Uttar Pradesh

Chanduali

CC/73/2012

Ramsurat Kandu - Complainant(s)

Versus

ICICI lOMBARD G.INSU CO LTD - Opp.Party(s)

29 May 2017

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/73/2012
 
1. Ramsurat Kandu
SAYDARAJA CHANDAULI
...........Complainant(s)
Versus
1. ICICI lOMBARD G.INSU CO LTD
SAYDARAJA CHANDAULI
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 29 May 2017
Final Order / Judgement
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 73                                सन् 2012ई0
रामसूरत कान्दू पुत्र स्व0 सोदी कान्दू निवासी बगही कुम्भापुर पो0 सैयदराजा जिला चन्दौली।
                                      ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
1-आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक द्वारा मैनेजर सैयदराजा जिला चन्दौली।
2-रोहित बाबू कैशियर आई0सी0आई0सी0 आई0 सैयदराजा जिला चन्दौली।
3-आई0सी0आई0सी0 आई0 प्रुडेसियल लाईफ इश्योरेंस कम्पनी लि0 स्टैनरोज हाउस 4 पलोर 1089 आपा साहेब मराठे मार्ग प्रभादेवी मुम्बई। 400025
                                            .............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप सदस्य
                          निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव अध्यक्ष
1- परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी सं0 1 लगा0 3  से बीमा की धनराशि मु0 2,00000/-मय व्याज दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
2- परिवाद प्रस्तुत करके परिवादी की ओर से संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी का विपक्षी संख्या 2 से यह बात हुई थी कि तीन वर्ष तक 40,000/-प्रतिवर्ष जमा करने के बाद दिनांक 14-12-17 को मु0 2,00000/-परिवादी को मिलेगा। तत्पश्चात परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 के बैंक में दिनांक 24-12-08 को मु0 40,000/- की पहली किस्त जमा करके रसीद प्राप्त किया। परिवादी ने मु0 40000/- की दूसरी किस्त दिनांक 24-12-09 को जमा किया लेकिन परिवादी की दूसरी किस्त को बैंक के कैशियर द्वारा दिनांक 5-1-2010 को जमा किया गया। परिवादी ने तीसरी किस्त दिनांक 30-4-2011 को जमा किया।परिवादी द्वारा पूरी किस्त जमा करने बाद जब वह विपक्षी संख्या 2 से अपने बीमा की धनराशि मांगने गया तो विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी को अवगत कराया कि दूसरी किश्त बैंक में जमा न होने के कारण बीमा के धनराशि का भुगतान नहीं किया जायेगा। परिवादी ने दूसरी किस्त जमा करने की रसीद विपक्षी संख्या 2 को दिखाया लेकिन विपक्षी संख्या 2 सुनवा नहीं हुए। परिवादी बार-बार विपक्षी संख्या 1 व 2 से बीमा के धनराशि  देने हेतु निवेदन करता रहा किन्तु विपक्षी 24-12-12 को डाट कर भगा दिये। इस अभिकथन के साथ परिवादी ने बीमा की उपरोक्त धनराशि मय व्याज दिलाये जाने हेतु प्रार्थना किया है।
