राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या- 2581/2016 (सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम,प्रथम बरेली द्वारा परिवाद संख्या-75/2014 में पारित आदेश दिनांक 01.08.2016 के विरूद्ध)
- शाखा प्रबन्ध, इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि0 , शाखा 148 सिविल लाइंस, थाना कोतवाली, बरेली।
- मैसर्स इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा प्रबन्धक, रजि0 कार्यालय इफ्को सदन सी-1, डिस्ट्रिक्ट सेंटर, नई दिल्ली।
..............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
सुलेमान बेग वयस्क पुत्र हाजी दूल्हा बेग, निवासी अरविन्द नगर मार्फत बेग अस्पताल, कोहाडापीर, थाना प्रेमनगर, जिला बरेली।
..........प्रत्यर्थी/परिवादी
अपील संख्या- 2780/2016
सुलेमान बेग वयस्क पुत्र हाजी दूल्हा बेग, निवासी अरविन्द नगर मार्फत बेग अस्पताल, कोहाडापीर, थाना प्रेमनगर, जिला बरेली।
..........अपीलार्थी
बनाम
- शाखा प्रबन्ध, इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि0 , शाखा 148 सिविल लाइंस, थाना कोतवाली, बरेली।
- मैसर्स इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा प्रबन्धक, रजि0 कार्यालय इफ्को सदन सी-1, डिस्ट्रिक्ट सेंटर, नई दिल्ली।
..............प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री अशोक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री ओ0पी0 दुवेल और श्री सुधीर कुमार
सक्सेना, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला फोरम बरेली ने परिवाद संख्या- 75/2014 सुलेमान बेग बनाम इफ्को टोकियो जनरल इं0कं0लि0 व 1 अन्य में आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 01.08.2016 के द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादी की ओर से योजित परिवाद आंशिक रूप स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी को बीमा क्लेम के रूप में अंकन 6,75,000/-रूपये एवं क्षतिपूर्ति व वाद व्यय के रूप में अंकन 25,000/-रूपये अर्थात् कुल अंकन 7,00,000/-रूपये(सात लाख रूपये मात्र) का भुगतान एक माह के अंदर करेंगे अन्यथा परिवादी को यह अधिकार होगा कि वह उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि की वसूलयाबी विपक्षीगण से 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद योजित करने की तिथि से सम्पूर्ण वसूलयाबी तक समस्त धनराशि की वसूली फोरम के माध्यम से करेगा।"
जिला फोरम के निर्णय से उभयपक्ष असंतुष्ट थे। अत: परिवाद के विपक्षीगण इफ्को टोकियो जनरल इं0कं0लि0 व 1 की ओर से अपील संख्या- 2581/2016 और परिवाद के परिवादी सुलेमान बेग की ओर से अपील संख्या– 2780/2016 धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
दोनों अपीलों में परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ओ0पी0दुवेल और श्री सुधीर सक्सेना तथा विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक कुमार मेहरोत्रा उपस्थित आए है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
परिवाद के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवाद सुलेमान बेग ने विपक्षीगण शाखा प्रबन्धक इफ्को टोकियो जनरल इं0कं0लि0 बरेली और मैसर्स इफ्को टोकियो जनरल इं0कं0लि0 नई दिल्ली के विरूद्ध परिवाद इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वाहन संख्या- यू0पी0-35एच/4007 का वह पंजीकृत स्वामी है जिसका पूर्ण बीमा उसने विपक्षीगण से कराया था और बीमा अवधि के दौरान ही दिनांक 13.11.2012 को उसका वाहन चोरी चला गया। काफी तलाशने के बाद भी वाहन नहीं मिला तो वह थाना अमरिया रिपोर्ट लिखाने गया, परन्तु उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी। तब उसने पंजीकृत डाक से दिनांक 20.11.2012 को पुलिस अधीक्षक पीलीभीत को रिपोर्ट दर्ज कराने हेतु सूचना भेजी। फिर भी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी। तब उसने न्यायालय में रिपोर्ट दर्ज करने हेतु प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया जिस पर न्यायालय के आदेश से दिनांक 30.12.2012 को अपराध संख्या- 535/2012 अंतर्गत धारा-379 आई.पी.सी. पंजीकृत किया गया और पुलिस ने विवेचना की तथा अंतिम रिपोर्ट न्यायालय को प्रेषित किया जिसे न्यायालय ने आदेश दिनांक 26.04.2013 के द्वारा स्वीकार कर लिया।
