Rajasthan

Churu

33/2011

Maniram - Complainant(s)

Versus

ICICI Bank - Opp.Party(s)

Narendar Sharma

25 Nov 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 33/2011
 
1. Maniram
Bhakar Rajgarh Churu
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
परिवाद संख्या-   33/2011
मनीराम पुत्र श्री रामस्वरूप जाति जाट निवासी भाकरा तहसील राजगढ़ चूरू (राजस्थान)
......प्रार्थी
बनाम
 
1.    प्ब्प्ब्प् बैंक, फागलवा पेट्रोल पम्प के पास, सीकर (राजस्थान) जरिये शाखा प्रबन्धक
 ......अप्रार्थी
दिनांक-  26.03.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री ललित कुमार गौतम एडवोकेट  - प्रार्थी की ओर से
2.    श्री वरूण सैनी एडवोकेट         - अप्रार्थी की ओर से
 
 
1.    प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी के द्वारा उतरवादी की सीकर शाखा से ट्रक नं0 भ्त् 564146पर 7,42,230 रूपये का ऋण दिनांक 22.09.2005 को लिया था जिस ऋण की अदायगी प्रार्थी को 25,063 रूपये की मासिक 33 किस्तों में किये जाने का अनुबन्ध हुआ था। ऋण अनुबन्ध संख्या स्।छ छवण् स्टब्भ्न्0004420085 है। प्रार्थी ने समस्त 33 किस्ते निरन्तर प्रत्येक माह दिनांक 22.09.2005 से 22.05.2008 तक की अदायगी उतरवादी के चूरू नियुक्त रिकवरी अभिकर्ता श्री अक्षय कुमार को कर दी गई है जिसके द्वारा किस्त जमा की रसीदे जारी कर प्रार्थी को दी है इसके अनुसार उतरवादी प्ब्प्ब्प् बैंक के द्वारा जारी स्टेटमेंट आॅफ एकाउन्ट से भी कुल 33 किस्ते जमा होना साबित है। उतरवादी के द्वारा सम्पूर्ण किस्तों की राषि 7,42,230 रूपये जमा करवा देने के बावजूद भी उतरवादी ने प्रार्थी को छवण् क्नमेए छव्ब् व फार्म नम्बर 35 जारी कर नहीं दिये गये है जिसके लिए प्रार्थी मई 2008 से बराबर मांग उतरवादी से करता आ रहा है लेकिन उतरवादी बैंक के द्वारा किसी न किसी बहाने से छवण् क्नमेए छव्ब् व फार्म नम्बर 35 जारी कर देने का केवल आष्वासन दिया जाता रहा हे प्रार्थी भोला भाला व्यक्ति है जो उतरवादी के आष्वासनों पर विष्वास करता आ रहा है।
2.    आगे प्रार्थी ने बताया कि उतरवादी ने आज तक प्रार्थी को छवण् क्नमेए छव्ब् व फार्म नम्बर 35 जारी कर नहीं दिया है जबकि विपक्षी का यह कानूनी दायित्व बनता है कि प्रार्थी के द्वारा मई 2008 को अंतिम किष्त दिनांक 22.05.2008 को जमा करवाने के तुरन्त बाद छवण् क्नमेए छव्ब् व फार्म नम्बर 35 जारी कर देता। उतरवादी की लापरवाही व सेवा दोष के कारण प्रार्थी मानसिक परेषानी भुगत रहा है तथा छव्ब् व फार्म नम्बर 35 जारी करवाने के लिए प्रार्थी ने उतरवादी को दिनांक 20.11.2010 को विपक्षी को कानूनी नोटिस छवण् क्नमेए छव्ब् व फार्म नम्बर 35 जारी करने हेतु प्रेषित करवाया। जो नोटिस उतरवादी को प्राप्त हो गया इसके बावजूद भी उतरवादी ने नोटिस में वर्णित अवधि में प्रार्थी द्वारा मांग गये दस्तावेज जारी नहीं किय है। जिस कारण प्रार्थी को उतरवादी के विरूद्ध परिवाद पेष करने का आधार व कारण प्राप्त हुआ है। इसलिए प्रार्थी ने अपने वाहन के ऋण अनुबन्ध के सम्बंध में नो ड्यूज, एन.ओ.सी. व फार्म नम्बर 35 जारी करने, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय दिलाने की मांग की है।
