जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-241/2005
1. सुनील कुमार साहू पुत्र स्व0 हरीशंकर साहू
2. सीमा साहू पत्नी श्री सुनील कुमार साहू
निवासीगण - 9/6/69ए, रिकाबगंज, परगना हवेली अवध तहसील शहर व जिला - फैजाबाद ............परिवादी
बनाम
1. कुलबीर सिंह सोढ़ी, सोढ़ी फाइनेन्सयल आई.सी.आई.सी.आई. ‘‘सिंह बन्धु’’, एक्शटेन्शन, प्रथमतल सिविल लाइन स्टेशन रोड फैजाबाद।
2. अमित भाटिया‘‘ब्रांच केडिट मैनेजर’’ आई.सी.आई.सी.आई. होम फाइनेन्स कम्पनी लिमिटेड 5 ग्राउण्ड फ्लोर षगुन पैलेस सप्रू मार्ग हजरतगंज, लखनऊ।
3. आई.सी.आई.सी.आई. प्रधान कार्यालय बान्द्रा कुर्ला काम्प्लेक्ष बान्द्रा ईस्ट मुम्बई द्वारा मुख्य प्रबन्धक, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक। ..................विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅक 06.05.2015
उद्धोषित द्वारा - श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादीगण के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादीगण साइकिल डीलर हैं जिसकी पुरानी दुकान रिकाबगंज फैजाबाद में किराये पर थी जिसकी मालकिन श्रीमती बानो बेगम थीं, जिन्होंने परिवादी संख्या 1 से दुकान खाली करने को कहा तो परिवादीगण को दुकान छोड़ कर अन्यत्र दुकान तलाश करनी पड़ी। कई जगह तलाश करने के बाद परिवादी को एक दुकान मय मकान बिकाऊ मिली जिसके मालिक श्री दिनेश कुमार श्रीवास्तव से परिवादी संख्या 1 मिला और बात करने पर रुपये 9 लाख में सौदा तय हुआ। परिवादीगण के पास इतना धन नहीं था, इसलिये परिवादीगण ने विपक्षी संख्या 1 से संपर्क किया और ऋण के बारे में बात की। परिवादीगण ने विपक्षी संख्या 1 से रुपये 6,00,000/- के ऋण के लिये आवेदन दिनांक 05.09.2004 को किया और विपक्षी संख्या 1 ने 15 दिन मंे ऋण दिलाने की बात कही और आश्वासन दिया। परिवादीगण ने सभी औपचारिकतायें पूरी कीं। विपक्षी संख्या 1 ता 3 परिवादीगण को निर्धारित अवधि में ऋण नहीं दिला सके और परिवादीगण उक्त भवन को नहीं खरीद सके। भवन स्वामी ने अन्य लोगों से दुकान बेचने की बात करना शुरु कर दी तो परिवादीगण ने उससे बात की तो भवन स्वामी 5 लाख रुपये बकाया करने पर सहमत हुआ मगर इस शर्त के साथ कि बैनामा लिखने के दो माह के अन्दर परिवादीगण उसका का बकाया रुपये 5 लाख का भुगतान कर देंगे। यदि दो माह में रुपया नहीं दिया तो रुपये 50,000/- हर्जाना एवं ब्याज परिवादीगण भवन स्वामी को देंगे। परिवादी संख्या 1 विपक्षी संख्या 1 से मिला और उन्होंने एक माह में ऋण दिलाने का आश्वासन दिया और सेल डीड लिखा कर विपक्षी संख्या 1 को देने को कहा। विपक्षी संख्या 1 के आश्वासन पर परिवादीगण ने रुपये 9 लाख में दिनांक 16.10.2004 को बैनामा करा लिया और रुपये 5 लाख बकाया कर दिया। विपक्षी संख्या 1 ने परिवादीगण से पुनः नया आवेदन लिया और 2 माह में ऋण दिलाने का आश्वासन दिया। परिवादीगण ने विपक्षीगण को बता दिया था कि यदि उन्हें निर्धारित अवधि में ऋण नहीं मिला तो रुपये 50 हजार व ब्याज भवन स्वामी को अतिरिक्त देना पड़ेगा। तो विपक्षी संख्या 1 ने आश्वस्त किया कि यदि कोई अड़चन होगी एक सप्ताह में वह परिवादीगण का बैनामा वापस कर देंगे। विपक्षीगण के विभिन्न अधिकारीगणों ने सर्वे किया और परिवादीगण को ऋण का पात्र पा कर रुपये 3,306/- एडमिनिस्ट्रेटिव चार्ज के रुप में जमा