Uttar Pradesh

Faizabad

CC/186/2011

Dinesh Kumar Pandey - Complainant(s)

Versus

Icici Bank - Opp.Party(s)

01 Sep 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/186/2011
 
1. Dinesh Kumar Pandey
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Icici Bank
FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

              परिवाद सं0-186/2011

               
दिनेष कुमार पाण्डेय पुत्र स्व0 रामचन्द्र पाण्डेय निवासी आदर्षपुरम कालोनी, देवकाली, तहसील व जनपद फैजाबाद।                                   .............. परिवादी
बनाम
1.    षाखा प्रबन्धक, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक नियावां षहर व जिला फैजाबाद।  
2.    ऋण प्रबन्धक, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक 31/54 षालीमार टावर, द्वितीय तल, 11 महात्मागांधी मार्ग, हजरतगंज, लखनऊ।
3.    क्षेत्रीय प्रबन्धक, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक 31/54 षालीमार टावर, द्वितीय तल, 11 महात्मागांधी मार्ग, लखनऊ।
4.    आई.सी.आई.सी.आई. बैंक पोस्ट बाक्स नं0 18712 अंधेरी वेस्ट मुम्बई 400058
5.    असेट री कन्सट्रक्षन कं0 (इण्डिया) लिमिटेड आफिस नं0 4 द्वितीय तल, सेन्टर कोर्ट, 3/55, पार्क रोड, लखनऊ।
6.    मेसर्स असेट री कन्सट्रक्षन कं0 इण्डिया लिमिटेड रुबी दषम फ्लोर, 29 सेनापति वापत मार्ग दादर वेस्ट मुम्बई 400028                       ..........  विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 01.09.2015            
उद्घोषित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 से वर्श 2004 में गृह निर्माण हेतु ऋण के लिये आवेदन किया और विपक्षी संख्या 1 द्वारा परिवादी एवं उसके पिता श्री राम चन्द्र पाण्डेय जिनकी मृत्यु दिनांक 12.09.2004 को हो गयी को संयुक्त रुप से रुपये 4,00,000/- का ऋण स्वीकृत किया गया जिसका खाता संख्या एल0वी0एफ0ए0जेड0 00000798710 है। प्रष्नगत ऋण का भुगतान विपक्षी संख्या 1 ने दो किष्तों में रुपये 3,06,400/- व रुपये 93,600/- का क्रमषः 30 जून 2004 व 5 अक्टूबर 2004 को किया। परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 को जो पोस्ट डेटेड चेक दिये थे उनसे विपक्षी संख्या 1 दिनांक 07.10.2007 तक किष्तों का भुगतान प्राप्त करते रहे। पोस्ट डेटेड चेकों के समाप्त होने के बाद किष्तों का भुगतान अनियमित हो गया किन्तु समय समय पर परिवादी विपक्षीगण के कलेक्षन एजेन्ट के माध्यम से किष्तों का भुगतान करता रहा। ऋण के भुगतान में देरी का मुख्य कारण कलेक्षन एजेन्ट की अनुपलब्धता की वजह से हुई। सितम्बर 2010 में परिवादी को एक अदिनांकित रिकवरी नोटिस प्राप्त हुई जिसमें ऋण के भुगतान का सुझाव दिया गया था। उक्त नोटिस के क्रम में परिवादी ने श्री इमरान खान से मिल कर जिनका मोबाइल नम्बर 8953737111 था, संपर्क किया तो उन्होंने परिवादी से ऋण का अंतिम रुप से भुगतान करने को कहा किन्तु पहले किष्तों को अपडेट करने की बात कही उसके बाद ही अंतिम भुगतान प्राप्त किया जायेगा बताया। श्री इमरान खान से वार्ता के क्रम में परिवादी ने रुपये 86,417/- दिनांक 19.10.2010 को जमा कर दिया और श्री इमरान खान से अंतिम भुगतान की कुल धनराषि