अपील सं0- 3074/2016
अखिलेन्द्र सिंह बनाम मैनेजर इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 व अन्य
(सुरक्षित)
आदेश
दि0 08.03.2018
परिवाद सं0- 1097/2009 अखिलेन्द्र सिंह बनाम इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, लखनऊ में पारित आदेश दि0 01.04.2014/02.04.2014 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद परिवादी की अनुपस्थिति में निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने यह अपील निर्धारित समय-सीमा के बाद विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्तुत किया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल और प्रत्यर्थी मैनेजर इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विवेक कुमार सक्सेना उपस्थित आये हैं।
अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब की माफी हेतु प्रार्थना पत्र के साथ जो शपथ पत्र अपीलार्थी ने प्रस्तुत किया है उसमें अपीलार्थी ने कहा है कि प्रश्नगत परिवाद दि0 01.04.2014/02.04.2014 को उसकी अनुपस्थिति में जिला फोरम प्रथम, लखनऊ द्वारा निरस्त कर दिया गया तब वह अपने स्थानीय अधिवक्ता से मिला जिन्होंने आयोग के समक्ष अपील प्रस्तुत करने हेतु सलाह दी। उसके बाद उसने दूसरे अधिवक्ता से राय ली। उन्होंने इंतजार करने को कहा और यह बताया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में एकपक्षीय आदेश रिकॉल किये जाने का संशोधन प्रस्तावित है। इस कारण उसने अपील प्रस्तुत नहीं किया, परन्तु दिसम्बर 2016 में जब पुन: उसने अधिवक्ता से सम्पर्क किया तो उन्होंने अपील प्रस्तुत करने हेतु कहा तब उसने वर्तमान अपील दि0 29.12.2016 को प्रस्तुत किया है।
प्रत्यर्थी की ओर से विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के विरुद्ध आपत्ति प्रस्तुत की गई है और कहा गया कि 2 साल 5 महीना बाद अपील प्रस्तुत की गई है और अपील प्रस्तुत करने में विलम्ब का जो कारण अपीलार्थी ने बताया है वह अपील का विलम्ब क्षमा करने हेतु उचित नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र पर सुना है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि आक्षेपित आदेश की प्रति दि0 11.04.2014 को अपीलार्थी/परिवादी को प्राप्त हुई है और अपील दि0 29.12.2016 को 2 साल 8 महीने बाद प्रस्तुत की गई है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी ने जानबूझकर विलम्ब नहीं किया है। विलम्ब विद्वान अधिवक्ता द्वारा गलत राय दिये जाने के कारण हुआ है। अत: विलम्ब क्षमा कर अपील ग्रहण किया जाना न्यायहित में आवश्यक है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि स्वयं अपीलार्थी ने अपील प्रस्तुत करने में जानबूझकर विलम्ब किया है और उसने विलम्ब का जो कारण बताया है वह कदापि स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में मा0 राष्ट्रीय आयोग के निम्न निर्णयों को संदर्भित किया है :-
- Vasimalla Joseph Versus Garapati Garage 1959 & 2 Ors. 2016 N.C.J. 956 N.C.
- Himachal Pradesh Housing & Urban Development Authority Versus Tarawati & Ors. 2017 N.C.J. 131 N.C.
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Anshul Aggarwal Versus New Okhla Industrial Development Auth. में दिया गया निर्णय जो IV (2011) CPJ 63 (SC) में प्रकाशित है भी संदर्भित किया है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने Anshul Aggarwal Versus New Okhla Industrial Development Auth. के उपरोक्त वाद में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत विलम्ब माफी के संदर्भ में विचार किया है और निम्न मत व्यक्त किया है :-
It is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind that the special period of limitation has been prescribed under the Consumer Protection Act, 1986 for filing appeals and revisions in consumer matters and the object of expeditious adjudication of the consumer disputes will get defeated if this Court was to entertain highly belated petitions filed against the orders of the consumer foras.
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने Himachal Pradesh Housing & Urban Development Authority Versus Tarawati & Ors. के वाद में 62 दिन के विलम्ब को क्षमा करते हुए पुनरीक्षण याचिका स्वीकार नहीं की है।
Vasimalla Joseph Versus Garapati Garage 1959 & 2 Ors. के उपरोक्त वाद में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने कहा है कि Litigant can not shift entire blame for delay on his counsel.
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने आक्षेपित आदेश की प्रति दि0 11.04.2014 को प्राप्त करने के पश्चात 2 साल 8 महीने बाद वर्तमान अपील प्रस्तुत किया है और इस अवधि में अपील प्रस्तुत न करने का कारण यह बताया है कि उसे विद्वान अधिवक्ता ने यह बताया था कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में संशोधन होने वाला है जिसमें जिला फोरम को अपने आदेश को रिकाल करने का अधिकार मिल जायेगा। अपीलार्थी द्वारा अपील प्रस्तुत न किये जाने का बताया गया यह कारण बिल्कुल ही उचित और युक्तसंगत नहीं कहा जा सकता है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों व परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हूँ कि अपील प्रस्तुत करने में हुआ इतना लम्बा विलम्ब क्षमा करने हेतु उचित और संतोषजनक आधार नहीं है। अत: विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है और अपील मियाद बाधा के आधार पर अस्वीकार की जाती है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1