3.    अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेष किया कि प्रार्थी व विपक्षी बैंक के मध्य डेबिटर व क्रेडिटर का संबध है। ऐसी स्थिति में उक्त प्ररण माननीय सिविल न्यायालय के क्षेत्राधिकार व श्रवणाधिकार में आने से उक्त प्रकरण माननीय जिला उपभोक्ता मंच के क्षेत्राधिकार एवं श्रवणाधिकार में बाधित होने से उक्त परिवाद-पत्र माननीय न्यायालय के समक्ष कानूनन चलने योग्य नहीं होने से खारिज किय जाने योग्य है। परिवाद पत्र के मद संख्या 2 में उल्लेखित तथ्य अस्वीकार है। सी तथ्य यह है कि प्रार्थी ने उक्त मद में अपनी 33 किश्तों को निरन्तर जमा होना उल्लेखित किया है। जबकि प्रार्थी प्रार्थी के खाता विवरण ;ठंदा ।बबवनदज ैजंजमउमदजद्ध में प्रार्थी की किश्तें समय पर जमा न होने के कारण प्रार्थी पर ओवरड्यू चार्जेज दिनांक 22.09.2005 से 22.05.2008 तक लगाये जाते रहे है। जिसका हवाला प्रार्थी के खाता विवरण ;ठंदा ।बबवनदज ैजंजमउमदजद्ध  दिनांक 08.02.2011 में उल्लेखित किया गया है। जिसकी प्रति प्रार्थी को भी भेजी गई थी।
4.    आगे अप्रार्थी ने जवाब दिया कि परिवाद-पत्र के मद संख्या 3 में उल्लेखित तथ्य अस्वीकार है। विपक्षी बैंक ने भारतीय रिजर्व बैंक के बनाये गये नियमों व शर्तों के मुताबिक ही अपना कार्य किया है। इसमें विपक्षी बैंक की कोई गलती नहीं है ना ही विपक्षी बैंक ने प्रार्थी को किसी भी प्रकार का आश्वासन दिया था। रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया के नोटिफिकेशन त्ठप्ध्2005.06ध्54 कंजमक 13.07.2005  एवं वितिय अस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुर्नगठन और प्रतिभूति हित परिवर्तन अधिनियम 2002 की धारा 5 की उपधारा 2 के तहत अधिकार है कि अप्रार्थी द्वारा किसी भी ऋण का प्रार्थी द्वारा ऋण की अदायगी में चूक किया जाने पर किसी अन्य वित्तीय संस्थान उक्त ऋण खाता को असाईन ;।ेेपहदद्ध करने का स्वतंत्र है तथा प्रार्थी के द्वारा ऋण की अदायगी में चूक होने पर उक्त खाता संख्या स्टब्भ्न्00004420085 को मैग्मा फीनकोर्प लिमिटेड ;डथ्स्द्ध को दिनांक 29.09.2009 जरिये अपने पत्र त्मण् िदवण् 5992ध्ड।ळड।.।च्च्स्प्ब्।छज् क्ंजमक 25.09.2009 को ।ेेपहद कर दिया गया तथा ।ेेपहद कर देने के पश्चात ऋण से सम्बंधित प्ब्प्ब्प् ठंदा स्जक के समस्त अधिकार व दायित्व मैग्मा फीनकाॅप लि. को हस्तांतरित हो गया तथा प्रार्थी को छव्ब् जारी करने का अधिकार अब मात्र मैग्मा फीनकोर्प लिमिटेड ;डथ्स्द्ध को ही प्राप्त है, एवं न्यायहित में मैग्मा फीनकोर्प लिमिटेड ;डथ्स्द्ध परिवाद में आवश्यक पक्षकार प्रार्थी को बनाया जाना चाहिए था। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने की मांग की।
5.    प्रार्थी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, बैंक स्टेटमेन्ट की प्रति, जमा करवायी गयी असल रसीद दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की ओर से मनोज कुमार वर्मा का शपथ-पत्र, पत्र दिनांक 25.09.2009, बैंक स्टेटमेन्ट की प्रति, समन की प्रति दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
6.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
7.    प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने अप्रार्थी से ट्रक संख्या एच.आर. 564146 पर 7,42,230 रूपये का ऋण लिया था जो प्रार्थी को 25,063 रूपये मासिक किश्त के रूप में कुल 33 किश्तों में जमा करवाना था। प्रार्थी ने उक्त ऋण की अदायगी दिनांक 22.09.2005 से दिनांक 22.05.2008 तक मय ब्याज, कुल 33 किश्तों में चुकता कर दिया। चुकता करने के पश्चात प्रार्थी ने अप्रार्थी से अपने वाहन की एन.ओ.सी. फार्म नम्बर 35 की मांग की। परन्तु अप्रार्थी द्वारा बार-बार प्रार्थी को आश्वासन दिया जाता रहा। परन्तु आज तक एन.ओ.सी. व फार्म नम्बर 35 जारी करके नहीं दिया। अप्रार्थी का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष की श्रेणी में आता है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त आधारों पर परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि चूंकि प्रार्थी का ऋण एन.पी.ए. हो गया था। अर्थात् प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां किश्तें समय पर जमा नहीं करवायी। इसलिए प्रार्थी का खाता एन.पी.ए. होने के कारण अप्रार्थी ने रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया के नोटिफिकेशन त्ठप्ध्2005.06ध्54 कंजमक 13.07.2005  एवं वितिय अस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुर्नगठन और प्रतिभूति हित परिवर्तन अधिनियम 2002 की धारा 5 की उपधारा 2 के तहत प्रार्थी का ऋण खाता दिनांक 29.09.2009 को मैग्मा फिनकोर्प को अन्तरित कर दिया गया। इसलिए एन.ओ.सी. जारी करने का आधार भी उक्त मैग्मा फिनकोर्प को है जिसे प्रार्थी ने आवश्यक पक्षकार होते हुए भी पक्षकार नहीं बनाया। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
8.    हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी से अपने वाहन ट्रक संख्या एच.आर. 564146 के हेतु 7,42,230 रूपये ऋण स्वीकृत किया जाना व उक्त ऋण प्रार्थी द्वारा ब्याज सहित अप्रार्थी के यहां 33 किश्तों के माध्यम से जमा करवाया जाना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु यह है कि प्रार्थी का खाता एन.पी.ए. हो जाने के कारण अप्रार्थी ने मैग्मा फिनकोर्प को प्रार्थी का खाता अन्तरित कर दिया गया। इसलिए एन.ओ.सी. जारी करने का अधिकार केवल उक्त मैग्मा फिनकोर्प को है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस के समर्थन में इस मंच का ध्यान पत्र दिनांक 25.09.2009 की ओर दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त पत्र अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को लिखा गया था। उक्त पत्र में अप्रार्थी ने प्रार्थी को यह बताया कि उसके द्वारा किश्तें समय पर जमा नहीं करवाने के कारण प्रार्थी का ऋण खाता समस्त दस्तावेजों सहित मैग्मा फिनकोर्प को अन्तरित कर दिया गया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त पत्र के आधार पर तर्क दिया कि एन.ओ.सी. जारी करने का अधिकार मैग्मा फिनकोर्प को है। उक्त आधार पर अप्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
9.    प्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि अप्रार्थी ने प्रार्थी को उसके खाते के अन्तरण से पूर्व किसी प्रकार का कोई नोटिस नहीं दिया। यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी ने अपनी समस्त किश्तें प्रार्थी के खाते के अन्तरण से पूर्व ही दिनांक 28.05.2008 को जमा करवा दी थी। अप्रार्थी अधिवक्ता ने बहस के समर्थन में इस मंच का ध्यान अपने द्वारा जमा करवायी गयी रसीदों व अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत स्टेटमेन्ट की ओर दिलाया जिनका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत रसीदों व बैंक स्टेटमेन्ट से यह स्वीकृत है कि प्रार्थी ने अपने द्वारा लिये गये ऋण का भुगतान दिनांक 25.09.2009 से पूर्व ही कर दिया था। अप्रार्थी अधिवक्ता का यह तर्क कि प्रार्थी का खाता ओवर ड्यू चार्जेज के भुगतान नहीं करने से एन.पी.ए. हो गया इसलिए उसके द्वारा प्रार्थी के खाता मैग्मा फिनकोर्प को अन्तरित किया गया तर्क विश्वसनीय प्रतीत नहीं होते है क्योंकि अप्रार्थी स्वंय द्वारा प्रस्तुत प्रार्थी के ऋण खाते के स्टेटमेन्ट जो कि दिनांक 20.09.2013 का है में प्रार्थी की रसीदों का विवरण गलत व मिथ्या किया हुआ है। प्रार्थी द्वारा जमा करवायी गयी राशियों का इन्द्राज अप्रार्थी बैंक ने रसीदों की दिनांक से भिन्न दिनांकों से किया है व ओवर ड्यू चार्जेज की राशि अपने स्तर पर विधि विरूद्ध अंकित की हुई है। अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत स्टेटमेन्ट इसलिए भी विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता क्योंकि अप्रार्थी के स्टेटमेन्ट में प्रार्थी के द्वारा जमा करवायी गयी राशि दिनांक 17.02.2006 रसीद संख्या 1154062 व 2499490 दिनांक 01.10.2006 का इन्द्राज अप्रार्थी ने अपने बैंक स्टेटमेन्ट में नहीं किया हुआ। अप्रार्थी ने अपने जवाब से पूर्व एक प्रार्थना-पत्र बाबत तलबी रसीदात दिनंाक 16.05.2011 को पेश किया था जिसमें अप्रार्थी ने माह अप्रेल 2008 व माह मई 2008 की किश्तों की राशि अपने यहां जमा होना नहीं अंकित करते हुए उक्त रसीदात मंच में प्रस्तुत करने हेतु पेश किया था। प्रार्थी ने उक्त प्रार्थना-पत्र के परिपेक्ष में उक्त दोनों रसीदात इस मंच में प्रस्तुत कर दी। अप्रार्थी के स्टेटमेन्ट व प्रार्थी द्वारा जमा करवायी गयी रसीदों के अवलोकन से स्पष्ट है कि अप्रार्थी ने प्रार्थी के स्टेटमेन्ट मंे प्रविष्टियां गलत व अपने स्तर पर की है। अप्रार्थी ने अपने जवाब के समर्थन में ऐसा दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं किया जिससे यह प्रतीत हो कि प्रार्थी व अप्रार्थी के मध्य देरी से जमा करवायी गयी राशि हेतु ब्याज दर अर्थात् ओवर ड्यू चार्जेज किस दर से देय होंगे जैसा कि पूर्व में वर्णित किया है कि अप्रार्थी ने अपने स्टेटमेन्ट में इन्द्राज मिथ्या व गलत अंकित किया है। बैंक स्टेटमेन्ट में ब्याज की दर किस प्रकार होगी कोई अंकन नहीं है। इसलिए अप्रार्थी अधिवक्ता का यह तर्क मान्य नहीं है कि प्रार्थी का खाता एन.पी.ए. हो गया क्योंकि प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां ऋण राशि की अदायगी दिनांक 25.09.2009 से पूर्व ही कर दी थी। यदि प्रार्थी की ओर किसी प्रकार की कोई बकाया राशि ओवर ड्यू चार्जेज के रूप में थी तो अप्रार्थी को उक्त सम्बंध में प्रार्थी को नोटिस जारी करना चाहिए था। परन्तु अप्रार्थी ने ऐसा कोई नोटिस प्रार्थी को जारी किया हो दस्तावेज पत्रावली पर नहीं है। उपरोक्त विवेचनानुसार स्पष्ट है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां अपने ऋण की अदायगी अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी के खाते का अन्तरण मैग्मा फिनकोर्प को करने से पूर्व ही दिनांक 25.08.2008 को कर दिया था जबकि अप्रार्थी ने प्रार्थी के खाते का अन्तरण जरिये असायनमेन्ट दिनांक 23.06.2009 को किया था। मंच की राय में अप्रार्थी को उक्त खाता अन्तरित करने से पूर्व विधि अनुसार सूचना दिया जाना आवश्यक था। ऐसा ही मत न्यायिक दृष्टान्त 2 सी.पी.जे. 2006 पेज 122 में सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंण्डिया बनाम राजकुमार जैन माननीय राज्य आयोग नई दिल्ली ने यह अभिनिर्धारित किया कि बैंक के नियम व विनियम चैन्ज होेने पर बैंक को प्रत्येक उपभोक्ता के पास व्यक्ति सूचना भेजनी आवश्यक है। जबकि अप्रार्थी ने प्रार्थी को उसका खाता अन्तरण करने की सूचना अन्तरण करने के बाद दिनांक 25.09.2009 को भिजवायी थी। अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज किसी भी रूप से विश्वसनीय प्रतीत नहीं होते क्योंकि अप्रार्थी ने प्रार्थी के बैंक स्टेटमेन्ट की सभी प्रविष्टियां अपने हिसाब से इन्द्राज करते हुए ओवर ड्यू चार्जेज प्रार्थी पर लगाये गये है और ऐसा कोई दस्तावेज भी पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया जिससे यह साबित हो कि ओवर ड्यू चार्जेज की दर/ब्याज कितना है। चूंकि प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत रसीदों के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि प्रार्थी ने भी अप्रार्थी के यहां समस्त किश्तें निर्धारित दिनांक पर जमा नहीं करवायी। इसलिए प्रार्थी अप्रार्थी को देरी से जमा होने वाली किश्तों पर भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों के अनुरूप 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज अदा करने हेतु दायित्वाधीन है। अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को ओवर ड्यूज के आधार पर एन.ओ.सी. व फार्म संख्या 35 जारी नहीं करना मंच की राय में अप्रार्थी का सेवादोष है। इसलिए प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध स्वीकार किये जाने योग्य है।
             अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर उसे मंच द्वारा निम्न अनुतोष दिया जा रहा है।
(क.) अप्रार्थी को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थी को मंच के आदेश की दिनांक के 2 माह के अन्दर-अन्दर उसके द्वारा लिये गये ऋण की अदायगी हेतु देरी से जमा होने वाली किश्त पर ओवर ड्यू चार्जेज के रूप में 9 प्रतिशत वार्षिक दर से साधारण ब्याज निर्धारण करते हुए पूर्व विवरण प्रार्थी को भिजवायेगा जिसकी एक प्रति इस मंच में भी भिजवायी जावे।
(ख.) अप्रार्थी को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थी द्वारा चरण संख्या क के अनुसार ओवर ड्यू चार्जेज की राशि जमा करवाने की दिनांक से 2 माह के अन्दर-अन्दर प्रार्थी को एन.ओ.सी. व फार्म संख्या 35 जारी कर देंवे। अप्रार्थी को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थी को 5,000 रूपये मानसिक प्रतिकर व 4,000 रूपये परिवाद व्यय के रूप में भी अदा करेगा।
 
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो              षिव शंकर
   सदस्य                सदस्या                   अध्यक्ष                  
    निर्णय आज दिनांक  26.03.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो              षिव शंकर
    सदस्य                 सदस्या                   अध्यक्ष       
 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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