बताने को कहा किन्तु कई बार उनसे संपर्क करने के बाद भी उन्होंने अंतिम भुगतान की धनराषि नहीं बतायी। दिनांक 27.12.2010 को परिवादी ने कलेक्षन एजेन्ट मनोज कुमार श्रीवास्तव के माध्यम से रसीद संख्या 1012045700 द्वारा रुपये 9,602/- जमा किया। किन्तु विपक्षी संख्या 1 ने तब भी अंतिम भुगतान की धनराषि नहीं बतायी। परिवादी एक मुष्त भुगतान का प्रयास करता रहा मगर परिवादी को भुगतान की जाने वाली धनराषि नहीं बतायी गयी। परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 से बैंक स्टेटमेंट की भी मांगी की जिसे विपक्षी संख्या 1 ने उपलब्ध नहीं कराया तब मजबूर हो कर परिवादी ने बैंकिंग लोकपाल को बैंक स्टेटमेंट दिलाये जाने का प्रार्थना पत्र दिया तब जा कर विपक्षी संख्या 1 ने दिनांक 27-06-2011 को बैंक स्टेटमेंट दिया। विपक्षी संख्या 1 ता 4 तथा 5 व 6 ने मिली भगत कर के परिवादी को ऋण के अंतिम भुगतान की धनराषि दो वर्शों तक नहीं बतायी और न ही भुगतान प्राप्त किया। विपक्षी संख्या 5 व 6 ने दिनांक 28.12.2012 तक यह कभी नहीं बताया कि परिवादी को किष्तों का भुगतान कितना व कहां करना है। जिस कारण परिवादी को अनावष्यक रुप से विपक्षीगण ने रुपये 1,50,000/- का अधिक ब्याज देना बताया है। विपक्षीगण मनमाना देय बता कर परिवादी के विरुद्ध अवैधानिक कार्यवाही करने की धमकी दे रहे हैं। विपक्षी संख्या 1 ता 4 प्रष्नगत ऋण को विपक्षी संख्या 5 व 6 को दिनांक 30-12-2010 को बेचा जाना बता रहे हैं। प्रष्नगत ऋण न तो नानपरफार्मिंग असेट था और न ही डिफाल्ट खाता था ऐसी स्थिति में विपक्षीगण किसी भी दषा में दिनांक 30.12.2010 को बचे अवषेश मूल धनराषि के अलावा कोई अतिरिक्त धनराषि पाने के अधिकारी नहीं हैं। परिवादी को दिनांक 27.06.2011 को ऋण का विवरण प्राप्त होने से पता लगा कि विपक्षी संख्या 1 बैंक ने परिवादी को सूचना दिये बिना दिनांक 30.12.2010 को ऋण का रजिस्टर बन्द कर दिया है और ऋण की वसूली के लिये, ऋण को ए0आर0सी0एल0 को बेच दिया है। परिवादी पर दिनंाक 7 अक्टूबर 2010 को रुपये 1,13,455.80 पैसे बकाया बताया गया तथा कहा गया कि बकाया किष्त जमा कर दें तो आपका एक मुष्त पैसा जमा करा कर खाता बन्द कर दिया जायेगा। दिनांक 15.10.2010 को परिवादी ने रुपये 86,417/- जमा कर दिया। इसके बावजूद विपक्षी बैंक ने एक मुष्त पैसा न तो परिवादी को बताया और न ही जमा कराया। परिवादी ने रुपये चार लाख का ऋण लिया था और परिवादी रुपये तीन लाख का भुगतान कर चुका है। जब विपक्षी बैंक ने एक मुष्त रुपया नहीं बताया तब भी परिवादी ने विपक्षी के एजेन्ट के माध्यम से दिनांक 27.12.2010 को रुपये 9,602/- जमा कराया। परिवादी के हिसाब से रुपये 27,272.80 पैसे ही ब्याज सहित बकाया बचते हैं। दिनांक 27-12-2010 को रुपये 9,602/- जमा करने के बाद दिनांक 30.12.2010 को खाता बन्द करने का कोई औचित्य नहीं था। परिवादी के ऊपर विपक्षीगण का मात्र 2,37,412/- बकाया बचता है जिसे वह पाने के अधिकारी हैं। परिवादी का खाता दुर्भावना पूर्वक बन्द कर के नाजायज तरीके से अनुचित लाभ कमाने की नीयत से वसूली हेतु बेचा गया है। परिवादी ने दिनांक 28.06.2012 तथा बाद मंे भी विपक्षी संख्या 1 से खाता वापस मंगाने व पैसा जमा कराने का अनुरोध किया और विपक्षी संख्या 1 ने आष्वासन