कराया जिसे परिवादीगण ने चेक संख्या 316295 ओरिएन्टल बैंक आफ कामर्स द्वारा दे दिया। ऋण स्वीकृति के बाद विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी संख्या 1 को ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 13.12.2004 को भेजा जो परिवादी संख्या 1 को दिनांक 18.12.2004 को मिला। परिवादी संख्या 1 विपक्षी संख्या 2 से मिला तो उन्होंने 3 प्रतिशत कमीशन नगद भुगतान करने को कहा जिसकी कोई रसीद न देने व ऋण में मुजरा न करने की बात भी कही। जिसे परिवादी संख्या 1 ने देने में असमर्थता व्यक्त की और अपनी शिकायत ले कर एरिया इन्चार्ज नितिन गर्ग के पास गया उन्होंने बिना किसी कमीशन के ऋण की धनराशि दिलाने का आश्वासन दिया और लिखित शिकायत मांगी जिसे परिवादी संख्या 1 ने लिख कर दे दिया। उक्त शिकायत के बाद विपक्षी संख्या 2 परिवादी संख्या 1 से आ कर मिले और उन्होंने बताया कि विभाग में 5 प्रतिशत कमीशन लिया जाता है, आप से जो 3 प्रतिशत लिया जा रहा है वह जायज है, क्यों कि हमारा बैंक सबसे कम दरों पर ऋण उपलब्ध कराता है। इसलिये परिवादी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। दिनांक 28-12-2004 को विपक्षी संख्या 2 ने परिवादी संख्या 1 के मोबाइल पर सूचित किया कि उसका ऋण स्वीकृति पत्र कैंसिल कर दिया गया है। अब परिवादीगण को किसी दशा में ऋण नहीं दिया जायेगा जिससे परिवादीगण को बेहद मानसिक कष्ट हुआ। विवश हो कर परिवादीगण ने उच्चाधिकारियों को प्रार्थना पत्र दिये मगर विपक्षीगण के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई। परिवादीगण ने अपने अधिवक्ता के जरिये विपक्षीगण को कानूनी नोटिस दिनांक 13.01.2005 को भेजी जिसका उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। परिवादीगण ने विक्रेता को रुपये पांच लाख अदा कर दिये मगर उन्होंने रुपये 50 हजार दिये बिना रुपये 5 लाख की रसीद देने से मना कर दिया। जिससे परिवादीगण मानसिक उलझन में हैं। इसलिये परिवादीगण को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादीगण को विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति रुपये 95,000/-, जमा धनराषि रुपये 3,306/-, जमा राषि रुपयेे 3,306/- पर 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज तथा परिवाद व्यय रुपये 2,000/- दिलाया जाय।
विपक्षी संख्या 1 ने अपना लिखित कथन दाखिल किया है तथा परिवादी के परिवाद के तथ्यों से इन्कर किया है तथा अपने विषेश कथन मंे कहा है कि परिवादीगण ने आवासीय भवन के लिये विपक्षी संख्या 3 के पास रुपये 6,00,000/- के ऋण के लिये आवेदन किया था। विपक्षीगण द्वारा दिनांक 18.12.2004 को ऋण स्वीकृत पत्र में कुछ षर्तें थीं जिसमें कुछ इस प्रकार हैं कि ऋण की राषि संपत्ति के मूल्य की 46 प्रतिषत से अधिक नहीं होगी, जब कि खरीदे जाने वाली संपत्ति के बाजार भाव का आंकलन किया जायेगा, विधिक व तकनीकी अनापत्ति व सर्वे के बाद ऋण दिया जायेगा, ऋण स्वीकृत होने के दिन से 30 दिन तक के लिये पत्र वैध होगा। ऋणी से सभी कागजात जमा करने की अपेक्षा की गयी जिससे उसे ऋण दिया जा सके, जांच में पाया गया कि परिवादी जो संपत्ति खरीदना चाहता है वह कामर्षियल है जो नियमों के तहत स्वीकृत नहीं की जा सकती इस लिये परिवादीगण को ऋण देने से मना किया गया। परिवादीगण को जो ऋण स्वीकृत किया गया था वह छः माह तक वैध