3- विपक्षी संख्या 1 की ओर से जबाबदावा दाखिल किया गया है जिसमे परिवादी के अधिकांश कथनों को अस्वीकार करते हुए मुख्य रूप से यह अभिकथन किया गया है कि परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक में दिनांक24-12-2008 को कोई धनराशि जमा नहीं की गयी थी। दिनांक 5-1-2010 को चेक संख्या 502836 के माध्यम से विपक्षी आई0सी0आई0सी0 आई0 प्रुडेसियल लाईफ इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा परिवादी के खाते से रू0 40000/-निकाला गया था और इसी प्रकार दिनांक 
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23-3-2011 तथा दिनांक 30-4-2011 को भी चेक संख्या 502839 तथा 502840 के माध्यम से आई0सी0आई0सी0 आई0 प्रुडेसियल लाईफ इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा पैसा निकाला गया था। विपक्षी 1 का यह भी अभिकथन है कि उनकी ओर से परिवादी के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया गया है और न कोई सेवा में कमी की गयी है। इस प्रकार परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
4- विपक्षी संख्या 3 की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके परिवाद का विरोध करते हुए संक्षेप में कथन किया गया है कि प्रस्तुत परिवाद सारवान तथ्यों को छिपाकर मिथ्या कथनों के आधार पर दाखिल किया गया है एवं फोरम की प्रक्रिया का दुरूपयोग किया गया है। परिवादी द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव पत्र ’’लाइफ टाइम प्लस पालिसी’’ को भरकर विपक्षी संख्या 3 को दिया गया है जिसका प्रथम वार्षिक प्रीमियम मु0 40000/- जमा किया गया जिसके आधार पर परिवादी को 10 वर्ष की अवधि का बीमा पालिसी संख्या 10505083 दिनांक 24-12-2008को जारी किया गया। इस पालिसी के अर्न्तगत प्रीमियम भुगतान की अवधि 10 वर्ष रही तथा मु0 2,00000/- का बीमा प्रदान किया गया। बीमा के कागजात परिवादी को पंजीकृत डाक से भेजे गये जिसको परिवादी ने प्राप्त किया है जिसकी नकल बतौर संलग्नक(ए) जबाबदावा के साथ प्रस्तुत किया गया है। प्रीमियम के भुगतान के संदर्भ में बीमा पालिसी के क्लाज 4.1 में प्राविधानित किया गया है कि निर्धारित तिथि पर प्रीमियम की धनराशि का भुगतान किया जायेगा इसके मासिक प्रीमियम भुगतान में 15 दिन का अतिरिक्त ग्रेस पीरीयड और अन्य प्रीमियम के भुगतान में 30 दिन का ग्रेस पीरीयड प्रदान किये जाने का प्राविधान है। परिवादी ने दूसरे प्रीमियम का भुगतान चेक संख्या 502836 द्वारा दिनांक 4-1-2010 को किया तथा चेक संख्या 833948 दिनांक 28-4-11 मु0 40000/- का तीसरे प्रीमियम के भुगतान हेतु दिया लेकिन खाता बन्द होने से चेक डिसआनर हो गया जिससे विपक्षी संख्या 3 को तीसरे प्रीमियम का भुगतान प्राप्त नहीं हुआ। चेक डिसआनर होने की सूचना परिवादी को एस.एम.एस. एलर्ट के माध्यम से दिया गया लेकिन उसने इस बकाये प्रीमियम की धनराशि का भुगतान नहीं किया जिसके कारण उसकी पालिसी क्लाज ’4’ के प्राविधानों के अनुसार समाप्त हो गयी। पालिसी समाप्त होने के बाद इसकी परिवादी ने बीमा पालिसी के क्लाज ’2’ में दिये गये प्राविधानों के अनुसार पुर्नजीवित नहीं कराया। दिनांक 31-8-2012 को पालिसी के नवीनीकरण के लिए मु0 40000/- परिवादी का प्रीमियम प्राप्त हुआ। चूंकि पालिसी समाप्त हो गयी थी इसलिए परिवादी को पी0डी0आर0(पर्सनल हेल्थ डिक्लरेशन) फार्म भरकर बकाया दो प्रीमियम मु0 80000/- देने को कहा गया जिसको परिवादी ने नहीं दिया जिसकी वजह से उसके बीमा पालिसी का नवीनीकरण नहीं हुआ। परिवादी ने जो प्रीमियम मु0 40000/- का जमा किया था उसे चेक संख्या 081304 दिनांकित 10-1-2013 स्पीड पोस्ट से भेजकर वापस कर दिया गया। लेकिन परिवादी ने किन्हीं कारणों से चेक अपने खाते में जमा नहीं किया और उक्त धनराशि का भुगतान नहीं लिया। दिनांक 24-12-2012 को परिवादी की पालिसी बन्द कर दी गयी थी। अतः बीमा
