राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-21/2023
(जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्धारा परिवाद सं0-46/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.11.2022 के विरूद्ध)
चन्द्रकली पत्नी तेजई साकिन अलहदादपुर पोस्ट वनी तहसील कादीपुर, जिला सुलतानपुर।
........... अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
1- मैनेजर आई0सी0आई0सी0आई0 प्रोडिन्सियल लाइफ इं0कं0लि0 यूनिट नं0-ए एण्ड 2-ए राहेजा टियको रानी सती मार्ग मलाड ईस्ट मुम्बई।
2- मैनेजर आई0सी0आई0सी0आई0 बस स्टेशन सुलतानपुर।
…….. प्रत्यर्थी/विपक्षीगण
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री अशोक कुमार यादव
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 19.01.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/परिवादिनी चन्द्रकली द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, सुलतानपुर द्वारा परिवाद सं0-46/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.11.2022 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि श्रीमती मंजू देवी पत्नी राधेकृष्ण का बीमा आई0सी0आई0सी0आई0 प्रोडेन्सियल कम्पनी से दिनांक 26.3.2014 को हुआ था, जिसका पालिसी नं0-18530144 है। श्रीमती मंजू देवी का बीमा 3,50,000.00 रू0 का हुआ था, जिसका प्रीमियम 12,500.00 रू0 जमा हुआ था। श्रीमती मंजू देवी की मृत्यु दिनांक 25.8.2014 को डायरिया व डिहाइड्रेशन के कारण हो गयी। अपीलार्थी/परिवादिनी के अधिवक्ता की ओर से प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को भुगतान हेतु नोटिस भेजी गई, परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा भुगतान नहीं किया गया,
-2-
बीमाधारक श्रीमती मंजू देवी की मृत्यु बीमा अवधि के दौरान हुई है। अपीलार्थी/परिवादिनी उक्त बीमा पालिसी में नामिनी है, अत्एव प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमित धनराशि मय ब्याज का अनुतोष दिलाये जाने हेतु परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख योजित किया गया है।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र का विरोध किया गया तथा यह कथन किया कि बीमाधारक श्रीमती मंजू देवी का बीमा फ्राड के आधार पर कराया गया था एवं बीमाधारक का प्रस्ताव पत्र बीमा कम्पनी को प्राप्त होने के पूर्व ही बीमाधारक की मृत्यु हो गई थी, इसलिए बीमा पालिसी शून्य रही है तथा बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 25.8.2014 की सूचना प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को दिनांक 13.12.2014 को दी गई। इस प्रकार बीमाधारक की मृत्यु बीमा पालिसी की तिथि से पॉच माह के अन्दर ही हो गई थी एवं जॉच के दौरान यह ज्ञात हुआ कि बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 15.3.2014 को बीमा पालिसी जारी करने के पूर्व हो चुकी थी, अत्एव प्रत्यर्थी/बीमा कम्पनी द्वारा विधिनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी का क्लेम निरस्त किया गया है। परिवाद पोषणीय नहीं है, क्योंकि बीमा संविदा में दोनों पक्षों को प्राकृतिक रूप से अस्तित्व में होना आवश्यक है एवं बीमाधारक की बीमा संविदा के पूर्व ही मृत्यु होने के कारण उक्त संविदा प्रारम्भ से ही शून्य हैं।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है। यह भी कथन किया कि बीमाधारक श्रीमती मंजू देवी की मृत्यु बीमा होने के पूर्व हो चुकी थी, इस सम्बन्ध में प्रधान व ऑगनवाडी कार्यकत्री का बयान व रिकार्ड तथा अन्य गॉव के लोगों के शपथपत्र साक्ष्य के रूप में जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख
-3-
प्रस्तुत किये गये हैं, जिन पर विचार न कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा निर्णय/आदेश पारित किया गया है, जो कि अनुचित है। यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में कमी की गई है अत्एव अपील स्वीकार कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण में यह पाया जाता है कि प्रत्यर्थी/बीमा कम्पनी द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी का दावा बीमाधारक की मृत्यु बीमा पालिसी प्राप्त होने के पॉच माह के अन्दर हो जाने के आधार पर निरस्त किया गया है तथा यह भी कथन किया गया है कि बीमा कम्पनी को मृत्यु की सूचना दिनांक 13.12.2014 को दी गई है। प्रस्तुत मामले में बीमाधारक की मृत्यु के सम्बन्ध में विरोधाभाषी अभिकथन उल्लिखित किये गये है तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने प्रश्नगत निर्णय में यह उल्लिखित किया गया है कि उ0प्र0 सरकार द्वारा मृत्यु प्रमाण पत्र इस आधार पर निरस्त किया जा चुका है कि बीमा धारक श्रीमती मंजू देवी की मृत्यु दिनांक 25.8.2014 को न होकर दिनांक 15.3.2014 को हुई है एवं अपीलार्थी/परिवादिनी के कथनानुसार बीमाधारक की मृत्यु ग्राम अलहदादपुर में होना कहा जाता है जबकि प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत अभिलेखीय साक्ष्य से बीमाधारक की मृत्यु ग्राम मैनेपारा में होना कहा गया है परन्तु जहॉ तक डाक्टर आर0पी0 सिंह द्वारा दिये गये मृत्यु प्रमाण पत्र का संबंध है उनके कथनानुसार श्रीमती मंजू देवी की मृत्यु दिनांक 25.8.2014 की सुबह 7.00 बजे डायरिया एवं डिहाइड्रेशन से होना कहा गया है, जबकि उक्त प्रमाण पत्र डाक्टर द्वारा चार माह बाद दिनांक 12.12.2014 को जारी किया गया है, जिससे डाक्टर द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्र स्वयं संदिग्ध हो जाता है इस प्रकार बीमाधारक श्रीमती मंजू देवी की मृत्यु के संबंध में पक्षकारों द्वारा विरोधाभाषी साक्ष्य प्रस्तुत किये गये है एवं विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा
-4-
पारित प्रश्नगत निर्णय में यह तथ्य स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया कि बीमाधारक श्रीमती मंजू देवी की मृत्यु किस तिथि को हुई है इसको सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत साक्ष्य की आवश्यकता है एवं तद्नुसार परिवाद निरस्त किया गया है।
मेरे द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: विधि अनुकूल है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश में किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपीलीय स्तर पर मेरे सम्मुख इंगित नहीं की जा सकी है, तद्नुसार प्रस्तुत अपील अंगीकरण के स्तर पर निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वइ इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1