जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 216/2013
जुगराज मेघवाल पुत्र श्री आईदानराम मेघवाल, जाति-मेघवाल, निवासी-गांधी बस्ती, गोगामेडी के पास, सुजानगढ, जिला-चुरू (राज.)।
-परिवादी
बनाम
1. आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, 414, वीर सावरकर मार्ग, नियर सिद्धि विनायक टेम्पल, प्रभा देवी, मुम्बई-400025
2. आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, भगवती भवन, सेकण्ड फ्लोर, पीएल मोटर्स के उपर, एमआई रोड, जयपुर (राज.)।
3. जांगिड मोटर्स जरिये प्रोपराईटर, कुचामन रोड, डीडवाना, जिला-नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री सांवरराम चैधरी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री लालसिंह जाखाणिया व कुंदनसिंह आचीणा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 26.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी से अपने वाहन मोटरसाइकिल हीरो होण्डा स्पलेंडर प्लस पंजीयन संख्या त्श्र 10 ैठ 7591 का बीमा करवा रखा था। जिसके लिए उसे पाॅलिसी संख्या 3005/17275258/21451/0000 जारी कर रखी थी। बीमा पाॅलिसी के तहत मोटरसाइकिल की आईडीवी राषि 24,042/- रूपये तय की गई। बीमा अवधि के दौरान उक्त मोटरसाइकिल दिनांक 03.06.2013 को दिन में करीब 03ः00 बजे राजकीय चिकित्सालय, डीडवाना से चोरी हो गई। जिसकी तत्काल प्रथम सूचना रिपोर्ट आरक्षी केन्द्र, डीडवाना में दर्ज करवाई गई, जो उक्त थाने में सीआर नम्बर 105, दिनांक 04.06.2013 अन्तर्गत धारा 379 भादसं में पंजीबद्ध हुई तथा वाहन चोरी की सूचना भी नियमानुसार अप्रार्थीगण को उपलब्ध करवा दी गई। परिवादी के उक्त चोरी हुए वाहन के सम्बन्ध में पुलिस थाना, डीडवाना ने अनुसंधान कर एफ.आर. सम्बन्धित न्यायालय में प्रस्तुत कर दी। परिवादी की ओर से अप्रार्थीगण को वाहन चोरी की तत्काल सूचना दिये जाने के साथ ही विधिवत रूप से दावा भी प्रस्तुत कर दिया। उक्त दावा अप्रार्थी संख्या 3 के मार्फत अप्रार्थी संख्या 1 व 2 को भिजवाया गया। तत्पष्चात् परिवादी की ओर से दावे के सम्बन्ध में सभी आवष्यक दस्तावेजात उपलब्ध करवा दिये गये। इस बीच परिवादी को अप्रार्थीगण की ओर से दिनांक 31.08.2013 को लिखा एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें उक्त वाहन का अंतरण हो जाने के आधार पर बीमा पाॅलिसी का उल्लंघन मानते हुए परिवादी के उक्त दावे को खारिज कर दिया गया। अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी के उक्त दावे को गलत आधार पर खारिज किया गया है कारण कि परिवादी ने उक्त वाहन का अंतरण कभी भी नहीं किया था, वाहन परिवादी के ही कब्जे में था। प्रकरण में एक स्टाम्प पर षपथ-पत्र पर लिखा मानकर परिवादी के उक्त वाहन का अंतरण परिवादी द्वारा कर दिया जाना बताया गया है, जो गलत है। वस्तुतः उक्त स्टाम्प एक षपथ-पत्र के रूप में सर्वे की कार्यवाही के दौरान जो सर्वेयर मौके पर आया था, उसने यह कहकर ऐसे स्टाम्प पर साइन करवाये थे कि उक्त क्लेम की जो राषि आयेगी, वह सीधे ही आपके खाते में आयेगी, इसलिए खाता नम्बर दो। चूंकि परिवादी के पास अपना कोई खाता नम्बर नहीं था तथा परिवादी के सगे जीजा कैलाषचन्द्र के नाम से बैंक में खाता था, इसलिए परिवादी ने अपने जीजा के खाता नम्बर देने के हिसाब से सर्वेयर को खाली स्टाम्प पर हस्ताक्षर करके दिये थे, ऐसे ही खाली स्टाम्प पर हस्ताक्षर सर्वेयर ने परिवादी के जीजा से करवाये थे। ये सभी हस्ताक्षर केवल मात्र बैंक खाता संख्या को लेकर ही करवाये