राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-280/2018
गौरव नन्द पुत्र श्री ओ0पी0 श्रीवास प्रोपेराइटर इंडियन इनर्जी
रेगुलेटरी सर्विसेज तृतीय मंजिल साइबर हाईट विभूति खंड गोमती
नगर लखनऊ। ...........परिवादी
बनाम
आईडिया कंपनी रिटेल स्टोर ए 68, सेक्टर 64, नोयडा उ0प्र0
201301 द्वारा प्रबंधक व एक अन्य। .......विपक्षीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित: श्री आकाश सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 06.02.2023
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध इस अनुतोष के साथ प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी से मांगी जा रही धनराशि रू. 28299/- को निरस्त किया जाए। परिवादी को कारित मानसिक, आर्थिक प्रताड़ना के मद में कुल 30 लाख रूपये दिलाया जाए। परिवाद व्यय के मद में अंकन रू. 50000/- की राशि दिलाए जाए।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा विपक्षीगण से मोबाइल कनेक्शन लिया और समस्त देयकों का भुगतान किया गया। कभी भी हजार रूपये से अधिक नहीं हुआ, परन्तु मोबाइल कनेक्शन हमेशा बाधित रहा, जिसकी शिकायतें की जाती रहीं। दि. 16.4.18 को माह मार्च का देयक का भुगतान किया गया, परन्तु 20.04.18 तक सेवाओं में बाधा आती रही। काल ड्राप हो जाती थी, वांछित नम्बर पर संपर्क करने पर कठिनाई आती थी, क्रेडिट लिमिट
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में परिवर्तन किया गया। अन्य मोबाइल कनेक्शन को पोर्ट कराते समय वांछित भुगतान के बावजूद भी रू. 28299/- अनुचित मांग की गई, जबकि विपक्षी संख्या 1 से विपक्षी संख्या 2 की सेवाएं प्राप्त करने के लिए मोबाइल पोर्ट किया जा चुका था, इसके बावजूद भी विपक्षी संख्या 2 ने कनेक्शन विच्छेदित किए जाने की धमकी दी, जो अनुचित व्यापार प्रणाली की श्रेणी में है। विपक्षी संख्या 2 की सेवाए अत्यधिक घटिया किस्म की रही, जबकि आवेदक उत्तर प्रदेश सरकार के एक महत्वपूर्ण योजना में संलग्न था, जिसका उद्देश्य गरीबों को बिजली दिलाना था, कुशल इंजीनियर है तथा प्रतिमाह 10 लाख रूपये से अधिक का वेतन प्राप्त करता है और एक वर्ष में 12 लाख से अधिक आयकर जमा किया है। विपक्षी संख्या 2 द्वारा अवैध रूप से की जा रही मांग के कारण मानसिक प्रताड़ना और आर्थिक प्रताड़ना कारित हुई है, जबकि संदर्भित कनेक्शन का देयक बिल जो वास्तव में देय नहीं है विपक्षी संख्या 1 का है और मांग विपक्षी संख्या 2 द्वारा की जा रही है।
3. परिवाद पत्र के समर्थन में शपथपत्र तथा वांछित अभिलेख प्रस्तुत किए गए हैं।
4. विपक्षीगण का कथन है कि उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है, क्योंकि लाभ कमाने के उद्देश्य से मोबाइल क्रय किया गया है। दि. 01.07.18 से 31.07.18 के लिए जो बिल जारी किया गया है उसमें परिवादी ने मोबाइल का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग करते हुए किया गया, इसलिए परिवाद स्वस्थ मन मस्तिष्क के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया है और सही तथ्यों को छिपाया गया है।
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5. इस लिखित कथन के विरोध में प्रत्युत्तर प्रस्तुत किया गया और लिखित कथन के तथ्यों का खंडन किया गया तथा कथन किया गया कि चूंकि रू. 21900/- क्रेडिट लिमिट फिक्स थी, इसलिए रू. 28299/- का बिल जारी करने का कोई औचित्य नहीं था।
6. बहस के अवसर पर परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, केवल विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गई तथा लिखित बहस को भी पत्रावलित किया गया।
7. परिवादी का कथन है कि विपक्षी द्वारा क्रेडिट लिमिट सुनिश्चित करने के बावजूद अवैध रूप से रू. 28299/- की मांग की जा रही है, जबकि मोबाइल कनेक्शन विपक्षी संख्या 1 से विपक्षी संख्या 2 की सेवाओां के लिए पोर्ट(सेवा प्रदाता का परिवर्तन एक ही नम्बर रहते हुए) पोर्ट किया जा चुका था। चूंकि विपक्षी संख्या 1 द्वारा क्रेडिट लिमिट तय की गई थी, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग के बावजूद परिवादी उपभोक्ता को इस क्रेडिट लिमिट के अंतर्गत रोमिंग करते हुए मोबाइल के प्रयोग का अधिकार प्राप्त था, इसलिए रोमिंग करने मात्र से रू. 28299/- अतिरिक्त की मांग नहीं की जा सकती थी। विपक्षी संख्या 1 के स्थान पर विपक्षी संख्या 2 की सेवाएं प्राप्त किए जाने के पश्चात विपक्षी संख्या 1 को अंकन रू. 28299/- मांग करने का किसी भी दृष्टि से कोई विधिक अधिकार प्राप्त नहीं है, इसलिए अंकन रू. 28299/- की मांग निरस्त करने के संबंध में मांगा गया अनुतोष स्वीकार होने योग्य है यद्यपि विपक्षीगण के विरूद्ध दूरवर्ती क्षति के लिए मांगे गए अनुतोष इस आधार पर स्वीकार होने योग्य नहीं है कि विशेष/दूरवर्ती क्षति को परिवादी द्वारा अकाट्य साक्ष्य से साबित नहीं
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किया गया। यद्यपि परिवाद व्यय के रूप में परिवादी विपक्षीगण से एकल एवं संयुक्त दायित्व के तहत अंकन रू. 25000/- प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
आदेश
8. परिवाद आंशिक रूप से इस प्रकार स्वीकार किया जाता है:-
(ए). विपक्षीगण द्वारा अंकन रू. 28299/- की मांग निरस्त की जाती है।
(बी). विपक्षीगण को संयुक्त एवं एकल दायित्व के तहत आदेशित किया जाता है कि परिवादी को परिवाद व्यय के रूप में अंकन रू. 25000/- अदा करें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2