जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 286/2008 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-09.05.2008
परिवाद के निर्णय की तारीख:-06.07.2023
1. Smt. Susma Singh, aged about 38 years, wife of Sri Rajendra Singh Kushawaha.
2. Rajendra Singh Kushawaha, aged about 43 years, son of Late Shreeram Singh Kushawaha, both are residents of House No. 582 Ka/25, Bag No. 2, Behsa, Kanpur Road, Police Station-Sarojini Nagar, Post office Amausi Airport, Lucknow..
.................COMPLAINANT.
VERSUS
Branch Manager, I.C.I.C.I. Bank, Shalimar Complex, Hazratganj, Lucknow.
.............OPPOSITE PARTY.
परिवादीगण के अधिवक्ता का नाम:-श्री चन्द्रशेखर अग्निहोत्री।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम:-श्याम कुमार राय।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत विपक्षी से 4,60,000.00 रूपये मय 24 प्रतिशत ब्याज सहित दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथानक इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने दिनॉंक 09.06.2003 को विपक्षी से 4,50,000.00 रूपये का लोन लिया था तथा विपक्षी पार्टी द्वारा परिवादी संख्या 01 का लोन एकाउन्ट नम्बर एल0बी0 एल.यू.सी. 00000358836 दिया। परिवादी संख्या 02 परिवादी संख्या 01 के पति हैं। परिवादिनी ने उक्त लोन के संबंध में किश्ते देना प्रारम्भ किया। परिवादी संख्या 02 ने पोस्ट डेटेट चेक 2005 में दिया। जिसका विवरण निम्न है-चेक संख्या 102141, 102142, 102143, 102144, 102145, 102146, 102147, 102148, 102149 102150। तक 10 चेक दिया है। चेक संख्या 41 व 42 को विपक्षी ने अपने लोन एकाउन्ट में डिपॉजिट किया। 43 और 44 नम्बर के चेक को डिपॉजिट नहीं किया। 45 व 46 को जमा किया। कुल छह चेक 43, 44, 47, 48, 49 एवं 50 का भुगतान विपक्षी द्वारा नहीं किया गया।
3. विपक्षी चेक संख्या 102143 जो प्रीमियम की अदायगी में विपक्षी को दिनॉंक 30.04.2005 को दिया गया था जिसे विपक्षी द्वारा फोरजरी करते हुए दिनॉंक 30.10.2007 की तिथि अंकित कर ओवर राइटिंग करके तथा कपटपूर्ण तरीके से दो अंको 89 का उनके संयुक्त खाते 1454, में जो राजेन्द्र सिंह कुशवाहा व उनकी पत्नी के थे मे से मुबलिग 15,000.00 रूपये को समीम अन्सारी के लोन एकाउन्ट संख्या LBLUC-534176 में चेक इश्यू के बाद जबकि चेक के भुगतान की वैलिडेटेड 06 माह होती है। चेक नम्बर-102144 सेविंग बैंक एकाउन्ट नम्बर 1454 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया का था। इस चेक में फ्राड करते हुए 2005 को 2007 में परिवर्तित करते हुए 03 डिजिट 592 बादहू सतीश चन्द्र मिश्रा के खाते में 28000.00 रूपये जमा किया गया। इससे स्पष्ट है कि दोनों चेक भी दो वर्ष बाद जमा किये गये।
4. परिवादी संख्या 02 द्वारा कुल 10 चेक निर्गत किए गए जिसमें पहले चेक संख्या 102141 से 3,250.00 रूपये निकाला गया तथा बादहू विपक्षीगण द्वारा चेक संख्या 102142 और 102145, 102146 बैंक में क्लीयरेंस के लिये दाखिल किये गये। जो खाता संख्या 1454 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया से क्लियर हुए
चेक संख्या 102143 और 102144 को सीरियल क्रम में जमा नहीं किया गया और दो वर्ष के बाद नवम्बर 2007 और दिसम्बर 2007 में क्रमश: 15,000.00 रूपये व 28,000.00 रूपये निकाल गये। इस प्रकार 04 चेक क्रमश: 41, 42, 45 व 46 को भुगतान के लिये जमा किया गया। दो चेक क्रमश: 43 और 44 लोन एकाउन्ट के स्टेटमेंट में नहीं मिले, जोकि फ्राड करके शमीम अन्सारी और सतीश चन्द्र मिश्रा के एकाउन्ट में जमा किये।