परिवाद-पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि वह विपक्षीगण से सम्पर्क कर उन्हें वाहन चोरी के सम्बन्ध में अवगत कराता रहा और दिनांक 15.11.2012 को विपक्षी संख्या-01 से व्यक्तिगत रूप से मिलकर उसे सूचना दी लेकिन इस संदर्भ में कोई कार्यवाही नहीं की गयी और परिवादी से कहा गया कि चोरी से सम्बन्धित अंतिम आख्या और न्यायालय का आदेश प्रस्तुत करने के उपरांत उसकी बीमा धनराशि का भुगतान किया जाएगा। अत: न्यायालय द्वारा पुलिस द्वारा प्रेषित अंतिम रिपोर्ट स्वीकार किए जाने पर दिनांक 24.05.2013 को परिवादी द्वारा विपक्षीगण को सभी आवश्यक अभिलेख उपलब्ध कराए गए और बीमा दावा का निस्तारण करने को कहा गया, परन्तु उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की और अंत में दिनांक 04.03.2014 को वाहन की बीमित धनराशि देने से मना कर दिया जो उचित नहीं है और सेवा में त्रुटि है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिलाफोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। उसने गलत कथन के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है। जिला फोरम को परिवाद के निस्तारण का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है क्योंकि पक्षकार आरबीट्रेशन एक्ट के प्राविधान से बाधित है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह कहा गया है कि वाहन का बीमा किया गया था जो दिनांक 26.03.2012 से 25.03.2013 तक प्रभावी था। वाहन का मूल्याकंन 9,00,000/-रू0 किया गया था। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि चोरी की घटना दिनांक 13.11.2012 की बतायी गयी है जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 30.12.2012 को दर्ज करायी गयी है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लघंन है। लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि वाहन चोरी की सूचना विपक्षीगण की बीमा कंपनी को पहली बार दिनांक 18.01.2013 को दी गयी है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लघंन है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह कहा गया है कि परिवादी ने अपना वाहन असुरक्षित एवं उपेक्षापूर्ण ढंग से बिना लॉक किए हुए खड़ा किया था। अत: बीमा पालिसी के अनुसार वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त सावधानी नहीं बरती गयी थी।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवाद-पत्र के अनुसार दिनांक 12.11.2012 को वाहन मिट्टी लादकर अजीतपुर क्रेसर, सितारगंज जाना बताया गया है, परन्तु सर्वेयर को इस सम्बन्ध में कोई भी चालान या रसीद प्रस्तुत नहीं की गयी है। लिखित कथन में विपक्षीगण ने कहा है कि परिवादी ने परिवाद असत्य व गलत कथन के आधार पर प्रस्तुत किया है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा पूर्ण रूप से निरस्त कर गलती की है। जिला फोरम ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा (2010) ए.सी.जे. 1250 अमालेन्द्र साहू बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा NON STANDARD BASIS पर स्वीकार किए जाने योग्य है। अत: जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा बीमित धनराशि के 75 प्रतिशत का भुगतान करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया है।
जिला फोरम ने जो दावा NON STANDARD BASIS पर स्वीकार करते हुए बीमित धनराशि के 75 प्रतिशत का भुगतान करने हेतु आदेशित किया है उससे परिवादी संतुष्ट नहीं है। अत: उसने अपील प्रस्तुत कर सम्पूर्ण बीमा धनराशि दिलाए जाने की मांग की है।
विपक्षीगण के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा पूर्ण रूप से निरस्त किए जाने योग्य है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से जो स्वीकार किया है उससे विपक्षीगण संतुष्ट नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी सम्पूर्ण बीमित धनराशि पाने का अधिकारी है। जिला फोरम ने NON STANDARD BASIS पर जो बीमित धनराशि दिलायी है, वह उचित नहीं है, अपील स्वीकार करते हुए परिवादी को सम्पूर्ण बीमित धनराशि दिलायी जाए।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुलिस और बीमा कंपनी दोनों को विलंब से सूचना दी है और वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त सावधानी नहीं बरती है। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लघंन किया है। अत: बीमा कंपनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा अस्वीकार कर कोई गलती नहीं की है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध और त्रुटिपूर्ण है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में न्यू इण्डिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम त्रिलोचन जैन IV (2012) सी.पी.जे 441 (एन.सी) की नजीर प्रस्तुत की है। जिसमें माननीय राष्ट्रीय आयोग ने निम्न मत व्यक्त किया है:-
"In the case of theft where no bodily injury has been caused to the insured, it is incumbent upon the respondent to inform the Police about the theft immediately, say within 24 hours, otherwise, valuable time would be lost in tracing the vehicle. Similarly, the insurer should also be informed within a day or two so that the insurer can verify as to whether any theft had taken place and also to take immediate steps to get the vehicle traced. The insurer can coordinate and cooperate with the Police to trace the car. Delay in reporting to the insurer about the theft of the car for 9 days, would be a violation of condition of the Policy as it deprives the insures of a valuable right to investigate as to the commission of the theft and to trace/help in tracing the vehicle."