था किन्तु परिवादीगण ने कोई अन्य संपत्ति को पसंद नहीं किया इसलिये ऋण नहीं दिया गया। परिवादीगण ने जो आरोप विपक्षीगण पर लगाये हैं वह आधार हीन हैं। परिवादीगण का आक्रोष ऋण न दिये जाने के कारण इस परिवाद के रुप में प्रकट हुआ है। परिवादीगण ने विपक्षीगणों को बदनाम करने का प्रयास किया है जिसके लिये विपक्षीगण परिवादीगण के विरुद्ध सिविल व क्रिमिनल वाद चलाने के लिये स्वतंत्र हैं। सभी बैंकों द्वारा ऋण दिया जाना बैंकों की इच्छा पर निर्भर करता है। जिला फोरम को परिवादीगण के परिवाद को सुनने का अधिकार नहीं है। परिवादीगण का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादीगण द्वारा रुपये 6,00,000/- के ऋण के लिये आवेदन किया जाना स्वीकार किया है तथा परिवादीगण के परिवाद के अन्य कथनों से इन्कार किया है। विपक्षीगण ने विपक्षी संख्या 1 की ही बातों को दोहराय है, जिसे यहां पर दोबारा लिखना उचित नहीं है। विपक्षीगण ने यही कहा है कि परिवादीगण का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
परिवादीगण एवं विपक्षीगण की ओर से लिखित बहस दाखिल की गयी तथा पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी संख्या 1 ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, बैंक द्वारा स्वीकृत ऋण पत्र की छाया प्रति दिनांकित 13.12.2004, परिवादी संख्या 1 द्वारा विपक्षीगण के एरिया मैनेजर को लिखे गये पत्र दिनांक 17.12.2004 की छाया प्रति, एरिया मार्केटिंग मैनेजर को लिखे गये पत्र दिनांक 29.12.2004 की छाया प्रति, फैक्स व रजिस्ट्री रसीदों की छाया प्रतियां, भारतीय रिजर्व बैंक के पत्र दिनांक 14.02.2005 की मूल प्रति, परिवादीगण द्वारा विपक्षीगण को भेजे गये विधिक नोटिस दिनांक 12.01.2005 की छाया प्रति एवं रजिस्ट्री रसीदों की छाया प्रतियां, सेल डीड की छाया प्रति, साक्ष्य में परिवादी संख्या 1 का षपथ पत्र, परिवादीगण के पक्ष के समर्थन में अवधेष कुमार गुप्ता पुत्र स्व0 षीतला प्रसाद का षपथ पत्र, अजय जायसवाल पुत्र बजरंगी लाल जायसवाल का षपथ पत्र तथा अषोक कुमार गुप्ता पुत्र स्व0 सोहन लाल गुप्ता के षपथ पत्र दाखिल किये हैं जो षामिल पत्रावली हैं। विपक्षी संख्या 1 ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन एवं अपना षपथ पत्र दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण ने अपना लिखित कथन, अमित भाटिया पुत्र स्व0 बी.आर. भाटिया क्रेडिट षाखा प्रबन्धक का षपथ पत्र, ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 13-12-2004 की प्रमाणित छाया प्रति, ऋण आवेदन पत्र की प्रमाणित छाया प्रति, वेल्यूएषन रिपोर्ट की प्रमाणित छाया प्रति तथा खरीदेजाने वाली संपत्ति के छाया चित्र की प्रमाणित छाया प्रति दाखिल की हैं जो षामिल पत्रावली हैं।
परिवादीगण ने ऋण के लिये आवेदन पहले दिनांक 05.09.2004 को किया था तथा विपक्षीगण द्वारा परिवादीगण से ऋण आवेदन दोबारा दिनांक 12.10.2004 को लिया गया। परिवादीगण द्वारा खरीदे जाने वाले भवन का सर्वे दिनांक 22.11.2004 को किया गया। परिवादीगण को ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 13.12.2004 को जारी किया गया जब कि विपक्षीगण ने ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 18.12.2004 को जारी होना अपने लिखित कथन में कहा है जो कि गलत है, ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 