5. परिवादिनी द्वारा इस हुए धोखाधड़ी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनॉंक 12.02.2008 को अन्तर्गत भारतीय पैनल कोड की धारा 406, 420, 467, 468, 471 के तहत पुलिस स्टेशन हजरतगंज में मुकदमा संख्या 165/08 दर्ज करायी गयी। परिवादिनी द्वारा दाखिल 10 चेक में 04 चेकों का भुगतान लोन के एवज में परिवादी संख्या 02 के खाते से किया गया, तथा दो चेकों का भुगतान फ्राड करके शमीम अन्सारी तथा सतीश चन्द्र मिश्रा के खाते में किया गया तथा 04 को विपक्षी अपने कब्जे में अभी भी रखे हुए है। (चेक क्रमांक 102147-102150 तक)
6. इसके बाद विपक्षी/बैंक द्वारा इलेक्ट्रानिक् चेक सिस्टम (ECS) प्रारम्भ किया गया और पैसे का हस्तांतरण (ECS) द्वारा किया गया।
7. विपक्षी संख्या 01 से 04 द्वारा उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया कि मनगढ़न्त तथ्यों के आधार पर परिवाद दाखिल किया गया है। परिवादी द्वारा स्टालमेंट समय पर जमा नहीं किया जाता था। विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। यह तथ्य सही है कि परिवादी को 4,50,000.00 रूपये का लोन स्वीकृत हुआ था जिसका लोन संख्या LBLUC00000358836 जारी किया गया तथा इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया कि 10 चेक परिवादी द्वारा लोन के भुगतान हेतु दिये गये।
8. चेक संख्या 102143, 102144, 102145 और 102146 लोन एकाउन्ट के बदले क्रेडिट किया गया। बाकी चेकों का भुगतान विपक्षीगण द्वारा नहीं किया गया है, क्योंकि विपक्षीगण द्वारा इलेक्ट्रानिक चेक सर्विस को एडाप्ट किया गया है। पैरा नम्बर 07 के कथनों को इनकार करते हुए यह कहा गया कि 102143 नम्बर के चेक को दिनॉंक 05.07.2012 को क्रेडिट किया गया इसमें कोई भी धोखा-धड़ी, ओवर राइटिंग आदि नहीं की गयी। चेक संख्या 102144 में जो भी छेड़छाड़ की गयी वह परिवादिनी द्वारा स्वयं की गयी। जिस चेक का भुगतान परिवादी के खाते में किया गया दर्शाया गया है वह इलेक्ट्रानिक चेक सर्विस होने के कारण उक्त चेकों का भुगतान नहीं किया गया।
9. परिवादिनी ने मौखिक साक्ष्य में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य में चेकों की छायाप्रतियॉं एवं पासबुक, स्टेटमेंट ऑफ लोन एकाउन्ट, एफ0आई0आर आदि की छायाप्रतियॉं प्रस्तुत किया गया है। विपक्षीगण की ओर से भी लोन एकाउन्ट डिटेल्स, आदि से संबंधित दस्तावेज दाखिल किया गया है।
10. मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्को को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
11. परिवादिनी का कथानक है कि उसने चेक संख्या 45 व 46 जमा किया गया। कुल छह चेक 43, 44,47, 48, 49 एवं 50 का भुगतान विपक्षी द्वारा नहीं किया गया। परिवादी का कथानक यह है कि दिनॉंक 30.04.2005 को चेक दिया गया था, उसमें विपक्षी द्वारा फोरजरी करते हुए दिनॉंक 30.10.2007 को ओवर राइटिंग करते हुए कपटपूर्ण दो बार में खाता संख्या LBLUC00000 35883 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया से 15,000.00 रूपये 28,000.00 रूपये 1454 रूपये को शमीम अन्सारी व सतीश चन्द्र मिश्रा के लोन एकाउन्ट संख्या LBLUC-534176 में जमा किया गया है, जबकि चेक इश्यू होने के बाद भुगतान की वैलिडिटी छह माह होती है फ्राड करके किया गया।
12. चेक संख्या 43 जो कि खाता संख्या 1454 शमीम अन्सारी के लोन एकाउन्ट नम्बर LBLUC-534176 में किया गया। चेक संख्या 102144 सेविंग बैंक एकाउन्ट नम्बर 1454 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया का था। इस चेक में फ्राड करते हुए 2005 को 2007 में परिवर्तित करते हुए 03 डिजिट 592 को बादहू सतीश चन्द्र मिश्रा के खाते में जमा किया गया। इसके अलावा दो चेक भी दो वर्ष बाद जमा किये गये।