अपीलार्थी बीमा कंपनी के विद्वान अधिवक्ता ने सत्यपाल बनाम यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एण्ड अदर्स IV (2013) सी.पी.जे. 15 (एन.सी) की नजीर भी प्रस्तुत किया है जिसमें शब्द IMMEDIATE की व्याख्या निम्न प्रकार से व्यक्त की गयी है:-
"The Policy provides that in the case of theft, the matter should be reported immediately. In the context of a theft of the car, word immediately has to be construed strictly to make the insurance company liable to pay the compensation."
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रवेश चन्द चड्ढा सिविल अपील नम्बर 6739 आफ 2010 में दिया गया निर्णय भी संदर्भित किया है इसके साथ ही उन्होंने माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका नम्बर 1542 आफ 2012 धर्मवीर बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड में पारित निर्णय भी प्रस्तुत किया है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद-पत्र के अनुसार दिनांक 13.11.2012 को प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन चोरी हुआ है। काफी तलाश किया गया नहीं मिला तो परिवादी थाना अमरिया रिपोर्ट लिखाने गया, परन्तु पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की। तब दिनांक 20.11.2012 को उसने रजिस्टर्ड डाक से पुलिस अधीक्षक को रिपोर्ट दर्ज कराने हेतु प्रार्थना-पत्र भेजा। फिर भी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की। तब न्यायालय में प्रार्थना-पत्र रिपोर्ट दर्ज कराने हेतु प्रस्तुत किया तब न्यायालय के आदेश से दिनांक 30.12.2012 को पुलिस ने प्रत्यर्थी/परिवादी की रिपोर्ट पर अपराध पंजीकृत किया है। प्रश्नगत वाहन चोरी के सम्बन्ध में पुलिस ने जो धारा-156(3) दण्ड प्रकिया संहिता के अंर्तगत प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र पर रिपोर्ट दर्ज किया है उसमें कहा गया है कि दिनांक 13.11.2012 की शाम को दीवाली की छुट्टी होने की वजह से परिवादी का ड्राईवर मौसम खां अपने रिश्तेदार सज्जाद खां को बताते हुए उनके फार्म हाउस के सामने उदयपुर मोडेग्राम थाना अमरिया जिला पीलीभीत में वाहन शाम के लगभग 8 बजे खड़ा करके अपने घर बरेली ड्राईवर सहित चला गया। अगले दिन सुबह जब ड्राईवर पहुंचा तो उसका उक्त वाहन गायब था। तब उसने उसे कॉल करके बुलाया तब वह मौके पर आया। वाहन को तलाश किया और न मिलने पर ड्राईवर के साथ थाना अमरिया तत्काल रिपोर्ट लिखाने गया, लेकिन रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। तब उसने प्रार्थना-पत्र रजिस्टर्ड डाक से दिनांक 20.11.2012 को पुलिस अधीक्षक को दी है। फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई तब प्रार्थना-पत्र अंतर्गत धारा-156(3) सी.आर.पी.सी प्रस्तुत किया है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी ने अविलम्ब चोरी की सूचना पुलिस को दिया है परन्तु पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की है। अत: विवश होकर उसने धारा-156(3) सी.आर.पी.सी के अन्तर्गत प्रार्थना-पत्र मजिस्ट्रेट को दिया है। अत: यह कहना उचित नहीं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुलिस को विलम्ब से सूचना दिया है। इस संदर्भ में जिला फोरम ने जो निष्कर्ष निकाला है वह उचित व तथ्यों की सही विवेचना पर आधारित है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि जहां तक बीमा कंपनी का यह कथन है कि परिवादी को प्रश्नगत वाहन की चोरी की सूचना तत्काल बीमा कम्पनी को देना चाहिए था और तत्काल सूचना न देने के कारण बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लघंन हुआ है। इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है कि विपक्षीगण द्वारा कभी भी न तो बीमा पालिसी की शर्तें परिवादी को उपलब्ध करायी गयी है और न ही इस सन्दर्भ में कोई जानकारी दी गई है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा मशीना कोल्ड स्टोरेज लि0 बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि0 के वाद में दिया गया निर्णय जो II(200) सी.पी.जे 64(एन.सी.) में प्रकाशित है, संदर्भित किया है और उल्लेख किया है कि इस वाद में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने कहा है कि यदि बीमा पालिसी के साथ बीमा पालिसी की शर्तों और नियमों को संलग्न नहीं किया गया है अथवा बीमा पालिसी की शर्तों से बीमाधारक को अवगत नहीं कराया गया है तो यह बीमा कंपनी की सेवा में त्रुटि है।