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 पालिसी के क्लाज 2.2 के उपबंधों के अनुसार उसकी पालिसी बन्द कर दिये जाने का पत्र एवं सरेण्डर धनराशि मु0 22497.06 का चेक संख्या 033190 परिवादी को भेजा गया लेकिन उसने इसका भी भुगतान किन्हीं कारणों से नहीं लिया। परिवाद में गलत ढंग से बीमा की धनराशि मु0 2,00000/- का भुगतान मांगा गया है। बीमा की शर्तो के अधीन यह भुगतान बीमाधारक की मृत्यु होने पर ही दी जा सकती है। उपरोक्त आधार पर कथन किया गया है कि परिवाद मिथ्या तथ्यों पर दाखिल किया गया है जो खारिज किये जाने योग्य है।  
5- परिवादी की ओर से साक्ष्य के रूप में बीमा पालिसी की छायाप्रति कागज संख्या 4/1,बैंक का स्टेटमेन्ट 4/2ता 4/3 दाखिल किया गया है। विपक्षी संख्या 3 की ओर से लाइफ टाइम प्लस पालिसी की छायाप्रति कागज संख्या 11/1ता 11/14,प्रपोजल फार्म की छायाप्रति 11/15ता 11/19,बैंक का कागजात 11/20 ता 11/21 दाखिल किया गया है। विपक्षी संख्या 1 की ओर से बैंक स्टेटमेन्ट की छायाप्रति कागज संख्या 21/1 ता 21/2 दाखिल किया गया है। 
6- हम लोगों ने उभय पक्षों के अधिवक्ता के तर्को को सुना है तथा पत्रावली का पूर्ण रूपेण गम्भीरतापूर्वक परिशीलन किया है।
7- परिवादी की ओर से उनके लिखित व मौखिक तर्क में मुख्य रूप से यही कहा गया है कि परिवादी ने विपक्षी बैंक के माध्यम से रू0 200000/- का बीमा 10 वर्षो के लिए कराया था जिसकी प्रथम किस्त के रूप में रू0 40000/- दिनांक 24-12-2008 को जमा किया गया और दूसरी किस्त के रूप में भी रू0 40000/- चेक संख्या 502836 के द्वारा दिनांक 5-1-2010 को जमा किया गया तथा तीसरी किस्त के रूप में भी रू0 40000/-दिनांक 30-4-2011 को जमा किया गया। इस प्रकार परिवादी ने कुल रू0 120000/- 3 किस्तों में जमा किया। विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी को यह समझाया था कि 3 किस्त जमा करने के उपरान्त यदि परिवादी को आवश्यकता होगी तो उसका पैसा व्याज सहित वापस कर दिया जायेगा किन्तु जब परिवादी ने 3 किस्त जमा करने के बाद विपक्षी संख्या 2 से अपना पैसा प्राप्त करने के लिए सम्पर्क किया तो उसे बताया गया कि दूसरी किस्त का भुगतान नहीं किया गया है इसलिए पैसा नहीं मिलेगा। परिवादी ने तीनों किस्तों की रसीद भी विपक्षी संख्या 1 व 2 को दिखाया और भुगतान की याचना की, लेकिन उन्होंने कोई भुगतान नहीं किया। इस प्रकार विपक्षीगण की ओर से सेवा में कमी की गयी है। परिवादी की ओर से यह तर्क दिया गया कि विपक्षी का यह कथन कि परिवादी को चेक के द्वारा रू0 80000/- का भुगतान दिनांक 10-1-2013 को कर दिया गया है गलत है क्योंकि इस सम्बन्ध में विपक्षीगण की ओर से कोई साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है। परिवादी का यह भी तर्क है कि विपक्षीगण का यह कथन कि दूसरी किस्त परिवादी ने समय से जमा नहीं किया था गलत है क्योंकि यदि दूसरी किस्त तय सीमा के अर्न्तगत जमा नहीं थी तो विपक्षी ने तीसरी किस्त कैसे जमा करवाया। इस प्रकार परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षीगण ने 
