.05.2019।
प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त निर्णयों का वर्तमान अपील से सम्बन्धित परिवाद में कथित तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में उपरोक्त विवेचना के आधार पर कोई लाभ बीमा कम्पनी को नहीं दिया जा सकता है।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों और उपरोक्त विवेचना पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर गलती की है। जिला फोरम का निर्णय अपास्त कर परिवाद स्वीकार करते हुए प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी को अपीलार्थी/परिवादी के बीमा दावा के सम्बन्ध में इस निर्णय में उल्लिखित माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णयों और आई0आर0डी0ए0 के उपरोक्त सर्कुलर दिनांक 20.09.2011 के प्रकाश में दो माह के अन्दर निर्णय लेने हेतु निर्देशित किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय में उल्लिखित माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णयों और आई0आर0डी0ए0 के उपरोक्त सर्कुलर दिनांक 20.09.2011 के प्रकाश में अपीलार्थी/परिवादी के बीमा दावा के सम्बन्ध में इस
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निर्णय की तिथि से दो मास के अन्दर निर्णय ले और अपीलार्थी/परिवादी को सूचित करे।
यदि कोई अभिलेख वांछित है तो बीमा कम्पनी इस निर्णय की तिथि से पन्द्रह दिन के अन्दर लिखित रूप से अपीलार्थी/परिवादी से मांग सकती है और अपीलार्थी/परिवादी उक्त अभिलेख बीमा कम्पनी को उपलब्ध करायेगा।
उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0,
कोर्ट नं0-1