भी दिया किन्तु दिनांक 25-07-2011 को खाता वापस मंगाने व एक मुष्त पैसा जमा कराने से इन्कार कर दिया। इसलिये परिवादी को अपनना परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादी से ऋण खाते का बकाया विपक्षी संख्या 1 के यहां रुपया 2,37,412/- जमा करा कर ऋण खाता बन्द कराया जाय तथा विपक्षी संख्या 1 से अदेयता प्रमाण पत्र दिलाया जाय। परिवादी को विपक्षी संख्या 1 से आर्थिक, मानसिक व षारीरिक क्षति के लिये क्षतिपूर्ति रुपये 2,10,000/- तथा परिवाद व्यय दिलाया जाय।   
    फोरम से विपक्षीगण को पंजीकृत नोटिस भेजे गये जिनके रजिस्ट्री लिफाफे वापस नहीं आये। दिनांक 24.01.2012 को समाचार पत्र में नोटिस का प्रकाषन कराया गया। दिनंाक 24.05.2012 को विपक्षीगण 1 ता 4 फोरम के समक्ष उपस्थित हुए, किन्तु उन्होंने न तो अपने किसी अधिवक्ता का वकालतनामा दाखिल किया और न ही अपना लिखित कथन दाखिल किया। विपक्षीगण 1 ता 4 के विरुद्ध परिवाद की सुनवाई दिनांक 20.07.2012 को एक पक्षीय रुप से किये जाने आदेष किया गया। मगर विपक्षी संख्या 1 ता 4 ने एक पक्षीय आदेष को रिकाल कराये जाने हेतु कोई प्रार्थना पत्र निर्णय के पूर्व तक नहीं दिया और न ही अपना लिखित कथन दाखिल किया। विपक्षीगण 1 ता 4 के विरुद्ध परिवादी के स्थगन प्रार्थना पत्र पर दिनांक 11.03.2013 को सुनवाई की गयी और परिवादी के पक्ष में तथा विपक्षीगण 1 ता 4 के विरुद्ध स्थगन आदेष पारित किया गया। उक्त स्थगन आदेष में परिवादी को विपक्षीगण 1 ता 4 के यहां रुपये 1,54,780/- जमा करने का आदेष दिया गया था और विपक्षीगण से वसूली कार्यवाही न करने को कहा गया था।
विपक्षी संख्या 1 ता 4 ने रुपये न जमा करा कर अपना उत्तर पत्र दाखिल किया है और दिनांक 20-03-2013 को विपक्षी संख्या 1 ता 4 ने अपना एक प्रार्थना पत्र फोरम को परिवादी के प्रार्थना पत्र दिनांक 18.03.2013 के विरुद्ध दिया है, जिस पर बैंक की कोई मोहर नहीं लगी है तथा अधिवक्ता श्री देष दीपक सिंह के हस्ताक्षर हैं किन्तु देष दीपक सिंह का कोई वकालतनामा पत्रावली पर नहीं है। बैंक के उक्त प्रार्थना पत्र के तथ्य इस प्रकार हैं कि उत्तरदाता ने परिवादी का ऋण खाता दिनांक 30.12.2010 को सम्पूर्ण ऋण राषि व ब्याज सहित बन्द कर दिया था और समस्त बकाये को असेट रिकन्सट्रक्षन कम्पनी इं0 लि0 को वसूली के अधिकार सहित हस्तांतरित कर दिया था। वर्तमान मंे उत्तरदातागण के यहां परिवादी का कोई खाता न होने के कारण फोरम द्वारा आदेषित धनराषि न तो जमा किया जाना सम्भव है और न ही न्यायोचित है। परिवादी को परिवाद दाखिल करने के पूर्व उत्तरदाता द्वारा उसका ऋण विपक्षी संख्या 5 ता 6 को हस्तांतरित किये जाने की जानकारी थी जिसे परिवादी ने अपने परिवाद पत्र की धारा 9 में स्वीकार किया है। किन्तु परिवादी ने तथ्यों को छिपाते हुए अपना परिवाद फोरम मंे दाखिल किया है और गलत तथ्यों पर आदेष दिनांक 11.03.2013 उत्तरदातागण के विरुद्ध पारित करवा लिया है जो न्यायोचित नहीं है। परिवादी ने जानबूझ कर विपक्षी संख्या 5 ता 6 के विरुद्ध आदेष पारित नहीं करवाया है। क्यों कि परिवादी की मंषा ऋण की धनराषि जमा करने की नहीं है। परिवादी ने जानबूझ कर उत्तरदाता के विरुद्ध आदेष दिनांक 13.03.2013 पारित करवा कर धनराषि जमा करने का प्रयास किया है