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HAFIJ KHAN filed a consumer case on 11 Apr 2014 against ICICI BANK in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/10/2014 and the judgment uploaded on 16 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -10-2014 प्रस्तुति दिनांक-16.01.2014
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
हफीज खान, वल्द हाजी सलीम खान,
निवास-मेजर ध्यान चंदबार्इ, काजी मोहल्ला
सिवनी, जिला सिवनी (म0प्र0)।................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
आर्इ0सी0आर्इ0सी0आर्इ0 बैंक द्वारा-
षाखा प्रबंधक, आर्इ0सी0आर्इ0सी0
आर्इ0 बैंक, षाखा सिवनी, कचहरी
चौक सिवनी, तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।.........................................................................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 11.04.2014 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, दिनांक-23.10.2012 को अनावेदक से गोल्ड लोन प्राप्त कर, परिवादी द्वारा, निक्षिप्त किये गये स्वर्ण सामग्री को अनावेदक बैंक के द्वारा विक्रय कर दिये जाने को अनुचित व सेवा में कमी बताते हुये, आभूशण वापस दिलाने व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी ने दिनांक-23.10.2012 को एक सोने का सिक्का 20 ग्राम, एक जोड़ी चूड़ी 30.600 ग्राम, एक हार 26.450 ग्राम, इस तरह कुल-77.050 ग्राम के स्वर्ण आभूशणसामग्री जमा करके अनावेदक बैंक से 1,64,724-रूपये ऋण प्राप्त किया था, जो कि- ऋण अदायगी की अवधि छै माह रही है। और यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-दिसम्बर-2012 में परिवादी ने उक्त ऋण खाते में 32,000-रूपये जमा किये थे, अन्य कोर्इ अदायगी नहीं की गर्इ। और उक्त ऋण के रिन्यूअल बाबद भी कोर्इ कार्यवाही नहीं हुर्इ, तो अनावेदक बैंक के द्वारा, उक्त स्वर्ण आभूशण नीलामविक्रय कर, ऋण राषि अगस्त-2013 में वसूल ली गर्इ।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-परिवादी को बताया गया था कि-यदि ऋण की छै माह की अवधि में ऋण राषि वापस नहीं की जाती है, तो उक्त खाते को रिन्यू कराकर, पुन: आगामी छै माह के लिए बढ़ाया जा सकता है और इस संबंध में संस्था सूचना भी देती है, लेकिन अनावेदक के द्वारा, उक्त आष्वासन अनुसार, पूर्व सूचना की कार्यवाही या रिन्यूअल की नहीं की गर्इ। और जब सितम्बर-2013 में परिवादी षेश बकाया राषि की व्यवस्था कर, अनावेदक की बैंक षाखा में गया, तो उसे मौखिक जानकारी दी गर्इ कि-परिवादी की स्वर्ण सामग्री विक्रय कर दी गर्इ है और इस संबंध में की गर्इ कार्यवाही का विवरण मांगने पर भी प्रदान करने से इंकार कर दिया गया, जो कि-बिना परिवादी को सुने और बिना विधिक कार्यवाही के गिरवी रखा सोना विक्रय कर दिया जाना अनुचित प्रथा है और परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में कमी है।
(4) अनावेदक के जवाबआपतित का सार यह है कि-मूल विशय संविदात्मक विशय है और अनावेदक ने भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 176 के तहत अपने विधिक अधिकार का ही प्रयोग किया है, जो कि- परिवादी ने स्वर्ण ऋण की विशय षर्तों को अपने आवेदन में स्वयं हस्ताक्षर कर स्वीकार किया है अनावेदक के किसी अधिकारी या कर्मचारी ने ऐसा कोर्इ कथन नहीं किया था कि-छै माह में ऋण राषि वापस न किये जाने पर स्वत: उक्त खाता रिन्यू होकर छै माह के लिए बढ़ाया जा सकेगा, जो कि-परिवादी ने छै माह की विहित अवधि में ऋण की अदायगी नहीं की, जो कि-अनावेदक ने दिनांक-10.05.2013 और 28.05.2013 को परिवादी को मांग की सूचना भेजा था, फिर भी परिवादी ने सही समय पर अदायगी नहीं की, प्रतिभूति स्वर्ण विक्रय के पूर्व भी आवेदक को दिनांक-22.06.2013 को नोटिस फार इनफोर्समेन्ट आफ सेक्यूरिटी भेजा गया था, फिर भी परिवादी ने बकाया राषि अदा नहीं किया है, न ही लिखित में नोटिस का कोर्इ जवाब दिया, तब दिनांक-13.07.2013 को पेपर पबिलकेषन भी अनावेदक ने किया था, फिर भी परिवादी ने न तो कोर्इ बैंक से संपर्क किया, न ही ऋण की राषि लौटाया, इसलिए लोक राषि के क्षय को रोकने के लिए अनावेदक ने नियमानुसार बंधक स्वर्ण का विक्रय कर, लोक राषि को समायोजित किया है, जो कि-परिवाद में परिवादी को सूचना न दिये जाने का असत्य आधार लिया गया है और परिवाद मात्र परेषान करने के लिए पेष किया गया है, जो निरस्त योग्य है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या अनावेदक द्वारा, ऋण की प्रतिभूति के लिए
निक्षिप्त स्वर्ण को विक्रय कर, ऋण की वसूली
किया जाना अनुचित होकर, परिवादी के प्रति-
की गर्इ सेवा में कमी है?
