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Vijay Singhal filed a consumer case on 08 Dec 2015 against ICICI Prudencial Life Insurance Company Ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/75/2011 and the judgment uploaded on 11 Dec 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-7511
01. विजय सिंघल पुत्र सतीशचन्द्र गुप्ता उम्र 32 वर्ष
02. श्रीमति कल्पना सिंघल पत्नी विजय सिंघल, उम्र 32 साल, जाति महाजन, निवासीगण 7, रेल्वे हाउसिंग सोसायटी, बजरंग नगर, पुलिस लार्इन, कोटा।
-परिवादीगण।
बनाम
01. आर्इ.सी.आर्इ.सी.आर्इ. प्रडूेनिशयल लार्इफ इंश्योरेनस कंपनी लि., पंजीकृत
कार्यालय- आर्इ.सी.आर्इ.सी.आर्इ. प्रू-लार्इफ टावर्स, 1089, अप्पा साहेब मराठे
मार्ग, प्रभादेवी, मुम्बर्इ-25
02. आर्इ.सी.आर्इ.सी.आर्इ. प्रूडेनिश्यल लार्इफ इंश्योरेन्स कं0ल0, शाखा कार्यालय,
झालावाड़, रोड़, कोटा।
03. एस.एम.सी. इंश्योरेन्स बोकर्स प्रा0 लि0, 11, केशवपुरा मेन रोड, कोटा।
-विपक्षीगण
समक्ष :
भगवान दास - अध्यक्ष
हेमलता भार्गव - सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपसिथत :-
1 श्री विजय सिंघल, अधिवक्ता, परिवादीगण की ओर से।
2 श्री मनीष कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1 व 2 की ओर से।
3. श्री कलिपत शर्मा, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 3 की ओर से।
निर्णय दिनांक 08.12.15
परिवादीगण ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह दोष बताया है कि विपक्षी सं. 1व 2 के हेल्थ सेवर प्लान मेें 15,000- रूपये प्रीमियम अदा करके दिनांक 15.06.10 को जरिये विपक्षी सं. 3 आवेदन-पत्र प्रस्तुत किया गया था जिसमें परिवादीगण के अलावा उनके पुत्र विकल्प सिंघल को भी सदस्य रखा गया था। दिनांक 10.09.10 तक भी बीमा पालिसी की कोर्इ सूचना नहीं मिलने पर विपक्षीगण को जरिये अभिभाषक नोटिस भेजा गया तो विपक्षी सं0 1 व 2 ने पत्र दिनांक 13.09.10 से अवगत कराया कि -कुछ अतिरिक्त पूर्तिया नहीं किये जाने के कारण प्रपोजल को विड्रा मानते हुये 15,000- रूपये जर्ये चैक रिफंड किया गया है जबकि पूर्व में किसी कमी पूर्ति हेतु कोर्इ सूचना विपक्षी सं. 1 व 2 ने परिवादीगण को प्रेषित ही नहीं की थी, इसलिये रिफंड की राशि 15,000- रूपये अंडर प्रोटेस्ट प्राप्त करते हुये पुन: विपक्षी सं. 1 व 2 को नोटिस भेजा गया, जिसका गलत जवाब दिया गया । दिनांक 06.11.10व 20.11.10 को भी विपक्षीगण को नोटिस भेजे गये, जिनका पूर्ववर्ती जवाब ही दिया गया। विपक्षीगण ने प्रीमियम प्राप्त होने के बाद बीमा पालिसी जारी नहीं करके सेवा में कमी की है, जिससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप भी हुआ।
विपक्षी सं. 1 व 2 के जवाब का सार है कि उनके व परिवादीगण के मध्य कोर्इ संविदा नहीं हुर्इ, इसलिये परिवादीगण उपभोक्ता नहीं है। उन्होने सही एवं वास्तविक तथ्यों को छिपाया है, इसलिये परिवाद चलने योग्य नहीं है। परिवादीगण का प्रपोजल प्राप्त होने पर मेडिकल परीक्षण कराने व वांछित दस्तावेजात प्रस्तुत करने हेतु दिनांक 08.07.10 को पत्र भेजकर 30 दिवस में पूर्ति करने के लिये सूचित किया गया, लेकिन उसके अनुसरण में कोर्इ कार्यवाही नहीं करने से प्रपोजल को विड्रा माना गया तथा प्राप्त की गर्इ प्रीमियम की राशि जरिये चैक रिफंड कर दी गर्इ, जिसे परिवादीगण ने प्राप्त कर ली। परिवादीगण से प्राप्त नोटिस का सही जवाब दिया गया। सेवा में कोर्इ कमी नहीं की गर्इ। परिवादीगण को कोर्इ नुकसान भी नहीें हुआ। परिवाद आधारहीन है।
विपक्षी सं. 3 की ओर से पर्याप्त अवसर मिलने के बावजूद जवाब या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गर्इ है।
परिवादीगण ने साक्ष्य में शपथ-पत्र के अलावा हेल्थ सेवर प्लान हेतु प्रस्तुत किये गये आवेदन-पत्र, प्रीमियम अदायगीे चैक, विपक्षीगण की 10.09.10, 22.09.10 व 06.11.10 को प्रेषित नोटिस व उनसे प्राप्त जवाब 13.09.10, 25.09.10, 20.11.10 आदि की प्रतिया प्रस्तुत की हैं ।
