View 13463 Cases Against Icici Lombard
Shivraj prajapati filed a consumer case on 10 Feb 2016 against ICICI Lombard Journal Insurance Company Ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/263/2010 and the judgment uploaded on 15 Feb 2016.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या- 263/10
शिवराज पुत्र छोटु लाल जाति प्रजापति निवासी ग्राम उरना थाना कनवास जिला कोटा
-परिवादी।
बनाम
01. आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इं. क. लि., जरिये जनरल मैनेजर, रजिस्टर्ड आफिस जैनिथ हाउस, केशवराव खाडये मार्ग अपोजिट रेसकोर्स, महालक्ष्मी, मुम्बई 400034
02. आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इं. क. लि., जरिये जनरल मैनेजर, झालावाड़ रोड़ कोटा। -विपक्षीगण
समक्ष
भगवान दास - अध्यक्ष
हेमलता भार्गव - सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1 श्री विनीत अग्रवाल , अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2 श्री के.एस. जादौन , अधिवक्ता, विपक्षीगण की ओर से।
निर्णय दिनांक 10.02.16
परिवादी ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उनके यहाॅ बीमित जीप आर.जे. 20 टी.ऐ. 0503 बीमा अवधि में चलते समय अचानक टायर फटने से अनियंत्रित होकर दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हो गई वह दुर्घटना चालक के नियंत्रण से बाहर थी। इसकी सूचना विपक्षी बीमा कम्पनी को दी गई जिसने सर्वेयर नियुक्त किया। क्षतिग्रस्त जीप को ठीक कराने में कुल 1,57,045/-रूपये खर्च हुये इसका क्लेम विपक्षी बीमा कम्पनी को पेश किया गया, लेकिन कोई राशि अदा नहीं की गई। अधिवक्ता के जरिये कानूनी नोटिस भेजा गया इसके बावजूद कोई राशि अदा नहीं की गई इससे परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक पीड़ा हुई है।
विपक्षी-बीमा कम्पनी के जवाब का सार है कि परिवादी के वाहन की बीमा पालिसी की शर्त के अनुसार परिवादी ने दुर्घटना की तत्काल सूचना नहीं दी अपितु 16 दिन बाद सूचना दी। परिवादी ने वाहन को क्षति/ हानि से बचाने के लिये उचित कदम नहीं उठाये बल्कि दुर्घटना के वक्त पंजीयन प्रमाण-पत्र, परमिट एवं पालिसी में वर्णित अधिकृत क्षमता से अधिक कुल 18 यात्री बैठाकर स्वयं घटना को आमंत्रित किया है जबकि चालक सहित वाहन मंे 10 व्यक्ति ही बैठ सकते थे। इस प्रकार बीमा पालिसी की शर्त व मोटर वाहन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया इसलिये कोई क्लेम देय नहीं होने से विपक्षी-बीमा कम्पनी ने परिवादी को पत्र दिनांक 22.02.10 से इसकी सूचना भेज दी। जवाब में यह भी कहा गया है कि क्षति आंकलन हेतु सर्वेयर अमीन अंसारी को नियुक्त किया गया जिसने अपनी रिपोर्ट में वास्तविक क्षति का आंकलन किया है। बीमित वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने आदि की जांच हेतु पीयूश शर्मा अन्वेषक को अधिकृत किया गया उसने अपनी सही रिपोर्ट दी। परिवादी सर्वेयर द्वारा आंकलित क्षति पाने का भी अधिकारी नहीं है क्योंकि बीमित वाहन में अधिकृत क्षमता से अधिक यात्री बैठाकर बीमा पालिसी की शर्तो का उल्लधंन किया गया । विपक्षी बीमा कंपनी ने सेवामें कोई कमी या लापरवाही नहीं की है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा बीमा पालिसी, प्रथम सूचना रिपोर्ट, मरम्मत एस्टीमेट, विपक्षी बीमा कंपनी को प्रेषित नोटिस, पोस्टल रसीद आदि दस्तावेज की प्रतिया प्रस्तुत की हैं ।
विपक्षी बीमा कंपनी ने साक्ष्य में अपने कर्मचारी ऋषभदेव, सर्वेयर अमीन अंसारी, अन्वेषक पीयूश शर्मा, के शपथ-पत्रों के अलावा क्लेम इन्टीमेशनशीट, परिवादी द्वारा प्रस्तुत क्लेम फार्म, आर.सी., बीमा पालिसी,डी0एल0, परमिट, प्रथम सूचना रिपोर्ट, पुलिस अनुसंधान दस्तावेज, सर्वेयर अमीन अंसारी की रिपोर्ट व अन्वेषक पीयूश शर्मा की रिपोर्ट, क्लेम खारजी पत्र दिनांक 22.02.10 आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की है।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया।
विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादी को संबोधित पत्र दिनांक 22.02.10 से उसके बीमित वाहन की क्षति का कलेम इस आधार पर खारिज करना उसे सूचित किया कि दुर्घटना के वक्त वाहन में पंजीयन प्रमाण-पत्र में वर्णित सीटिंग केपेसिटी से अधिक यात्री यात्रा कर रहे थे इस प्रकार मोटर वाहन कानून के प्रावधानों का उल्लधंन होने से वाहन को क्षति हुई है।
जवाब में उक्त आधार के अलावा क्लेम देय नहीं होने का एक आधार यह भी लिया गया कि बीमा पालिसी की शर्त के अनुसार दुर्घटना की सूचना देने में देरी की गई लेकिन परिवादी को सूचित उक्त पत्र में क्लेम उक्त आधार पर देय नही होने का उल्लेख नहीं किया गया अर्थात् जवाब देते समय इस आधार को नया जोडा गया है। हमारे समक्ष पालिसी की ऐसी कोई शर्त प्रस्तुत नहीं की गई कि बीमित वाहन के दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होने पर कितनी अवधि में बीमाधारी द्वारा सूचना देना आवश्यक है? इसके अलावा यह विवादित नहीं है कि दुर्घटना के तत्काल पश्चात संबंधित पुलिस थाना पर रिपोर्ट हों गई थी इसलिये हम पाते हैं कि देरी से सूचना देने व इस कारण बीमा शर्त का उल्लधंन होने की आपत्ति सारहीन है।
जहाॅ तक वक्त दुर्घटना वाहन में अधिकृत क्षमता से अधिक यात्री बैठे होने का प्रश्न है, इस बारे में कोई विवाद नहीं है कि वाहन के पंजीयन प्रमाण-पत्र व परमिट मे सिटिंग केपेसिटी चालक सहित 10 है।
विपक्षी बीमा कंपनी यह केस लेकर आई है कि वक्त दुर्घटना बीमित वाहन में चालक सहित कुल 18 लोग थे। इसकी पुष्टि के लिये अन्वेषक पीयूश शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में वक्त दुर्घटना वाहन में चालक सहित बैठे हुये व्यक्तियों की संख्या कुल 18 होने का निष्कर्ष दो समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार, अस्पताल रिकार्ड व पुलिस द्वारा अनुसंधान के दौरान लिये गये बयानों से निकाला है। उल्लेखनीय है कि समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार कानूनी साक्ष्य नहीं है, अस्पताल का रिकार्ड प्रमाणित नहीं है तथा पुलिस अनुसंधान में केवल 10 लोगों के चोटग्रस्त होने का ही बयान है अर्थात् उक्त रिपोर्ट में वक्त दुर्घटना वाहन में चालक सहित 18 लोग बैठे होने का निष्कर्ष निश्चायक एवं प्रामाणिक नहीं है। उक्त रिपोर्ट में बैठे हुये यात्रियों में चार बच्चे शामिल बताये गये है।
यदि तर्क के लिये यह मान भी लिया जावे कि वक्त दुर्घटना वाहन मंे अधिकृत सिटिंग क्षमता 10 के मुकाबले बच्चे सहित 18 लोग थे तो भी विपक्षी बीमा कंपनी यह सिद्ध नहीं कर सकी है कि उक्त अधिक यात्री होने के कारण ही जीप दुर्घटनाग्रस्त हुई थी बल्कि विपक्षी बीमा कंपनी ने ही पुलिस अनुसंधान के दस्तावेज व सर्वेयर की रिपोर्ट प्रस्तुत की है। जिनमें यह स्पष्ट उल्लेख है कि चलते समय अचानक अगला बांया टायर फट जाने से वाहन अनियंत्रित हुआ और इस कारण क्षतिग्रस्त हुआ अर्थात् वाहन चालक की प्रत्यक्षतः कोई लापरवाही दुर्घटना का कारण नहीं बनी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक विनिश्चय बी.वी. नागाराजू बनाम ओरियन्टल इन्शोरेन्स कंपनी लि0 भाग 2 (1996) सी0पी0जे0 28 (एस0सी0) में यह व्यवस्था दी है कि अधिकृत क्षमता से 2 या 3 अधिक व्यक्ति बैठे होने मात्र से पालिसी की शर्त का मौलिक भंग होना नहीं माना जा सकता। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक विनिश्चय जितेन्द्र कुमार बनाम ओरियन्टल इंशोरेन्स कंपनी लिमिटेड ए0आई0आर0 2003 एस0सी0 4161 में यह व्यवस्था दी है कि यदि बीमित वाहन में क्षति किसी ऐसे कारण से हुई है जिसके लिये चालक का कोई अंशदान नहीं रहा है अर्थात् चालक के कृत्य के अलावा अन्य किसी कारण से क्षति हुई है तो बीमा कंपनी को क्लेम खारिज करने का अधिकार नहीं है। प्रस्तुत मामलें में वाहन अचानक अगला टायर फटने से अनियंत्रित हुआ है अर्थात् प्रकटतः चालक का कोई कृत्य वाहन में क्षति के लिए कारण नहीं बना इसलिये हम पाते है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त दोनों विनिश्चयों की रोशनी में प्रस्तुत मामलें में विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा केवल इस आधार पर कि वक्त दुर्घटना बीमित वाहन मंे अधिकृत क्षमता से कुछ अधिक यात्री बैठे थे पूरी तरह क्लेम खारिज करना न्यायोचित नहीं है अपितु सेवामें कमी है। विपक्षी बीमा कंपनी को नोन स्टेण्डर्ड बेसिस पर क्षति क्लेम तय करना चाहिये था।
जहाॅ तक बीमित वाहन में दुर्घटना के फलस्वरूप हुई क्षति का प्रश्न है यह सुस्थापित विधि है कि स्वतंत्र सर्वेयर की रिपोर्ट महत्वपूर्ण दस्तावेज है जब तक ठोस एवं तर्क संगत साक्ष्य से उक्त रिपोर्ट का खंडन न हो उसे स्वीकार किया जाना चाहिए। माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग राजस्थान ने अपील नं. 293/09 ओरियन्टल इंशोरेन्स कंपनी लिमिटेड बनाम बाबूलाल मीणा निर्णय दिनांक 18.02.11 में यह व्यवस्था दी है कि सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर क्लेम राशि तय करना उचित है।
प्रस्तुत मामले में विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादी के बीमित वाहन के सर्वे हेतु अमीन अंसारी को नियुक्त किया। अमीन अंसारी सर्वेयर ने वाहन की वास्तविक क्षति 99,649/- रूपये आंकलित करते हुये रिपोर्ट बीमा कंपनी को प्रेषित की।
हम पाते है कि नोन स्टेण्डर्ड बेसिस पर उक्त आंकलित राशि 99,649/- रूपये राउन्ड फिगर में 1,00000/- रूपये की 75 प्रतिशत राशि बतौर क्लेम परिवादी, विपक्षी बीमा कंपनी से प्राप्त करने का अधिकारी है। उसके अलावा उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान होने तक 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी पाने का अधिकारी है तथा मानसिक संताप की भरपाई व परिवाद व्यय भी पाने का अधिकारी है।
आदेष
अतः परिवादी का परिवाद विपक्षी बीमा कंपनी के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर निर्देश दिये जाते है कि विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा परिवादी का उसके बीमित वाहन आर.जे. 20 टी.ए. 0503 के क्षति क्लेम पेटे 75,000/- रूपये एवं इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत होने की तिथि 30.08.10 से भुगतान होने तक 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित कुल राशि दो माह में अदा की जावें। इसके अलावा मानसिक संताप की भरपाई हेतु 5,000/- रूपये व परिवाद व्यय के पेटे 3,000/- रूपये भी अदा की जावे।
(हेमलता भार्गव) ( भगवान दास)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच, कोटा। मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनंाक 10.02.16 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच, कोटा। मंच, कोटा।
Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes
Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.