जब कि परिवादी जानता है कि खाता न होने की स्थिति में उत्तरदातागण धनराषि जमा नहीं कर सकते हैं। ऋण की धनराषि वसूल करने का अधिकार दिनांक 30-12-2010 से अब विपक्षी संख्या 5 ता 6 को ही है। ऐसी स्थिति में आदेष दिनांक 13-03-2013 निरस्त करते हुए विपक्षी संख्या 5 ता 6 के यहां धनराषि जमा कराने का आदेष पारित किया जाय। उत्तरदातागण ने परिवादी का ऋण विपक्षी संख्या 5 ता 6 को बेच दिया है और वह ऐसी स्थिति में परिवादी से रुपये 1,54,780/- जमा नहीं करा सकते। विपक्षीगण का उक्त प्रार्थना पत्र वकालतनामा व बैंक की मोहर के अभाव में दिनांक 21-03-2013 को खारिज कर दिया गया था।
    विपक्षी संख्या 5 ता 6 के द्वारा दिनांक 18.09.2013 को वकालतनामे के साथ अपना लिखित कथन/ आपत्ति दाखिल की है तथा कथित किया है कि उत्तरदातागण असेट रिकन्सट्रक्षन कम्पनी (इण्डिया) लि0 हैं और कम्पनीज एक्ट के तहत पंजीकृत हैं। विपक्षी संख्या 1 ता 4 ऋण वितरित करने वाले प्रथम पक्ष है और उन्होंने ने बिना किसी षर्त के उक्त ऋण खाते को उत्तरदातागण को सभी अधिकार सहित स्थानांतरित किया है। परिवादी ने बैंक ऋण की किष्तों का भुगतान समय से नहीं किया है तथा अतिदेय भुगतान की उपेक्षा की है। इसलिये परिवादी का ऋण खाता नान परफार्मिंग असेट में क्लसीफाई किया गया और रिजर्व बैंक के दिषा निर्देषों के अनुसार परिवादी को दिनांक 17.12.2012 को नोटिस भेजी गयी। परिवादी ने यह जानते हुए कि उत्तरदातागण ने परिवादी के विरुद्ध ऋण वसूली की कार्यवाही षुरु कर दी है परिवादी ने यह परिवाद फोरम के समक्ष दाखिल कर दिया। परिवादी का यह परिवाद सरफेसी एक्ट 2002 के अनुसार बाधित है और परिवादी का परिवाद चलने योग्य नहीं है। माननीय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग, नई दिल्ली ने ‘‘हरि नन्दन प्रसाद बनाम स्टेट बैंक आफ इण्डिया’’ रिवीजन पिटीषन संख्या 995 सन 2012 में इस बात पर विषेश बल दिया है कि यदि सरफेसी एक्ट 2002 के अन्तर्गत यदि परिवादी के विरुद्ध वसूली कार्यवाही षुरु कर दी गयी है तो जिला फोरम को परिवादी के परिवाद को सुनने का अधिकार नहीं है। माननीय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग, नई दिल्ली ने इस सिद्धान्त को ‘‘बैंक आफ बडौदा बनाम गीता फूड’’ रिवीजन पिटीषन संख्या 3499 सन 2012 में प्रतिपादित किया है जिसमें उपभोक्ता आयोग ने ऋण वसूली नोटिस दिनांक 02.06.2012 को रोक दिया था, जिसमें माननीय राश्ट्रीय आयोग ने कहा था कि ऐसे मामलों में सरफेसी एक्ट के तहत नोटिस जारी हो गयी हो को केवल डेट रिकवरी ट्रिब्युनल को ही सुनने का अधिकार है, उपभोक्ता संरक्षण राज्य आयोग को एसे मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है जिसकी अधिकारिता डेट रिकवरी ट्रिब्युनल में निहित है। माननीय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग, नई दिल्ली ने यह भी कहा कि एसे मामले में बैंक की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं है। अतः परिवादी का परिवाद निरस्त किया जाय।  
    पत्रावली का भली भाँति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना षपथ पत्र, परिवादी के विपक्षी बैंक को लिखे गये पत्र दिनांक 20.06.2011 की छाया प्रति, ऋण की स्थिति के पत्रक दिनांक 23.05.2011 की छाया प्रति, लोन रिकाल नोटिस दिनांक 24.09.2010 की प्रति जिसमें दिनांक 16.09.2010 को ऋण का बकाया रुपये 3,56,781/- जमा करने को एक सप्ताह में कहा गया है की मूल प्रति, ऋण खाते का विवरण पत्र दिनंाकित 27.01.2011 की छाया प्रति, विपक्षीगण के विरुद्ध नोटिस के प्रकाषन के समाचार पत्र की प्रति दिनांकित 20.03.2012, ऋण के भुगतान के षड्यूल की छाया प्रति, परिवादी का साक्ष्य में षपथ पत्र, दिनांक 25.12.2010 को विपक्षी संख्या 1 के बैंक में जमा किये गये रुपये 9,602/- की रसीद की मूल प्रति, दिनांक 14.09.2010 को विपक्षी संख्या 1 के बैंक में जमा किये गये रुपये 86,417/- की रसीद की मूल प्रति, परिवादी के ऋण खाते के बैंक स्टेटमंेट दिनांक 16-12-2010 की छाया प्रति, विपक्षी बैंक द्वारा जारी परिवादी के ऋण की अमोर्टिजेषन षड्यूल की छाया प्रति, विपक्षी संख्या 5 ता 6 द्वारा जारी एक मुष्त समाधान पत्र दिनांक 15.11.2013 की छाया प्रति, विपक्षी संख्या 5 ता 6 द्वारा परिवादी के पक्ष मंे जारी अदेयता प्रमाण पत्र दिनांक 28.12.2013 की छाया प्रति, विपक्षी संख्या 5 ता 6 द्वारा जारी पत्र की छाया प्रति दिनांक 29.11.2013 बावत परिवादी द्वारा जमा किये गये रुपये 4,15,000/- के सम्बन्ध में, विपक्षी संख्या 5 ता 6 के पत्र दिनांक 29.11.2013 की छाया प्रति, विपक्षी संख्या 5 ता 6 द्वारा रुपये 4,15,000/- जमा किये जाने की रसीद की छाया प्रति, परिवादी के ऋण अनुबन्ध पत्र की पुस्तिका मूल रुप में तथा विपक्षी संख्या 5 ता 6 द्वारा जारी लेजर रिपोर्ट दिनांक 29.11.2013 की मूल प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी संख्या 1 ता 4 ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी संख्या 5 ता 6 ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी ने अंतिम भुगतान दिनांक 25-12-2010 को रुपये 9,602/- का किया था जिसे परिवादी के खाते में दिनांक 27-12-2010 को चढ़ाया गया और विपक्षी संख्या 1 बैंक ने अपने कथन में कहा है कि परिवादी का ऋण खाता दिनांक 30-12-2010 को बन्द कर के विपक्षी संख्या 5 ता 6 को बेच दिया। इस सम्बन्ध में परिवादी ने प्रतिभूतिकरण सम्बन्धी कानून की प्रति दाखिल की है जिसमें क्लासिफिकेषन एण्ड प्रोवीजनिंग ऋण के सम्बन्ध में नियम दिये गये हैं जिसके मास्टर सर्कुलर में जो 30 जून 2004 को अपडेट किया गया है। उक्त कानून में एन.पी.ए. खाता उसे कहा जायेगा जिस खाते में 90 दिनों तक कुछ जमा न किया गया हो और उसे एन0पी0ए0 घोशित किया जायेगा। उक्त के सम्बन्ध में फोरम ने विपक्षी संख्या 1 ता 4 से परिवादी की ऋण पत्रावली तलब की जिसे विपक्षीगण ने दाखिल नहीं किया और उनसे यह पूछा गया कि उन्होंने परिवादी का ऋण खाता कब एन.पी.ए. किया गया तो इस सम्बन्ध में भी विपक्षीगण ने कोई उत्तर नहीं दिया। फोरम ने विपक्षीगण से दिनांक 10-02-2015 को तीन क्वाटर का एन.पी.