13.12.2004 को ही जारी हुआ है जो कि पत्रावली पर संलग्न है। विपक्षीगण ने परिवादीगण द्वारा खरीदे जाने वाली संपत्ति का जब सर्वे किया था तो सर्वे रिपोर्ट में टाइप आफ प्रोपर्टी में साफ साफ अंकित है कि संपत्ति कामर्षियल है, जब कि सर्वे रिपोर्ट दिनांक 22.11.2004 की है जो ऋण स्वीकृत किये जाने के पहले की है। इससे प्रमाणित है कि विपक्षीगण ने यह जानते हुए कि परिवादीगण कामर्षियल संपत्ति खरीद रहे हैं परिवादीगण का ऋण स्वीकृत कर दिया था और परिवादीगण से ऋण स्वीकृत करने के लिये एडमिनिस्ट्रेटिव चार्ज जमा कराया गया। विपक्षीगण ने अपने ऋण स्वीकृत पत्र में इस बात का कहीं उल्लेख नहीं किया है कि परिवादीगण किसी अन्य संपत्ति का चयन करें क्यों कि परिवादीगण कामर्षियल संपत्ति खरीद रहे हैं। ऋण स्वीकृत किये जाने से पूर्व विपक्षीगण को ज्ञान था कि परिवादीगण कामर्षियल संपत्ति खरीद रहें हैं और उन्होंने ऋण स्वीकृत कर दिया था। यह विपक्षीगण की सेवा में कमी है कि उन्होंने परिवादीगण को ऋण नहीं दिया। परिवादीगण ने यह कहा है कि ऋण स्वीकृत होने के बाद उससे ऋण धनराषि की 3 प्रतिषत धनराषि की मांग विपक्षी संख्या 1 ने की थी जिसे परिवादी ने देने से मना कर दिया था क्यों कि उक्त धनराषि की उसे रसीद नहीं मिलनी थी और न ही उक्त धनराषि ऋण में मुजरा होनी थी। इसकी लिखित षिकायत परिवादी संख्या 1 ने दिनांक 17.12.2004 को एरिया बिजनेस हेड लखनऊ को की थी इन शिकायती पत्रों की छाया प्रतियां पत्रावली पर उपलब्ध हंै, तदुपरान्त परिवादी संख्या 1 ने विपक्षी बैंक के मुख्य कार्यालय, रजिस्टर्ड कार्यालय बड़ौदा, भारतीय रिजर्व बैंक दिल्ली, वित्त मंत्री महोदय तथा एरिया मैनेजर को भी की थी। विपक्षी संख्या 2 ने विपक्षी संख्या 1 की बात को पुश्ट करते हुए परिवादी से कहा कि 5 प्रतिषत कमीषन लिया जाता है और परिवादी से 3 प्रतिषत मांगा गया है वह जायज है। यदि परिवादी से कमीषन नही मांगा गया तो परिवादीगण शिकायत ही क्यों करते, इसीलिये परिवादीगण को ऋण नहीं दिया गया। परिवादीगण अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहे हैं। विपक्षीगण ने परिवादीगण को ऋण स्वीकृत करने के बाद ऋण नहीं दिया है जो कि सेवा में कमी का मामला बनता है। परिवादीगण क्षतिपूर्ति पाने के अधिकारी हैं। परिवादीगण का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाशिक रुप से स्वीकार एवं अंाशिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाशिक रुप से स्वीकार एवं अंाशिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादीगण को आदेश की दिनांक से 30 दिन के अन्दर रुपये 3,306/- (रुपये तीन हजार तीन सौ छः मात्र) का भुगतान करंे। यदि विपक्षीगण परिवादीगण को निर्धारित अवधि 30 दिन में भुगतान नहीं करते हैं तो विपक्षीगण परिवादीगण को रुपये 3,306/- (रुपये तीन हजार तीन सौ छः मात्र) पर परिवाद दाखिल करने की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज का भी भुगतान करंेगे। विपक्षीगण परिवादीगण को क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 50,000/- (रुपये पचास हजार मात्र) तथा परिवाद व्यय के मद में रुपये 2,000/- (रुपये दो हजार मात्र) भी अदा करें।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 06.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष