जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
डा. लक्ष्मीनारायण षर्मा पुत्र श्री पी.एल षर्मा, उम्र- 54 वर्ष, निवासी- 2 घ-5, वैषालीनगर, अजमेर हाल पदस्थापित झालावाड़ मेडिकल काॅलेज,झालावाड़।
- प्रार्थी
बनाम
1. आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड, पंजीकृत कार्यालय, लेण्डमार्ग रेसकोर्स सर्किल, बड़ोदा-39007
2. आईसीआई बैंक लिमिटेड़, कचहरी रोड़, अजमेर जरिए प्रबन्धक ।
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 180/2013
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री विभौर गौड़, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री अवतार सिंह उप्पल, अधिवक्ता अप्रार्थी बैंक
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 26.08.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै किवह
राज्य मेड़िकल काॅलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है और इसी क्रम में उसका स्थानान्तरण होता रहता है । इसलिए उसका अपने मूल निवास अजमेर में बना रहना सम्भव नहीं है । वर्तमान में वह झालावाड़ मेडिकल काॅलेज में कार्यरत है । उसका अप्रार्थी बैंक के यहां एक बचत खाता है जिसके तहत उसने एटीएम के आप्षन से चैक बुक प्राप्ति हेतु आवेदन किया । जब वह नवम्बर, 2009 में अजमेर आया तो उसने अप्रार्थी बैंक से इस संबंध में सम्पर्क किया तो उसे बताया गया कि चैक बुंक लौट गई है और उसे एक फार्म देते हुए यह निर्देष दिए गए कि वह केयर आफ अप्रार्थी बैंक लिख दे तो चैक बुक अप्रार्थी बैंक को प्राप्त हो जावेगी और अप्रार्थी बैंक के पास जब चैक बुक आ जावेगी तो उसे सूचित कर दिया जावेगा । उक्त सलाह अनुसार उसने फार्म भर दिया और जब वह पुनः नवम्बर, 2009 के अन्त में अजमेर आया तो यह कहते हुए चैक बुक देने से इन्कार कर दिया कि उसके हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे हंै । उसके साथ उस समय उसके मि. डा.पाठक भी साथ थे प्रार्थी ने अपनी पहचान हेतु फोटो आईडी देख लिए जाने या मोाबईल या दूरभाष कर पहचान कर लिए जाने का निवेदन किया साथ ही यह भी निवेदन किया कि वह व्यक्तिगत रूप से मौजूद है, इसलिए नमूना हस्ताक्षर लेकर उसे चैक बुक दे दी जावें । काफी जद्ोजहद के बाद अन्त में उसे चैक बुक दे दी गई । इस संबंध में उसने अप्रार्थी बैंक के उच्चाधिकारियों को भी षिकायत की । किन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई । प्रार्थी ने इसे अप्रार्थी बैंक की सेवा में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में प्रार्थी ने स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी बैंक ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रार्थी का खाता उनके यहां होना व एटीएम से चैक बुक प्राप्ति हेतु आवेदन करना स्वीकार करते हुए आगे दर्षाया है कि प्रार्थी को चैक बुक बैंक खाते में दर्षाए पते पर भेजी गई । किन्तु वह वापस लौट कर आ गई । इस पर प्रार्थी द्वारा नवम्बर, 2009 में उत्तरदाता के यहां आने पर उसकी स्वयं की प्रार्थना पर चैक बुक अप्रार्थी बैंक में मंगवाने हेतु फार्म भरने की सलाह दी गई साथ ही यह भी कहा गया कि जब भी चैक बुक उन्हें प्राप्त होगी, सूचना दे दी जावेगी और वह चैक बुक प्राप्ति के लिए अपना आईडी पू्रफ साथ लेकर आवें । प्रार्थी नवम्बर, 2009 के अन्त में जब चैक बुक लेने उत्तरदाता के यहां आया तो उस समय ैलेजमउ छमजूवता डाउन था एवं प्रार्थी कोई भी आईडी प्रूफ लेकर नहीं आया था । इसलिए अप्रार्थी बैंक के अधिकारियों ने प्रार्थी को कुछ समय इन्तजार करने के लिए कहा । कुछ देर बाद जैसे ही अप्रार्थी बैकं का ैलेजमउ छमजूवता दुरूस्त हो गया तो आवष्यक टमतपपिबंजपवद कर चैक बुक प्रार्थी को दे दी गई । इस प्रकार उनके स्तर पर कोई सेवा में कमी नहीं की गई । अन्त में परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में नितिन जैसवाल, कलस्टर मैनेजर का षपथपत्र पेष हुआ है ।
3. यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रार्थी पक्ष की ओर से अंतिम बहस के समय एक प्रार्थना पत्ऱ अन्तर्गत धारा 13(4)( प्ट) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सपठित आदेष 11 नियम 14 सीपीसी में प्रस्तुत कर निवेदन किया गया कि प्रार्थी के बैंक में उपस्थित होने पर चैक बुक के लिए मूल आईडी पू्रफ साथ लाने पर दिए जाने की षर्त पर बैंक द्वारा उसकी पहचान कर लिए जाने या स्वयं का व्यक्तिगत रूप से मौजूद होने बाबत् अपने नमूना हस्ताक्षर लेकर तसल्ली किए जाने का निवेदन किए जाने के बावजूद बैंक द्वारा कोई कार्यवाही नहंी करने तथा एक फार्म देने व यह फार्म उसके द्वारा भरे जाने का उल्लेख करते हुए इस तथ्य का खण्डन नहीं किए जाने की स्थिति में उक्त फार्म तलब किए जाने हेतु प्रस्तुत प्रार्थना पत्र पर मंच की राय में प्रकरण की इस अंतिम स्टेज पर उक्त फार्म तलब किए जाने का कोई औचित्य नहीं है । वैसे भी प्रार्थी के अभिवचनों के अनुसार उसे उक्त चैक बुक प्राप्त हो गई है । इन हालात में अब हम उक्त फार्म तलब किए जाने के आदेष पारित करने की बजाय प्रकरण में गुणावगुण पर विचार कर अंतिम निर्णय पारित कर रहे हैं ।
4. प्रार्थी पक्ष का प्रमुख रूप से तर्क रहा है कि उसके कोटा में पदस्थापित होने व मूल निवास अजमेर में बने रहना सम्भव नहीं हो पाने की स्थिति में उसके द्वारा नवम्बर, 2009 के अन्त में अजमेर आने व अप्रार्थी बैंक से सम्पर्क करने पर उसे बताया गया था कि चैक बुक लौट कर चली गई है व फार्म भर कर दिए जाने के बावजूद भी उसे उक्त चैक बुक नहीं दी गई । जबकि उसके द्वारा स्वयं की पहचान हेतु आईडी कार्ड अथवा स्वयं की व्यक्तिषः जीवन होने का प्रमाण देते हुए वांछित चैक बुक चाही गई थी । यहीं नहीं उसके साथ तत्समय दुव्र्यवहार भी किया गया । ऐसा किया जासकर अप्रार्थी बैंक द्वारा सेवा में कमी का परिचय दिया गया है ।
5. अप्रार्थी बैंक द्वारा इस तथ्य का खण्डन किया गया व प्रार्थी के बैंक में व्यक्तिषः आने पर उसे यह सूचित किया गया था कि चैक बुक उसके निवास से लौट गई है तथा बैंक ने व्यक्तिषः चैक बुक सौेपनें से पूर्व कुछ औपचारिकताओं की पूर्ति के बाद चैक बुक प्रार्थी को सौंप दी गई थी । प्रार्थी के साथ किसी प्रकार का दुव्र्यवहार नहीं किया गया । उस दिन सर्वर डाउन होने के कारण कुछ समय इन्तजार किए जाने को कहा गया था । विनिष्चय प्प्प्;2012द्धब्च्श्र 455;छब्द्ध ैण्त्ए ैेेनदकंतंउ टे ैजंजमत ठंदा व िप्दकपं - व्तेण् पर अवलम्ब लेते हुए तर्क प्रस्तुत किया गया कि वास्तव में तकनीकी त्रुटि के कारण अर्थात सर्वर डाउन होने के कारण प्रार्थी को इन्तजार करने हेतु कहा गया था । इसमें बैंक के किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी की कोई गलती नही ंथी । तत्समय प्रार्थी अपने साथ कोई निवास का प्रमाण या पहचान पत्र नहीं लाया था । सिस्टम में त्रुटि होने तथा प्रार्थी को चैक बुक देने तथा प्रार्थी को इन्तजार करने हेतु कहा गया था । इसमें उनकी कोई सेवा में कमी नहीं रही । परिवाद खारिज किया जाना चाहिए ।
6. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चय में प्रतिपादित सिद्वान्त का भी अवलोकन कर लिया है ।
7ण् विचारणीय बिन्दु मात्र यह है कि क्या प्रार्थी को चैक बुक प्राप्त करने में किसी प्रकार की कोई बैंक के स्तर पर सेवा में कमी अथवा अनुचित व्यापार व्यवहार के आचरण का सामना करना पड़ा है ?