(ब) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-3 के ऋण आवेदन की पावती व प्रदर्ष सी-1 के टोकन कार्ड और अनावेदक की ओर से पेष प्रदर्ष आर-1 के इनवेन्ट्री व ऋण स्वीकृति-पत्र से भी यह स्वीकृत तथ्य स्थापित है कि-परिवादी के स्वर्ण सामग्री को निक्षिप्त कर, उक्त प्रतिभूति के आधार पर, 1,64,724-रूपये का गोल्ड लोन दिनांक-23.10.2012 को परिवादी को दिया गया था। और यह भी विवादित नहीं कि-उक्त ऋण का भुगतान छै माह के अंदर परिवादी के द्वारा किया जाना था, जो कि-23 अप्रैल-2013, उक्त लोन की सुविधा का अंतिम तिथि रहा है, उक्त अवधि में परिवादी द्वारा, जैसा कि-प्रदर्ष सी-2 खाता प्रति से प्रकट है कि-मात्र दिनांक-14.12.2012 को उक्त ऋण के पेठे मात्र 32,000-रूपये ही जमा कराये गये और षेश ऋण राषि का परिवादी की ओर से भुगतान नहीं किया गया और प्रदर्ष सी-1 के पृश्ठ भाग पर, ऋण सुविधा का विवरण, ऋण की पूर्णत: अवधि, ब्याज दर आदि के संबंध में दिया गया है।
(7) 10 मर्इ-2013 को अनावेदक द्वारा, परिवादी को भेजे कहे जा रहे डिमांड नोटिस की प्रति प्रदर्ष आर-1 पेष की गर्इ है और पुन: दिनांक-28 मर्इ-2013 को रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजे डिमांड नोटिस की प्रति प्रदर्ष आर-4 और उक्त नोटिस 31 मर्इ-2013 को रजिस्टर्ड-डाक से भेजे जाने बाबद पोस्टल रसीद की प्रति आर-7 अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष हुर्इ है। और उक्त डाक लौटने बाबद डाक लिफाफा के इन्डोर्समेन्ट की प्रति आर-8 भी अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष की गर्इ है।
(8) उक्त के पष्चात दिनांक-22 जून-2013 को अनावेदक द्वारा रजिस्टर्ड-डाक से भेजे गये परिवादी को नोटिस फार इनफोर्समेन्ट आफ सेक्यूरिटी की प्रति प्रदर्ष आर-5 से यह दर्षित है कि-उक्त नोटिस में ऋण अदायगी न किये जाने के कारण प्रतिभूत रखे गये स्वर्ण की नीलामी 24 जुलार्इ-2013 को अनावेदक बैंक की नरसिंगपूर षाखा के स्थान पर किये जाने का उल्लेख रहा है। और उक्त नोटिस परिवादी को 28 जुलार्इ-2013 को अनावेदक-पक्ष के बम्बर्इ कार्यालय से भेजे जाने की पुशिट में डाक भेजने की पोस्टल रसीद प्रदर्ष आर-6 पेष हुर्इ है, तो उक्त मांग-पत्र के नोटिस व प्रतिभूति स्वर्ण नीलाम करने की सूचना का नोटिस परिवादी के सही पते पर भेजा जाना दर्षित है। और ऐसे में उक्त सब नोटिस परिवादी को प्राप्त हो जाने की अवधारणा भी है और प्रदर्ष आर-13 का जो पृश्ठ क्रमांक-13 से 16 तक मानक नियम व षर्तें गोल्ड लोन के संबंध में दर्षार्इ गर्इं हैं, उसमें नियम क्रमांक-65 व अन्य नियमों से यह दर्षित है कि-ऋण गृहिता के द्वारा उपलब्ध कराये गये पते पर बैंक की ओर से सूचना, डाक में प्रेशित कर दिया जाना सूचना की तामिल माना जायेगा।
(9) उक्त के अलावा भी अनावेदक बैंक के द्वारा हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाशाओं के समाचार-पत्र में 19 जुलार्इ-2013 को स्वर्ण नीलामी की आमंत्रण सूचना प्रकाषित की गर्इ थी, उसमें भी जिन ऋण गृहिताओं की प्रतिभूति का स्वर्ण नीलाम होना है, उसका विवरण भी दिया गया है, जो दिनांक-13.07.2012 की उक्त नीलामी सूचना का समाचार-पत्र में भी प्रकाषन होना पाया जाता है।
