PUSHPA filed a consumer case on 09 Jul 2019 against ICICI in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/134/2007 and the judgment uploaded on 31 Aug 2019.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 134 सन् 2007
प्रस्तुति दिनांक 18.09.2007
निर्णय दिनांक 09.07.2019
श्रीमती पुष्पा देवी पत्नी अवधेश यादव उम्र तखo 30 वर्ष निवासी ग्राम- कटघरा, सदर, पोस्ट- गोपालपुर, थाना- सिधारी, तहo- सदर, जिला- आजमगढ़।..........................................................................परिवादिनी।
बनाम
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादिनी ने परिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कहा है कि उसके पति स्वर्गीय अवधेश यादव मुहल्ला सिधारी आजमगढ़ में व्यवसाय करते थे और व्यवसाय का रजिस्ट्रेशन दिनांक 23.03.2006 को उपश्रमायुक्त कार्यालय आजमगढ़ से करवाया था। जिसका बीमा भी उसी दिन प्रीमियम लेकर आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इंoकंo द्वारा “श्रम ज्योति दुर्घटना बीमा योजना” पॉलिसी के तहत 2005-06 से 2010 तक के लिए मुo 2,00,000/- रुपये तक किया गया था। अवधेश यादव 28/29.04.2006 की रात में छत से गिरने के कारण सिर में काफी चोटें आयीं और इलाज के दौरान दिनांक 29.04.2006 को प्रातः उनकी मृत्यु हो गयी है। उक्त घटना व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा के अन्तर्गत कवर है। जिसके कारण विपक्षीगण बीमित धनराशि को अदा करने के लिए जिम्मेवार है। बीमा में परिवादिनी को नामिनी नियुक्त किया गया है। चूंकि उपश्रमायुक्त कार्यालय आजमगढ़ द्वारा करवाया गया था। अतः परिवादिनी ने अपने पति की मृत्यु की सूचना दिनांक 30.10.2006 के द्वारा उपश्रमायुक्त कार्यालय आजमगढ़ को एवं विपक्षी बीमा कम्पनी को दे दिया। सूचना मिलने पर बीमा कम्पनी द्वारा अलग-अलग दो जांचकर्ता श्री अखिल किशोर कपूर व श्री दिगन्त मिश्र को भेजा गया, जिन्होंने P.T.O.
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घटनास्थल पर एवं गांव के अन्य लोगों से तथा स्वर्गीय अवधेश यादव का इलाज करने वाले डॉक्टर से पूछतांछ किया तथा लिखित बयान भी लिया। दोनों जाँचकर्ताओं द्वारा अलग-अलग कागजातों की मांग की गयी जिसे परिवादिनी ने रजिस्टर्ड डॉक द्वारा तुरन्त उन्हें भेज दिया। उसके बावजूद विपक्षी बीमा कम्पनी आज तक बीमित धनराशि का भुगतान परिवादिनी को नहीं किया है। परिवादिनी ने अपने पति के अंतिम संस्कार में 2500/- रुपया, बच्चों की पढ़ाई में 10,000/- रुपये पाने की अधिकारिणी है। परिवादिनी के कुल चार बच्चे हैं, जिसमें से प्रथम तीन बच्चे अध्ययनरत हैं। बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी के क्लेम निस्तारण में जानबूझकर देरी व लापरवाही की जा रही है। अतः परिवादिनी को विपक्षीगण से बीमित धनराशि 2,00,000/- रुपये व अंतिम संस्कार का 2500/- रुपये तथा बच्चों के शिक्षा के मद में 10000/- रुपये व हर्जे के मद में 10000/- रुपये अर्थात् कुल रुपये 2,22,500/- रुपया दिलवाया जाए और उस पर 18% वार्षिक ब्याज भी दिलवाया जाए।
परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादिनी ने दुकान का रजिस्ट्रेशन, अवधेश यादव का मृत्यु प्रमाण-पत्र, नोटिस की छायाप्रति, कागज संख्या 33/1 रजिस्ट्रेशन का प्रमाण पत्र, कागज संख्या 33/2 रिसीव फॉर पेमेन्ट, कागज संख्या 33/3 रजिस्ट्रेशन का नवीनीकरण का प्रमाण-पत्र, कागज संख्या 34/4 परिवादिनी द्वारा श्रमायुक्त को दिए गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 33/5 बीमा कम्पनी को दिए गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 33/6 व 33/7 मेडिकल रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 33/8 मृत्यु प्रमाण-पत्र , कागज संख्या 33/9 परिवार रजिस्टर की छायाप्रति, कागज संख्या 33/10 परिवादिनी से कुछ सबूत पेश करने के लिए बीमा कम्पनी को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 33/11 अन्वेषक महोदय को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 33/12 मृत्यु प्रमाण-पत्र, कागज संख्या 33/13 ए.के. कपूर एण्ड एशोसिएट्स द्वारा लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 33/14 शपथ पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 33/15 P.T.O.
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व्यक्तिगत दुर्घटना की छायाप्रति, प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि श्रम ज्योति दुर्घटना बीमा योजना के तहत निर्धारित प्रीमियम लेकर पंजीकृत व्यापारियों का बीमा उपश्रमायुक्त/श्रम विभाग के माध्यम से विपक्षी कम्पनी द्वारा किया जाता है। उक्त बीमा पॉलिसी के शर्तों के अनुसार बीमित व्यक्ति की दुर्घटना से आप्राकृतिक मृत्यु होने पर उसका रिस्क विपक्षी कम्पनी कवर करती है, लेकिन प्राकृतिक मृत्यु उक्त बीमा पॉलिसी के अन्तर्गत कवर नहीं होता है। परिवादिनी ने परिवाद पत्र के पैरा 2 व 4 में यह कहा है कि उसने अपने पति अवधेश यादव की मृत्यु की सूचना छः माह बाद दिनांक 30.10.2006 को दिया। जो अत्यधिक विलम्ब से है। इसके बावजूद जाँच करायी गयी तो यह जानकारी हुई कि मुकदमा में वर्णित घटना के सम्बन्ध में कोई एफ.आई.आर. दर्ज नहीं करायी गयी है और अवधेश यादव का पोस्ट-मार्टम भी नहीं कराया गया है। कथित घटना के छः माह बाद सूचना परिवादिनी द्वारा विपक्षी को दी गयी और उसका कोई एफ.आई.आर. नहीं किया गया तथा पोस्ट-मार्टम भी नहीं किया गया। अतः किसी लिखित साक्ष्य के द्वारा स्पष्ट नहीं हुआ कि आप्राकृतिक मृत्यु दुर्घटना में हुई थी। दुर्घटना में आप्राकृतिक मृत्यु होने के रिस्क को विपक्षी कवर करती है। प्राकृतिक मृत्यु के रिस्क को कवर नहीं करती है। परिवादिनी ने जानबूझकर एवं नाजायज लाभ की नीयत से छः माह बाद बीमा कम्पनी को अपने दावा के धारा 4 के अनुसार सूचना भेजा है। ताकि तत्काल कोई जांच बीमा कम्पनी न करा सके एवं परिवादिनी अपने मकसद बेजा में कामयाब हो सके। निर्धारित समय सीमा के अन्दर परिवादिनी द्वारा सूचना न देने के कारण उसका क्लेम दिए जाने योग्य नहीं है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
विपक्षी की ओर से अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी द्वारा 30ग ग्रुप प्रसनल एक्सीडेन्ट इन्श्योरेंस पॉलिसी प्रस्तुत किया गया है।
P.T.O.
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उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र में इस बात का अभिकथन किया है कि उसके पति अवधेश यादव व्यापार करते थे। जिसका श्रमायुक्त के यहाँ से पॉलिसी रजिस्ट्रेशन कराया गया था। इसके विरूद्ध विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा यह कहा गया है कि अवधेश यादव की आप्राकृतिक मृत्यु नहीं हुई थी। अतः परिवादिनी को बीमा की धनराशि नहीं दी जा सकती है। विपक्षी ने परिवाद पत्र में इस बात को भी स्वीकार किया है कि जो इन्श्योरेन्स करवाया गया था, उसमें व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा भी सम्मिलित था। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत कागज संख्या 33/4 के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि परिवादिनी ने उपश्रमायुक्त को दिनांक 30.10.2006 को अपने पति की मृत्यु की सूचना दी थी। यह सूचना श्रमायुक्त द्वारा बीमा कम्पनी दिनांक 12.06.2007 को दिए गए बीमा कम्पनी ने अपने जवाबदावा में यह कहा है कि उसे अवधेश यादव के मृत्यु की सूचना अतिविलम्ब से दी गयी है। उनके दुर्घटना का एफ.आई.आर. व पोस्ट-मार्टम भी नहीं कराया गया है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड बनाम हुकम बाई मीना एवं अन्य IV (2018) सी.पी.जे. 478 एन.सी.” का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अवधारित किया है कि केवल देर से सूचना दिए जाने के आधार पर क्लेम का निस्तारण नहीं किया जा सकता है। परिवाद केवल पुष्पा देवी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। उसने अपने परिवाद पत्र में यह बी कहा है कि उसके पास चार बच्चे हैं। लेकिन परिवादिनी ने चारों बच्चों को परिवाद में पक्षकार मुकदमा नहीं बनाया है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “चेलम्मा बनाम तिराका एवं अन्य 2010 ए.सी.जे. 1487 सुप्रीम कोर्ट” का अवलोकन करें के इस न्याय निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि किसी भी इन्श्योरेन्स पॉलिसी में नामिनी का होने के कारण ही सम्पूर्ण धनराशि नामिनी प्राप्त नहीं कर सकती है। केवल वैधानिक उत्तराधिकारी ही उस धनराशि को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। चूंकि अवधेश यादव की मृत्यु छत से गिरने के कारण हुई थी। अतः ऐसी स्थिति में एफ.आई.आर. करवाना अथवा पोस्ट-मार्टम करवाना आवश्यक नहीं है और P.T.O.
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इस सन्दर्भ में बीमा कम्पनी द्वारा किया गया कथन ग्राह्य नहीं है।
उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार किया जाता है। बीमा कम्पनी विपक्षी संख्या 01 को आदेशित किया जाता है कि वह अन्दर 30 दिन परिवादिनी को बीमित धनराशि मुo 2,00,000/- (दो लाख रुपया) रुपया अदा करे और इस धनराशि पर परिवादिनी 09% वार्षिक ब्याज परिवाद पत्र प्रस्तुत करने की तिथि से प्राप्त करने के लिए अधिकृत होगी। परिवादिनी को आर्थिक और मानसिक कष्ट हेतु 10,000/- रुपया (दस हजार रुपया) भी विपक्षी संख्या 01 अदा करें। प्राप्त धनराशि को परिवादिनी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह बीमा कम्पनी द्वारा प्राप्त धनराशि को अवधेश यादव के वारिशान को बराबर-बराबर हिस्सों में बाँटेंगे।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 09.07.2019
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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