विपक्षी सं. 1 व 2 ने साक्ष्य में कमल गुप्ता के शपथ-पत्र के अलावा परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत आवेदन-पत्र, परिवादी सं. 2 को प्रेषित पत्र दिनांक 08.07.10, 13.09.10, रिफंड चैक दिनांक 10.09.10 आदि की प्रति प्रस्तुत की हैंं।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया।
विपक्षी सं. 1व 2 ने परिवादीगण की ओर से प्राप्त आवेदन-पत्र (प्रस्ताव)
को स्वीकार करते हुये पालिसी जारी नहीं की , इसलिये कानूनी रूप से उनके मध्य कोर्इ करार या संविदा नहीं हुर्इ। केवल प्रीमियम प्राप्त होने से यह नहीं माना जा सकता कि संविदा हो गर्इ। आवेदन-पत्र में भी यह स्पष्ट अंकित है कि प्रीमियम प्राप्त होने मात्र से संविदा नहीं होगी।
विपक्षी सं. 1 व 2 का यह केस भी है कि परिवादीगण के आवेदन-पत्र के संबंध में मेडिकल परीक्षण कराने व अतिरिक्त दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिये पत्र दिनांक 08.07.10 उन्हे प्रेषित किया गया था जिसकी पालना एक माह में करनी थी, लेकिन परिवादीगण ने पालना नहीं की, इसलिये प्रपोजल को विड्रा करते हुये प्रीमियम की राशि रिफंड कर दी गर्इ। यह भी केस रखा है कि पत्र दिनांक 08.07.10 के जरिये परिवादी के स्वास्थ्य के संबंध में आवेदन-पत्र में की गर्इ घोषणा के बाबत मेडिकल परीक्षण कराने के लिये ही सूचित किया गया था जो कि प्रोपजल स्वीकार करने के लिये आवश्यक था। परिवादीगण का यह केस है कि विपक्षी सं 1 व 2 की ओर से भेजा गया-पत्र दिनांक 08.07.10 उन्हे प्रेषित ही नहीं किया गया था अर्थात प्रपोजल के संबंध में आवश्यक मेडिकल परीक्षण कराने या अतिरिक्त दस्तावेज प्रस्तुत करने की कोर्इ सूचना ही नही दी। अपने स्तर पर मनमाने तौर पर प्रपोजल को विड्रा माना गया।
हमने विचार किया। उल्लेखनीय है कि आवेदन पत्र दिनांक 08.07.10 में जिस मेडिकल टेष्ट कराने की अपेक्षा की गर्इ थी वे परिवादीगण द्वारा आवेदन-पत्र में उनके स्वास्थ्य के संबंध में कालम नं. 5 डी व 5 र्इ में जिन प्रश्नों का हा में जवाब दिये गये थे उन्ही से संबंधित थे। यह उल्ल्ेखनीय है कि आवेदन-पत्र के ही कालम नं. 6 में यह स्पष्ट अंकित है कि यदि कालम नं. 5 सी से 5 एफ तक के किसी प्रश्न का उत्तर हा में है तब अतिरिक्त शीट में वांछित विवरण भी दिया जावे तथा विवरण में बीमारी की प्रकृति उसकी सही पहचान र्इलाज करने वाले चिकत्सक के नाम पते बीमारी की पहचान, दवार्इयो आदि की सूचना भी दी जावे। स्वयं परिवादीगण ने विपक्षी सं. 1व 2 को बीमा पालिसी हेतु जो आवेदन-पत्र प्रस्तुत किया, उसकी प्रति प्रस्तुत की है जिसमें कालम नं. 6 में जो सूचनाऐ, दस्तावेज मांगे गये थे, उनकी प्रति भी आवेदन -पत्र के साथ विपक्षी सं. 1व 2 को दी गर्इ थी, इसका कोर्इ विवरण नहीं है। अर्थात यह स्पष्ट है कि परिवादीगण ने प्रस्ताव, बीमा पालिसी के लिये जो आवेदन-पत्र विपक्षी सं.1 व 2 को प्रस्तुत किया, उसके कालम नं. 6 में मांगी गर्इ सूचनाऐ आवेदन-पत्र के साथ प्रस्तुत नहीं की गर्इ थी, यही सूचनाऐ विपक्षी सं. 1व 2 ने पत्र दिनांक 08.07.10 से मांगी थी, यदि परिवादीगण का यह तर्क मान भी लिया जाय कि वह पत्र उन्हें नहीं मिला तब भी यह स्पष्ट है कि आवेदन-पत्र के साथ मांगी गर्इ सूचनाए, दस्तावेज उनके द्वारा विपक्षी सं. 1 व 2 को नहीं दिये गये, इसलिये आवेदन-पत्र अपूर्ण था तथा ऐसा अपूर्ण आवेदन-पत्र को अस्वीकार करके विपक्षी सं. 1 व 2 ने सेवामें कोर्इ कमी नहीं की है। विपक्षी सं. 3 विवाद के संबंध में आवश्यक पक्षकार हीं नहीं है। उसके जरिये मात्र आवेदन पत्र भेजा गया था जो विपक्षी सं 1व 2 को प्राप्त हो गया था। उसके विरूद्ध कोर्इ वादकारण ही नहीं है।
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम पाते है कि परिवादीगण विपक्षीगण का कोर्इ सेवा-दोष सिद्ध नहीं कर सके हे।
परिणामत: परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(हेमलता भार्गव) ( भगवान दास)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनांक 08.12.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
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