(10) अनावेदक-पक्ष की ओर से प्रदर्ष आर-13 के जो डाकेट पेष किये गये हैं, उसमें ऋण के आवेदन व इनवेन्ट्री, टोकन कार्ड और स्वर्ण के विरूद्ध ऋण सुविधा के मानक नियम व षर्तें सब दर्षार्इ गर्इं हैं, जिनसे स्पश्ट है कि-परिवादी को जब पूर्व से यह स्पश्ट रहा है कि-स्वर्ण के विरूद्ध प्राप्त किये गये ऋण के भुगतान की अंतिम तिथि 23.04.2013 रही है और उक्त अवधि में परिवादी ने ऋण राषि की अदायगी नहीं किया था, तो उक्त अवधि की समापित की जानकारी परिवादी को पूर्व से थी, जो परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-1 के पृश्ठ भाग में दर्षाये विवरण से स्पश्ट है। तो यदि परिवादी ऋण राषि का भुगतान करना चाहता था, तो वह ऋण अवधि के विस्तार हेतु या रिन्यूअल के लिए स्वयं आवेदन पेष कर सकता था, जो उसके द्वारा नहीं किया गया, बलिक उल्टे यह दर्षित है कि-अनावेदक बैंक की ओर से 10 मर्इ-2013 का डिमांड नोटिस परिवादी को भेजा गया और पुन: रजिस्टर्ड डाक से 28 मर्इ-2013 को परिवादी को मांग का यह नोटिस भेजा गया कि-उक्त नोटिस के 10 दिन के अंदर नियम व षर्तों के अनुसार षेश बकाया राषि 1,32,724-रूपये का परिवादी भुगतान करे, तब भी परिवादी द्वारा ऋण राषि के भुगतान बाबद कोर्इ कार्यवाही नहीं की गर्इ, तो उक्त प्रतिभूति स्वर्ण 24 जुलार्इ-2013 को दोपहर ढार्इ से साढ़े तीन बजे के बीच स्थान-अनावेदक बैंक के नरसिंगपूर षाखा में नीलाम किये जाने का नोटिस 22 जून-2013 का अनावेदक के द्वारा रजिस्टर्ड-डाक से न केवल परिवादी को भेजा गया, बलिक उक्त नीलामी की सार्वजनिक सूचना का भी हिन्दी व अंग्रेजी के अखबारों में पेपर प्रकाषन किया गया। और परिवादी तब भी षांत रहा है और उसके द्वारा ऋण राषि का भुगतान कर, प्रतिभूति स्वर्ण वापस पाने का कोर्इ प्रयास नहीं किया गया।
(11) प्रदर्ष सी-2 का जो आनलार्इन ट्रांजक्षन इंग्क्वारी की प्रति परिवादी की ओर से पेष हुर्इ है, उससे ही स्पश्ट है कि-जब स्वर्ण ऋण नीलामी होकर, 1,82,377-रूपये दिनांक-30.08.2013 को परिवादी के ऋण खाते में जमा होना दर्षा दिये गये, ऋण की तुशिट के बाद, षेश राषि 32,199-रूपये परिवादी को प्राप्त हुये, उसके बाद दिनांक-03.10.2013 को प्रदर्ष सी-4 का जरिये अधिवक्ता नोटिस भेजकर, उसका आधार बनाकर मामला पेष किया गया है, तो ऋण की राषि अदा न करने का स्वयं परिवादी दोशी रहा है और उक्त स्वर्ण के विरूद्ध ऋण के नियम षर्तों के अनुसार ही ऋण राषि की वसूली के लिए नीलामी के द्वारा, प्रतिभूत रखे स्वर्ण का विक्रय कर, अनावेदक के द्वारा, विधिक अधिकार का उपयोग विधिवत किया गया है। अनावेदक के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ अनुचित प्रथा अपनाया जाना या कोर्इ सेवा में कमी किया जाना दर्षित नहीं। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(12) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, प्रस्तुत परिवाद स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना- अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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