13. परिवादिनी का कथानक है कि 04 चेक 41, 42, 45 व 46 को लोन के भुगतान के लिये जमा किया गया। दो चेक 43 और 44 लोन एकाउन्ट के स्टेटमेंट में नहीं मिले, जो शमीम अन्सारी और सतीश चन्द्र मिश्रा के एकाउन्ट में जमा किये गये। इस प्रकरण में परिवादिनी द्वारा एफ0आई0आर0 भी पुलिस स्टेशन, हजरतगंज में दर्ज करायी गयी।
14. विपक्षीगण का कथानक है कि परिवादिनी द्वारा 10 चेक लोन के भुगतान हेतु दिये गये। विपक्षीगण का कथानक है कि 102143 नम्बर के चेक को दिनॉंक 05.07.2012 को क्रेडिट किया गया इसमें कोई भी धोखा-धड़ी, ओवर राइटिंग आदि नहीं की गयी। चेक संख्या 102144 में जो भी छेड़छाड़ की गयी है वह स्वयं परिवादिनी द्वारा की गयी है।
15. परिवादिनी द्वारा स्वयं ही अपने परिवाद पत्र में यह उल्लिखित किया गया है कि विपक्षी को दिनॉंक 30.04.2005 को जो चेक दिया गया था जो विपक्षी द्वारा फोरजरी करते हुए दिनॉंक 30.10.2007 की तिथि डालकर ओवर राइटिंग करते हुए तथा कपटपूर्ण दो अंकी 89 में खाता संख्या 1454, मुबलिग 15,000.00 रूपये का समीम अन्सारी के लोन एकाउन्ट संख्या LBLUC-534176 जमा किया गया जबकि चेक के भुगतान की वैलिडिटी 06 माह होती है। चेक नम्बर-102144 सेविंग बैंक एकाउन्ट नम्बर 1454 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया का था। इस चेक में फ्राड करते हुए 2005 को 2007 में परिवर्तित करते हुए 03 डिजिट 592 बादहू सतीश चन्द्र मिश्रा के खाते में जमा किया गया। दो चेक भी दो वर्ष बाद जमा किये गये।
16. यह किन परिस्थितियों में चेक का भुगतान सतीश चन्द्र मिश्रा, शमीम अन्सारी के खाते में किया गया है जैसा कि परिवादी का स्वयं का कथानक है कि चेक में परिवर्तन करके भी जमा किया गया है। परिवर्तन किया गया है यह तब तक स्पष्ट नहीं हो सकता जब तक कि इसमें हस्तलेख विशेषज्ञ अपनी राय नहीं देता है और हस्तलेख विशेषज्ञ की राय के बाद हस्तलेख विशेषज्ञ से जिरह होगी और किन परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न हस्ताक्षर किये गये उसमें भी जिरह की आवश्यकता पड़ेगी। अत: यह एक जटिल विषय वस्तु है। जहॉं हस्तलेख का मामला आ जाता है उसें जिरह का अवसर विपक्षी को प्रदान किया जाता है, और इनके द्वारा किन परिस्थितियों में दोनों व्यक्तियों सतीष चन्द्र मिश्रा एवं समीम अन्सारी के खाते में चेक जमा किया गया है यह जिरह का विषय है। मेरे विचार से ऐसे जटिल केस व विषय को सरसरी तौर पर नहीं देखा जा सकता। जैसा कि राज्य उपभोक्ता आयोग कर्नाटक बंगलौर द्वारा IV 1993 (1) CPR 694 जिसमें कहा गया है कि जहॉं जटिल विषय हो जैसा कि कपट का प्रकरण हो तो उपभोक्ता फोरम का, क्षेत्राधिकार नहीं है। ठीक इसी प्रकार राजय उपभोक्ता आयोग, राजस्थान, जयपुर द्वारा II 1993 (1) C.P.R. 260 में कहा गया है कि कपट डिसेप्शन या जैसा इस तथ्य में जटिल प्रश्न है, इन प्रश्नों में हल सरसरी तौर पर नहीं दिया जा सकता। राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम नई दिल्ली द्वारा I 1992 (1) C.P.R. 34 में जहॉं पर जटिल प्रश्न हो या मिश्रित प्रश्न का उदाहरण हो वहॉं व्यवहार न्यायालय को क्षेत्राधिकार है। मैने विधि व्यवस्था का ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया। उपर्युक्त समस्त तथ्यों के दृष्टिगत परिवाद पत्र को खारिज किया जाना उचित प्रतीत होता है।
आदेश
परिवादी का परिवाद इस आयोग में पोषणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है। परिवादिनी स्वतंत्र होगी कि वह अपना परिवाद किसी सक्षम न्यायालय में दाखिल कर सकती है।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक- 06.07.2023