Rajasthan

Ajmer

CC/393/2013

RAJENDRA CHAUDHARY - Complainant(s)

Versus

ICICI BANK - Opp.Party(s)

ADV SANDEEP SHARMA

15 Jul 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/393/2013
 
1. RAJENDRA CHAUDHARY
BEAWAR
...........Complainant(s)
Versus
1. ICICI BANK
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Gautam prakesh sharma PRESIDENT
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER


जिला    मंच,      उपभोक्ता     संरक्षण         अजमेर

श्री राजेन्द्र चैधरी पुत्र श्री छगनलाल जी चैधरी, जाति- जाट, निवासी- पीसांगन रोड, ग्राम ब्यावर खास, तहसील- ब्यावर, जिला-अजमेर । 
                                                       प्रार्थी

                            बनाम

ष्षाखा प्रबन्धक(क्रांच के्रडिट मैनेजर) आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड, जयपुर (राजस्थान)
2. षाखा प्रबन्धक(क्रांच के्रडिट मैनेजर) आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड,कचहरी रोड, अजमेर (राज.) 
                                                     अप्रार्थीगण
                 परिवाद संख्या 393/2013

                            समक्ष
                   1.  गौतम प्रकाष षर्मा    अध्यक्ष
           2. श्रीमती ज्योति डोसी   सदस्या

                           उपस्थिति
                  1.श्री संदीप षर्मा,अधिवक्ता, प्रार्थी
                  2.श्री अवतार सिंह उप्पल,अधिवक्ता अप्रार्थीगण 
                              
मंच द्वारा           :ः- आदेष:ः-      दिनांकः- 15.07.2015


1.      परिवाद के तथ्योंनुसार प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी बैंक में आवेदन करने पर रू. 5,50,000/- का ऋण स्वीकृत किया गया । इस संबंध में अप्रार्थी बैंक द्वारा प्रार्थी को यह विष्वास दिलाया कि उक्त ऋण राषि प्रार्थी को किष्तों में अदा करनी होगी तथा सम्पूर्ण ऋण राषि  प्रार्थी को प्राप्त होने के पष्चात्  उक्त ऋण राषि की वापसी कितनी किष्तों में व कब कब देनी होगी, के संबंध में लिखित में सूचित कर दिया जावेगा और  इसी विष्वास पर प्रार्थी ने उपरोक्त ऋण लिया था । परिवाद के चरण संख्या 3 में प्रार्थी को प्रथम किष्त रू. 2,31,000/-, द्वितीय  किष्त 71,000/- तथा तृतीय किष्त रू. 2,40,413/- का भुगतान किया गया  । प्रार्थी को यह भी विष्वास दिलाया गया कि इस ऋण से संबंधित सारी कार्यवाही ब्यावर कार्यालय से होगी किन्तु प्रार्थी को ऋण की किष्ते  लेने हेतु जयपुर बुलाया  गया  व 1-2 बार  जयपुर स्टाम्प, खाली कागजों व फार्मो पर हस्ताक्षर करने बुलाया गया । इस तरह से प्रार्थी का अनावष्यक व्यय हुआ । दिनांक 19.1.2009 को प्रार्थी ने अप्रार्थी बैंक को पत्र लिखकर  उसके ऋण खाते का स्टेटमेंट मांगा जो नही ंदिया तब दिनांक  3.3.2009 को प्रार्थी ने पुनः निवेदन किया किन्तु आज तक भी अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी को कोई जवाब नहीं दिया । अप्रार्थी बैंक प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी को दिए गए खाली  चैकों के आधार पर राषि वसूलना ष्षुरू कर दिया जिस पर  मजबूर होकर प्रार्थी ने अपने खाते का पेमेन्ट स्टाप करवाना पडा । दिनांक 15.9.2009 को प्रार्थी ने  अपने अधिवक्ता के माध्यम से एक नोटिस भिजवाया कि उसे ऋण संबंधी जानकारी व दस्तावेज उपलब्ध कराए जावे किन्तु  अप्रार्थी बैंक ने कोई जानकारी  व दस्तावेज उपलब्ध नहीं करवाए । अप्रार्थी बैंक ने दिनांक  3.4.2012 के पत्र  द्वारा उससे रू. 4,47,969/- की मांग की गई  किन्तु इस मांग के संबंध में  ऋण की राषि कितनी बकाया है व  कौन कौन सी किष्ते बकाया है  व किष्ते कब कब देय थी आदि का कोई विवरण नहीं दिया । दिनांक 19.5.2012 को प्रार्थी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भिजवाया । इस तरह से उपरोक्त वर्णित तथ्यों से अप्रार्थी बैंक के विरूद्व सेवा में कमी दर्षाते हुए यह परिवाद पेष किया  एवं परिवाद की चरण संख्या 11 में वर्णित अनुतोष की मांग की ।

