समक्ष न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम महोबा
परिवाद सं0-172/2010 उपस्थित- श्री बाबूलाल यादव, अध्यक्ष,
डा0 सिद्धेश्वर अवस्थी, सदस्य,
श्रीमती नीला मिश्रा, सदस्य
चुम्मन उर्फ मानकुंवर पत्नी स्व0 श्री अजुददी निवासिनी-ग्राम-सिजहरी परगना,तहसील व जिला-महोबा परिवादिनी
बनाम
1.आपरेशनल मैनेजर,इल्डिको चैम्बर चतुर्थ तल आई0सी0आई0सी0आई0 लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि0 विभूतिखण्ड,गोमतीनगर, लखनऊ ।
2.जिलाधिकारी,महोबा जिला-महोबा विपक्षीगण
निर्णय
श्री बाबूलाल यादव,अध्यक्ष द्वारा उदधोषित
परिवादिनी चुम्म्न उर्फ मानकुंवर ने यह परिवाद खिलाफ विपक्षीगण आपरेशनल मैनेजर,इल्डिको चैम्बर चतुर्थ तल आई0सी0आई0सी0आई0 लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि0 विभूतिखण्ड,गोमतीनगर, लखनऊ व जिलाधिकारी,महोबा बाबत दिलाये जाने बीमित धनराशि 1,00,000/-रू0 व अन्य अनुतोष हेतु प्रस्तुत किया है ।
संक्षेप में परिवादिनी का कथन इस प्रकार है कि परिवादिनी ग्राम-सिजहरी परगना व तहसील व जिला-महोबा की निवासिनी एवं म़तक अजुददी की पत्नी है । परिवादिनी के पति म़तक अजुददी के पास मौजा-सिजहरी में खाता सं0676 व 524 में क़षि आराजी है । इस प्रकार म़तक अजुददी एक पंजीक़त क़षक था और उसने विपक्षी सं02 के यहां से पंजीक़त किसान बीमा दुर्घटना योजना के अंतर्गत बीमा कराया गया था । परिवादिनी के पति दिनांक:06.02.2008 को खेत में सिंचाई करते समय अचानक पैर फिसल जाने के कारण कुंये में गिर गये थे और उनको तुरंत कुंयें से निकाला गया और टैक्सी से जिला अस्पताल ले जाया गया,जहां पर रास्ते में उनकी म़त्यु हो गई । इसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट परिवादिनी के पुत्र ने दिनांक:06.02.2008 को ही थाना-श्रीनगर में दर्ज कराई थी तथा म़तक अजुददी का पंचायतनामा व पोस्टमार्टम भी कराया गया था । परिवादिनी उपरोक्त दुर्घटना के फलस्वरूप पति की हुई म़त्यु के कारण दुर्घटना जीवन बीमा की धनराशि प्राप्त करने हेतु क्लेम आवेदन समस्त कागजात सहित विपक्षी सं02 जिलाधिकारी के माध्यम से विपक्षी सं01 को प्रेषित किया था लेकिन दो साल आठ माह का समय बीतने के बाद भी विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा उसे बीमा धनराशि का भुगतान नहीं किया गया । जबकि नियमानुसार क्लेम आवेदन का निस्तारण एक माह में कर देना चाहिये था। परिवादिनी ने इसको घोर सेवा में त्रुटि बताते हुये मा0 फोरम के समक्ष यह परिवाद प्रस्तुत किया है ।
विपक्षी सं01 की और से जबाबदावा प्रस्तुत किया गया है,जिसमें उन्होंने यह कहा है कि परिवादिनी ने गलत व असत्य आधारों पर परिवाद दायर किया है । परिवादिनी का परिवाद उपभोक्ता सरक्षण अधिनियम,1986पभोक्ता में कर देना चाहिये था के अंतर्गत पोषणीय नहीं है क्योंकि वह विपक्षी सं01 का उपभोक्ता नहीं है । उनका यह भी कथन है कि परिवादिनी को कोर्इ वाद का कारण उत्पन्न नहीं हुआ है । उनका यह भी कथन है कि परिवादिनी ने निर्धारित अवधि के अंदर परिवाद प्रस्तुत नहीं किया है । परिवादिनी के पति स्व0अजुददी घटना की दिनांक को खतौनी में पंजीक़त क़षक नहीं थे । इसलिये उसका क्लेम नो क्लेम कर दिया गया है । इस समस्त आधार पर विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने की प्रार्थना की है ।