ए. दाखिल करने को आदेषित किया मगर निर्णय के पूर्व तक विपक्षीगण ने कोई एन0पी0ए0 रिपोर्ट फोरम में दाखिल नहीं की जब कि उन्हें आदेषित किया गया था कि एन0पी0ए0 रिपोर्ट दाखिल न करने पर परिवाद के तथ्य विपक्षीगण के विरुद्ध अवधारित किये जायेंगे। दिनांक 11.03.2013 को वसूली के विरुद्ध स्थगन आदेष पारित होने के बावजूद विपक्षी संख्या 5 व 6 ने परिवादी से जबरदस्ती रुपये 4,15,000/- दिनांक 29.11.2013 को जमा करा लिया। फोरम ने परिवादी को दिनांक 11.03.2013 को आदेषित किया था कि वह विपक्षी संख्या 1 के यहां रुपये 1,54,700/- जमा करे और विपक्षी संख्या 5 व 6 को आदेषित किया गया था कि वह परिवादी के विरुद्ध कोई वसूली कार्यवाही परिवाद के लंबित रहने तक न करें। किन्तु विपक्षी संख्या 5 व 6 ने उक्त आदेष का उल्लंघन करते हुए परिवादी से दिनांक 29.11.2013 को रुपये 4,15,000/- बल पूर्वक जमा करा लिया। जो विपक्षी संख्या 1, 5 व 6 की सेवा में कमी है। फोरम के आदेष से विपक्षी संख्या 1 को रुपये 1,54,700/- का चेक विषेश पत्र वाहक द्वारा भेजा गया जिसे विपक्षी संख्या 1 ने लेने से इन्कार किया जो विषेश वाहक की रिपोर्ट के साथ पत्रावली पर संलग्न है। विपक्षी संख्या 1 ता 4 ने परिवादी का खाता नियम विरुद्ध एन.पी.ए. बता कर विपक्षी संख्या 5 व 6 को बेच दिया। विपक्षी संख्या 1 ता 4 ने फोरम के आदेष के बावजूद परिवादी के ऋण खाते की पत्रावली फोरम के समक्ष प्रस्तुत नहीं की और न ही विपक्षी संख्या 1 ता 4 ने तीन क्वाटर का ए.पी.ए. लेखा फोरम में दाखिल किया। परिवादी ने जब विपक्षी संख्या 1 के यहां दिनांक 25.12.2010 को रुपये 9,602/- जमा किया जिसे विपक्षी संख्या 1 ने अपने यहां दिनांक 27.12.2010 को जमा दिखाया तो परिवादी का खाता विपक्षी संख्या 1 ने दिनांक 30-12-2010 को खाता नियम विरुद्ध एन.पी.ए. दिखा दिया और बता दिया जो कि प्रतिभूतिकरण सम्बन्धी कानून में क्लासिफिकेषन एण्ड प्रोवीजनिंग ऋण के मास्टर सर्कुलर में जो 30 जून 2004 को अपडेट किया गया है का उल्लंघन है । विपक्षीगण 1 ता 4 ने इस प्रकार अपनी सेवा में कमी की है। दिनांक 30.12.2010 को परिवादी पर षड्यूल के हिसाब से रुपया 2,37,412/- बाकी था किन्तु विपक्षी संख्या 5 ता 6 ने परिवादी से रुपये 4,15,000/- जमा करा लिया। इस प्रकार परिवादी को रुपये 1,77,588/- की हानि हुई। परिवादी विपक्षी संख्या 1 से रुपये 1,77,588/- वापस पाने का अधिकारी है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है, परिवादी अनुतोश पाने का अधिकारी है। विपक्षीगण 1 ता 4 विपक्षी संख्या 5 व 6 से रुपये 1,77,588/- विधिक प्रक्रिया अपना कर वसूल करने के अधिकारी होंगे। परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।   
आदेश
    परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाशिक रुप से स्वीकार एवं अंाशिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षी संख्या 5 व 6 के विरुद्ध परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। विपक्षी संख्या 1 ता 4 को आदेषित किया जाता है कि वह परिवादी को रुपये 1,77,588/- आदेष की दिनांक से 30 दिन के अन्दर वापस करें। विपक्षी संख्या 1 ता 4 परिवादी को दिनांक 01.12.2013 से तरोज वसूली की दिनांक तक रुपये 1,77,588/- पर 6 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज का भी भुगतान करेंगे। विपक्षी संख्या 1 ता 4 परिवादी को क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 3,000/- तथा परिवाद व्यय के मद में रुपये 2,000/- का भी भुगतान करेंगे।
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 01.09.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.