प्रश्नगत बीमा पालिसी के अवलोकन से स्पष्ट है कि इसपर तुरन्त सूचना बीमा कंपनी को देने की शर्त अंकित नहीं है। मेमों अपील में अपीलार्थी की ओर से यह नहीं कहा गया है कि बीमा पालिसी की शर्त प्रत्यर्थी को अलग से उपलब्ध करायी गयी थी और न ऐसा उपलब्ध साक्ष्यों व अभिलेखों से प्रमाणित होता है। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी चोरी की तुरन्त सूचना बीमा कम्पनी को देने की शर्त से अवगत था फिर भी उसने बीमा कम्पनी को सूचना विलम्ब से दिया है।
इस स्तर पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नम्बर 15611/2017 ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व एक अन्य में पारित निर्णय दि0 04.10.2017 का उल्लेख आवश्यक है जिसमें मानीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से निम्न मत व्यक्त किया है :-
It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid grounds. Rejection of the claims on purely technical grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason for delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the ground of delay. It is also necessary to state here that it would not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.
उल्लेखनीय है कि बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी से वाहन की चोरी की सूचना प्राप्त होने पर जाचंकर्ता नियुक्त किया है। जिसने जांच के बाद रिपोर्ट प्रस्तुत की है और ट्रक चोरी की घटना को माना है। पुलिस विवेचना में भी वाहन चोरी की घटना को बनावटी नहीं पाया गया है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना देने के आधार पर निरस्त किया जाना उचित नहीं कहा जा सकता है और इस सन्दर्भ में जिला फोरम ने जो निष्कर्ष निकाला है उसे अनुचित व विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है।
प्रश्नगत वाहन की चोरी की जो रिपोर्ट परिवादी ने थाना में लिखाया है उससे स्पष्ट है कि दिनांक 13.11.2012 को रात 8:00 बजे परिवादी प्रश्नगत वाहन अपने रिश्तेदार सज्जाद खां को बताकर उनके फार्म हाउस के सामने उदयपुर मोड़ पर अमरिया जिला पीलीभीत में खड़ा करके गया और दूसरे दिन जब परिवादी का चालक उस स्थान पर गया तब वाहन गायब पाया। इससे स्पष्ट है कि वाहन UNATTENDED था और परिवादी के रिश्तेदार उस पर निगरानी नहीं रखे थे। न तो प्रथम सूचना रिपोर्ट, न परिवाद-पत्र में यह उल्लेख है कि वाहन लाक किया गया है। अत: यह मानने हेतु पर्याप्त आधार है कि वाहन की सुरक्षा हेतु पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। अत: सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूं कि जिला फोरम ने दावा को जो NON STANDARD BASIS पर तय किया है वह उचित है उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
जिला फोरम ने क्षतिपूर्ति व वादव्यय के मद में जो 25,000/-रू0 दिया है उसे संशोधित कर वाद व्यय के मद में मात्र पांच हजार रूपया दिया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत अपील सं0- 2581/2016 आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम ने जो क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय के रूप में जो 25,000/-रू0 प्रदान किया है उसे अपास्त किया जाता है। अपीलार्थीगण को आदेशित किया जाता है कि वे प्रत्यर्थी/परिवादी को 5,000/-रू0 मात्र वाद व्यय अदा करेंगे। जिला फोरम के निर्णय व आदेश का शेष अंश यथावत रहेगा।
प्रत्यर्थी, अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत अपील सं0- 2780/2016 निरस्त की जाती है।
दोनों अपीलों में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील सं0- 2581/2016 में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
इस निर्णय एवं आदेश की मूल प्रति अपील सं0- 2581/2016 में रखी जाये और इसकी प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0- 2780/2016 में रखी जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
सुधांशु श्रीवास्तव, आशु0
कोर्ट नं0-1