2.     अप्रार्थी बैंक की ओर से जवाब पेष हुआ जिसमें प्रारम्भिक आपत्तियां ली गई कि प्रार्थी का खाता उसके द्वारा ऋण राषि की अदायगी नही ंकरने से  प्रार्थी का ऋण खाता छवद च्मतवितउपदह ।ेेमज;छच्।द्ध हो गया जिस पर बैंक ने प्रार्थी के विरूद्व ैमबनतपजप्रंजपवद - त्मबवदेजतनबजपवद व िथ्पदंदबपंस ।ेेपेजे ंदक म्दवितबमउमदज ज व िैमबनतपजल प्दजमतमेज ।बजए 2002 ( जो इस निर्णय में आगे अधिनियम ,2002 वर्णित होगा ) के तहत कार्यवसाही प्रारम्भ की जा चुकी है ।  अतः इस अधिनियम की धारा  14(3), 17,34, एवं 35 के प्रावधान अनुसार इस परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार इस  मंच को नहीं है । आगे दर्षाया है कि प्रार्थी ने यह परिवाद उसके विरूद्व षुरू की गई अधिनियम ,2002 की कार्यवाही को निष्फल करने के उद्देष्य से यह परिवाद पेष किया  है जो प्रथम दृष्टया खारिज होने योग्य है ।  

    चरणवार जवाब पेष करते हुए दर्षाया कि प्रार्थी को जो ऋण स्वीकृत किया गया थ वह  रूरल हाउसिंग फाईनेन्स के  अन्तर्गत  था यह ऋण जयपुर कार्यालय से ही स्वीकृत होता है । अतः औपचारिकताओं के संबंध में प्रार्थी को जयपुर जाना पडा  है । प्रार्थी को इस  ऋण की अदायगी  180 किष्तों में  जो प्रथम किष्त रू. 7141/- की थी, से करनी थी  एवं प्रार्थी ने ऋण अदायगी बाबत् थ्सवंजपदह तंजम व िप्दजमतमेज  का विकल्प चुना था ।  आगे दर्षाया कि प्रार्थी को नियमानुसार स्वीकृत ऋण का भुगतान किया गया है । प्रार्थी को ऋण स्वीकृति संबंधी पत्र दिनांक 31.12.2007 उपलब्ध कराया जिस पर प्रार्थी व उसके पिता के हस्ताक्षर है  एवं इस पत्र में ऋण की प्रकृति व किष्तों की अदायगी  किस तरह से होगी  इत्यादि सारे विवरण दिए हुए है । अपने जवाब में आगे दर्षाया कि प्रार्थी द्वारा  ऋण की अदायगी नहीं किए जाने पर उसके विरूद्व अधिनियम ,2002 के अनुसार कार्यवाही षुरू की जा चुकी है । अतः उक्त कार्यवाही से बचने के आषय से परिवाद पेष किया है । अप्रार्थी बैंक के पक्ष में किसी भी तरह से सेवा में कमी का बिन्दु सिद्व नहीं है । अन्त में परिवाद खारिज होने योग्य दर्षाया । 

3.    परिवाद  के समर्थन में  प्रार्थी ने स्वयं का संक्षिप्त षपथपत्र पेष किया इसी तरह से अप्रार्थी बैंक के अधिकारी का भी जवाब के समर्थन में षपथपत्र पेष हुआ है । अप्रार्थी बैंक की ओर से दिनांक 31.12.2007 के  पत्र की प्रति पेष की है । प्रार्थी को  ऋण की किष्ते नही ंचुकाने के संबंध में जो नोटिस भेजा गया उसकी प्रति पेष हुई । अप्रार्थी बैंक की ओर से पत्र दिनांक 19.1.2009, 
3.3.2009 की प्रतियां भी पेष हुई । प्रार्थी की ओर से दिए गए नोटिस दिनंाक 15.9.2009 व 19.5.2012 की प्रति भी पेष हुई ।