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जानबूझकर सेवा में कमी की है अतः परिवादी को विपक्षीगण से बीमा की धनराशि रू0 200000/- व्याज सहित दिलायी जाय।
8- विपक्षी संख्या 1 की ओर से तर्क दिया गया है कि परिवादी का यह कथन गलत है कि दिनांक 24-12-2008 को बैंक में रू0 40000/- परिवादी द्वारा जमा किया गया था उनका तर्क है कि दिनांक 5-1-2010 को आई0सी0आई0सी0 आई0 प्रुडेसियल लाईफ इश्योरेंस कम्पनी लि0द्वारा चेक संख्या 502836 द्वारा रू0 40000/-परिवादी के खाते से निकाला गया है और इसी प्रकार दिनांक 23-3-2011 व 30-4-2011 को भी 2 चेकों के माध्यम से धनराशि आई0सी0आई0सी0 आई0 प्रुडेसियल लाईफ इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा परिवादी के खाते से निकाली गयी है। विपक्षी संख्या 1 का यह भी तर्क है कि परिवादी को उनके विरूद्ध दावा दाखिल करने का कोई वाद कारण प्राप्त नहीं है क्योंकि उनके द्वारा कोई असावधानी या सेवा में कमी नहीं की गयी है। अतः परिवादी का परिवाद निरस्त करते हुए विपक्षी संख्या 1 को बतौर व्यय रू0 25000/-दिलाया जाय।
इसी प्रकार विपक्षी संख्या 3 की ओर से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी ने फोरम के समक्ष सही तथ्यों को नहीं रखा है परिवादी ने विपक्षी संख्या 3 को सही समय पर किस्त का भुगतान नहीं किया है इसलिए उसकी पालिसी लैप्स हो गयी उनका यह भी तर्क है कि विपक्षी संख्या 3 को गलत आधार पर पक्षकार बनाया गया है जबकि परिवाद में उनके विरूद्ध कोई आरोप नहीं लगाया गया है। परिवादी ने अपने परिवाद में यह स्वीकार किया है कि पालिसी 10 वर्षो के लिए थी जो समय से किस्त जमा करने पर आधारित थी इसलिए परिवादी को रू0 200000/- प्राप्त नहीं हो सकता। बीमा की शर्तो में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि रू0 200000/- की राशि बीमित व्यक्ति की मृत्यु पर या, बीमा की परिपक्वता पर ही प्राप्त होगी। परिवादी ने बीमा की दूसरी किस्त दिनांक 4-1-2010 को चेक संख्या 502836 द्वारा अदा किया है और तीसरी किस्त के सम्बन्ध में चेक संख्या 833948 दिनांक 28-4-2011 को रू0 40000/- का दिया लेकिन परिवादी का खाता बन्द होने या स्थानान्तरण होने के कारण उक्त चेक अनादित हो गया और इस प्रकार विपक्षी संख्या 3 ने बीमा की तीसरी किस्त प्राप्त नहीं किया। पुनः दिनांक 21-8-2012 को विपक्षी संख्या 3 ने परिवादी से रू0 40000/- का रिन्यूवल प्रीमियम प्राप्त किया किन्तु पालिसी लैप्स हो जाने के कारण परिवादी को पी0डी0आर0 फार्म(व्यक्तिगत स्वास्थ्य घोषण पत्र) दाखिल करने के लिए कहा गया लेकिन परिवादी ने ऐसा नहीं किया। परिवादी को बकाया प्रीमियम का रू0 80000/- (दो किस्त)अदा करना था न कि रू0 40000/- अतः उसकी पालिसी रेगुलर नहीं की जा सकती थी और इसीलिये कम्पनी ने जो रू0 40000/- प्राप्त किया था उसे चेक संख्या 081304 दिनांकित 10-1-2013 के माध्यम से स्पीड पोस्ट द्वारा परिवादी को वापस कर दिया गया लेकिन परिवादी ने इस चेक को कैश नहीं कराया जिसका कारण वह स्वयं जानता है। विपक्षी संख्या 3 का यह भी तर्क है कि परिवादी ने अपने परिवाद में ही यह कहा है कि उसे रू0 200000/- 