विपक्षी सं02 की ओर से अलग से जबाबदावा प्रस्तुत किया गया है,जिसमें उन्होंने यह स्वीकार किया है कि उ0प्र0सरकार द्वारा क़षक बीमा योजना चलाया गया है,जिसमें एकमुश्त प्रीमियम उ0प्र0सरकार द्वारा अदा किया जाता है । परिवादिनी का दावा दिनांक:06.03.2008 को राजस्व अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा जिलाधिकारी कार्यालय को भेजा गया था,जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि परिवादिनी के पति श्री अजुददी निवासी-सिजहरी की म़त्यु दिनांक:06.02.2008 को पैर फिसलने के कारण कुंये में गिरने से हुई है और उसके नाम 0.817 हे0 भूमि है और वह एक पंजीक़त क़षक है तथा बीमा पालिसी के तहत पात्रता की श्रेणी में आता है । अंत: परिवादिनी का दावा बीमित धनराशि देने हेतु विपक्षी सं02 द्वारा दिनांक: 10.03.2008 को विपक्षी सं01 के यहां भेज दिया गया था,जिस पर विपक्षी सं01 द्वारा यह निर्णय दिया गया कि म़तक क़षक अजुददी एक पंजीक़त क़षक नहीं है । इसलिये परिवादिनी को क्लेम नहीं दिया गया है । जबकि परिवादिनी के दावा के साथ संलग्न खतौनी में यह आदेश अंकित है कि म़तक मुल्लु के स्थान पर उनके वारिस अजुददी पुत्र मुल्लु व श्रीमती कटट पत्नी मुल्लु का नाम वरासतन दर्ज हो । यह आदेश दिनांक:12.12.2006 को पारित किया गया है । इस प्रकार परिवादिनी के पति अजुददी को दिनांक:12.12.2006 को ही भूमि अपने पिता से वरासतन प्राप्त हुई । इस प्रकार दुर्घटना की तिथि एवं परिवादिनी की पति अजुददी की म़त्यु की दिनांक:06.02.2008 को अजुददी एक पंजीक़त क़षक था । इस प्रकार विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा परिवादिनी का दावा गलत निरस्त किया गया था । इस प्रकार परिवादिनी द्वारा विपक्षी सं02 द्वारा विपक्षी सं01 को पत्र भी दिनांक:20.04.2009 को भेजा गया था और उन्होंने उनसे क्लेम रिओपन कर परिवादिनी को बीमित धनराशि देने की बात कही गई थी लेकिन विपक्षी सं01 द्वारा अभी तक न कोई सूचना और न ही भुगतान किया है । इस प्रकार विपक्षी सं02 ने प्रार्थना की है कि उनके द्वारा कोई सेवा में त्रुटि नहीं किया है इसलिये खारिज किये जाने योग्य है ।
परिवादिनी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का शपथ पत्र कागज सं4ग/1 व 4ग/3 प्रस्तुत किया है तथा अभिलेखीय साक्ष्य में राशन कार्ड की छायाप्रति कागज सं06ग,निर्वाचन आयोग द्वारा जारी पहचान पत्र की छायाप्रति कागज सं07ग व 8ग,राजस्व विभाग द्वारा जारी नियमावली की छायाप्रति कागज सं09ग,म़त्यु प्रमाण पत्र 10ग,परिवार रजिस्टर की नकल की छायाप्रति कागज सं0 11ग,पोस्टमार्टम की छायाप्रति कागज सं012ग, जी0डी0की नकल की छायाप्रति कागज सं013ग,पंचायतनामा की छायाप्रति कागज सं013ग/2 एवं उद्धहरण खतौनी की प्रमाणित प्रति 35ग/1 व 35ग/2 दाखिल की गई है ।