4.    हमने पक्षकारान की बहस सुनी एवं पत्रावली का अनुषीलन किया
 
5.    सबसे पहले हम अप्रार्थी बैंक की ओर से जो एतराज लिया गया  कि उनके द्वारा  प्रार्थी को स्वीकृत  किए गए इस ऋण के संबंध में अधिनियम ,2002  में कार्यवाही प्रारमभ की जा चुकी है । अतः इस मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नही ंहै , के संबंध में अपना विनिष्चय देना उचित समझते है । 
 
6.    इस अधिनियम की धारा 14(3), 17,34 व 35 के प्रावधान के आधार पर  अप्रार्थी अधिवक्ता का ऐसा कथन रहा है । बहस के लिए अधिनियम ,2002 के इन प्रावधानों को मान भी लिया जावे तब भी प्रार्थी का यह परिवाद उसके विरूद्व बकाया ऋण की वसूली की कार्यवाही जो अधिनियम ,2002 में की जा रही है को रूकवाने हेतु नहीं है और ना ही इस परिवाद से प्रार्थी ने उक्त कार्यवाही को चुनौती दी है । इस परिवाद के अध्ययन से  सेवा में कमी जो अप्रार्थी के विरूद्व बतलाई है  वह मात्र यही है कि उसे स्वीकृत ऋण  की अदायगी कितनी किष्तों में होगी , किष्त कितनी राषि की होगी, ब्याज की दर क्या होगी आदि जानकारी नहीं दी तथा ऋण संबंधी औपचारिकताए ब्यावर कार्यालय में ही थी जबकि उसे बार बार जयपुर बुलाया गया आदि से  संबंधित है तथा इस संबंध में  प्रार्थी को जो आर्थिक नुकसान हुआ के रू. 5000/- की मांग की हे । इस सारे विवेचन से हमारा विनम्र मत है कि अप्रार्थी बैंक द्वारा प्रारम्भिक आपत्तियों के द्वारा जो एतराज लिए गए है उक्त एतराज इस प्रकरण में सुसंगत नहीं है । अतः हम पाते है कि प्रार्थी का यह परिवाद  अधिनियम ,2002 के प्रावधान  अनुसार इस मंच में सुनवाई योग्य नही ंहै , अप्रार्थी बैंक की ओर से  सिद्व नही ंहुआ है 