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दिनांक 24-12-2017 को मिलना था अतः परिवादी को भुगतान हेतु इस तिथि के बाद ही आना चाहिए था उसके पहले परिवादी द्वारा भुगतान मांगने और विपक्षी द्वारा इन्कार करने और सेवा में कमी करने की कहानी बिल्कुल गलत है और इस प्रकार परिवादी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।  
9- उभय पक्ष के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन एवं परिवाद पत्र तथा जबाबदावा के कथनों से यह तथ्य प्रमाणित होता  है कि विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादी के आवेदन पर उसे रू0 200000/- की’’लाइफ टाइम प्लस’’बीमा पालिसी संख्या 10505083 दिनांक 24-12-08 को प्रदान किया था। बीमा अवधि 10 वर्ष की थी तथा इसका वार्षिक प्रीमियम मु0 40000/- था। पालिसी प्राप्त करते समय प्रथम प्रीमियम की किश्त मु0 40000/- परिवादी ने जमा किया था। बीमा पालिसी की छायाप्रति बतौर संलग्नक (ए) बीमा कम्पनी ने दाखिल किया है। तथा परिवादी ने भी पालिसी बाण्ड की छायाप्रति दाखिल किया है। बीमा पालिसी के प्राविधानों में ऐसा कही उल्लेख नहीं है कि 3 वर्ष तक मु0 40000/- प्रति वर्ष की दर से प्रीमियम जमा करने पर दिनांक 14-12-2017 को परिवादी को मु0 2,00000/- प्राप्त होगा। अतः इस बारे में परिवाद में जो कथन किया गया है वह मानने योग्य नहीं है। निर्विवादित तौर पर पालिसी लेते समय दिनांक 24-12-08 को मु0 40000/- प्रीमियम की पहली किश्त परिवादी ने जमा किया था। परिवाद में कथन है कि दिनांक 24-12-09 को प्रीमियम की दूसरी किश्त मु0 40000/- परिवादी ने जमा किया लेकिन बैंक के कैशियर द्वारा इसे दिनांक 5-1-2010 को बीमा कम्पनी के खाते में जमा किया गया। जबाबदावा में इस कथन को अस्वीकार किया गया है तथा कहा गया है कि परिवादी ने दूसरी किश्त बीमा पालिसी की शर्तो के अधीन देय तिथि तक जमा नहीं किया। जबाबदावा का यह कथन गलत पाया जाता है। परिवादी ने अपने खाता संख्या 090501500215 का विवरण (ट्रांजेक्शन इन्क्वायरी) कागज संख्या 4/3 दाखिल किया है जिसके परिशीलन से पाया जाता है कि परिवादी के इस खाते से दिनांक 5-1-2010 को प्रीमियम की दूसरी किश्त मु0 40000/- विपक्षी बीमा कम्पनी के खाते में जमा हो गयी है। इससे प्रमाणित है कि मु0 40000/- की यह दूसरी किस्त देय तिथि दिनांक 24-12-09 को जमा न होकर ग्रेस पीरीयड एक माह की अवधि के अर्न्तगत दिनांक 5-1-2010 को विपक्षी बीमा कम्पनी के खाते में जमा हो गयी थी। अतः बीमा पालिसी के क्लाज 4.1 के उपखण्ड(।)के अनुसार दूसरी किश्त का भुगतान परिवादी द्वारा निर्धिरित 30 दिन के ग्रेस पीरीयड के अन्दर कर दिये जाने के कारण बीमा पालिसी के शर्तो के अधीन यह भुगतान नियमानुकूल रहा है। बीमा पालिसी की दूसरी किश्त का भुगतान समयावधि के अन्दर न मानकर के बीमा कम्पनी की ओर से भूल की गयी है। जो सेवा  में कमी की श्रेणी में है तथा दूसरी किश्त का  भुगतान न मानकर परिवादी के बीमा पालिसी को किसी भी स्थिति में निरस्त नहीं किया जा सकता था।
 
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10- इसी प्रकार परिवादी द्वारा दाखिल कागज संख्या 4ग/2 ट्रांजेक्शन इन्क्वायरी से यह स्पष्ट है कि दिनांक 30-4-2011 को भी परिवादी ने रू0 40000/- विपक्षी बीमा कम्पनी को अदा किया है तथा दिनांक 23-3-2011 को भी रू0 25000/- जमा किया है विपक्षी आई0सी0आई0सी0 आई0 प्रुडेसियल लाईफ इश्योरेंस कम्पनी लि0 की ओर से भी परिवादी के बैंक एकाउण्ट की जो नकल दाखिल की गयी है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी के खाते से दिनांक 23-3-2011 को रू0 25000/- तथा दिनांक 30-4-2011 को रू0 40000/- आई0सी0आई0सी0 आई0 प्रुडेसियल लाईफ इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा निकाला गया है। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि उपरोक्त धनराशि बीमा की तीसरी किस्त की धनराशि है जिसे विपक्षी संख्या 3 ने प्राप्त किया है। विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादी द्वारा समय से किस्त जमा न करने के कारण उसकी पालिसी लैप्स हो गयी लेकिन पालिसी कब लैप्स हुई  इसका कोई स्पष्ट अभिकथन नहीं किया गया है। विपक्षी संख्या 3ने अपने जबाबदावा में यह कहा है कि दिनांक 31-8-2012 को पालिसी के नवीनीकरण के लिए रू0 40000/- का प्रीमियम उन्हें प्राप्त हुआ था लेकिन चूंकि पालिसी समाप्त हो चुकी थी इसलिए परिवादी को पी0डी0आर0 फार्म भरने के लिए कहा गया जो उसने नहीं भरा अतः उसका रू0 40000/- चेक संख्या 081304 के माध्यम से दिनांक 10-1-2013 को स्पीड पोस्ट द्वारा परिवादी को वापस कर दिया गया लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया और उक्त धनराशि का भुगतान परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विपक्षी संख्या 3 का  कहीं यह अभिकथन नहीं है कि परिवादी अपनी तीसरी किस्त का जो रू0 40000/- दिनांक 30-4-2011 विपक्षी संख्या 3 को अदा किया था वह पैसा विपक्षी संख्या 3 ने परिवादी को कभी वापस किया इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि विपक्षी संख्या 3 ने दिनांक 30-4-2011 को परिवादी की पालिसी की तीसरी किस्त का प्रीमियम रू0 40000/- स्वीकार कर लिया है क्योंकि यदि उन्होंने इस चेक को स्वीकार न किया होता तो उसी समय इसे परिवादी को वापस कर दिया होता। कागज संख्या 4ग/2 तथा कागज संख्या 21/1 जो क्रमशः परिवादी तथा विपक्षी की ओर से दाखिल किया गया है से यह बात भलीभांति स्पष्ट हो रही है कि दिनांक 30-4-2011 को परिवादी के खाते से रू0 40000/- विपक्षी संख्या 3 के खाते में गया है इसी प्रकार दिनांक 23-3-2011 को भी रू0 25000/- परिवादी के खाते से विपक्षी के खाते में गया है यह रू0 25000/- किस मद में गया है इसका कोई उल्लेख न तो परिवादी ने अपने अभिकथन में किया है और न विपक्षी ने, किन्तु उपरोक्त अभिलेख से यह बात सिद्ध हो जाती है कि परिवादी के बीमा की तीसरी किस्त विपक्षी द्वारा स्वीकार की गयी है और तीसरी किस्त जमा होने के बाद अन्य किस्त जो परिवादी ने रू0 40000/- का भेजा था उसे विपक्षी ने स्वीकार नहीं किया। उनका कथन है कि उक्त धनराशि चेक के माध्यम से परिवादी को स्पीड पोस्ट द्वारा भेज दी गयी थी किन्तु उक्त चेक का भुगतान परिवादी ने प्राप्त नहीं किया।
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इस प्रकार पत्रावली पर उपलब्ध सम्पूर्ण साक्ष्य के परिशीलन से यही निष्कर्ष निकलता है कि परिवादी ने अपनी पालिसी की 3 किस्तें विपक्षी को अदा किया है। विपक्षी संख्या 3 की ओर से परिवादी की पालिसी ’’लाइफ टाइम प्लस’’ का जो पालिसी डाक्यूमेन्ट दाखिल किया गया है उसके क्लाज 4-4 तथा क्लाज 9 के प्राविधानानुसार यदि परिवादी पालिसी की 3 किस्त जमा करने के बाद अन्य किस्त जमा नहीं करता है तो उसकी पालिसी टरमिनेट हो जायेगी और क्लाज 2-2 के अनुसार सरेण्डर चार्ज काटकर शेष धनराशि बीमाकर्ता को वापस की जायेगी। प्रस्तुत मामले में परिवादी के अधिवक्ता ने अपने तर्क में यह कहा है कि परिवादी ने 3 किस्त रू0 120000/- विपक्षी संख्या 3 को अदा किया है। अतः पालिसी डाक्यूमेन्ट के उपरोक्त क्लाजों के अनुसार परिवादी उपरोक्त धनराशि में से सरेण्डर चार्ज काटने के बाद जो धनराशि शेष बचती है उसे प्राप्त करने का अधिकारी है। क्लाज 2-2 के अनुसार यदि पालिसी के 3 वर्ष पूरे हो चुके है तो सरेण्डर चार्ज 8 प्रतिशत काटा जायेगा ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि रू0 120000/- रूपया में से 8 प्रतिशत सरेण्डर चार्ज काटकर शेष धनराशि 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक व्याज सहित वापस दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है और इस प्रकार परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
                                  आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 3 को आदेशित किया जाता है कि वे आज से 2 माह के अन्दर परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि रू0 120000/-(एक लाख बीस हजार)  में से 8 प्रतिशत सरेण्डर चार्ज काटकर शेष धनराशि को दावा दाखिल करने की तिथि दिनांक 28-12-2012 से पैसा अदा करने की तिथि तक 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज सहित अदा करें।
 
(लक्ष्मण स्वरूप)                                     (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्य                                                अध्यक्ष
                                                 दिनांक-29-5-2017
 
 
 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

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