गये थे। सर्वेयर द्वारा यह हस्ताक्षर परिवादी के राषि भुगतान की सुविधा के हिसाब से करवाये थे, जिसमें कभी भी उक्त वाहन के अंतरण जैसी कोई बात न तो परिवादी ने कही थी और न ही लिखी जानी थी। इस प्रकार से ऐसे षपथ-पत्रों के आधार पर वाहन का अंतरण मानने में अप्रार्थीगण ने भारी भूल की है और न ही ऐसा कोई अंतरण माना जा सकता। वैसे भी किसी वाहन का अंतरण षपथ-पत्र के द्वारा विधि अनुसार कभी भी नहीं हो सकत क्योंकि वाहन के अंतरण के लिए तो इकरारनामा या फार्म नम्बर 29 व 30 लिये व दिये जाते हैं। हस्तगत प्रकरण में न तो ऐसा कोई इकरारनामा है और न ही कोई फार्म नम्बर 29 व 30 है। ऐसी स्थिति में उक्त वाहन विक्रय होने का प्रष्न ही उत्पन्न नहीं हो सकता। विधि अनुसार उक्त प्रकरण में बीमा वाहन का हुआ है, व्यक्ति का नहीं। बीमा वाहन का होने के कारण बीमा योग्य हित वाहन के साथ जुडा रहता है, न कि व्यक्ति के साथ। ऐसे में घटना के समय वाहन का स्वामी कौन था, यह तथ्य गौण हो जाता है। हालांकि हस्तगत प्रकरण में वाहन का स्वामी परिवादी ही था। इस तरह अप्रार्थीगण ने परिवादी का दावा गलत रूप से खारिज किया है। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार व्यवहार की प्रथा में आता है। अतः परिवादी को वाहन की बीमा धन राषि 24,042/- रूपये मय 15 प्रतिषत वार्शिक ब्याज दर से अप्रार्थीगण से दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य सभी अनुतोश परिवादी को दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 व 2 की ओर से उक्त वाहन का अप्रार्थी कम्पनी के पास बीमित होना स्वीकार करते हुए बताया गया है कि वाहन चोरी के सम्बन्ध में परिवादी द्वारा उनके यहां कोई क्लेम पेष नहीं किया गया है बल्कि कैलाषचन्द मेघवाल नामक व्यक्ति द्वारा क्लेम पेष किया गया है, जिसे बाद जांच सही तौर पर खारिज किया गया है। परिवादी का यह कहना कि उसने वाहन का बेचान नहीं किया तथा सर्वेयर ने सर्वे की कार्यवाही के दौरान खाली स्टाम्प पर हस्ताक्षर करवाये हो, यह बिल्कुल ही गलत है बल्कि परिवादी स्वयं ने षपथ-पत्र लिखकर दिया, जिसमें उसने वाहन को चार वर्श पूर्व कैलाष को बेचना स्वीकार किया है तथा खरीददार कैलाष द्वारा वाहन को चार वर्श पूर्व खरीदना बताया गया है तथा इस वाहन को चार वर्श पूर्व खरीदना कैलाष व सहकर्मी ओमप्रकाष व दिनेष षर्मा ने भी अपने बयानों में बताया है। इस कारण षपथ-पत्र के आधार पर वाहन का अंतरण मानने में अप्रार्थीगण ने कोई भूल नहीं की है। वाहन चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट भी कैलाष ने ही दर्ज करवाई है। बीमा कम्पनी के पास भी चोरी की सूचना दिनांक 11.06.2013 को कैलाषचन्द ने ही दर्ज करवाई। यह भी बताया गया कि उक्त वाहन दिनांक 03.06.2013 को चोरी हुआ जबकि बीमा कम्पनी को सूचना 11.06.2013 को दी गई जबकि चोरी की सूचना तुरन्त बीमा कम्पनी को दी जानी चाहिए थी। इस तरह अप्रार्थीगण ने सही रूप में दावा खारिज किया है। ऐसी स्थिति में परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से बावजूद तामिल न तो कोई उपस्थित आया तथा न ही कोई जवाब पेष किया गया।
4. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
5. बहस सुनी गई। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही बीमा कवर नोट प्रदर्ष 1, बीमा कम्पनी की ओर से दावा खारिज करने के सम्बन्ध में परिवादी जुगराज को भेजा गया पत्र/सूचना प्रदर्ष 2, वाहन का पंजीयन प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 3, कैलाषचन्द द्वारा प्रस्तुत एफ.आई.आर. प्रदर्ष 4, अंतिम रिपोर्ट प्रदर्ष 5 एवं न्यायालय द्वारा अंतिम रिपोर्ट स्वीकार करने की आदेषिका प्रदर्ष 6 पेष कर तर्क दिया है कि अप्रार्थी ने वाहन का अंतरण हो जाने के आधार पर बीमा पाॅलिसी का उल्लंघन मानते हुए परिवादी के दावे को गलत खारिज किया है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर क्लेम राषि दिलाई जावे।
6. उक्त के विपरित अप्रार्थी पक्ष की ओर से भी जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही दावा खारिज करने के सम्बन्ध में परिवादी को दी गई सूचना/पत्र प्रदर्ष ए 1, कैलाषचन्द की ओर से प्रस्तुत क्लेम फार्म प्रदर्ष ए 2, क्लेम डिस्चार्ज बाउचर प्रदर्ष ए 3, एफआईआर प्रदर्ष ए 4, मोटरसाइकिल खरीद बिल प्रदर्ष ए 5, मोटरसाइकिल बेचान सम्बन्धी जुगराज का षपथ-पत्र प्रदर्ष ए 6, मोटरसाइकिल खरीद सम्बन्धी कैलाषचन्द का षपथ-पत्र प्रदर्ष ए 7, विटनेष दिनेष षर्मा व ओमप्रकाष चांवरिया का षपथ पत्र क्रमषः प्रदर्ष 8 व 9 पेष करते हुए तर्क दिया है कि इस मामले में परिवादी जुगराज द्वारा किसी प्रकार का क्लेम आवेदन पेष नहीं किया गया था बल्कि परिवादी ने अपना वाहन करीब चार वर्श पूर्व कैलाषचन्द को विक्रय कर दिया था तथा कैलाषचन्द मेघवाल द्वारा प्रस्तुत क्लेम सही तौर से खारिज किया गया है। यह भी तर्क दिया गया है कि इस मामले में वाहन चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को तुरन्त न देकर अत्यन्त ही विलम्ब से दी गई, ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी का कोई दायित्व नहीं रहता है। अतः परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किये हैंः-
(1.) 2014 डी.एन.जे. (सी.सी.) 180 ओरियंटल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम मुस्ताक खान व अन्य
(2.) राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग द्वारा दिनांक 07.11.2012 को निर्णित रिविजन पीटिषन नम्बर 2534/12 विरेन्द्र कुमार बनाम न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड
(3.) राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग द्वारा दिनांक 09.12.2009 को निर्णित अपील संख्या 321/5 न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम त्रिलोकचन्द
7. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन करते हुए उनके द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णयों में माननीय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग द्वारा अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में हस्तगत पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री बीमा कवर नोट प्रदर्ष 1 अनुसार परिवादी जुगराज के नाम से वाहन मोटरसाइकिल नम्बर त्श्र 10 ैठ 7591 दिनांक 04.10.2012 से 03.10.2013 की अवधि हेतु अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां बीमित था। परिवादी के कथनानुसार यह वाहन दिनांक 03.06.2013 को दिन में करीब 3 बजे डीडवाना में चोरी हुआ, जिस बाबत् प्राथमिकी दिनांक 04.06.2013 को पुलिस थाना, डीडवाना में दर्ज करवाई गई थी। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रलेख क्लेम आवेदन प्रदर्ष ए 2 से स्पश्ट है कि वाहन चोरी होने बाबत् क्लेम आवेदन परिवादी जुगराज की ओर से प्रस्तुत न किया जाकर कैलाषचन्द नामक व्यक्ति द्वारा क्लेम आवेदन प्रस्तुत किया गया, जिसे अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रदर्ष ए 1 अनुसार खारिज किया गया है। यद्यपि परिवादी की ओर से मंच के समक्ष यह बताया गया है कि क्लेम आवेदन परिवादी की ओर से प्रस्तुत किया गया था, लेकिन परिवादी की ओर से इस बाबत् कोई स्पश्ट प्रलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है बल्कि अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रलेख ए 2 से स्पश्ट है कि क्लेम फार्म कैलाषचन्द द्वारा ही प्रस्तुत किया गया था। पत्रावली पर उपलब्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्ष ए 4 से भी स्पश्ट है कि पुलिस रिपोर्ट भी कैलाषचन्द द्वारा दर्ज करवाई गई थी। परिवादी जुगराज के षपथ-पत्र प्रदर्ष ए 6 एवं कैलाषचन्द के षपथ-पत्र प्रदर्ष 7 से भी स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा करीब चार वर्श पूर्व यह वाहन कैलाषचन्द को विक्रय किया जा चुका था। परिवादी द्वारा प्रस्तुत बीमा कवर नोट/पाॅलिसी प्रदर्ष 1 तथा वाहन के पंजीयन प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 3 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि वाहन परिवादी जुगराज के नाम से पंजीकृत था एवं परिवादी जुगराज के नाम से ही बीमित था। यह पूर्व में स्पश्ट किया जा चुका है कि क्लेम आवेदन जुगराज द्वारा प्रस्तुत न होकर कैलाषचन्द नामक व्यक्ति ने पेष किया था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी के पत्र प्रदर्ष ए 1 से भी स्पश्ट है कि क्लेम आवेदन इसी आधार पर खारिज किया गया है कि क्लेम आवेदन प्रस्तुत करने वाले कैलाषचन्द के नाम से वाहन अंतरित नहीं हुआ है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय 2014 डी.एन.जे. (सी.सी.) 180 ओरियंटल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम मुस्ताक खान व अन्य वाले मामले में भी वाहन दुर्घटनाग्रस्त होने तक वाहन का रजिस्ट्रेषन व बीमा पाॅलिसी क्रेता के नाम से अंतरित नहीं हुई थी, ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम आवेदन खारिज किया जाना सही माना गया। उपर्युक्त न्याय निर्णय वाले मामले में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि इस मामले में भी बीमा कम्पनी द्वारा कैलाषचन्द नामक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत क्लेम आवेदन खारिज कर किसी प्रकार की भूल या सेवा दोश नहीं किया गया है।
8. यह भी उल्लेखनीय है कि इस मामले में वाहन की चोरी दिनांक 03.06.2013 को दिन में करीब 3 बजे कस्बा डीडवाना से होना बताया गया है जबकि अप्रार्थी बीमा कम्पनी को इस बाबत् दिनांक 11.06.2013 को सूचित किया गया है। परिवादी पक्ष द्वारा बीमा कम्पनी को वाहन चोरी की सूचना दिये जाने में हुए विलम्ब का कोई कारण नहीं बताया गया है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग द्वारा दिनांक 09.12.2009 को निर्णित अपील संख्या 321/5 न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम त्रिलोकचन्द वाले मामले में वाहन चोरी होने बाबत् बीमा कम्पनी को सूचना नौ दिन विलम्ब से दी गई थी तथा इसी आधार पर बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम आवेदन खारिज करना माननीय राश्ट्रीय आयोग द्वारा सही बताया गया है।
9. उपर्युक्त विवेचन से स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
10. परिवादी जुगराज मेघवाल द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण खारिज किया जाता है। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करेंगे।
11. आदेष आज दिनांक 26.07.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या