7.    अब हम प्रकरण  के गुणावगुण की ओर अग्रसर होते है । परिवाद के तथ्य जो उपर वर्णित हुए है के अनुसार सेवा में कमी संबंधी प्रार्थी  के यहीं कथन रहे है कि ऋण हेतु आवेदन करते वक्त अप्रार्थी बैंक द्वारा उसे विष्वास दिलाया गया था कि सारी कार्यवाही ब्यावर कार्यालय से की जावेगी किन्तु उसे  ऋण संबंधी कार्यवाही हेतु जयपुर कई बार बुलाया गया जिससे उसे काफी मानसिक व षारीरिक कष्ट व  आर्थिक नुकसान हुआ  है ।  इसी तरह से ऋण राषि भी एक  साथ नहीं देकर किष्तों में दी है जिस हेतु उसे  बार बार जयपुर जाना पडा । प्रार्थी द्वारा ऋण खाते का स्टेटमेंट मांगा जो  वह भी समय पर नहीं दिया गया ।  अतः  उसंने अपने अधिवक्ता के माध्यम से अप्रार्थी को नोटिस दिया  गया   कि उससे बकाया ऋण राषि की वसूली की जा रही है किन्तु बकाया ऋण राषि के संबंध में कोई विवरण उसे उपलब्ध नहीं करवाया गया है । इस संबंध में अप्रार्थी  बैंक का जवाब  रहा है  जिसके अनुसार प्रार्थी ने इस ऋण हेतु रूरल हाउसिंग फाईनेन्स  के तहत  गृह ऋण उपलब्ध कराने का निवेदन किया क्योंकि प्रार्थी ग्राम ब्यावर खास का निवासी था । अतः इस ऋण से संबंधित औपचारिकताएं जयपुर से ही संबंधित थी । अतः इन औपचारिकताओं को पूर्ण करने के लिए जयपुर कार्यालय जाना पडा । इसके अतिरिक्त   स्वीकृत ऋण की राषि का भुगतान किष्तों में किया जाता है जो प्रार्थी को नियमानुसार करना है तथा प्रार्थी का यह कथन कि उसे इस ऋण से संबंधित ष्षर्ते आदि नहीं बतलाई के सबंध में दिनांक 31.12.2007 का ऋण स्वीकृति पत्र के आधार पर अप्रार्थी बैंक का कथन रहा है कि इस पत्र में इस ऋण के संबंध में सारी षर्ते व अदायगी किस तरह से होगी व ब्याज क्या होगा वर्णित है । 
8.    हमने गौर किया । अप्रार्थी बैंक के इस जवाब का कोई खण्डन प्रार्थी द्वारा  किसी रिज्योईण्डर या षपथपत्र आदि पेष कर नहीं किया गया है । ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 31.12.2007 जिसकी प्रति पत्रावली पर है, के अध्ययन से यह ऋण कितनी राषि का है तथा अदयगी कितनी किष्तों में करनी होगी व ब्याज दर क्या होगी आदि सब विवरण दिए हुए है । इस पत्र पर स्वयं प्रार्थी व उसके पिता के हस्ताक्षर भी है । 
9.    परिवाद के अध्ययन से प्रार्थी को ऋण कब स्वीकृत हुआ , प्रार्थी कब कब जयपुर गया आदि के संबंध में तथ्यों का कोई उल्लेख नहीं किया है किन्तु अप्रार्थी की ओर से जो जवाब पेष हुआ उसके अध्ययन से  प्रार्थी को यह ऋण दिनांक 31.12.2007 को स्वीकृत हुआ  एवं प्रार्थी जनवरी, 2008 में इस ऋण के संबंध में जयपुर कार्यालय गया आदि तथ्य उल्लेखित है । परिवाद में प्रार्थी द्वारा जो नोटिस अप्रार्थी बैंक को दिए गए उसमें प्रथम नोटिस दिनांक 19.1.2009 व एक  ओर नोटिस दिनांक 3.3.2009 को देना दर्षाया है  एवं इन नोटिसेज में इन्हीं तथ्यों का विवरण है । प्रार्थी ने दो पत्र भी दिनांक 19.1.2009 , 3.3.2009 को अप्रार्थी बैंक को भेजे , की प्रतिया पेष हुई है  अर्थात ऋण स्वीकृति की कार्यवाही करीब 6-7 वर्ष पूर्व हुई है एवं प्रार्थी द्वारा पत्र भी करीब 6 वर्ष पूर्व दिए गए है । नोटिस दिनांक 15.9.2009 भी करीब 5-6 वर्ष पूर्व दिया गया है । प्रार्थी के विरूद्व जब इस ऋण की अदायगी नही ंकरने पर अधिनियम ,2002 का नोटिस दिनंाक 31.5.2013 को दिया गया उसके पष्चात्  यह परिवाद दिनंाक 6.8.2013 कोे लाया गया है  जबकि वादकरण  वर्ष 2007,2008,2009 में ही उत्पन्न हो गया था । प्रार्थी द्वारा यह परिवाद दिनांक 6.8.2013 को देरी से लाए जाने का कोई कारण नहीं दर्षाया है । 
10.     उपरोक्त अनुसार जो विवेचना हुई है उसके दृष्टिगत हम पाते है कि ऋण स्वीकृति पत्र दिनांक 31.12.2007 जिस पर प्रार्थी व उसके पिता के हस्ताक्षर है,  में स्वीकृत ऋण से सबंधित सारे तथ्य  एवं षर्तो का उल्लेख है । अप्रार्थी बैंक के जवाब अनुसार चूंकि प्रार्थी को यह ऋण रूरल फाईनेन्स हाउसिंग  के अन्तर्गत स्वीकृत किया गया एवं औपचारिकताओं हेतु  प्रार्थी को जयपुर जाना पडा, उल्लेखित है एवं परिवाद देरी से लाया गया  से संबंधित उपर जो विवचेना हुई है, इन सभी तथ्यों को देखते हुए हम पाते है कि प्रार्थी द्वारा अपने इस परिवाद में  अप्रार्थी बैंक के विरूद्व  वर्णित किए गए सेवा में कमी के तथ्य को सिद्व नहीं कर पाया है  ।  परिणामस्वरूप¬ प्रार्थी का यह परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है । अतः आदेष है कि 
                       -ःः आदेष:ः-
11            प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार  किया जाकर  खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।

  (श्रीमती ज्योति डोसी)                      (गौतम प्रकाष षर्मा) 
             सदस्या                                  अध्यक्ष

12.        आदेष दिनांक 15.07.2015 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

              सदस्या                                अध्यक्ष

     
      
 

 

 

 

 

 

 
 
[ Gautam prakesh sharma]
PRESIDENT
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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