विपक्षी सं01 की और से अपने जबाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र द्वारा मैनेजर,आई0सी0आई0सी0आई0 लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी,लखनऊ प्रस्तुत किया गया है जो कि कागज सं033ग/1 व 33ग/2 है । उनकी और से कोई अभिलेखीय साक्ष्य दाखिल नहीं की गई है ।
विपक्षी सं02 की और से शपथ पत्र द्वारा श्री जयशंकर त्रिपाठी उपजिला मजिस्टेट,महोबा दाखिल किया गया है जो कि 16ग है तथा अभिलेखीय साक्ष्य में उनकी और से जनता व्यक्तिगत दुर्घटना योजना संबंधी प्रपत्र की छायाप्रति कागज सं017ग/1 लगायत 17ग/3 दाखिल की गई है ।
फोरम द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गई तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
दौरान बहस उभय पक्ष को यह स्वीकार है दुर्घटना के समय परिवादिनी के स्व0पति अजुददी की उम्र 39 वर्ष थी और वह एक पंजीक़त क़षक था,जिसका बीमा विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा विपक्षी सं02 द्वारा दिये गये प्रीमियम के आधार पर किया गया है । विपक्षी बीमा कंपनी ने मात्र परिवादिनी का दावा इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि म़तक अजुददी दुर्घटना की तिथि को एक पंजीक़त क़षक नहीं था । जबकि विपक्षी सं02 ने अपने जबाबदावा में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि दुर्घटना की तिथि के काफी पूर्व श्री अजुददी के नाम उनके पिता की म़त्यु के पश्चात उनकी क़षि भूमि में दर्ज बतौर वारिश कर दिया गया है । इसकी पुष्टि उद्धहरण खतौनी 35ग/1 व 35ग/2 से भी होती है । इसके अलावा विपक्षी बीमा कंपनी की और से यह भी बहस की गई है कि परिवादिनी का दावा कालबाधित है । जबकि परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने यह कहा है कि दावे का जब अंतिम निस्तारण विपक्षी सं02 द्वारा भेजे गये पत्र दिनांक:20.04.2009 के आधार पर नहीं किया गया तभी परिवादिनी ने मा0फोरम के समक्ष यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है जिनकी बहस से यह फोरम पूर्णत: सहमत हैं कि परिवादिनी की दावा कालबाधित नहीं कहा जा सकता है ।
इन परिस्थितियों में यह फोरम इस मत का है कि परिवादिनी का परिवाद खिलाफ विपक्षी सं01 के विरूद्ध स्वीकार किये जाने योग्य है और विपक्षी सं02 के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है ।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद खिलाफ विपक्षी सं01 बीमा कंपनी स्वीकार किया जाता है । विपक्षी सं01 बीमा कंपनी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को बीमित धनराशि 1,00,000/-रूपये इस निर्णय के अंदर एक माह प्रदान करे । इसके अलावा परिवादिनी विपक्षी सं01 बीमा कंपनी से मानसिक कष्ट के एवज में 5,000/-रू0 तथा वाद व्यय के एवज में 2,500/-रू0 पाने की भी हकदार होगी । विपक्षी सं01 बीमा कंपनी उक्त आदेश का अनुपालन इस निर्णय के अंदर एक माह करे अन्यथा विपक्षी सं01 द्वारा परिवादिनी को उपरोक्त धनराशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज भी देय होगा ।
डा0सिद्धेश्वर अवस्थी श्रीमती नीला मिश्रा बाबूलाल यादव
सदस्य, सदस्या, अध्यक्ष,
जिला फोरम,महोबा। जिला फोरम,महोबा। जिला फोरम,महोबा।
29.07.2015 29.07.2015 29.07.2015