8. हस्तगत मामले में मुख्य विवाद मात्र प्रार्थी को चैक बुक प्रदत्त करने में व इस कारण उसे हुई असुविधा का बनता है । प्रार्थी ने यह स्वीकार किया है कि वह राज्य मेडिकल काॅलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है तथा राज्य सेवा के क्रम में उसका स्थानान्तरण होते रहने के कारण मूल निवास अजमेर में बने रहना सम्भव नहीं हो पाता । उसके नवम्बर, 2009 में कोटा पदस्थापित रहने के दौरान उसने अप्रार्थी बैंक से एटीएम के आप्षन से चैक बुक प्राप्त करने हेतु आवेदन किया था जो मूल निवास अजमेर के पते पर अप्रार्थी द्वारा प्रेषित किया जाना था तथा प्राप्त नहीं होने पर नवम्बर,2009 में ही प्रार्थी ने अजमेर आकर बैंक में सम्पर्क किया । इसका अर्थ यह हुआ कि उक्त चैक बुक प्रार्थी के अजमेर स्थित मूल निवास स्थान पर प्रदत्त होनी थी तथा इस अवधि में वह स्वयं अपने मूल निवास स्थान पर मौजूद नही ंथा व यह चैक बुक बैंक द्वारा उसके मूल निवास के पते पर भिजवाई गई थी जो उसके मौजूद नहीं होने के कारण वापस लौटा दी गई जैसा कि प्रार्थी के अभिवचनों से स्पष्ट है कि उसे यह तथ्य बैंक में उपस्थित होने पर पता लगा । प्रार्थी ने बैंक में चैक बुक हेतु निवेदन करने पर प्रमाण हेतु स्वयं की व्यक्तिषः उपस्थिति अथवा आईडी पु्रफ हेतु आईडी कार्ड अथवा मोबाईल का हवाला दिया है। मंच की राय में प्रार्थी का यह तर्क एवं
तथ्य मान लिया जाता है कि उसके द्वारा तत्समय एक फार्म भरा गया था जिसमंे समस्त तथ्यों का विवरण समाविष्ट कर दिया गया था । अपने परिवाद में उसने अन्ततः चैक बुक प्राप्त होना बताया है । ऐसा प्रकट होता है कि प्रार्थी को उसी दिन उसके बैंक में उपस्थित होने पर कुछ औपचारिकताओं की पूर्ति के बाद चैक बुक सौंप दी गई । सर्वप्रथम तो प्रार्थी से यह अपेक्षित था कि वह अपने द्वारा पूर्व में मंगवाई गई चैक बुक की डिलीवरी के संदर्भ में अपने मूल निवास स्थान अजमेर पर उपस्थित रहता । यदि वह अपने निवास स्थान पर चैक बुक प्राप्ति के समय मौजूद नहीं था तो उसके लिए बैंेक में चैक बुक प्राप्ति हेतु इस बाबत् कुछ औपचारिकताओं व आवष्यक प्रमाण से बैंक अधिकारियों को सन्तुष्ट करना अपेक्षित था अपितु आवष्यक भी था । यदि बैंक द्वारा उसके प्रतिवाद के बावजूद किसी प्रकार का कोई फार्म भरवाया गया है तथा उसी दिन चैक बुक प्रदत्त कर दी गई है तो इसमें अप्रार्थी बैंक की किसी प्रकार की कोई गलती अथवा लापरवाही रही हो, यह नहीं माना जा सकता । प्रार्थी ने तत्समय अपने साथ अपने मित्र डा. पाठक का भी मौजूद होना बताया है तथा उनकी उपस्थिति में बैंक की लापरवाही का प्रतिवाद लिया है । प्रार्थी ने अपने इस मित्र डा. पाठक का इस बाबत् कोई षपथपत्र भी प्रस्तुत नहीं किया है । सम्भव है तत्समय बैंक में उसे असुविधा हुई हो । लेकिन ऐसा मात्र उसके मूल निवास अजमेर में चेक बुक के डाक से प्राप्ति के लिए उपस्थित न रहने के कारण हुआ है ।
9. मंच की राय में उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में अप्रार्थी बैंक की किसी प्रकार की कोई सेवा में कमी व उनके स्तर पर अनुचित व्यापार व्यवहार रहा हो, नहीं माना जा सकता । प्रस्तुत विनिष्चय में भी यही सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है । सार यह है कि प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
10. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 26.08.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य अध्यक्ष